ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਬੈਰਾਗੀ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਸਾਚੀ ਪਾਵਹਿ ਮਾਨੁ ॥੨॥
गुर सबदि रते सदा बैरागी हरि दरगह साची पावहि मानु ॥२॥
जीव गुरु के शब्द में लीन रहकर सदा वैराग्यवान रहता है और प्रभु के सच्चे दरबार में यश प्राप्त करता है॥२॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਖੇਲੈ ਹੁਕਮ ਕਾ ਬਾਧਾ ਇਕ ਖਿਨ ਮਹਿ ਦਹ ਦਿਸ ਫਿਰਿ ਆਵੈ ॥
इहु मनु खेलै हुकम का बाधा इक खिन महि दह दिस फिरि आवै ॥
हुक्म का बंधा हुआ यह मन अनेक खेल खेलता है और पल में ही दसों दिशाओं में घूम आता है।
ਜਾਂ ਆਪੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਤਾਂ ਇਹੁ ਮਨੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਤਕਾਲ ਵਸਿ ਆਵੈ ॥੩॥
जां आपे नदरि करे हरि प्रभु साचा तां इहु मनु गुरमुखि ततकाल वसि आवै ॥३॥
जब सच्चा प्रभु स्वयं करुणा-दृष्टि करता है तो यह मन गुरु के सान्निध्य में तुरंत वश में आ जाता है॥३॥
ਇਸੁ ਮਨ ਕੀ ਬਿਧਿ ਮਨ ਹੂ ਜਾਣੈ ਬੂਝੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
इसु मन की बिधि मन हू जाणै बूझै सबदि वीचारि ॥
शब्द के चिन्तन द्वारा यह सूझ प्राप्त होती है कि मन को वशीभूत करने का तरीका मन ही जानता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਸਦਾ ਤੂ ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਜਿਤੁ ਪਾਵਹਿ ਪਾਰਿ ॥੪॥੬॥
नानक नामु धिआइ सदा तू भव सागरु जितु पावहि पारि ॥४॥६॥
नानक का कथन है कि हे भाई ! तू सदैव हरि-नाम का चिंतन कर, जिससे भवसागर से पार हो जाएगा॥४॥६॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਪ੍ਰਾਣ ਸਭਿ ਤਿਸ ਕੇ ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥
जीउ पिंडु प्राण सभि तिस के घटि घटि रहिआ समाई ॥
यह शरीर, आत्मा एवं प्राण सब ईश्वर की रचना है और वही घट घट में समा रहा है।
ਏਕਸੁ ਬਿਨੁ ਮੈ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਬੁਝਾਈ ॥੧॥
एकसु बिनु मै अवरु न जाणा सतिगुरि दीआ बुझाई ॥१॥
सच्चे गुरु ने यह रहस्य समझा दिया है, इसलिए एक ईश्वर के सिवा मैं अन्य किसी को नहीं मानता॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਨਾਮਿ ਰਹਉ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
मन मेरे नामि रहउ लिव लाई ॥
हे मेरे मन ! हरि-नाम में लगन लगाकर रखो, वह अदृष्ट, मन-वाणी से परे, अपरंपार, कर्ता-पुरुष है।
ਅਦਿਸਟੁ ਅਗੋਚਰੁ ਅਪਰੰਪਰੁ ਕਰਤਾ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अदिसटु अगोचरु अपर्मपरु करता गुर कै सबदि हरि धिआई ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के उपदेश से परमात्मा का भजन करो।॥१॥रहाउ॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਭੀਜੈ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੈ ਸਹਜੇ ਰਹੇ ਸਮਾਈ ॥
मनु तनु भीजै एक लिव लागै सहजे रहे समाई ॥
जब प्रभु भक्ति में लगन लगती है तो मन तन भीग उठता है और स्वाभाविक ही उसमें लीन रहता है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਭਾਗੈ ਏਕ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੨॥
गुर परसादी भ्रमु भउ भागै एक नामि लिव लाई ॥२॥
गुरु की कृपा से भ्रम एवं-भय भाग जाते हैं और एक प्रभु में लगन लगी रहती है॥२॥
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਸਚੁ ਕਾਰ ਕਮਾਵੈ ਗਤਿ ਮਤਿ ਤਬ ਹੀ ਪਾਈ ॥
गुर बचनी सचु कार कमावै गति मति तब ही पाई ॥
जो गुरु के वचनों से भक्ति का सच्चा कार्य करता है, उसे ज्ञान प्राप्त होता है।
ਕੋਟਿ ਮਧੇ ਕਿਸਹਿ ਬੁਝਾਏ ਤਿਨਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੩॥
कोटि मधे किसहि बुझाए तिनि राम नामि लिव लाई ॥३॥
करोड़ों में से किसी विरले को ही गुरु समझाता है और उसकी राम नाम में लगन लगी रहती है॥३॥
ਜਹ ਜਹ ਦੇਖਾ ਤਹ ਏਕੋ ਸੋਈ ਇਹ ਗੁਰਮਤਿ ਬੁਧਿ ਪਾਈ ॥
जह जह देखा तह एको सोई इह गुरमति बुधि पाई ॥
गुरु की शिक्षा से यह ज्ञान प्राप्त हुआ है, जहाँ देखता हूँ, वहाँ एक प्रभु ही विद्यमान है।
ਮਨੁ ਤਨੁ ਪ੍ਰਾਨ ਧਰੀਂ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਨਾਨਕ ਆਪੁ ਗਵਾਈ ॥੪॥੭॥
मनु तनु प्रान धरीं तिसु आगै नानक आपु गवाई ॥४॥७॥
हे नानक ! अहम्-भाव को दूर कर मैं यह मन, तन, प्राण सर्वस्व प्रभु के आगे अर्पण करता हूँ॥४॥७॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਚਾ ਦੂਖ ਨਿਵਾਰਣੁ ਸਬਦੇ ਪਾਇਆ ਜਾਈ ॥
मेरा प्रभु साचा दूख निवारणु सबदे पाइआ जाई ॥
मेरा सच्चा प्रभु दुखों का निवारण करने वाला है, जो शब्द-गुरु द्वारा ही प्राप्त होता है।
ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਸਦ ਬੈਰਾਗੀ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥੧॥
भगती राते सद बैरागी दरि साचै पति पाई ॥१॥
जो प्रभु-भक्ति में लीन होता है, वह सदा वैराग्यवान रहता है और सच्चे दरबार में सम्मान प्राप्त करता है॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਮਨ ਸਿਉ ਰਹਉ ਸਮਾਈ ॥
मन रे मन सिउ रहउ समाई ॥
हे मन ! भगवान की अर्चना में लीन रहो।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि राम नामि मनु भीजै हरि सेती लिव लाई ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के द्वारा राम नाम के सुमिरन (स्मरण) से मन प्रसन्न हो जाता है और प्रभु में लौ लगी रहती है।॥१॥रहाउ॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਤਿ ਅਗਮ ਅਗੋਚਰੁ ਗੁਰਮਤਿ ਦੇਇ ਬੁਝਾਈ ॥
मेरा प्रभु अति अगम अगोचरु गुरमति देइ बुझाई ॥
मेरा प्रभु अपहुँच, मन-वाणी से परे है, गुरु की शिक्षा यह भेद बताती है।
ਸਚੁ ਸੰਜਮੁ ਕਰਣੀ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥੨॥
सचु संजमु करणी हरि कीरति हरि सेती लिव लाई ॥२॥
सत्य, संयम, शुभ कर्म करो, ईश्वर का कीर्तिगान करो और उसकी लगन में लीन रहो॥२॥
ਆਪੇ ਸਬਦੁ ਸਚੁ ਸਾਖੀ ਆਪੇ ਜਿਨੑ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥
आपे सबदु सचु साखी आपे जिन्ह जोती जोति मिलाई ॥
ईश्वर ही शब्द है, सत्य रूप में साक्षी है, जिसने अपनी ज्योति हमारी ज्योति में मिलाई हुई है।
ਦੇਹੀ ਕਾਚੀ ਪਉਣੁ ਵਜਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪਾਈ ॥੩॥
देही काची पउणु वजाए गुरमुखि अम्रितु पाई ॥३॥
यह शरीर नाशवान् है, इसमें प्राणों का संचार चल रहा है और गुरु से ही नाम अमृत प्राप्त होता है॥३॥
ਆਪੇ ਸਾਜੇ ਸਭ ਕਾਰੈ ਲਾਏ ਸੋ ਸਚੁ ਰਹਿਆ ਸਮਾਈ ॥
आपे साजे सभ कारै लाए सो सचु रहिआ समाई ॥
परमात्मा स्वयं ही संसार बनाकर लोगों को काम-धंधे में लगाता है और वह परम-सत्य सर्वव्याप्त है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਕੋਈ ਕਿਛੁ ਨਾਹੀ ਨਾਮੇ ਦੇਇ ਵਡਾਈ ॥੪॥੮॥
नानक नाम बिना कोई किछु नाही नामे देइ वडाई ॥४॥८॥
हे नानक ! हरि-नाम के सिवा कोई कुछ नहीं और नाम-स्मरण से जीव को बड़ाई प्रदान करता है॥४॥८॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਮਨੁ ਮੋਹਿਆ ਲਦਿਆ ਅਜਗਰ ਭਾਰੀ ॥
हउमै बिखु मनु मोहिआ लदिआ अजगर भारी ॥
अहम् के जहर ने मन को मोहित किया हुआ था और अजगर जैसा पापों का भारी बोझ लादा हुआ था।
ਗਰੁੜੁ ਸਬਦੁ ਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਹਰਿ ਮਾਰੀ ॥੧॥
गरुड़ु सबदु मुखि पाइआ हउमै बिखु हरि मारी ॥१॥
जब गुरु ने गारुड़ी मंत्र सरीखा शब्द मुँह में डाला तो ईश्वर ने अहम् के जहर को खत्म कर दिया॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਹਉਮੈ ਮੋਹੁ ਦੁਖੁ ਭਾਰੀ ॥
मन रे हउमै मोहु दुखु भारी ॥
हे मन ! अहम् एवं मोह का दुख बहुत भारी है।
ਇਹੁ ਭਵਜਲੁ ਜਗਤੁ ਨ ਜਾਈ ਤਰਣਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਤਰੁ ਹਰਿ ਤਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इहु भवजलु जगतु न जाई तरणा गुरमुखि तरु हरि तारी ॥१॥ रहाउ ॥
इस संसार-सागर से पार नहीं हुआ जा सकता, पर गुरु ही इससे पार करवाता है॥१॥रहाउ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਪਸਾਰਾ ਸਭ ਵਰਤੈ ਆਕਾਰੀ ॥
त्रै गुण माइआ मोहु पसारा सभ वरतै आकारी ॥
समूचे संसार में त्रिगुण माया का मोह फैला हुआ है।
ਤੁਰੀਆ ਗੁਣੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਾਈਐ ਨਦਰੀ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰੀ ॥੨॥
तुरीआ गुणु सतसंगति पाईऐ नदरी पारि उतारी ॥२॥
तुरीयावस्था सत्संगत में प्राप्त होती है और उसकी कृपा से जीव संसार-सागर से पार उतर जाता है।॥२॥
ਚੰਦਨ ਗੰਧ ਸੁਗੰਧ ਹੈ ਬਹੁ ਬਾਸਨਾ ਬਹਕਾਰਿ ॥
चंदन गंध सुगंध है बहु बासना बहकारि ॥
ज्यों चन्दन की सुगन्ध श्रेष्ठ है, जो सब ओर अपनी महक फैला देती है।