ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕੰਢੈ ਚਾੜੇ ॥
अंध कूप ते कंढै चाड़े ॥
हे ईश्वर ! तूने भक्तों को संसार रूपी अंधकूप में से निकाल कर पार कर दिया है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦਾਸ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥
करि किरपा दास नदरि निहाले ॥
और तूने अपनी कृपा-दृष्टि करके अपने भक्तों को कृतार्थ कर दिया है
ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕਹਿ ਸੁਣਿ ਤੋਟਿ ਨ ਆਵਣਿਆ ॥੪॥
गुण गावहि पूरन अबिनासी कहि सुणि तोटि न आवणिआ ॥४॥
हे पूर्ण अविनाशी प्रभु ! सेवक तेरे गुणों का गुणगान करते हैं। कहने एवं श्रवण करने से भी प्रभु के गुणों में कभी कमी नहीं आती ॥ ४॥
ਐਥੈ ਓਥੈ ਤੂੰਹੈ ਰਖਵਾਲਾ ॥
ऐथै ओथै तूंहै रखवाला ॥
हे प्रभु ! इहलोक तथा परलोक में तुम ही रक्षक हो।
ਮਾਤ ਗਰਭ ਮਹਿ ਤੁਮ ਹੀ ਪਾਲਾ ॥
मात गरभ महि तुम ही पाला ॥
तुम ही माता के गर्भ में आए शिशु का पालन-पोषण करते हो।
ਮਾਇਆ ਅਗਨਿ ਨ ਪੋਹੈ ਤਿਨ ਕਉ ਰੰਗਿ ਰਤੇ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥੫॥
माइआ अगनि न पोहै तिन कउ रंगि रते गुण गावणिआ ॥५॥
जो प्रभु के प्रेम में मग्न हुए उसकी कीर्ति का गायन करते हैं, उन्हें माया की अग्नि प्रभावित नहीं कर सकती ॥ ५॥
ਕਿਆ ਗੁਣ ਤੇਰੇ ਆਖਿ ਸਮਾਲੀ ॥
किआ गुण तेरे आखि समाली ॥
हे परमात्मा ! मैं तेरे कौन-कौन से गुणों को कहकर स्मरण करुं?
ਮਨ ਤਨ ਅੰਤਰਿ ਤੁਧੁ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੀ ॥
मन तन अंतरि तुधु नदरि निहाली ॥
मैं अपने मन एवं तन में तुझे ही मौजूद देखता हूँ।
ਤੂੰ ਮੇਰਾ ਮੀਤੁ ਸਾਜਨੁ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਨਣਿਆ ॥੬॥
तूं मेरा मीतु साजनु मेरा सुआमी तुधु बिनु अवरु न जानणिआ ॥६॥
हे प्रभु ! तुम ही मेरे मित्र, मेरे साजन एवं मेरे स्वामी हो। तेरे अलावा मैं अन्य किसी को भी नहीं जानता ॥ ६॥
ਜਿਸ ਕਉ ਤੂੰ ਪ੍ਰਭ ਭਇਆ ਸਹਾਈ ॥
जिस कउ तूं प्रभ भइआ सहाई ॥
हे प्रभु ! जिस पुरुष के तुम सहायक सिद्ध हुए हो,
ਤਿਸੁ ਤਤੀ ਵਾਉ ਨ ਲਗੈ ਕਾਈ ॥
तिसु तती वाउ न लगै काई ॥
उसे कोई गर्म हवा भी नहीं लगती अर्थात् किसी प्रकार की कोई पीड़ा नहीं आती।
ਤੂ ਸਾਹਿਬੁ ਸਰਣਿ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸਤਸੰਗਤਿ ਜਪਿ ਪ੍ਰਗਟਾਵਣਿਆ ॥੭॥
तू साहिबु सरणि सुखदाता सतसंगति जपि प्रगटावणिआ ॥७॥
हे परमात्मा ! तू सबका मालिक है, तू ही आश्रयदाता एवं सुखदाता है। सत्संग में तेरे नाम की आराधना करने से तुम प्रकट हो जाते हो ॥ ७ ॥
ਤੂੰ ਊਚ ਅਥਾਹੁ ਅਪਾਰੁ ਅਮੋਲਾ ॥
तूं ऊच अथाहु अपारु अमोला ॥
हे प्रभु ! तुम सर्वोच्च, अथाह, अनन्त एवं अनमोल हो।
ਤੂੰ ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਦਾਸੁ ਤੇਰਾ ਗੋਲਾ ॥
तूं साचा साहिबु दासु तेरा गोला ॥
तू ही मेरा सच्चा साहिब है और मैं तेरा सेवक एवं दास हूँ।
ਤੂੰ ਮੀਰਾ ਸਾਚੀ ਠਕੁਰਾਈ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਵਣਿਆ ॥੮॥੩॥੩੭॥
तूं मीरा साची ठकुराई नानक बलि बलि जावणिआ ॥८॥३॥३७॥
तुम सम्राट हो और तेरा साम्राज्य सत्य है। हे नानक ! मैं प्रभु पर तन-मन से न्यौछावर हूँ ॥ ८ ॥ ३ ॥ ३७ ॥
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨ ॥
माझ महला ५ घरु २ ॥
माझ महला ५ घरु २ ॥
ਨਿਤ ਨਿਤ ਦਯੁ ਸਮਾਲੀਐ ॥
नित नित दयु समालीऐ ॥
हे प्राणी ! हमें सदैव ही दयालु भगवान का सिमरन करना चाहिए और
ਮੂਲਿ ਨ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰੀਐ ॥ ਰਹਾਉ ॥
मूलि न मनहु विसारीऐ ॥ रहाउ ॥
उस प्रभु को कभी भी अपने हृदय से विस्मृत नहीं करना चाहिए ॥ १॥ रहाउ॥
ਸੰਤਾ ਸੰਗਤਿ ਪਾਈਐ ॥
संता संगति पाईऐ ॥
यदि सन्तों की संगति की जाए
ਜਿਤੁ ਜਮ ਕੈ ਪੰਥਿ ਨ ਜਾਈਐ ॥
जितु जम कै पंथि न जाईऐ ॥
तो जीव को यम-मार्ग में नहीं जाना पड़ेगा।
ਤੋਸਾ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਲੈ ਤੇਰੇ ਕੁਲਹਿ ਨ ਲਾਗੈ ਗਾਲਿ ਜੀਉ ॥੧॥
तोसा हरि का नामु लै तेरे कुलहि न लागै गालि जीउ ॥१॥
हरि के नाम का यात्रा-खर्च प्राप्त करो। उसे प्राप्त करने से तेरी वंश को कोई कलंक नहीं लगेगा ॥१॥
ਜੋ ਸਿਮਰੰਦੇ ਸਾਂਈਐ ॥
जो सिमरंदे सांईऐ ॥
जो व्यक्ति परमात्मा की आराधना करते हैं,”
ਨਰਕਿ ਨ ਸੇਈ ਪਾਈਐ ॥
नरकि न सेई पाईऐ ॥
उन्हें नरक में नहीं डाला जाता।
ਤਤੀ ਵਾਉ ਨ ਲਗਈ ਜਿਨ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਇ ਜੀਉ ॥੨॥
तती वाउ न लगई जिन मनि वुठा आइ जीउ ॥२॥
जिनके मन में ईश्वर ने आकर निवास कर लिया है, उनको गर्म हवा भी नहीं लगती अर्थात् उन्हें कोई दुःख नहीं पहुँचता ॥२॥
ਸੇਈ ਸੁੰਦਰ ਸੋਹਣੇ ॥
सेई सुंदर सोहणे ॥
वहीं व्यक्ति सुन्दर एवं शोभनीय हैं
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਿਨ ਬੈਹਣੇ ॥
साधसंगि जिन बैहणे ॥
जो सत्संग में वास करते हैं।
ਹਰਿ ਧਨੁ ਜਿਨੀ ਸੰਜਿਆ ਸੇਈ ਗੰਭੀਰ ਅਪਾਰ ਜੀਉ ॥੩॥
हरि धनु जिनी संजिआ सेई ग्मभीर अपार जीउ ॥३॥
जिन्होंने ईश्वर के नाम का धन अर्जित किया है वह बड़े दूरदर्शी और अपरम्पार हैं ॥३॥
ਹਰਿ ਅਮਿਉ ਰਸਾਇਣੁ ਪੀਵੀਐ ॥
हरि अमिउ रसाइणु पीवीऐ ॥
जो प्रभु-भक्त सत्संग में मिलकर हरि-नाम रूपी अमृत रस का पान करता है,”
ਮੁਹਿ ਡਿਠੈ ਜਨ ਕੈ ਜੀਵੀਐ ॥
मुहि डिठै जन कै जीवीऐ ॥
मैं उस भक्त के दर्शन करके ही जीता हूँ।
ਕਾਰਜ ਸਭਿ ਸਵਾਰਿ ਲੈ ਨਿਤ ਪੂਜਹੁ ਗੁਰ ਕੇ ਪਾਵ ਜੀਉ ॥੪॥
कारज सभि सवारि लै नित पूजहु गुर के पाव जीउ ॥४॥
हे प्राणी ! सदैव गुरु-चरणों की पूजा करके अपने समस्त कार्य संवार लो॥ ४॥
ਜੋ ਹਰਿ ਕੀਤਾ ਆਪਣਾ ॥
जो हरि कीता आपणा ॥
जिसे प्रभु ने अपना सेवक बना लिया है,”
ਤਿਨਹਿ ਗੁਸਾਈ ਜਾਪਣਾ ॥
तिनहि गुसाई जापणा ॥
वहीं भगवान का सिमरन करता है।
ਸੋ ਸੂਰਾ ਪਰਧਾਨੁ ਸੋ ਮਸਤਕਿ ਜਿਸ ਦੈ ਭਾਗੁ ਜੀਉ ॥੫॥
सो सूरा परधानु सो मसतकि जिस दै भागु जीउ ॥५॥
वही शूरवीर है और वही प्रधान है जिसके मस्तक पर भाग्य रेखाएँ विद्यमान हैं।॥५॥
ਮਨ ਮੰਧੇ ਪ੍ਰਭੁ ਅਵਗਾਹੀਆ ॥
मन मंधे प्रभु अवगाहीआ ॥
जिस व्यक्ति ने भगवान का अपने मन में सिमरन किया है, उसने ही इस रस का पान किया है।
ਏਹਿ ਰਸ ਭੋਗਣ ਪਾਤਿਸਾਹੀਆ ॥
एहि रस भोगण पातिसाहीआ ॥
हरि-रस का भोग ही प्रभुता के रस मानने की भाँति है।
ਮੰਦਾ ਮੂਲਿ ਨ ਉਪਜਿਓ ਤਰੇ ਸਚੀ ਕਾਰੈ ਲਾਗਿ ਜੀਉ ॥੬॥
मंदा मूलि न उपजिओ तरे सची कारै लागि जीउ ॥६॥
नाम-सिमरन करने वालों के मन में कदाचित बुराई उत्पन्न नहीं होती। वे नाम-सिमरन के शुभ-कर्म में लगकर भवसागर से पार हो जाते हैं।॥ ६॥
ਕਰਤਾ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥
करता मंनि वसाइआ ॥
जिसने सृष्टि-कर्ता प्रभु को अपने हृदय में वसा लिया है
ਜਨਮੈ ਕਾ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ॥
जनमै का फलु पाइआ ॥
उसने मानव जीवन का फल प्राप्त कर लिया है।
ਮਨਿ ਭਾਵੰਦਾ ਕੰਤੁ ਹਰਿ ਤੇਰਾ ਥਿਰੁ ਹੋਆ ਸੋਹਾਗੁ ਜੀਉ ॥੭॥
मनि भावंदा कंतु हरि तेरा थिरु होआ सोहागु जीउ ॥७॥
हे जीव-स्त्री ! तुझे अपना मनपसंद हरि-प्रभु मिल गया है और अब तेरा सुहाग स्थिर हो गया है॥ ७॥
ਅਟਲ ਪਦਾਰਥੁ ਪਾਇਆ ॥
अटल पदारथु पाइआ ॥
तब हरि-नाम रूपी अटल पदार्थ मिल गया
ਭੈ ਭੰਜਨ ਕੀ ਸਰਣਾਇਆ ॥
भै भंजन की सरणाइआ ॥
जब मैं भयनाशक प्रभु की शरण में आया।
ਲਾਇ ਅੰਚਲਿ ਨਾਨਕ ਤਾਰਿਅਨੁ ਜਿਤਾ ਜਨਮੁ ਅਪਾਰ ਜੀਉ ॥੮॥੪॥੩੮॥
लाइ अंचलि नानक तारिअनु जिता जनमु अपार जीउ ॥८॥४॥३८॥
हे नानक ! भगवान ने अपने दामन से लगाकर तुझे भवसागर से पार कर दिया है और तूने अपनी जीवन-बाजी को जीत कर अपार प्रभु को प्राप्त कर लिया है ॥८॥४॥३८॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ॥
माझ महला ५ घरु ३
माझ महला ५ घरु ३ ॥
ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪੇ ਮਨੁ ਧੀਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि जपि जपे मनु धीरे ॥१॥ रहाउ ॥
भगवान का नाम जपने से मेरे मन को धैर्य हो गया है॥ १ ॥ रहाउ॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਗੁਰਦੇਉ ਮਿਟਿ ਗਏ ਭੈ ਦੂਰੇ ॥੧॥
सिमरि सिमरि गुरदेउ मिटि गए भै दूरे ॥१॥
गुरदेव का नाम-सिमरन करने से मेरे तमाम भय मिट गए हैं।॥ १॥
ਸਰਨਿ ਆਵੈ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਤਾ ਫਿਰਿ ਕਾਹੇ ਝੂਰੇ ॥੨॥
सरनि आवै पारब्रहम की ता फिरि काहे झूरे ॥२॥
जो पारब्रहम की शरण में आ जाता है, वह फिर चिन्ता क्यों करेगा ? ॥ २॥