Hindi Page 153

ਨਾਮ ਸੰਜੋਗੀ ਗੋਇਲਿ ਥਾਟੁ ॥
नाम संजोगी गोइलि थाटु ॥
जो नाम संजोगी हैं, वह संसार को चरागाह में एक अस्थिर स्थान समझते हैं।

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਫੂਟੈ ਬਿਖੁ ਮਾਟੁ ॥
काम क्रोध फूटै बिखु माटु ॥
भोग-विलास एवं अहंकार की विषैली गागर अन्त में फूट जाती है।

ਬਿਨੁ ਵਖਰ ਸੂਨੋ ਘਰੁ ਹਾਟੁ ॥
बिनु वखर सूनो घरु हाटु ॥
नाम के सौदे सूत के बिना देहि रूपी घर एवं मन की दुकान शून्य है।

ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਖੋਲੇ ਬਜਰ ਕਪਾਟ ॥੪॥
गुर मिलि खोले बजर कपाट ॥४॥
गुरु के मिलन से व्रज कपाट खुल जाते हैं।॥ ४॥

ਸਾਧੁ ਮਿਲੈ ਪੂਰਬ ਸੰਜੋਗ ॥
साधु मिलै पूरब संजोग ॥
किस्मत से ही संत मिलते हैं।

ਸਚਿ ਰਹਸੇ ਪੂਰੇ ਹਰਿ ਲੋਗ ॥
सचि रहसे पूरे हरि लोग ॥
परमात्मा के भक्त सत्य में हर्षित होते हैं।

ਮਨੁ ਤਨੁ ਦੇ ਲੈ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
मनु तनु दे लै सहजि सुभाइ ॥
हे नानक ! जो अपना मन एवं तन समर्पित करने से सहज ही अपने प्रभु को पा लेते हैं,

ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਕੈ ਲਾਗਉ ਪਾਇ ॥੫॥੬॥
नानक तिन कै लागउ पाइ ॥५॥६॥
मैं उनके चरणों पर नतमस्तक हूँ ॥ ५॥ ६॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥

ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਾਇਆ ਮਹਿ ਚੀਤੁ ॥
कामु क्रोधु माइआ महि चीतु
तेरा मन काम, क्रोध एवं माया के मोह में लीन है।

ਝੂਠ ਵਿਕਾਰਿ ਜਾਗੈ ਹਿਤ ਚੀਤੁ ॥
झूठ विकारि जागै हित चीतु ॥
उनके मोह के कारण तेरे मन में झूठ एवं पाप उदय हो गए हैं।

ਪੂੰਜੀ ਪਾਪ ਲੋਭ ਕੀ ਕੀਤੁ ॥
पूंजी पाप लोभ की कीतु ॥
तुमने पाप एवं लोभ की पूंजी संग्रह की हुई है।

ਤਰੁ ਤਾਰੀ ਮਨਿ ਨਾਮੁ ਸੁਚੀਤੁ ॥੧॥
तरु तारी मनि नामु सुचीतु ॥१॥
अतः तू शुद्ध हृदय से मन द्वारा पावन नाम का जाप करके भवसागर से पार हो जा॥ १॥

ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਸਾਚੇ ਮੈ ਤੇਰੀ ਟੇਕ ॥
वाहु वाहु साचे मै तेरी टेक ॥
हे मेरे सच्चे प्रभु ! तू धन्य-धन्य है। मुझे केवल तेरा ही सहारा है।

ਹਉ ਪਾਪੀ ਤੂੰ ਨਿਰਮਲੁ ਏਕ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ पापी तूं निरमलु एक ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु! मैं पापी हूँ, एक तू ही पावन हैं॥ १॥ रहाउ॥

ਅਗਨਿ ਪਾਣੀ ਬੋਲੈ ਭੜਵਾਉ ॥
अगनि पाणी बोलै भड़वाउ ॥
अग्नि व जल इत्यादि पंच तत्वों से बने शरीर में श्वास ऊँची-ऊँची गूंजते हैं।

ਜਿਹਵਾ ਇੰਦ੍ਰੀ ਏਕੁ ਸੁਆਉ ॥
जिहवा इंद्री एकु सुआउ ॥
जिव्हा व इन्द्रिय अपना-अपना स्वाद प्राप्त करते हैं।

ਦਿਸਟਿ ਵਿਕਾਰੀ ਨਾਹੀ ਭਉ ਭਾਉ ॥
दिसटि विकारी नाही भउ भाउ ॥
तेरी दृष्टि विकारों में लीन है और तुझे प्रभु का भय एवं प्रेम नहीं।

ਆਪੁ ਮਾਰੇ ਤਾ ਪਾਏ ਨਾਉ ॥੨॥
आपु मारे ता पाए नाउ ॥२॥
यदि प्राणी अपना अहंकार नष्ट कर दे तो वह नाम को प्राप्त कर लेता है॥ २॥

ਸਬਦਿ ਮਰੈ ਫਿਰਿ ਮਰਣੁ ਨ ਹੋਇ ॥
सबदि मरै फिरि मरणु न होइ ॥
जो व्यक्ति शब्द द्वारा अहंकार को समाप्त कर देता है, उसे दोबारा मरना नहीं पड़ता।

ਬਿਨੁ ਮੂਏ ਕਿਉ ਪੂਰਾ ਹੋਇ ॥
बिनु मूए किउ पूरा होइ ॥
अहंकार को समाप्त किए बिना वह पूरा कैसे हो सकता है?

ਪਰਪੰਚਿ ਵਿਆਪਿ ਰਹਿਆ ਮਨੁ ਦੋਇ ॥
परपंचि विआपि रहिआ मनु दोइ ॥
मन दुनिया के प्रपंचों एवं द्वैतभाव में लीन हो रहा है।

ਥਿਰੁ ਨਾਰਾਇਣੁ ਕਰੇ ਸੁ ਹੋਇ ॥੩॥
थिरु नाराइणु करे सु होइ ॥३॥
एक नारायण ही स्थिर है और दुनिया में वही होता है जो वह करता है॥३ ॥

ਬੋਹਿਥਿ ਚੜਉ ਜਾ ਆਵੈ ਵਾਰੁ ॥
बोहिथि चड़उ जा आवै वारु ॥
जब मेरी बारी आएगी तो मैं भवसागर से पार होने के लिए नाम रूपी जहाज पर सवार हो जाऊँगा।

ਠਾਕੇ ਬੋਹਿਥ ਦਰਗਹ ਮਾਰ ॥
ठाके बोहिथ दरगह मार ॥
जो जहाज पर सवार होने से वर्जित हो जाते हैं, उनकी प्रभु के दरबार में खूब पिटाई होती है।

ਸਚੁ ਸਾਲਾਹੀ ਧੰਨੁ ਗੁਰਦੁਆਰੁ ॥
सचु सालाही धंनु गुरदुआरु ॥
गुरु का दरबार धन्य है, जहाँ सत्यस्वरूप परमात्मा का यशोगान किया जाता है।

ਨਾਨਕ ਦਰਿ ਘਰਿ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥੪॥੭॥
नानक दरि घरि एकंकारु ॥४॥७॥
हे नानक ! अद्वितीय एक ईश्वर प्रत्येक हृदय-घर में व्यापक हो रहा है॥ ४॥ ७ ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥

ਉਲਟਿਓ ਕਮਲੁ ਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥
उलटिओ कमलु ब्रहमु बीचारि ॥
ब्रह्म का चिंतन करने से मोह-माया में उल्टा पड़ा हृदय-कमल बदल कर सीधा हो जाता है।

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਧਾਰ ਗਗਨਿ ਦਸ ਦੁਆਰਿ ॥
अम्रित धार गगनि दस दुआरि ॥
दसम द्वार रूपी गगन से अमृत रस की धारा बहने लग जाती है।

ਤ੍ਰਿਭਵਣੁ ਬੇਧਿਆ ਆਪਿ ਮੁਰਾਰਿ ॥੧॥
त्रिभवणु बेधिआ आपि मुरारि ॥१॥
मुरारि-प्रभु तीनों लोकों में स्वयं ही व्यापक हो रहा है॥ १॥

ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਭਰਮੁ ਨ ਕੀਜੈ ॥
रे मन मेरे भरमु न कीजै ॥
हे मेरे मन ! किसी दुविधा में मत पड़।

ਮਨਿ ਮਾਨਿਐ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनि मानिऐ अम्रित रसु पीजै ॥१॥ रहाउ ॥
यदि मन विश्वस्त हो जाए तो वह नाम रूपी अमृत रस का पान करने लगता है॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਨਮੁ ਜੀਤਿ ਮਰਣਿ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
जनमु जीति मरणि मनु मानिआ ॥
जब मन अपने अहंत्व को नाश करना स्वीकृत कर लेता है तो यह जीवन की बाजी को विजय कर लेता है।

ਆਪਿ ਮੂਆ ਮਨੁ ਮਨ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ॥
आपि मूआ मनु मन ते जानिआ ॥
जब मन का अहंत्च नाश हो जाता है तो उसे हृदय में ही परमात्मा बारे ज्ञान हो जाता है।

ਨਜਰਿ ਭਈ ਘਰੁ ਘਰ ਤੇ ਜਾਨਿਆ ॥੨॥
नजरि भई घरु घर ते जानिआ ॥२॥
जब परमात्मा की कृपा होती है तो हृदय-घर में उसे आत्म-स्वरूप की पहचान हो जाती है॥ २ ॥

ਜਤੁ ਸਤੁ ਤੀਰਥੁ ਮਜਨੁ ਨਾਮਿ ॥
जतु सतु तीरथु मजनु नामि ॥
ईश्वर का नाम ही सच्या ब्रह्मचार्य, सत्य तीर्थ एवं स्नान है।

ਅਧਿਕ ਬਿਥਾਰੁ ਕਰਉ ਕਿਸੁ ਕਾਮਿ ॥
अधिक बिथारु करउ किसु कामि ॥
यदि मैं नाम को छोड़ कर अन्य अधिकतर आडम्बर करूँ तो वह सब व्यर्थ हैं।

ਨਰ ਨਾਰਾਇਣ ਅੰਤਰਜਾਮਿ ॥੩॥
नर नाराइण अंतरजामि ॥३॥
चूंकि नारायण बड़ा अन्तर्यामी है॥३॥

ਆਨ ਮਨਉ ਤਉ ਪਰ ਘਰ ਜਾਉ ॥
आन मनउ तउ पर घर जाउ ॥
यदि भगवान के सिवाय मैं किसी दूसरे पर श्रद्धा धारण करूं, तो ही मैं पराए घर जाऊँ। 

ਕਿਸੁ ਜਾਚਉ ਨਾਹੀ ਕੋ ਥਾਉ ॥
किसु जाचउ नाही को थाउ ॥
मैं नाम की देन किससे मांगू? भगवान के सिवाय मेरे लिए कोई स्थान नहीं है।

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮਤਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਉ ॥੪॥੮॥
नानक गुरमति सहजि समाउ ॥४॥८॥
हे नानक ! गुरु के उपदेश से मैं सहज ही सत्य में समा जाऊँगा॥ ४॥८॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
गउड़ी महला १ ॥
गउड़ी महला १ ॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਸੁ ਮਰਣੁ ਦਿਖਾਏ ॥
सतिगुरु मिलै सु मरणु दिखाए ॥
यदि सतिगुरु मिल जाए तो वह जीवित ही मृत्यु का मार्ग दिखा देता है।

ਮਰਣ ਰਹਣ ਰਸੁ ਅੰਤਰਿ ਭਾਏ ॥
मरण रहण रसु अंतरि भाए ॥
इस तरह की मृत्यु उपरांत जीवित रहने की प्रसन्नता मन को लुभाती है।                                              

ਗਰਬੁ ਨਿਵਾਰਿ ਗਗਨ ਪੁਰੁ ਪਾਏ ॥੧॥
गरबु निवारि गगन पुरु पाए ॥१॥
अहंकार को मिटाकर ही दसम द्वार पाया जाता है॥ १॥

ਮਰਣੁ ਲਿਖਾਇ ਆਏ ਨਹੀ ਰਹਣਾ ॥
मरणु लिखाइ आए नही रहणा ॥
मानव जीव अपनी मृत्यु का समय लिखवा कर ही दुनिया में आते हैं और वे दुनिया में अधिक समय निवास नहीं कर सकते।

ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਾਪਿ ਰਹਣੁ ਹਰਿ ਸਰਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि जपि जापि रहणु हरि सरणा ॥१॥ रहाउ ॥
इसलिए मनुष्य को दुनिया में आकर हरि का जाप करते रहना और हरि की शरणागत वास करना चाहिए॥ १॥ रहाउ॥

ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲੈ ਤ ਦੁਬਿਧਾ ਭਾਗੈ ॥
सतिगुरु मिलै त दुबिधा भागै ॥
यदि सतिगुरु मिल जाए तो समस्त दुविधा भाग जाती है।

ਕਮਲੁ ਬਿਗਾਸਿ ਮਨੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਲਾਗੈ ॥
कमलु बिगासि मनु हरि प्रभ लागै ॥
ह्रदय कमल प्रफुल्लित हो जाता है और मन हरि-प्रभु के साथ जुड़ जाता है।

ਜੀਵਤੁ ਮਰੈ ਮਹਾ ਰਸੁ ਆਗੈ ॥੨॥
जीवतु मरै महा रसु आगै ॥२॥
जो व्यक्ति अहंकार का नाश करके जीता है, वह परलोक में नाम रूपी महारस का पान करता है॥ २॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਸਚ ਸੰਜਮਿ ਸੂਚਾ ॥
सतिगुरि मिलिऐ सच संजमि सूचा ॥
सतिगुरु के मिलन से मनुष्य सत्यवादी, त्यागी एवं पावन हो जाता है।

ਗੁਰ ਕੀ ਪਉੜੀ ਊਚੋ ਊਚਾ ॥
गुर की पउड़ी ऊचो ऊचा ॥
गुरु का मार्ग धर्म की सीढ़ी है और उस सीढ़ी द्वारा मनुष्य सर्वोच्च आत्मिक अवस्था वाला हो जाता है।

ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਜਮ ਕਾ ਭਉ ਮੂਚਾ ॥੩॥
करमि मिलै जम का भउ मूचा ॥३॥
सतिगुरु भगवान की कृपा से ही मिलता है और मृत्यु का भय नाश हो जाता है॥ ३॥

ਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਮਿਲਿ ਅੰਕਿ ਸਮਾਇਆ ॥
गुरि मिलिऐ मिलि अंकि समाइआ ॥
गुरु को मिलने से मनुष्य प्रभु से मिल जाता है और उसकी गोद में समा जाता है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਘਰੁ ਮਹਲੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥
करि किरपा घरु महलु दिखाइआ ॥
अपनी कृपा-दृष्टि करके गुरु जी प्राणी को उसके अपने हृदय-घर में प्रभु के आत्म-स्वरूप के दर्शन करवा देते हैं।

ਨਾਨਕ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਇਆ ॥੪॥੯॥
नानक हउमै मारि मिलाइआ ॥४॥९॥
हे नानक ! गुरु प्राणी के अहंकार को नाश करके परमेश्वर के साथ मिला देते हैं॥ ४ ॥ ९॥

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