ਜਿਸ ਨੋ ਮੰਨੇ ਆਪਿ ਸੋਈ ਮਾਨੀਐ ॥
जिस नो मंने आपि सोई मानीऐ ॥
हे साहिब ! जिसे तू स्वयं स्वीकार करता है, केवल उसे मान-सम्मान प्राप्त होता है।
ਪ੍ਰਗਟ ਪੁਰਖੁ ਪਰਵਾਣੁ ਸਭ ਠਾਈ ਜਾਨੀਐ ॥੩॥
प्रगट पुरखु परवाणु सभ ठाई जानीऐ ॥३॥
ऐसा स्वीकृत हुआ एवं प्रसिद्ध पुरुष सर्वत्र लोकप्रिय हो जाता है।॥ ३॥
ਦਿਨਸੁ ਰੈਣਿ ਆਰਾਧਿ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ਸਾਹ ਸਾਹ ॥
दिनसु रैणि आराधि सम्हाले साह साह ॥
दिन-रात तेरी आराधना करके तुम्हें श्वास-श्वास में बसाकर रखु
ਨਾਨਕ ਕੀ ਲੋਚਾ ਪੂਰਿ ਸਚੇ ਪਾਤਿਸਾਹ ॥੪॥੬॥੧੦੮॥
नानक की लोचा पूरि सचे पातिसाह ॥४॥६॥१०८॥
हे सच्चे पातशाह ! नानक की यह इच्छा पूर्ण कीजिए ॥ ४॥ ६॥ १०८॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਸ੍ਰਬ ਠਾਇ ਹਮਾਰਾ ਖਸਮੁ ਸੋਇ ॥
पूरि रहिआ स्रब ठाइ हमारा खसमु सोइ ॥
हमारा मालिक प्रभु हर जगह पर मौजूद है।
ਏਕੁ ਸਾਹਿਬੁ ਸਿਰਿ ਛਤੁ ਦੂਜਾ ਨਾਹਿ ਕੋਇ ॥੧॥
एकु साहिबु सिरि छतु दूजा नाहि कोइ ॥१॥
सबका मालिक एक है, जिसके सिर पर स्वामित्व का छत्र झूलता है। उसके बराबर दूसरा कोई नहीं ॥ १॥
ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਰਾਖਣਹਾਰਿਆ ॥
जिउ भावै तिउ राखु राखणहारिआ ॥
हे सबके रखवाले ! जैसे तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही मेरी रक्षा कीजिए।
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਰਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तुझ बिनु अवरु न कोइ नदरि निहारिआ ॥१॥ रहाउ ॥
तेरा अलावा अपने नेत्रों से मैंने किसी को नहीं देखा ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੇ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਿ ਘਟਿ ਘਟਿ ਸਾਰੀਐ ॥
प्रतिपाले प्रभु आपि घटि घटि सारीऐ ॥
प्रभु स्वयं ही (जीवों का) पालन-पोषण करता है और सबके ह्रदय की देखभाल करता है।
ਜਿਸੁ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਪਿ ਤਿਸੁ ਨ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥੨॥
जिसु मनि वुठा आपि तिसु न विसारीऐ ॥२॥
जिसके मन में वह स्वयं बसता है, उसे कभी विस्मृत नहीं करता ॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਆਪਿ ਆਪਣ ਭਾਣਿਆ ॥
जो किछु करे सु आपि आपण भाणिआ ॥
जो कुछ भी परमात्मा कर रहा है, वह स्वयं अपनी इच्छा से कर रहा है।
ਭਗਤਾ ਕਾ ਸਹਾਈ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਜਾਣਿਆ ॥੩॥
भगता का सहाई जुगि जुगि जाणिआ ॥३॥
युगों-युगांतरों से वह अपने भक्तों का सहायक जाना जाता है॥ ३॥
ਜਪਿ ਜਪਿ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਕਦੇ ਨ ਝੂਰੀਐ ॥
जपि जपि हरि का नामु कदे न झूरीऐ ॥
जो व्यक्ति हरदम हरि का नाम जपता रहता है, वह कभी दुखी नहीं होता।
ਨਾਨਕ ਦਰਸ ਪਿਆਸ ਲੋਚਾ ਪੂਰੀਐ ॥੪॥੭॥੧੦੯॥
नानक दरस पिआस लोचा पूरीऐ ॥४॥७॥१०९॥
हे प्रभु ! नानक को तेरे दर्शनों की प्यास है, इसलिए यह अभिलाषा पूरी कीजिए॥ ४॥ ७॥ १०६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਕਿਆ ਸੋਵਹਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਰਿ ਗਾਫਲ ਗਹਿਲਿਆ ॥
किआ सोवहि नामु विसारि गाफल गहिलिआ ॥
हे लापरवाह एवं गाफिल प्राणी ! तू प्रभु-नाम को भुलाकर क्यों अज्ञानता की नींद में सोया हुआ है।
ਕਿਤੀਂ ਇਤੁ ਦਰੀਆਇ ਵੰਞਨੑਿ ਵਹਦਿਆ ॥੧॥
कितीं इतु दरीआइ वंञन्हि वहदिआ ॥१॥
नाम से विहीन प्राणी इस जीवन की नदिया में बहे जा रहे हैं॥ १॥
ਬੋਹਿਥੜਾ ਹਰਿ ਚਰਣ ਮਨ ਚੜਿ ਲੰਘੀਐ ॥
बोहिथड़ा हरि चरण मन चड़ि लंघीऐ ॥
हे मन ! हरि के सुन्दर चरणों रूपी जहाज पर सवार होकर संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है।
ਆਠ ਪਹਰ ਗੁਣ ਗਾਇ ਸਾਧੂ ਸੰਗੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
आठ पहर गुण गाइ साधू संगीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
साधु की संगति में मिलकर आठ प्रहर भगवान के गुण गाते रहो ॥ १॥ रहाउ॥
ਭੋਗਹਿ ਭੋਗ ਅਨੇਕ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸੁੰਞਿਆ ॥
भोगहि भोग अनेक विणु नावै सुंञिआ ॥
जो इन्सान अनेक भोग भोगता है वह प्रभु-नाम के बिना जगत से खाली हाथ चला जाता है।
ਹਰਿ ਕੀ ਭਗਤਿ ਬਿਨਾ ਮਰਿ ਮਰਿ ਰੁੰਨਿਆ ॥੨॥
हरि की भगति बिना मरि मरि रुंनिआ ॥२॥
हरि की भक्ति के बिना वह माया में खप-खपकर बहुत रोता और दुखी होता है॥ २॥
ਕਪੜ ਭੋਗ ਸੁਗੰਧ ਤਨਿ ਮਰਦਨ ਮਾਲਣਾ ॥
कपड़ भोग सुगंध तनि मरदन मालणा ॥
जो व्यक्ति सुन्दर वस्त्र पहनता, स्वादिष्ट भोजन खाता, अपने शरीर पर सुगन्धित इत्र लगाता है।
ਬਿਨੁ ਸਿਮਰਨ ਤਨੁ ਛਾਰੁ ਸਰਪਰ ਚਾਲਣਾ ॥੩॥
बिनु सिमरन तनु छारु सरपर चालणा ॥३॥
प्रभु-सिमरन के बिना उसका शरीर राख बन जाता है और अन्ततः उसने निश्चित ही संसार से चले जाना है॥ ३॥
ਮਹਾ ਬਿਖਮੁ ਸੰਸਾਰੁ ਵਿਰਲੈ ਪੇਖਿਆ ॥
महा बिखमु संसारु विरलै पेखिआ ॥
यह संसार-सागर पार करने के लिए महा विषम है और विरले पुरुष ही इसको अनुभव करते हैं।
ਛੂਟਨੁ ਹਰਿ ਕੀ ਸਰਣਿ ਲੇਖੁ ਨਾਨਕ ਲੇਖਿਆ ॥੪॥੮॥੧੧੦॥
छूटनु हरि की सरणि लेखु नानक लेखिआ ॥४॥८॥११०॥
हे नानक ! जीव का जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा हरि की शरण लेने से ही होता है, और मुक्त वही होता है, जिसकी किस्मत में लिखा होता है॥ ४॥ ८॥ ११०
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਹੀ ਸੰਗਿ ਕਾਹੇ ਗਰਬੀਐ ॥
कोइ न किस ही संगि काहे गरबीऐ ॥
दुनिया में कोई किसी का साथी नहीं, इसलिए अपने संबंधियों का कोई क्यों अहंकार करे ?”
ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਆਧਾਰੁ ਭਉਜਲੁ ਤਰਬੀਐ ॥੧॥
एकु नामु आधारु भउजलु तरबीऐ ॥१॥
एक परमात्मा का नाम ही जीवन का आधार है, जिससे भयानक संसार-सागर से पार हुआ जा सकता है॥ १॥
ਮੈ ਗਰੀਬ ਸਚੁ ਟੇਕ ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਸਤਿਗੁਰ ਪੂਰੇ ॥
मै गरीब सचु टेक तूं मेरे सतिगुर पूरे ॥
हे मेरे पूर्ण सतिगुरु ! एक तू ही मुझ गरीब का सच्चा सहारा है।
ਦੇਖਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰਾ ਦਰਸਨੋ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਧੀਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
देखि तुम्हारा दरसनो मेरा मनु धीरे ॥१॥ रहाउ ॥
तेरे दर्शन करने से मेरा मन धैर्यवान हो जाता है।॥ १॥ रहाउ॥
ਰਾਜੁ ਮਾਲੁ ਜੰਜਾਲੁ ਕਾਜਿ ਨ ਕਿਤੈ ਗਨੋੁ ॥
राजु मालु जंजालु काजि न कितै गनो ॥
राज्य, धन-पदार्थ एवं जंजाल किसी काम के नहीं गिने जाते।
ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਆਧਾਰੁ ਨਿਹਚਲੁ ਏਹੁ ਧਨੋੁ ॥੨॥
हरि कीरतनु आधारु निहचलु एहु धनो ॥२॥
हरि का भजन ही मेरा आधार है और यह धन सदैव स्थिर है॥ २ ॥
ਜੇਤੇ ਮਾਇਆ ਰੰਗ ਤੇਤ ਪਛਾਵਿਆ ॥
जेते माइआ रंग तेत पछाविआ ॥
माया के जितने भी रंग हैं, वे सब केवल परछाई समान हैं।
ਸੁਖ ਕਾ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਗਾਵਿਆ ॥੩॥
सुख का नामु निधानु गुरमुखि गाविआ ॥३॥
परमात्मा का नाम सुखों का भण्डार है, गुरुमुख उसका यशोगान करते हैं।॥ ३॥
ਸਚਾ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੇ ॥
सचा गुणी निधानु तूं प्रभ गहिर ग्मभीरे ॥
हे प्रभु ! तू गहनगम्भीर एवं सच्चा गुणीनिधान है।
ਆਸ ਭਰੋਸਾ ਖਸਮ ਕਾ ਨਾਨਕ ਕੇ ਜੀਅਰੇ ॥੪॥੯॥੧੧੧॥
आस भरोसा खसम का नानक के जीअरे ॥४॥९॥१११॥
प्रभु की आशा एवं भरोसा नानक के मन में है॥ ४॥ ६ ॥ १११॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥
आसा महला ५ ॥
आसा महला ५ ॥
ਜਿਸੁ ਸਿਮਰਤ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
जिसु सिमरत दुखु जाइ सहज सुखु पाईऐ ॥
जिसका सिमरन करने से दुख दूर हो जाते हैं और सहज सुख प्राप्त होता है,”
ਰੈਣਿ ਦਿਨਸੁ ਕਰ ਜੋੜਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ॥੧॥
रैणि दिनसु कर जोड़ि हरि हरि धिआईऐ ॥१॥
रात-दिन हाथ जोड़ कर उस हरि-प्रभु का ही ध्यान करना चाहिए॥ १॥
ਨਾਨਕ ਕਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ਜਿਸ ਕਾ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
नानक का प्रभु सोइ जिस का सभु कोइ ॥
नानक का प्रभु वही है जिसकी सारी सृष्टि है।
ਸਰਬ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ਸਚਾ ਸਚੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब रहिआ भरपूरि सचा सचु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
केवल वह सच्चा परमात्मा ही सत्य है और वह सब जीवों में समाया हुआ है।॥ १॥ रहाउ ॥
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ਗਿਆਨ ਜੋਗੁ ॥
अंतरि बाहरि संगि सहाई गिआन जोगु ॥
भीतर एवं बाहर वह मेरा साथी एवं सहायक है। वह ज्ञान प्राप्त किए जाने के योग्य है।
ਤਿਸਹਿ ਅਰਾਧਿ ਮਨਾ ਬਿਨਾਸੈ ਸਗਲ ਰੋਗੁ ॥੨॥
तिसहि अराधि मना बिनासै सगल रोगु ॥२॥
हे मेरे मन ! उसकी ही आराधना कर, तेरे समस्त रोग मिट जाएँगे॥ २॥
ਰਾਖਨਹਾਰੁ ਅਪਾਰੁ ਰਾਖੈ ਅਗਨਿ ਮਾਹਿ ॥
राखनहारु अपारु राखै अगनि माहि ॥
सबकी रक्षा करने वाला प्रभु अपार है। वह माता के गर्भ की अग्नि में भी जीवों की रक्षा करता है।