ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗਾ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇਆ ॥
आवण जाणा भ्रमु भउ भागा हरि हरि हरि गुण गाइआ ॥
जब से उसने हरि का गुणगान किया है, उसका जन्म-मरणं का चक्र, दुविधा एवं भय नाश हो गया।
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਵਿਖ ਦੁਖ ਉਤਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇਆ ॥
जनम जनम के किलविख दुख उतरे हरि हरि नामि समाइआ ॥
उसके जन्म-जन्मांतरों के पाप एवं दुःख मिट चुके हैं और वह परमेश्वर के नाम में समा गया है।
ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਧੁਰਿ ਭਾਗ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ਤਿਨ ਸਫਲੁ ਜਨਮੁ ਪਰਵਾਣੁ ਜੀਉ ॥
जिन हरि धिआइआ धुरि भाग लिखि पाइआ तिन सफलु जनमु परवाणु जीउ ॥
जिनके भाग्य में आदि से लेख लिखा हुआ है, वे हरि का ध्यान करते हैं, फिर उनका मनुष्य जन्म सफल हो जाता है और वे प्रभु-दरबार में स्वीकृत हो जाते हैं।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ਪਰਮ ਸੁਖ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਲਾਹਾ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੁ ਜੀਉ ॥੩॥
हरि हरि मनि भाइआ परम सुख पाइआ हरि लाहा पदु निरबाणु जीउ ॥३॥
जिस मनुष्य के मन को हरि-प्रभु प्रिय लगा है, उसे परम सुख प्राप्त हुआ है और उसने लाभ में निर्वाण-पद प्राप्त किया है॥ ३॥
ਜਿਨੑ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ਤੇ ਜਨ ਪਰਧਾਨਾ ਤੇ ਊਤਮ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲੋਗ ਜੀਉ ॥
जिन्ह हरि मीठ लगाना ते जन परधाना ते ऊतम हरि हरि लोग जीउ ॥
जिन्हें हरि मीठा लगा है, वही पुरुष प्रधान हैं, हरि-प्रभु के लोग सर्वोत्तम हैं।
ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਰਸ ਭੋਗ ਜੀਉ ॥
हरि नामु वडाई हरि नामु सखाई गुर सबदी हरि रस भोग जीउ ॥
हरि का नाम उनकी मान-प्रतिष्ठा है और हरि नाम उनका सखा है। गुरु के शब्द द्वारा वे हरि रस का भोग करते है।
ਹਰਿ ਰਸ ਭੋਗ ਮਹਾ ਨਿਰਜੋਗ ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ॥
हरि रस भोग महा निरजोग वडभागी हरि रसु पाइआ ॥
गुरु के हरि रस का आनंद प्राप्त करके वे निर्लिप्त रहते है और खुशकिस्मत ही हरि-रस को पाते हैं।
ਸੇ ਧੰਨੁ ਵਡੇ ਸਤ ਪੁਰਖਾ ਪੂਰੇ ਜਿਨ ਗੁਰਮਤਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
से धंनु वडे सत पुरखा पूरे जिन गुरमति नामु धिआइआ ॥
वे पूर्ण सद्पुरुष महान् एवं धन्य हैं, जो गुरमति द्वारा नाम का ध्यान करते हैं।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਰੇਣੁ ਮੰਗੈ ਪਗ ਸਾਧੂ ਮਨਿ ਚੂਕਾ ਸੋਗੁ ਵਿਜੋਗੁ ਜੀਉ ॥
जनु नानकु रेणु मंगै पग साधू मनि चूका सोगु विजोगु जीउ ॥
नानक साधुओं की चरण-धूलि माँगता है, जिससे उसका मन शोक-वियोग से हो गया है।
ਜਿਨੑ ਹਰਿ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ਤੇ ਜਨ ਪਰਧਾਨਾ ਤੇ ਊਤਮ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲੋਗ ਜੀਉ ॥੪॥੩॥੧੦॥
जिन्ह हरि मीठ लगाना ते जन परधाना ते ऊतम हरि हरि लोग जीउ ॥४॥३॥१०॥
जिन्हें हरि मीठा लगता है, ये पुरुष प्रधान हैं और हरि-प्रभु के ऐसे लोग उत्तम है ॥४॥३॥१०॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥
आसा महला ४ ॥
आसा महला ४ ॥
ਸਤਜੁਗਿ ਸਭੁ ਸੰਤੋਖ ਸਰੀਰਾ ਪਗ ਚਾਰੇ ਧਰਮੁ ਧਿਆਨੁ ਜੀਉ ॥
सतजुगि सभु संतोख सरीरा पग चारे धरमु धिआनु जीउ ॥
सतियुग में सभी लोग संतोषी थे एवं प्रभु का ध्यान करते थे और धर्म चार पैरों पर टिका था।
ਮਨਿ ਤਨਿ ਹਰਿ ਗਾਵਹਿ ਪਰਮ ਸੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ਹਰਿ ਹਿਰਦੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਿਆਨੁ ਜੀਉ ॥
मनि तनि हरि गावहि परम सुखु पावहि हरि हिरदै हरि गुण गिआनु जीउ ॥
सतियुग में लोग तन-मन से भगवान का गुणगान करते थे और परम सुख प्राप्त करते थे, वह भगवान को अपने हृदय में याद करते थे और उन्हें हरि के गुणों का ज्ञान प्राप्त था।
ਗੁਣ ਗਿਆਨੁ ਪਦਾਰਥੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਕਿਰਤਾਰਥੁ ਸੋਭਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਈ ॥
गुण गिआनु पदारथु हरि हरि किरतारथु सोभा गुरमुखि होई ॥
भगवान के गुणों का ज्ञान उनका धन था, हरि-हरि नाम जपकर ही वे कृतार्थ होते थे और गुरुमुख लोगों की बहुत शोभा होती थी।
ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਏਕੋ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥
अंतरि बाहरि हरि प्रभु एको दूजा अवरु न कोई ॥
वे समझते थे कि उनके हृदय में और बाहर हर जगह एक ही परमात्मा बसता है और दूसरा उनके लिए कोई भी नहीं था।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸਖਾਈ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਪਾਵੈ ਮਾਨੁ ਜੀਉ ॥
हरि हरि लिव लाई हरि नामु सखाई हरि दरगह पावै मानु जीउ ॥
वे हरि-नाम में लगन लगाकर रखते थे, हरि का नाम उनका सच्चा साथी था और हरि के दरबार में उनका बहुत मान-सम्मान होता था।
ਸਤਜੁਗਿ ਸਭੁ ਸੰਤੋਖ ਸਰੀਰਾ ਪਗ ਚਾਰੇ ਧਰਮੁ ਧਿਆਨੁ ਜੀਉ ॥੧॥
सतजुगि सभु संतोख सरीरा पग चारे धरमु धिआनु जीउ ॥१॥
सतियुग में सभी लोग संतोषी एवं ध्यानी थे और धर्म चार पैरों पर टिका हुआ था॥ १॥
ਤੇਤਾ ਜੁਗੁ ਆਇਆ ਅੰਤਰਿ ਜੋਰੁ ਪਾਇਆ ਜਤੁ ਸੰਜਮ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥
तेता जुगु आइआ अंतरि जोरु पाइआ जतु संजम करम कमाइ जीउ ॥
फिर त्रेता युग आया तो ताकत ने जोर पकड़ कर मनुष्यों के मन को वश में कर लिया, लोग ब्रह्मचार्य, संयम एवं कर्मकाण्ड का आचरण करने लगे।
ਪਗੁ ਚਉਥਾ ਖਿਸਿਆ ਤ੍ਰੈ ਪਗ ਟਿਕਿਆ ਮਨਿ ਹਿਰਦੈ ਕ੍ਰੋਧੁ ਜਲਾਇ ਜੀਉ ॥
पगु चउथा खिसिआ त्रै पग टिकिआ मनि हिरदै क्रोधु जलाइ जीउ ॥
इस युग में धर्म का चौथा पैर खिसक गया, धर्म तीन पैरों पर ही टिक गया और लोगों के मन एवं ह्रदय में क्रोध जलने लगा।
ਮਨਿ ਹਿਰਦੈ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਹਾ ਬਿਸਲੋਧੁ ਨਿਰਪ ਧਾਵਹਿ ਲੜਿ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥
मनि हिरदै क्रोधु महा बिसलोधु निरप धावहि लड़ि दुखु पाइआ ॥
फिर लोगों के मन एवं हृदय में क्रोध एक महा भयानक विष की भाँति विद्यमान हो गया, राजा-महाराजा आक्रमण करके युद्ध करने लगे और दुःख पाने लगे।
ਅੰਤਰਿ ਮਮਤਾ ਰੋਗੁ ਲਗਾਨਾ ਹਉਮੈ ਅਹੰਕਾਰੁ ਵਧਾਇਆ ॥
अंतरि ममता रोगु लगाना हउमै अहंकारु वधाइआ ॥
लोगों की अन्तरात्मा में ममता का रोग लग गया था और उनका अहंत्व एवं अहंकार अधिकतर बढ़ने लगा था।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਕ੍ਰਿਪਾ ਧਾਰੀ ਮੇਰੈ ਠਾਕੁਰਿ ਬਿਖੁ ਗੁਰਮਤਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਲਹਿ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
हरि हरि क्रिपा धारी मेरै ठाकुरि बिखु गुरमति हरि नामि लहि जाइ जीउ ॥
मेरे ठाकुर हरि-प्रभु ने जब कभी कृपा-दृष्टि की तो गुरमति एवं हरि नाम के माध्यम से क्रोध का विष दूर हो गया था।
ਤੇਤਾ ਜੁਗੁ ਆਇਆ ਅੰਤਰਿ ਜੋਰੁ ਪਾਇਆ ਜਤੁ ਸੰਜਮ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥੨॥
तेता जुगु आइआ अंतरि जोरु पाइआ जतु संजम करम कमाइ जीउ ॥२॥
त्रैता युग का आगमन हुआ और बाहुबल ने जोर पकड़ कर लोगों की अन्तरात्मा को वश में कर लिया, लोग ब्रह्मचार्य, संयम एवं कर्मकाण्ड का आचरण करने लगे ॥ २ ॥
ਜੁਗੁ ਦੁਆਪੁਰੁ ਆਇਆ ਭਰਮਿ ਭਰਮਾਇਆ ਹਰਿ ਗੋਪੀ ਕਾਨੑੁ ਉਪਾਇ ਜੀਉ ॥
जुगु दुआपुरु आइआ भरमि भरमाइआ हरि गोपी कान्हु उपाइ जीउ ॥
तदुपरांत द्वापर युग का आगमन हुआ, भगवान ने दुनिया को दुविधा एवं भ्रम में भटका दिया, उसने गोपियों एवं कान्हा (श्रीकृष्ण) को उत्पन्न किया।
ਤਪੁ ਤਾਪਨ ਤਾਪਹਿ ਜਗ ਪੁੰਨ ਆਰੰਭਹਿ ਅਤਿ ਕਿਰਿਆ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ਜੀਉ ॥
तपु तापन तापहि जग पुंन आर्मभहि अति किरिआ करम कमाइ जीउ ॥
तपस्वी तप करते थे और धूनियां तपाने के दुःख सहने लगे, लोगों ने यज्ञ एवं दान-पुण्य का आरम्भ किया और वे अनेक धार्मिक कर्मकाण्ड एवं विधि-संस्कार करने लगे थे।
ਕਿਰਿਆ ਕਰਮ ਕਮਾਇਆ ਪਗ ਦੁਇ ਖਿਸਕਾਇਆ ਦੁਇ ਪਗ ਟਿਕੈ ਟਿਕਾਇ ਜੀਉ ॥
किरिआ करम कमाइआ पग दुइ खिसकाइआ दुइ पग टिकै टिकाइ जीउ ॥
धार्मिक कर्मकाण्ड एवं विधि संस्कार द्वारा धर्म का दूसरा पैर खिसक गया और अब द्वापर में धर्म दो पैरों पर ही टिक गया।
ਮਹਾ ਜੁਧ ਜੋਧ ਬਹੁ ਕੀਨੑੇ ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਪਚੈ ਪਚਾਇ ਜੀਉ ॥
महा जुध जोध बहु कीन्हे विचि हउमै पचै पचाइ जीउ ॥
बहुत सारे योद्धाओं ने महा भयंकर युद्ध किए और अहंकार के कारण वे नष्ट हो गए तथा दूसरों को भी नष्ट कर दिया।
ਦੀਨ ਦਇਆਲਿ ਗੁਰੁ ਸਾਧੁ ਮਿਲਾਇਆ ਮਿਲਿ ਸਤਿਗੁਰ ਮਲੁ ਲਹਿ ਜਾਇ ਜੀਉ ॥
दीन दइआलि गुरु साधु मिलाइआ मिलि सतिगुर मलु लहि जाइ जीउ ॥
दीनदयालु प्रभु ने जीवों को साधु गुरु से मिलाया, सच्चे गुरु को मिलने से उनकी मलिनता दूर हो जाती थी।
ਜੁਗੁ ਦੁਆਪੁਰੁ ਆਇਆ ਭਰਮਿ ਭਰਮਾਇਆ ਹਰਿ ਗੋਪੀ ਕਾਨੑੁ ਉਪਾਇ ਜੀਉ ॥੩॥
जुगु दुआपुरु आइआ भरमि भरमाइआ हरि गोपी कान्हु उपाइ जीउ ॥३॥
द्वापर युग का आगमन हुआ तो प्रभु ने जगत को भ्रम में भटका दिया और उसने गोपियों एवं श्रीकृष्ण को उत्पन्न कर दिया॥ ३॥