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ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥ 
महला ३॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥
सतिगुरु सेवि सुखु पाइआ सचु नामु गुणतासु ॥  
जिसने सतिगुरु की सेवा की है, उसे सुख ही उपलब्ध हुआ है। भगवान का सत्यनाम गुणों का खजाना है।

ਗੁਰਮਤੀ ਆਪੁ ਪਛਾਣਿਆ ਰਾਮ ਨਾਮ ਪਰਗਾਸੁ ॥
गुरमती आपु पछाणिआ राम नाम परगासु ॥ 
जिस व्यक्ति ने गुरु की मति द्वारा अपने स्वरूप को पहचान लिया है, उसके हृदय में प्रभु नाम का प्रकाश हो जाता है।

ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਵਣਾ ਵਡਿਆਈ ਵਡੇ ਪਾਸਿ ॥
सचो सचु कमावणा वडिआई वडे पासि ॥  
जो व्यक्ति सत्य-नाम का सिमरन करते हैं, उन्हें भगवान से बड़ी शोभा मिलती है।

ਜੀਉ ਪਿੰਡੁ ਸਭੁ ਤਿਸ ਕਾ ਸਿਫਤਿ ਕਰੇ ਅਰਦਾਸਿ ॥
जीउ पिंडु सभु तिस का सिफति करे अरदासि ॥  
 मैं उस भगवान की महिमा करता हूँ और प्रार्थना करता हूँ कि हे प्रभु ! मेरे प्राण एवं मेरा शरीर यह सब कुछ तेरा ही दिया हुआ है।

ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਾਲਾਹਣਾ ਸੁਖੇ ਸੁਖਿ ਨਿਵਾਸੁ ॥
सचै सबदि सालाहणा सुखे सुखि निवासु ॥  
यदि सत्य प्रभु की महिमा नाम द्वारा की जाए तो मनुष्य अनंत सुख भोगता है।

ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਧ੍ਰਿਗੁ ਜੀਵਾਸੁ ॥
जपु तपु संजमु मनै माहि बिनु नावै ध्रिगु जीवासु ॥  
मन द्वारा भगवान की महिमा करनी ही जप, तप एवं संयम है। नामविहीन मानुष का जीवन धिक्कार योग्य है।

ਗੁਰਮਤੀ ਨਾਉ ਪਾਈਐ ਮਨਮੁਖ ਮੋਹਿ ਵਿਣਾਸੁ ॥
गुरमती नाउ पाईऐ मनमुख मोहि विणासु ॥ 
नाम गुरु की मति द्वारा ही मिलता है। माया के मोह में फँसकर मनमुख व्यक्ति का विनाश हो जाता है।

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਾਖੁ ਤੂੰ ਨਾਨਕੁ ਤੇਰਾ ਦਾਸੁ ॥੨॥
जिउ भावै तिउ राखु तूं नानकु तेरा दासु ॥२॥ 
हे जगत् के स्वामी ! जिस तरह तुझे अच्छा लगता है, वैसे ही मेरी रक्षा करो, नानक तेरा सेवक है ॥ २ ॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥  
पउड़ी ॥  

ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਤੂੰ ਸਭਸੁ ਦਾ ਤੂੰ ਸਭਨਾ ਰਾਸਿ ॥
सभु को तेरा तूं सभसु दा तूं सभना रासि ॥ 
हे प्रभु ! सारे प्राणी तेरी संतान हैं और तुम सबके पिता हो। तुम हरेक प्राणी की पूँजी हो।

ਸਭਿ ਤੁਧੈ ਪਾਸਹੁ ਮੰਗਦੇ ਨਿਤ ਕਰਿ ਅਰਦਾਸਿ ॥
सभि तुधै पासहु मंगदे नित करि अरदासि ॥ 
सभी जीव प्रार्थना करके हमेशा तुझसे माँगते रहते हैं।

ਜਿਸੁ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤਿਸੁ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਮਿਲੈ ਇਕਨਾ ਦੂਰਿ ਹੈ ਪਾਸਿ ॥
जिसु तूं देहि तिसु सभु किछु मिलै इकना दूरि है पासि ॥  
हे प्रभु ! जिस किसी को भी तुम देते हो, वह सब कुछ पा लेता है। कई जीवों को तू कहीं दूर ही निवास करता लगता है और कई तुझे अपने पास ही निवास करते समझते हैं।

ਤੁਧੁ ਬਾਝਹੁ ਥਾਉ ਕੋ ਨਾਹੀ ਜਿਸੁ ਪਾਸਹੁ ਮੰਗੀਐ ਮਨਿ ਵੇਖਹੁ ਕੋ ਨਿਰਜਾਸਿ ॥
तुधु बाझहु थाउ को नाही जिसु पासहु मंगीऐ मनि वेखहु को निरजासि ॥  
तेरे अलावा कोई स्थान नहीं जिससे माँगा जाए। अपने मन में इसका निर्णय करके देख ले।

ਸਭਿ ਤੁਧੈ ਨੋ ਸਾਲਾਹਦੇ ਦਰਿ ਗੁਰਮੁਖਾ ਨੋ ਪਰਗਾਸਿ ॥੯॥
सभि तुधै नो सालाहदे दरि गुरमुखा नो परगासि ॥९॥  
हे प्रभु! सभी तेरी उपमा करते हैं, गुरमुखों को तेरे दरबार पर तेरे प्रकाश के दर्शन होते हैं ॥९॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥ 
श्लोक महला ३॥

ਪੰਡਿਤੁ ਪੜਿ ਪੜਿ ਉਚਾ ਕੂਕਦਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਿਆਰੁ ॥
पंडितु पड़ि पड़ि उचा कूकदा माइआ मोहि पिआरु ॥ 
पण्डित ग्रंथ पढ़-पढ़कर उच्च स्वर में लोगों को सुनाता है। उसे तो माया-मोह से ही प्रेम है।

ਅੰਤਰਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਨ ਚੀਨਈ ਮਨਿ ਮੂਰਖੁ ਗਾਵਾਰੁ ॥
अंतरि ब्रहमु न चीनई मनि मूरखु गावारु ॥ 
वह मूर्ख एवं गंवार है जो अपने हृदय में विद्यमान परमात्मा को नहीं पहचानता।

ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਜਗਤੁ ਪਰਬੋਧਦਾ ਨਾ ਬੂਝੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥
दूजै भाइ जगतु परबोधदा ना बूझै बीचारु ॥  
वह माया-मोह में मुग्ध हुआ जगत् के लोगों को उपदेश देता है और ज्ञान को नहीं समझता।

ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇਆ ਮਰਿ ਜੰਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥੧॥
बिरथा जनमु गवाइआ मरि जमै वारो वार ॥१॥  
उसने अपना जन्म व्यर्थ गंवा दिया है और वह बार-बार जन्मता एवं मरता रहता है ॥१॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥ 
महला ३॥

ਜਿਨੀ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਆ ਤਿਨੀ ਨਾਉ ਪਾਇਆ ਬੂਝਹੁ ਕਰਿ ਬੀਚਾਰੁ ॥
जिनी सतिगुरु सेविआ तिनी नाउ पाइआ बूझहु करि बीचारु ॥  
विचार करके यह बात समझ लो कि जिन्होंने सतिगुरु की सेवा की है, उन्होंने ईश्वर के नाम को प्राप्त किया है।

ਸਦਾ ਸਾਂਤਿ ਸੁਖੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਚੂਕੈ ਕੂਕ ਪੁਕਾਰ ॥
सदा सांति सुखु मनि वसै चूकै कूक पुकार ॥  
उनके चित्त में सदैव सुख-शांति का निवास होता है और उनके दुःख, विलाप-शिकायत नष्ट हो जाते हैं।

ਆਪੈ ਨੋ ਆਪੁ ਖਾਇ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਵੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਵੀਚਾਰੁ ॥
आपै नो आपु खाइ मनु निरमलु होवै गुर सबदी वीचारु ॥  
जब मन गुरु के शब्द को विचार कर अपने अहंत्व को स्वयं ही नष्ट कर देता है तो वह निर्मल हो जाता है।

ਨਾਨਕ ਸਬਦਿ ਰਤੇ ਸੇ ਮੁਕਤੁ ਹੈ ਹਰਿ ਜੀਉ ਹੇਤਿ ਪਿਆਰੁ ॥੨॥
नानक सबदि रते से मुकतु है हरि जीउ हेति पिआरु ॥२॥
हे नानक ! जो प्राणी हरिनाम में लीन रहते हैं, वे मोक्ष प्राप्त करते हैं और भगवान से उनका प्रेम हो जाता है ॥२॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥  
पउड़ी ॥

ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸਫਲ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ਥਾਇ ॥
हरि की सेवा सफल है गुरमुखि पावै थाइ ॥ 
हरि की सेवा तभी सफल होती है, जब वह गुरु द्वारा इसे स्वीकृत करता है।

ਜਿਸੁ ਹਰਿ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੋ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
जिसु हरि भावै तिसु गुरु मिलै सो हरि नामु धिआइ ॥  
जिस पर प्रभु प्रसन्न होता है, उसको गुरु जी मिल जाते हैं, केवल वही हरिनाम का ध्यान करता है।

ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਪਾਰਿ ਲਘਾਇ
गुर सबदी हरि पाईऐ हरि पारि लघाइ ॥  
गुरु की वाणी द्वारा वह प्रभु को पा लेता है। फिर भगवान उसे भवसागर से पार कर देता है।

ਮਨਹਠਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਪੁਛਹੁ ਵੇਦਾ ਜਾਇ ॥
मनहठि किनै न पाइओ पुछहु वेदा जाइ ॥  
मन के हठ से किसी को भी ईश्वर प्राप्त नहीं हुआ। चाहे वेदों-शास्त्रों का मनन करके देख लो।

ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋ ਕਰੇ ਜਿਸੁ ਲਏ ਹਰਿ ਲਾਇ ॥੧੦॥
नानक हरि की सेवा सो करे जिसु लए हरि लाइ ॥१०॥  
हे नानक ! वही प्राणी ईश्वर की भक्ति करता है, जिसको भगवान अपने साथ मिला लेता है ॥१०॥

ਸਲੋਕ ਮਃ ੩ ॥
सलोक मः ३ ॥
श्लोक महला ३॥

ਨਾਨਕ ਸੋ ਸੂਰਾ ਵਰੀਆਮੁ ਜਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਦੁਸਟੁ ਅਹੰਕਰਣੁ ਮਾਰਿਆ ॥
नानक सो सूरा वरीआमु जिनि विचहु दुसटु अहंकरणु मारिआ ॥
हे नानक ! वही व्यक्ति शूरवीर एवं महान योद्धा है, जिसने अपने अन्तर्मन से दुष्ट अहंकार का नाश कर लिया है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਸਾਲਾਹਿ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਿਆ ॥
गुरमुखि नामु सालाहि जनमु सवारिआ ॥
उसने गुरु के माध्यम से नाम की महिमा करके अपना जन्म संवार लिया है।

ਆਪਿ ਹੋਆ ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਸਭੁ ਕੁਲੁ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥
आपि होआ सदा मुकतु सभु कुलु निसतारिआ ॥  
वह स्वयं सदैव के लिए मुक्त हो जाता है तथा अपने समूचे वंश को भी भवसागर से बचा लेता है।

ਸੋਹਨਿ ਸਚਿ ਦੁਆਰਿ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਿਆ ॥
सोहनि सचि दुआरि नामु पिआरिआ ॥
वह सत्य प्रभु के दरबार पर बड़ी शोभा प्राप्त करता है और उसे प्रभु का नाम ही प्रिय लगता है।

ਮਨਮੁਖ ਮਰਹਿ ਅਹੰਕਾਰਿ ਮਰਣੁ ਵਿਗਾੜਿਆ ॥
मनमुख मरहि अहंकारि मरणु विगाड़िआ ॥
मनमुख प्राणी अहंकार में मरते हैं और अपनी मृत्यु को भी दुःखदायक बना लेते हैं।

ਸਭੋ ਵਰਤੈ ਹੁਕਮੁ ਕਿਆ ਕਰਹਿ ਵਿਚਾਰਿਆ ॥
सभो वरतै हुकमु किआ करहि विचारिआ ॥  
सब ओर ईश्वर का आदेश चलता है। बेचारे प्राणी क्या कर सकते हैं?

ਆਪਹੁ ਦੂਜੈ ਲਗਿ ਖਸਮੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥
आपहु दूजै लगि खसमु विसारिआ ॥ 
 उन्होंने स्वयं ही माया के प्रेम में लगकर प्रभु को विस्मृत कर दिया है।

ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ॥੧॥
नानक बिनु नावै सभु दुखु सुखु विसारिआ ॥१॥  
हे नानक ! नाम से विहीन होने के कारण उन्हें दुःख आकर लग जाते हैं तथा सुख तो उन्हें भूल ही जाता है। ॥१॥

ਮਃ ੩ ॥
मः ३ ॥
महला ३॥

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦਿੜਾਇਆ ਤਿਨਿ ਵਿਚਹੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
गुरि पूरै हरि नामु दिड़ाइआ तिनि विचहु भरमु चुकाइआ ॥  
जिन्हें पूर्ण गुरु ने भगवान का नाम दृढ़ करवा दिया है; उन्होंने अपने अन्तर्मन में से भ्रम को दूर कर लिया है।

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਗਾਈ ਕਰਿ ਚਾਨਣੁ ਮਗੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
राम नामु हरि कीरति गाई करि चानणु मगु दिखाइआ ॥ 
वह राम नाम द्वारा भगवान की महिमा-स्तुति करते है; भगवान ने उनके अन्तर्मन में अपनी ज्योति का प्रकाश करके उन्हें भक्ति-मार्ग दिखा दिया है।

ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਏਕ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ਅੰਤਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਇਆ ॥
हउमै मारि एक लिव लागी अंतरि नामु वसाइआ ॥  
उन्होंने अपने अहंकार को नष्ट करके एक प्रभु में सुरति लगाई है; जिससे उनके अन्तरमन में भगवान के नाम निवास हो गया है।

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