Hindi Page 1208

ਸਗਲ ਪਦਾਰਥ ਸਿਮਰਨਿ ਜਾ ਕੈ ਆਠ ਪਹਰ ਮੇਰੇ ਮਨ ਜਾਪਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सगल पदारथ सिमरनि जा कै आठ पहर मेरे मन जापि ॥१॥ रहाउ ॥
जिसका स्मरण करने से सभी पदार्थ प्राप्त होते हैं, हे मेरे मन ! आठ प्रहर उसका जाप कर॥१॥रहाउ॥।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਸੁਆਮੀ ਤੇਰਾ ਜੋ ਪੀਵੈ ਤਿਸ ਹੀ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸ ॥
अम्रित नामु सुआमी तेरा जो पीवै तिस ही त्रिपतास ॥
हे स्वामी ! जो तेरा नामामृत पान करता है, वह तृप्त हो जाता है।

ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਨਾਸਹਿ ਆਗੈ ਦਰਗਹ ਹੋਇ ਖਲਾਸ ॥੧॥
जनम जनम के किलबिख नासहि आगै दरगह होइ खलास ॥१॥
उसके जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं और आगे प्रभु-दरबार में मुक्ति होती है।॥१॥

ਸਰਨਿ ਤੁਮਾਰੀ ਆਇਓ ਕਰਤੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸ ॥
सरनि तुमारी आइओ करते पारब्रहम पूरन अबिनास ॥
हे पूर्ण अविनाशी, परब्रह्म कर्ता ! मैं तुम्हारी शरण में आया हूँ।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਤੇਰੇ ਚਰਨ ਧਿਆਵਉ ਨਾਨਕ ਮਨਿ ਤਨਿ ਦਰਸ ਪਿਆਸ ॥੨॥੫॥੧੯॥
करि किरपा तेरे चरन धिआवउ नानक मनि तनि दरस पिआस ॥२॥५॥१९॥
कृपा करो ताकि तेरे चरणों का ध्यान करता रहूँ, नानक के मन तन में तेरे दर्शन की ही तीव्र आकांक्षा है॥२ ॥५ ॥ १६ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩
सारग महला ५ घरु ३
सारग महला ५ घरु ३

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਮਨ ਕਹਾ ਲੁਭਾਈਐ ਆਨ ਕਉ ॥
मन कहा लुभाईऐ आन कउ ॥
हे मन ! संसार की चीजों की ओर क्यों लुब्ध हो रहे हो ?

ਈਤ ਊਤ ਪ੍ਰਭੁ ਸਦਾ ਸਹਾਈ ਜੀਅ ਸੰਗਿ ਤੇਰੇ ਕਾਮ ਕਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ईत ऊत प्रभु सदा सहाई जीअ संगि तेरे काम कउ ॥१॥ रहाउ ॥
इहलोक-परलोक प्रभु सदा सहायक है, वह प्राणों का साथी ही तेरे काम आने वाला है॥१॥रहाउ॥।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਿਅ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਨੋਹਰ ਇਹੈ ਅਘਾਵਨ ਪਾਂਨ ਕਉ ॥
अम्रित नामु प्रिअ प्रीति मनोहर इहै अघावन पांन कउ ॥
प्रियतम का नाम अमृतमय है, उसका मनोहर प्रेम ही तृप्ति प्रदान करने वाला है।

ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਹੈ ਸਾਧ ਸੰਤਨ ਕੀ ਠਾਹਰ ਨੀਕੀ ਧਿਆਨ ਕਉ ॥੧॥
अकाल मूरति है साध संतन की ठाहर नीकी धिआन कउ ॥१॥
उस कालातीत ब्रह्मा मूर्ति परमेश्वर का ध्यान करने के लिए साधु-संतों की संगत ही अच्छा ठिकाना है॥१॥

ਬਾਣੀ ਮੰਤ੍ਰੁ ਮਹਾ ਪੁਰਖਨ ਕੀ ਮਨਹਿ ਉਤਾਰਨ ਮਾਂਨ ਕਉ ॥
बाणी मंत्रु महा पुरखन की मनहि उतारन मांन कउ ॥
महापुरुषों की वाणी ऐसा महामंत्र है, जो मन का अभिमान निवृत्त कर देती है।

ਖੋਜਿ ਲਹਿਓ ਨਾਨਕ ਸੁਖ ਥਾਨਾਂ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਬਿਸ੍ਰਾਮ ਕਉ ॥੨॥੧॥੨੦॥
खोजि लहिओ नानक सुख थानां हरि नामा बिस्राम कउ ॥२॥१॥२०॥
नानक फुरमाते हैं कि प्रभु का नाम शान्ति प्रदान करने वाला है, अतः इस सुख के स्थान को खोज लो॥२॥१॥ २०॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਮਨ ਸਦਾ ਮੰਗਲ ਗੋਬਿੰਦ ਗਾਇ ॥
मन सदा मंगल गोबिंद गाइ ॥
हे मन ! सदा भगवान का मंगल-गान करो।

ਰੋਗ ਸੋਗ ਤੇਰੇ ਮਿਟਹਿ ਸਗਲ ਅਘ ਨਿਮਖ ਹੀਐ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
रोग सोग तेरे मिटहि सगल अघ निमख हीऐ हरि नामु धिआइ ॥१॥ रहाउ ॥
यदि पल भर हृदय में हरिनाम का ध्यान करोगे तो तेरे सभी पाप, रोग एवं शोक मिट जाएँगे।॥१॥रहाउ॥।

ਛੋਡਿ ਸਿਆਨਪ ਬਹੁ ਚਤੁਰਾਈ ਸਾਧੂ ਸਰਣੀ ਜਾਇ ਪਾਇ ॥
छोडि सिआनप बहु चतुराई साधू सरणी जाइ पाइ ॥
अपनी बुद्धिमानी एवं चतुराई को छोड़कर साधुओं की शरण में पड़ जाओ।

ਜਉ ਹੋਇ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਦੀਨ ਦੁਖ ਭੰਜਨ ਜਮ ਤੇ ਹੋਵੈ ਧਰਮ ਰਾਇ ॥੧॥
जउ होइ क्रिपालु दीन दुख भंजन जम ते होवै धरम राइ ॥१॥
दीनों के दुख नाश करने वाला प्रभु जब कृपालु होता है तो यम भी धर्मराज सरीखा आचरण करता है॥१॥

ਏਕਸ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਕੋ ਦੂਜਾ ਆਨ ਨ ਬੀਓ ਲਵੈ ਲਾਇ ॥
एकस बिनु नाही को दूजा आन न बीओ लवै लाइ ॥
एक परमेश्वर के अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं है और कोई अन्य उसकी बराबरी नहीं कर सकता।

ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਭਾਈ ਨਾਨਕ ਕੋ ਸੁਖਦਾਤਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਾਨ ਸਾਇ ॥੨॥੨॥੨੧॥
मात पिता भाई नानक को सुखदाता हरि प्रान साइ ॥२॥२॥२१॥
नानक का मत है कि माता-पिता एवं भाई समान प्राणों का स्वामी परमेश्वर ही सुख प्रदान करने वाला है॥२॥ २ ॥ २१ ॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਹਰਿ ਜਨ ਸਗਲ ਉਧਾਰੇ ਸੰਗ ਕੇ ॥
हरि जन सगल उधारे संग के ॥
परमात्मा के भक्त अपने संगियों का भी उद्धार कर देते हैं।

ਭਏ ਪੁਨੀਤ ਪਵਿਤ੍ਰ ਮਨ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਦੁਖ ਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भए पुनीत पवित्र मन जनम जनम के दुख हरे ॥१॥ रहाउ ॥
उनका मन पवित्र होता है और जन्म-जन्म के दुखों को हरण कर लेते हैं।॥१॥रहाउ॥।

ਮਾਰਗਿ ਚਲੇ ਤਿਨੑੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਜਿਨੑ ਸਿਉ ਗੋਸਟਿ ਸੇ ਤਰੇ ॥
मारगि चले तिन्ही सुखु पाइआ जिन्ह सिउ गोसटि से तरे ॥
जो भी सन्मार्ग चले हैं, उन्होंने सुख ही पाया है, जिनके साथ उनके प्रवचन हुए, वे भी संसार-सागर से तैर गए हैं।

ਬੂਡਤ ਘੋਰ ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਤੇ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਪਾਰਿ ਪਰੇ ॥੧॥
बूडत घोर अंध कूप महि ते साधू संगि पारि परे ॥१॥
जो अज्ञान के घोर अंधकूप में निरे हुए थे, वे साधु-पुरुषों की संगत में पार उतर गए हैं।॥१॥

ਜਿਨੑ ਕੇ ਭਾਗ ਬਡੇ ਹੈ ਭਾਈ ਤਿਨੑ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਮੁਖ ਜੁਰੇ ॥
जिन्ह के भाग बडे है भाई तिन्ह साधू संगि मुख जुरे ॥
हे भाई ! जिनके उत्तम भाग्य होते हैं, वे साधुओं की संगत में ही सम्मिलित रहते हैं।

ਤਿਨੑ ਕੀ ਧੂਰਿ ਬਾਂਛੈ ਨਿਤ ਨਾਨਕੁ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ॥੨॥੩॥੨੨॥
तिन्ह की धूरि बांछै नित नानकु प्रभु मेरा किरपा करे ॥२॥३॥२२॥
नानक कथन करते हैं कि हम भी उनकी चरण-धूलि के आकांक्षी हैं, यदि मेरा प्रभु कृपा करे तो मिल जाए॥२॥३॥ २२॥

ਸਾਰਗ ਮਹਲਾ ੫ ॥
सारग महला ५ ॥
सारग महला ५ ॥

ਹਰਿ ਜਨ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਧਿਆਂਏ ॥
हरि जन राम राम राम धिआंए ॥
भक्तजन परमात्मा के गहन चिंतन में ही लीन रहते हैं।

ਏਕ ਪਲਕ ਸੁਖ ਸਾਧ ਸਮਾਗਮ ਕੋਟਿ ਬੈਕੁੰਠਹ ਪਾਂਏ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
एक पलक सुख साध समागम कोटि बैकुंठह पांए ॥१॥ रहाउ ॥
साधु पुरुषों की संगत में एक पल भर रहने से करोड़ों स्वर्गों के सुखों का फल प्राप्त होता है।॥१॥रहाउ॥।

ਦੁਲਭ ਦੇਹ ਜਪਿ ਹੋਤ ਪੁਨੀਤਾ ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਨਿਵਾਰੈ ॥
दुलभ देह जपि होत पुनीता जम की त्रास निवारै ॥
परमेश्वर का जप करने से दुर्लभ शरीर पवित्र हो जाता है और यम की पीड़ा का निवारण कर देता है।

ਮਹਾ ਪਤਿਤ ਕੇ ਪਾਤਿਕ ਉਤਰਹਿ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਉਰਿ ਧਾਰੈ ॥੧॥
महा पतित के पातिक उतरहि हरि नामा उरि धारै ॥१॥
हरिनाम को हृदय में धारण करने से महा पापियों के भी पाप उतर जाते हैं।॥१॥

ਜੋ ਜੋ ਸੁਨੈ ਰਾਮ ਜਸੁ ਨਿਰਮਲ ਤਾ ਕਾ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਨਾਸਾ ॥
जो जो सुनै राम जसु निरमल ता का जनम मरण दुखु नासा ॥
जो जो पावन राम यश सुनता है, उसका जन्म-मरण का दुख नाश हो जाता है।

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪਾਈਐ ਵਡਭਾਗੀਂ ਮਨ ਤਨ ਹੋਇ ਬਿਗਾਸਾ ॥੨॥੪॥੨੩॥
कहु नानक पाईऐ वडभागीं मन तन होइ बिगासा ॥२॥४॥२३॥
नानक फुरमाते हैं कि अहोभाग्य से (हरि यश) प्राप्त होता है और मन तन खिल उठता है॥२॥४॥ २३ ॥

error: Content is protected !!