ਓਇ ਅਗੈ ਕੁਸਟੀ ਗੁਰ ਕੇ ਫਿਟਕੇ ਜਿ ਓਸੁ ਮਿਲੈ ਤਿਸੁ ਕੁਸਟੁ ਉਠਾਹੀ ॥
ओइ अगै कुसटी गुर के फिटके जि ओसु मिलै तिसु कुसटु उठाही ॥
क्योंकि गुरु से शापित वे तो पहले ही कोढ़ी हैं। जो भी व्यक्ति ऐसे व्यक्ति का साथ करता है, उसे भी कोढ़ लग जाता है।
ਹਰਿ ਤਿਨ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਨਾ ਕਰਹੁ ਜੋ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਚਿਤੁ ਲਾਹੀ ॥
हरि तिन का दरसनु ना करहु जो दूजै भाइ चितु लाही ॥
हे जिज्ञासुओ ! भगवान के लिए उनके दर्शन भी मत करो, जो सतिगुरु को त्याग कर माया के मोह में लगते हैं।
ਧੁਰਿ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ਤਿਸੁ ਨਾਲਿ ਕਿਹੁ ਚਾਰਾ ਨਾਹੀ ॥
धुरि करतै आपि लिखि पाइआ तिसु नालि किहु चारा नाही ॥
उनके साथ उन्हें कोई उपाय सफल नहीं होता। चूंकेि परमात्मा ने आदिकाल से ही उनके द्वारा किए कर्मो के अनुसार ऐसे द्वैतभाव के संस्कार ही लिख दिए हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਰਾਧਿ ਤੂ ਤਿਸੁ ਅਪੜਿ ਕੋ ਨ ਸਕਾਹੀ ॥
जन नानक नामु अराधि तू तिसु अपड़ि को न सकाही ॥
हे नानक ! तुम नाम की आराधना करो, चूंकि नाम की आराधना वाले की समानता कोई नहीं कर सकता,
ਨਾਵੈ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੈ ਨਿਤ ਸਵਾਈ ਚੜੈ ਚੜਾਹੀ ॥੨॥
नावै की वडिआई वडी है नित सवाई चड़ै चड़ाही ॥२॥
नाम की महिमा महान हैं जो दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। २॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਜਿ ਹੋਂਦੈ ਗੁਰੂ ਬਹਿ ਟਿਕਿਆ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਵਡੀ ਹੋਈ ॥
जि होंदै गुरू बहि टिकिआ तिसु जन की वडिआई वडी होई ॥
जिसे गुरु ने स्वयं बैठकर तिलक किया हो, उसकी बहुत शोभा होती है।
ਤਿਸੁ ਕਉ ਜਗਤੁ ਨਿਵਿਆ ਸਭੁ ਪੈਰੀ ਪਇਆ ਜਸੁ ਵਰਤਿਆ ਲੋਈ ॥
तिसु कउ जगतु निविआ सभु पैरी पइआ जसु वरतिआ लोई ॥
उसके समक्ष सारी दुनिया झुकती है और उसके चरण स्पर्श करती है। उसकी शोभा सारे विश्व में फैल जाती है।
ਤਿਸ ਕਉ ਖੰਡ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ਨਮਸਕਾਰੁ ਕਰਹਿ ਜਿਸ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਹਥੁ ਧਰਿਆ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸੋ ਪੂਰਾ ਹੋਈ ॥
तिस कउ खंड ब्रहमंड नमसकारु करहि जिस कै मसतकि हथु धरिआ गुरि पूरै सो पूरा होई ॥
जिस मस्तक पर पूर्ण गुरु ने हाथ रखा हो, वह समस्त गुणों में पूर्ण हो गया और समस्त खण्डों – ब्रह्माण्डों के जीव उसे प्रणाम करते हैं।
ਗੁਰ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਨਿਤ ਚੜੈ ਸਵਾਈ ਅਪੜਿ ਕੋ ਨ ਸਕੋਈ ॥
गुर की वडिआई नित चड़ै सवाई अपड़ि को न सकोई ॥
गुरु की महिमा दिनों-दिन बढ़ती है, कोई मनुष्य उसकी समानता नहीं कर सकता,
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਕਰਤੈ ਆਪਿ ਬਹਿ ਟਿਕਿਆ ਆਪੇ ਪੈਜ ਰਖੈ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਈ ॥੩॥
जनु नानकु हरि करतै आपि बहि टिकिआ आपे पैज रखै प्रभु सोई ॥३॥
क्योंकि अपने सेवक नानक को सृजनहार प्रभु ने स्वयं मान दिया है इसलिए ईश्वर स्वयं ही उसकी लाज रखता है॥ ३ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਕਾਇਆ ਕੋਟੁ ਅਪਾਰੁ ਹੈ ਅੰਦਰਿ ਹਟਨਾਲੇ ॥
काइआ कोटु अपारु है अंदरि हटनाले ॥
काया रूपी किला अपार है, जिसके भीतर इन्द्रियां रूपी बाज़ार है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਉਦਾ ਜੋ ਕਰੇ ਹਰਿ ਵਸਤੁ ਸਮਾਲੇ ॥
गुरमुखि सउदा जो करे हरि वसतु समाले ॥
जो गुरमुख इन्द्रियों रूपी बाजार में से नाम रूपी सौदा खरीदते हैं, वे भगवान की नाम रूपी वस्तु संभाल लेते हैं।
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹਰਿ ਵਣਜੀਐ ਹੀਰੇ ਪਰਵਾਲੇ ॥
नामु निधानु हरि वणजीऐ हीरे परवाले ॥
काया रूपी किले में ही ईश्वर के नाम के खजाने का व्यापार किया जा सकता है, यही सौदे साथ-साथ निभने वाले हीरे तथा मूंगे हैं।
ਵਿਣੁ ਕਾਇਆ ਜਿ ਹੋਰ ਥੈ ਧਨੁ ਖੋਜਦੇ ਸੇ ਮੂੜ ਬੇਤਾਲੇ ॥
विणु काइआ जि होर थै धनु खोजदे से मूड़ बेताले ॥
जो व्यक्ति इस सौदे को काया के बिना किसी दूसरे स्थान पर खोजते हैं, वे मूर्ख हैं और मनुष्य काया में आए हुए भूत-प्रेत हैं।
ਸੇ ਉਝੜਿ ਭਰਮਿ ਭਵਾਈਅਹਿ ਜਿਉ ਝਾੜ ਮਿਰਗੁ ਭਾਲੇ ॥੧੫॥
से उझड़ि भरमि भवाईअहि जिउ झाड़ मिरगु भाले ॥१५॥
जैसे मृग कस्तूरी की सुगन्धि हेतु झाड़ियों को खोजता फिरता है, वैसे ही ऐसे मनुष्य भ्रम में फँसे हुए वनों में भटकते रहते हैं।॥ १५॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४ ॥
ਜੋ ਨਿੰਦਾ ਕਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕੀ ਸੁ ਅਉਖਾ ਜਗ ਮਹਿ ਹੋਇਆ ॥
जो निंदा करे सतिगुर पूरे की सु अउखा जग महि होइआ ॥
जो व्यक्ति पूर्ण सतिगुरु की निन्दा करता है, वह दुनिया में हमेशा दुखी रहता है।
ਨਰਕ ਘੋਰੁ ਦੁਖ ਖੂਹੁ ਹੈ ਓਥੈ ਪਕੜਿ ਓਹੁ ਢੋਇਆ ॥
नरक घोरु दुख खूहु है ओथै पकड़ि ओहु ढोइआ ॥
दुखों का कुओं रूपी जो घोर नरक है, उस निंदक को पकड़कर उसमें डाला जाता है,
ਕੂਕ ਪੁਕਾਰ ਕੋ ਨ ਸੁਣੇ ਓਹੁ ਅਉਖਾ ਹੋਇ ਹੋਇ ਰੋਇਆ ॥
कूक पुकार को न सुणे ओहु अउखा होइ होइ रोइआ ॥
जहाँ उसकी विनती कोई नहीं सुनता और वह दुखी होकर रोता है।
ਓਨਿ ਹਲਤੁ ਪਲਤੁ ਸਭੁ ਗਵਾਇਆ ਲਾਹਾ ਮੂਲੁ ਸਭੁ ਖੋਇਆ ॥
ओनि हलतु पलतु सभु गवाइआ लाहा मूलु सभु खोइआ ॥
ऐसा व्यक्ति लोक-परलोक, नाम-रूपी लाभ एवं मानव जन्म रूपी मूल सब कुछ गंवा देता है।
ਓਹੁ ਤੇਲੀ ਸੰਦਾ ਬਲਦੁ ਕਰਿ ਨਿਤ ਭਲਕੇ ਉਠਿ ਪ੍ਰਭਿ ਜੋਇਆ ॥
ओहु तेली संदा बलदु करि नित भलके उठि प्रभि जोइआ ॥
अंत में ऐसा व्यक्ति तेली का बैल बनकर प्रतिदिन नए सूर्य की भाँति ईश्वर के आदेश में लगाया जाता है।
ਹਰਿ ਵੇਖੈ ਸੁਣੈ ਨਿਤ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਦੂ ਕਿਛੁ ਗੁਝਾ ਨ ਹੋਇਆ ॥
हरि वेखै सुणै नित सभु किछु तिदू किछु गुझा न होइआ ॥
प्रभु सदैव (यह) सब कुछ देखता एवं सुनता है, उससे कोई बात छिपी नहीं रह सकती।
ਜੈਸਾ ਬੀਜੇ ਸੋ ਲੁਣੈ ਜੇਹਾ ਪੁਰਬਿ ਕਿਨੈ ਬੋਇਆ ॥
जैसा बीजे सो लुणै जेहा पुरबि किनै बोइआ ॥
जैसा बीज किसी इन्सान ने आदि से बोया है और जैसा वर्तमान में बो रहा है, वैसा ही फल खाता है।
ਜਿਸੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਣੀ ਤਿਸੁ ਸਤਿਗੁਰ ਕੇ ਚਰਣ ਧੋਇਆ ॥
जिसु क्रिपा करे प्रभु आपणी तिसु सतिगुर के चरण धोइआ ॥
जिस प्राणी पर ईश्वर अपनी कृपा-दृष्टि करता है, वह सतिगुरु के चरण धोता है।
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਪਿਛੈ ਤਰਿ ਗਇਆ ਜਿਉ ਲੋਹਾ ਕਾਠ ਸੰਗੋਇਆ ॥
गुर सतिगुर पिछै तरि गइआ जिउ लोहा काठ संगोइआ ॥
जैसे लोहा काठ के साथ तैरता है, उसी प्रकार सतिगुरु के दिशा-निर्देश पर चलकर भवसागर से पार हो जाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਤੂ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸੁਖੁ ਹੋਇਆ ॥੧॥
जन नानक नामु धिआइ तू जपि हरि हरि नामि सुखु होइआ ॥१॥
हे नानक ! तुम नाम की आराधना करो चूंकेि हरि-परमेश्वर के नाम का जाप करने से ही सुख उपलब्ध होता है॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਵਡਭਾਗੀਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਜਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
वडभागीआ सोहागणी जिना गुरमुखि मिलिआ हरि राइ ॥
वे जीव-स्त्रियों बड़ी भाग्यवान एवं सुहागिन हैं, जिन्हें गुरु के माध्यम से हरि-प्रभु मिल गया है।
ਅੰਤਰ ਜੋਤਿ ਪ੍ਰਗਾਸੀਆ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥੨॥
अंतर जोति प्रगासीआ नानक नामि समाइ ॥२॥
हे नानक ! ईश्वर की ज्योति ने उनका हृदय रोशन कर दिया है और वे उसके नाम में लीन हो गई हैं। २ ॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਇਹੁ ਸਰੀਰੁ ਸਭੁ ਧਰਮੁ ਹੈ ਜਿਸੁ ਅੰਦਰਿ ਸਚੇ ਕੀ ਵਿਚਿ ਜੋਤਿ ॥
इहु सरीरु सभु धरमु है जिसु अंदरि सचे की विचि जोति ॥
यह सारा शरीर धर्म है, इसमें सत्य (प्रभु) की ज्योति विद्यमान है।
ਗੁਹਜ ਰਤਨ ਵਿਚਿ ਲੁਕਿ ਰਹੇ ਕੋਈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੇਵਕੁ ਕਢੈ ਖੋਤਿ ॥
गुहज रतन विचि लुकि रहे कोई गुरमुखि सेवकु कढै खोति ॥
इस (शरीर) में दिव्य रत्न छिपे हैं। कोई विरला गुरमुख सेवक ही इन्हें खोजकर निकालता है।
ਸਭੁ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਤਾਂ ਇਕੁ ਰਵਿਆ ਇਕੋ ਓਤਿ ਪੋਤਿ ॥
सभु आतम रामु पछाणिआ तां इकु रविआ इको ओति पोति ॥
जब प्राणी राम को अनुभव करता है तो वह एक ईश्वर को सर्वव्यापक विद्यमान हुआ ऐसे देखता है जैसे ताने-बाने में एक धागा होता है।
ਇਕੁ ਦੇਖਿਆ ਇਕੁ ਮੰਨਿਆ ਇਕੋ ਸੁਣਿਆ ਸ੍ਰਵਣ ਸਰੋਤਿ ॥
इकु देखिआ इकु मंनिआ इको सुणिआ स्रवण सरोति ॥
वह एक ईश्वर को ही देखता है, उस पर ही आस्था रखता है और अपने कानों से उसकी बातें सुनता है।