Hindi Page 300

ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਲਾਗਾ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸੇਵ ॥
मनु तनु सीतलु सांति सहज लागा प्रभ की सेव ॥
“(गुरु की कृपा से) वह ईश्वर की भक्ति में लग गया है, जिससे उसका मन तन शीतल हो गया, उसके भीतर शांति एवं सहज सुख उत्पन्न हो गया।

ਟੂਟੇ ਬੰਧਨ ਬਹੁ ਬਿਕਾਰ ਸਫਲ ਪੂਰਨ ਤਾ ਕੇ ਕਾਮ ॥
टूटे बंधन बहु बिकार सफल पूरन ता के काम ॥
जो मनुष्य प्रभु का नाम-स्मरण करते हैं, उनके विकारों के बन्धन और अनेक पाप नाश हो जाते हैं।

ਦੁਰਮਤਿ ਮਿਟੀ ਹਉਮੈ ਛੁਟੀ ਸਿਮਰਤ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮ ॥
दुरमति मिटी हउमै छुटी सिमरत हरि को नाम ॥
उसके तमाम कार्य सफल एवं सम्पूर्ण हो जाते हैं, उनकी दुर्बुद्धि नाश हो जाती है और उनका अहंकार निवृत्त हो जाता है।

ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਕੀ ਮਿਟਿਆ ਆਵਾ ਗਵਨ ॥
सरनि गही पारब्रहम की मिटिआ आवा गवन ॥
परब्रह्म की शरण लेने से मनुष्य का जन्म-मरण का चक्र मिट जाता है।

ਆਪਿ ਤਰਿਆ ਕੁਟੰਬ ਸਿਉ ਗੁਣ ਗੁਬਿੰਦ ਪ੍ਰਭ ਰਵਨ ॥
आपि तरिआ कुट्मब सिउ गुण गुबिंद प्रभ रवन ॥
गोबिन्द प्रभु की महिमा-स्तुति के कारण वह अपने कुटुंब सहित (भवसागर से) पार हो जाता है।

ਹਰਿ ਕੀ ਟਹਲ ਕਮਾਵਣੀ ਜਪੀਐ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਨਾਮੁ ॥
हरि की टहल कमावणी जपीऐ प्रभ का नामु ॥
हे जीव ! ईश्वर की भक्ति ही करनी चाहिए और भगवान के नाम का जाप करना चाहिए।

ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਤੇ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥੧੫॥
गुर पूरे ते पाइआ नानक सुख बिस्रामु ॥१५॥
हे नानक ! सर्व सुखों का मूल वह परमात्मा पूर्ण गुरु के द्वारा मिलता है॥ १५॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਪੂਰਨੁ ਕਬਹੁ ਨ ਡੋਲਤਾ ਪੂਰਾ ਕੀਆ ਪ੍ਰਭ ਆਪਿ ॥
पूरनु कबहु न डोलता पूरा कीआ प्रभ आपि ॥
पूर्ण मनुष्य जिसे परमात्मा ने स्वयं पूर्ण किया है, वह कभी विचलित नहीं होता।

ਦਿਨੁ ਦਿਨੁ ਚੜੈ ਸਵਾਇਆ ਨਾਨਕ ਹੋਤ ਨ ਘਾਟਿ ॥੧੬॥
दिनु दिनु चड़ै सवाइआ नानक होत न घाटि ॥१६॥
हे नानक ! वह दिन-रात प्रगति करता रहता है और जीवन में असफल नहीं होता।॥१६॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥

ਪੂਰਨਮਾ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭ ਏਕੁ ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ॥
पूरनमा पूरन प्रभ एकु करण कारण समरथु ॥
पूर्णिमा- केवल एक परमेश्वर ही पूर्ण है। वह सब कुछ करने एवं करवाने में समर्थ है।

ਜੀਅ ਜੰਤ ਦਇਆਲ ਪੁਰਖੁ ਸਭ ਊਪਰਿ ਜਾ ਕਾ ਹਥੁ ॥
जीअ जंत दइआल पुरखु सभ ऊपरि जा का हथु ॥
सर्वव्यापक परमात्मा समस्त जीव-जन्तुओं पर दयालु रहता है, समस्त जीवों पर उसका रक्षा करने वाला हाथ है।

ਗੁਣ ਨਿਧਾਨ ਗੋਬਿੰਦ ਗੁਰ ਕੀਆ ਜਾ ਕਾ ਹੋਇ ॥
गुण निधान गोबिंद गुर कीआ जा का होइ ॥
गोविन्द जिसकी इच्छानुसार सब कुछ होता है, गुणों का भण्डार है।

ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਜਾਨੁ ਅਲਖ ਨਿਰੰਜਨ ਸੋਇ ॥
अंतरजामी प्रभु सुजानु अलख निरंजन सोइ ॥
वह बुद्धिमान, अदृश्य एवं निरंजन प्रभु अन्तर्यामी है।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਪਰਮੇਸਰੋ ਸਭ ਬਿਧਿ ਜਾਨਣਹਾਰ ॥
पारब्रहमु परमेसरो सभ बिधि जानणहार ॥
पारब्रह्म-परमेश्वर समस्त विधियों को जानने वाला है।

ਸੰਤ ਸਹਾਈ ਸਰਨਿ ਜੋਗੁ ਆਠ ਪਹਰ ਨਮਸਕਾਰ ॥
संत सहाई सरनि जोगु आठ पहर नमसकार ॥
वह संतों का सहायक एवं शरण देने में समर्थ है। मैं सदैव उसको प्रणाम करता हूँ।

ਅਕਥ ਕਥਾ ਨਹ ਬੂਝੀਐ ਸਿਮਰਹੁ ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਨ ॥
अकथ कथा नह बूझीऐ सिमरहु हरि के चरन ॥
मैं हरि के सुन्दर चरणों की आराधना करता हूँ, जिसकी अकथनीय कथा जानी नहीं जा सकती।

ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਨ ਅਨਾਥ ਨਾਥ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਨ ॥੧੬॥
पतित उधारन अनाथ नाथ नानक प्रभ की सरन ॥१६॥
हे नानक ! मैंने उस प्रभु की शरण ली है, जो पतितों का उद्धार करने वाला एवं अनाथों का नाथ है ॥१६॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥

ਦੁਖ ਬਿਨਸੇ ਸਹਸਾ ਗਇਓ ਸਰਨਿ ਗਹੀ ਹਰਿ ਰਾਇ ॥
दुख बिनसे सहसा गइओ सरनि गही हरि राइ ॥
जब से मैंने भगवान की शरण ली है, मेरा दु:ख नाश हो गया है और दुविधा भाग गई है।

ਮਨਿ ਚਿੰਦੇ ਫਲ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥੧੭॥
मनि चिंदे फल पाइआ नानक हरि गुन गाइ ॥१७॥
हे नानक ! भगवान का यशोगान करने से मैंने मनोवांछित फल प्राप्त कर लिए हैं ॥१७॥

ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥

ਕੋਈ ਗਾਵੈ ਕੋ ਸੁਣੈ ਕੋਈ ਕਰੈ ਬੀਚਾਰੁ ॥
कोई गावै को सुणै कोई करै बीचारु ॥
चाहे कोई मनुष्य भगवान के नाम का गायन करे,चाहे कोई मनुष्य भगवान का नाम सुने, चाहे कोई मनुष्य विचार करे,

ਕੋ ਉਪਦੇਸੈ ਕੋ ਦ੍ਰਿੜੈ ਤਿਸ ਕਾ ਹੋਇ ਉਧਾਰੁ ॥
को उपदेसै को द्रिड़ै तिस का होइ उधारु ॥
चाहे कोई मनुष्य उपदेश करे एवं चाहे कोई मनुष्य इसको अपने मन में दृढ़ करे, उसका उद्धार हो जाता है।

ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟੈ ਹੋਇ ਨਿਰਮਲਾ ਜਨਮ ਜਨਮ ਮਲੁ ਜਾਇ ॥
किलबिख काटै होइ निरमला जनम जनम मलु जाइ ॥
उसके पाप मिट जाते हैं, वह निर्मल हो जाता है और उसके जन्म-जन्मांतरों की मैल दूर हो जाती है।

ਹਲਤਿ ਪਲਤਿ ਮੁਖੁ ਊਜਲਾ ਨਹ ਪੋਹੈ ਤਿਸੁ ਮਾਇ ॥
हलति पलति मुखु ऊजला नह पोहै तिसु माइ ॥
इस लोक एवं परलोक में उसका मुख उज्ज्वल होता है और माया उस पर प्रभाव नहीं करती।

ਸੋ ਸੁਰਤਾ ਸੋ ਬੈਸਨੋ ਸੋ ਗਿਆਨੀ ਧਨਵੰਤੁ ॥
सो सुरता सो बैसनो सो गिआनी धनवंतु ॥
वह बुद्धिमान मनुष्य है, वही वैष्णो, वही ज्ञानी एवं धनवान है,

ਸੋ ਸੂਰਾ ਕੁਲਵੰਤੁ ਸੋਇ ਜਿਨਿ ਭਜਿਆ ਭਗਵੰਤੁ ॥
सो सूरा कुलवंतु सोइ जिनि भजिआ भगवंतु ॥
वही शूरवीर एवं वही उच्च कुल का है, जिसने भगवान का भजन किया है।

ਖਤ੍ਰੀ ਬ੍ਰਾਹਮਣੁ ਸੂਦੁ ਬੈਸੁ ਉਧਰੈ ਸਿਮਰਿ ਚੰਡਾਲ ॥
खत्री ब्राहमणु सूदु बैसु उधरै सिमरि चंडाल ॥
क्षत्रिय, ब्राह्मण, शूद्र, वैश्य एवं चण्डाल जातियों वाले भी प्रभु का सिमरन करने से पार हो गए हैं।

ਜਿਨਿ ਜਾਨਿਓ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪਨਾ ਨਾਨਕ ਤਿਸਹਿ ਰਵਾਲ ॥੧੭॥
जिनि जानिओ प्रभु आपना नानक तिसहि रवाल ॥१७॥
नानक, उसके चरणों की धूलि है, जो अपने ईश्वर को जानता है॥ १७ ॥

ਗਉੜੀ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी की वार महला ४ ॥
गउड़ी की वार महला ४ ॥

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਦਇਆਲੁ ਹੈ ਜਿਸ ਨੋ ਸਮਤੁ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
सतिगुरु पुरखु दइआलु है जिस नो समतु सभु कोइ ॥
महापुरुष सतिगुरु समस्त जीवों पर दयालु है, उसके लिए सभी जीव एक समान हैं।

ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਕਰਿ ਦੇਖਦਾ ਮਨ ਭਾਵਨੀ ਤੇ ਸਿਧਿ ਹੋਇ ॥
एक द्रिसटि करि देखदा मन भावनी ते सिधि होइ ॥
वह सबको एक दृष्टि से देखता है परन्तु वह मन की श्रद्धा से ही पाया जाता है।

ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਚਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹੈ ਹਰਿ ਉਤਮੁ ਹਰਿ ਪਦੁ ਸੋਇ ॥
सतिगुर विचि अम्रितु है हरि उतमु हरि पदु सोइ ॥
सतिगुरु के भीतर नाम-अमृत बसता है। वह प्रभु की भाँति उत्तम है और हरि पद रखता है।

ਨਾਨਕ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਵੈ ਕੋਇ ॥੧॥
नानक किरपा ते हरि धिआईऐ गुरमुखि पावै कोइ ॥१॥
हे नानक ! गुरु की कृपा से ही भगवान का ध्यान किया जाता है, तथा विरले गुरमुख ही भगवान को प्राप्त करते हैं।॥१॥

ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥

ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਸਭ ਬਿਖੁ ਹੈ ਨਿਤ ਜਗਿ ਤੋਟਾ ਸੰਸਾਰਿ ॥
हउमै माइआ सभ बिखु है नित जगि तोटा संसारि ॥
अहंकार एवं माया समस्त विष है। उनके साथ लगकर मनुष्य इस दुनिया में सदैव नुक्सान प्राप्त करता है।

ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਧਨੁ ਖਟਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥
लाहा हरि धनु खटिआ गुरमुखि सबदु वीचारि ॥
शब्द का चिन्तन करने से गुरमुख हरि-नाम रूपी धन का लाभ कमा लेता है।

ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਬਿਖੁ ਉਤਰੈ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
हउमै मैलु बिखु उतरै हरि अम्रितु हरि उर धारि ॥
हरि एवं हरि-अमृत को हृदय में वसाने से अहंकार की मैल का विष उतर जाता है।

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