ਜਿਸ ਤੇ ਹੋਆ ਤਿਸਹਿ ਸਮਾਣਾ ਚੂਕਿ ਗਇਆ ਪਾਸਾਰਾ ॥੪॥੧॥
जिस ते होआ तिसहि समाणा चूकि गइआ पासारा ॥४॥१॥
जिस परमेश्वर से उत्पन्न होता है, उसी में विलीन हो जाता है और सारा प्रसार खत्म हो जाता है॥४॥१॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਜਿਨੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਸੇ ਮੇਲੇ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇ ॥
जिनी हुकमु पछाणिआ से मेले हउमै सबदि जलाइ ॥
जिसने मालिक के हुक्म को पहचान लिया है, वह शब्द द्वारा अहम् को जलाकर सत्य में ही मिल गया है।
ਸਚੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਸਚਿ ਰਹੇ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
सची भगति करहि दिनु राती सचि रहे लिव लाइ ॥
वह दिन-रात सच्ची भक्ति करता है और परम-सत्य प्रभु के ध्यान में लीन रहता है।
ਸਦਾ ਸਚੁ ਹਰਿ ਵੇਖਦੇ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸੁਭਾਇ ॥੧॥
सदा सचु हरि वेखदे गुर कै सबदि सुभाइ ॥१॥
गुरु के उपदेश से उसे स्वाभाविक सब ओर सदैव सत्य प्रभु ही दृष्टिगत होता है।॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਹੁਕਮੁ ਮੰਨਿ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥
मन रे हुकमु मंनि सुखु होइ ॥
हे मन ! परमात्मा का हुक्म मानने से ही सुख प्राप्त होता है।
ਪ੍ਰਭ ਭਾਣਾ ਅਪਣਾ ਭਾਵਦਾ ਜਿਸੁ ਬਖਸੇ ਤਿਸੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਕੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभ भाणा अपणा भावदा जिसु बखसे तिसु बिघनु न कोइ ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु को अपनी रज़ा मानने वाला ही पसंद है, जिसे कृपा कर समर्था प्रदान करता है, उसे कोई बाधा नहीं आती॥१॥रहाउ॥
ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਸਭਾ ਧਾਤੁ ਹੈ ਨਾ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨ ਭਾਇ ॥
त्रै गुण सभा धातु है ना हरि भगति न भाइ ॥
तीन गुणों में भटकन ही है, इससे न ईश्वर की भक्ति होती है, न ही प्रेम होता है।
ਗਤਿ ਮੁਕਤਿ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵਈ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਹਿ ॥
गति मुकति कदे न होवई हउमै करम कमाहि ॥
जीव अहम्-भाव में कर्म करता है और कभी मुक्ति प्राप्त नहीं होती।
ਸਾਹਿਬ ਭਾਵੈ ਸੋ ਥੀਐ ਪਇਐ ਕਿਰਤਿ ਫਿਰਾਹਿ ॥੨॥
साहिब भावै सो थीऐ पइऐ किरति फिराहि ॥२॥
जो मालिक को मंजूर है, वही होता है और पथभ्रष्ट जीव कर्मों के बन्धन में पड़ा रहता है।॥२॥
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟਿਐ ਮਨੁ ਮਰਿ ਰਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
सतिगुर भेटिऐ मनु मरि रहै हरि नामु वसै मनि आइ ॥
जब सतगुरु से संपर्क होता है, तो मन की वासनाएँ दूर हो जाती हैं और प्रभु का नाम मन में अवस्थित हो जाता है।
ਤਿਸ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਨਾ ਪਵੈ ਕਹਣਾ ਕਿਛੂ ਨ ਜਾਇ ॥
तिस की कीमति ना पवै कहणा किछू न जाइ ॥
उसकी महत्ता का वर्णन नहीं किया जा सकता और न ही कीर्ति बताई जा सकती है।
ਚਉਥੈ ਪਦਿ ਵਾਸਾ ਹੋਇਆ ਸਚੈ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੩॥
चउथै पदि वासा होइआ सचै रहै समाइ ॥३॥
वह तुरीयावस्था में स्थित होकर परम-सत्य में लीन रहता है।॥३॥
ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਹੈ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਇ ॥
मेरा हरि प्रभु अगमु अगोचरु है कीमति कहणु न जाइ ॥
मेरा प्रभु मन-वाणी से परे है, उसकी महिमा का वर्णन नहीं किया जा सकता।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਬੁਝੀਐ ਸਬਦੇ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
गुर परसादी बुझीऐ सबदे कार कमाइ ॥
यदि गुरु की कृपा से शब्द द्वारा अभ्यास किया जाए तो उसका भेद समझा जा सकता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਰਿ ਸੋਭਾ ਪਾਇ ॥੪॥੨॥
नानक नामु सलाहि तू हरि हरि दरि सोभा पाइ ॥४॥२॥
गुरु नानक का कथन है कि हरिनाम का स्तुतिगान करो, इसी से सच्चे द्वार पर शोभा प्राप्त होती ॥४॥२॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੋਈ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥
गुरमुखि कोई विरला बूझै जिस नो नदरि करेइ ॥
जिस पर परमेश्वर कृपा करता है, कोई विरला गुरमुख ही तथ्य को बुझता है।
ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਦਾਤਾ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ਬਖਸੇ ਨਦਰਿ ਕਰੇਇ ॥
गुर बिनु दाता कोई नाही बखसे नदरि करेइ ॥
गुरु के बिना दाता कोई नहीं और कृपा करके केवल वही नाम प्रदान करता है।
ਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਸਾਂਤਿ ਊਪਜੈ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਲਏਇ ॥੧॥
गुर मिलिऐ सांति ऊपजै अनदिनु नामु लएइ ॥१॥
गुरु को मिलकर शान्ति उत्पन्न होती है और जीव प्रतिदिन हरिनाम जपता रहता है॥१॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
मेरे मन हरि अम्रित नामु धिआइ ॥
हे मेरे मन ! हरिनामामृत का चिन्तन कर।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲੈ ਨਾਉ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਸਦਾ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुरु पुरखु मिलै नाउ पाईऐ हरि नामे सदा समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चे गुरु के मिलने पर ही हरिनाम प्राप्त होता है और जीव हरिनाम में ही विलीन रहता है॥१॥रहाउ॥
ਮਨਮੁਖ ਸਦਾ ਵਿਛੁੜੇ ਫਿਰਹਿ ਕੋਇ ਨ ਕਿਸ ਹੀ ਨਾਲਿ ॥
मनमुख सदा विछुड़े फिरहि कोइ न किस ही नालि ॥
मनमुखी परमात्मा से बिछुड़ कर आवागमन में भटकता है, न कोई उसके पास गुण होता है, न ही उसका कोई साथ देता है।
ਹਉਮੈ ਵਡਾ ਰੋਗੁ ਹੈ ਸਿਰਿ ਮਾਰੇ ਜਮਕਾਲਿ ॥
हउमै वडा रोगु है सिरि मारे जमकालि ॥
अहम् बहुत बड़ा रोग है और यमराज पटक कर मारता है।
ਗੁਰਮਤਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਨ ਵਿਛੁੜਹਿ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥੨॥
गुरमति सतसंगति न विछुड़हि अनदिनु नामु सम्हालि ॥२॥
जो गुरु की शिक्षानुसार चलता है, अच्छी संगत में रहता है, नित्य हरिनाम जपता है, वह ईश्वर से नहीं बिछुड़ता॥२॥
ਸਭਨਾ ਕਰਤਾ ਏਕੁ ਤੂ ਨਿਤ ਕਰਿ ਦੇਖਹਿ ਵੀਚਾਰੁ ॥
सभना करता एकु तू नित करि देखहि वीचारु ॥
हे ईश्वर ! केवल तू ही सबका रचयिता है और नित्य विचार कर देखभाल करता है।
ਇਕਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਆ ਬਖਸੇ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ॥
इकि गुरमुखि आपि मिलाइआ बखसे भगति भंडार ॥
किसी गुरमुख को भक्ति का भण्डार प्रदान कर स्वयं ही मिला लेता है।
ਤੂ ਆਪੇ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਜਾਣਦਾ ਕਿਸੁ ਆਗੈ ਕਰੀ ਪੂਕਾਰ ॥੩॥
तू आपे सभु किछु जाणदा किसु आगै करी पूकार ॥३॥
तू स्वयं सब कुछ जानता है, तेरे सिवा किसके समक्ष प्रार्थना की जाए॥३॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹੈ ਨਦਰੀ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
हरि हरि नामु अम्रितु है नदरी पाइआ जाइ ॥
परमात्मा का नाम अमृत के समान है और उसकी करुणा-दृष्टि से प्राप्त होता है।
ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਚਰੈ ਗੁਰ ਕੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
अनदिनु हरि हरि उचरै गुर कै सहजि सुभाइ ॥
कोई जिज्ञासु गुरु के शांत-स्वभाव में दिन-रात हरि का नामोच्चारण करता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਹੈ ਨਾਮੇ ਹੀ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥੪॥੩॥
नानक नामु निधानु है नामे ही चितु लाइ ॥४॥३॥
हे नानक ! हरि का नाम सुखों का भण्डार है, अतः नाम-स्मरण में ही मन लगाना चाहिए॥४॥३॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਗੁਰੁ ਸਾਲਾਹੀ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਨਾਰਾਇਣੁ ਸੋਈ ॥
गुरु सालाही सदा सुखदाता प्रभु नाराइणु सोई ॥
गुरु की प्रशंसा करो, वह सदा सुख देने वाला है और वही नारायण रूप परमेश्वर है।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦਿ ਪਰਮ ਪਦੁ ਪਾਇਆ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ਹੋਈ ॥
गुर परसादि परम पदु पाइआ वडी वडिआई होई ॥
जिसने गुरु की कृपा से मोक्ष पाया है, उसकी दुनिया में बहुत कीर्ति हुई है।
ਅਨਦਿਨੁ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਨਿਤ ਸਾਚੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ਸੋਈ ॥੧॥
अनदिनु गुण गावै नित साचे सचि समावै सोई ॥१॥
जो प्रतिदिन प्रभु का गुणगान करता है, वह सत्य में समाहित हो जाता है॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਰਿਦੈ ਵੀਚਾਰਿ ॥
मन रे गुरमुखि रिदै वीचारि ॥
हे मन ! ह्रदय में गुरु का चिंतन कर।
ਤਜਿ ਕੂੜੁ ਕੁਟੰਬੁ ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਚਲਣੁ ਰਿਦੈ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तजि कूड़ु कुट्मबु हउमै बिखु त्रिसना चलणु रिदै सम्हालि ॥१॥ रहाउ ॥
झूठे परिवार, तृष्णा एवं अहंकार के जहर को त्याग दे और याद रख मौत अपरिहार्य है॥१॥रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਾਤਾ ਰਾਮ ਨਾਮ ਕਾ ਹੋਰੁ ਦਾਤਾ ਕੋਈ ਨਾਹੀ ॥
सतिगुरु दाता राम नाम का होरु दाता कोई नाही ॥
सच्चा गुरु ही राम नाम का दाता है, अन्य कोई दाता नहीं।