ਸਾਧਸੰਗਿ ਭਜੁ ਅਚੁਤ ਸੁਆਮੀ ਦਰਗਹ ਸੋਭਾ ਪਾਵਣਾ ॥੩॥
साधसंगि भजु अचुत सुआमी दरगह सोभा पावणा ॥३॥
यदि प्रभु-दरबार में शोभा पाना चाहते हो तो संतों के संग अटल स्वामी का भजन करो।॥३॥
ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ਅਸਟ ਦਸਾ ਸਿਧਿ ॥
चारि पदारथ असट दसा सिधि ॥
हरि-नाम का खजाना ही काम, अर्थ, धर्म, मोक्ष रूपी चार पदार्थ, अठारह सिद्धियों,
ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਨਉ ਨਿਧਿ ॥
नामु निधानु सहज सुखु नउ निधि ॥
सहज सुख एवं नौ निधियाँ देने वाला है।
ਸਰਬ ਕਲਿਆਣ ਜੇ ਮਨ ਮਹਿ ਚਾਹਹਿ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੁਆਮੀ ਰਾਵਣਾ ॥੪॥
सरब कलिआण जे मन महि चाहहि मिलि साधू सुआमी रावणा ॥४॥
यदि मन में सर्व कल्याण पाना चाहते हो तो साधु पुरुषों की संगत में मिलकर भगवान् का सिमरन करो।॥ ४॥
ਸਾਸਤ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਬੇਦ ਵਖਾਣੀ ॥
सासत सिम्रिति बेद वखाणी ॥
शास्त्रों, स्मृतियों एवं वेदों ने भी यही बखान किया है केि
ਜਨਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਜੀਤੁ ਪਰਾਣੀ ॥
जनमु पदारथु जीतु पराणी ॥
हे प्राणी ! मानव-जन्म को जीत लो।
ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਨਿੰਦਾ ਪਰਹਰੀਐ ਹਰਿ ਰਸਨਾ ਨਾਨਕ ਗਾਵਣਾ ॥੫॥
कामु क्रोधु निंदा परहरीऐ हरि रसना नानक गावणा ॥५॥
हे नानक ! काम, क्रोध एवं निंदा को त्यागकर जीभ से भगवान् का गुणगान करना चाहिए॥ ५॥
ਜਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਕੁਲੁ ਨਹੀ ਜਾਤੀ ॥
जिसु रूपु न रेखिआ कुलु नही जाती ॥
जिस का कोई रूप अथवा रेखा नहीं, जिसकी न कोई कुल अथवा जाति है,”
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਆ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ॥
पूरन पूरि रहिआ दिनु राती ॥
वह दिन-रात सर्वव्यापक है।
ਜੋ ਜੋ ਜਪੈ ਸੋਈ ਵਡਭਾਗੀ ਬਹੁੜਿ ਨ ਜੋਨੀ ਪਾਵਣਾ ॥੬॥
जो जो जपै सोई वडभागी बहुड़ि न जोनी पावणा ॥६॥
जो जो उसका जाप करता है, वही खुशनसीब है और वह पुनः योनियों के चक्र में नहीं पड़ता॥ ६॥
ਜਿਸ ਨੋ ਬਿਸਰੈ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
जिस नो बिसरै पुरखु बिधाता ॥
जिसे परमपुरुष विधाता भूल जाता है,”
ਜਲਤਾ ਫਿਰੈ ਰਹੈ ਨਿਤ ਤਾਤਾ ॥
जलता फिरै रहै नित ताता ॥
वह दुखों की अग्नि में जलता रहता है और नित्य ही कष्ट भोगता है।
ਅਕਿਰਤਘਣੈ ਕਉ ਰਖੈ ਨ ਕੋਈ ਨਰਕ ਘੋਰ ਮਹਿ ਪਾਵਣਾ ॥੭॥
अकिरतघणै कउ रखै न कोई नरक घोर महि पावणा ॥७॥
परमात्मा के उपकारों को भुलाने वाले नमक हराम को कोई बचा नहीं सकता और उसे भयानक नरक में धकेल दिया जाता है॥ ७॥
ਜੀਉ ਪ੍ਰਾਣ ਤਨੁ ਧਨੁ ਜਿਨਿ ਸਾਜਿਆ ॥
जीउ प्राण तनु धनु जिनि साजिआ ॥
जिसने बनाया है,जीवन,प्राण,तन एवं धन दिया है,”
ਮਾਤ ਗਰਭ ਮਹਿ ਰਾਖਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ॥
मात गरभ महि राखि निवाजिआ ॥
माँ के गर्भ में उपकार करके रक्षा की है,”
ਤਿਸ ਸਿਉ ਪ੍ਰੀਤਿ ਛਾਡਿ ਅਨ ਰਾਤਾ ਕਾਹੂ ਸਿਰੈ ਨ ਲਾਵਣਾ ॥੮॥
तिस सिउ प्रीति छाडि अन राता काहू सिरै न लावणा ॥८॥
उसके प्रेम को छोड़कर जीव अन्य संसारिक रसों में लीन रहता है, परमात्मा के अलावा उसका कोई भी कल्याण नहीं कर सकता॥ ८॥
ਧਾਰਿ ਅਨੁਗ੍ਰਹੁ ਸੁਆਮੀ ਮੇਰੇ ॥
धारि अनुग्रहु सुआमी मेरे ॥
हे मेरे स्वामी ! कृपा करो;
ਘਟਿ ਘਟਿ ਵਸਹਿ ਸਭਨ ਕੈ ਨੇਰੇ ॥
घटि घटि वसहि सभन कै नेरे ॥
घट-घट एवं सब जीवों के निकट तू ही रहता है।
ਹਾਥਿ ਹਮਾਰੈ ਕਛੂਐ ਨਾਹੀ ਜਿਸੁ ਜਣਾਇਹਿ ਤਿਸੈ ਜਣਾਵਣਾ ॥੯॥
हाथि हमारै कछूऐ नाही जिसु जणाइहि तिसै जणावणा ॥९॥
हमारे हाथ में कुछ भी नहीं, जिसे तू भेद बताता है, वही तुझे समझता है॥ ६॥
ਜਾ ਕੈ ਮਸਤਕਿ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥
जा कै मसतकि धुरि लिखि पाइआ ॥
जिसके माथे पर उत्तम भाग्य होता है,”
ਤਿਸ ਹੀ ਪੁਰਖ ਨ ਵਿਆਪੈ ਮਾਇਆ ॥
तिस ही पुरख न विआपै माइआ ॥
उस पुरुष पर माया का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਦਾ ਸਰਣਾਈ ਦੂਸਰ ਲਵੈ ਨ ਲਾਵਣਾ ॥੧੦॥
नानक दास सदा सरणाई दूसर लवै न लावणा ॥१०॥
दास नानक सदा परमात्मा की शरण में रहता है और किसी अन्य से प्रेम नहीं लगाता॥ १०॥
ਆਗਿਆ ਦੂਖ ਸੂਖ ਸਭਿ ਕੀਨੇ ॥
आगिआ दूख सूख सभि कीने ॥
सभी दुख-सुख ईश्वर की आज्ञा से ही बने हैं,”
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਬਿਰਲੈ ਹੀ ਚੀਨੇ ॥
अम्रित नामु बिरलै ही चीने ॥
हरिनामामृत को किसी विरले पुरुष ने ही पहचाना है।
ਤਾ ਕੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ਜਤ ਕਤ ਓਹੀ ਸਮਾਵਣਾ ॥੧੧॥
ता की कीमति कहणु न जाई जत कत ओही समावणा ॥११॥
उसकी सही कीमत आंकी नहीं जा सकती और सब में एक वही समाया हुआ है।॥ ११॥
ਸੋਈ ਭਗਤੁ ਸੋਈ ਵਡ ਦਾਤਾ ॥
सोई भगतु सोई वड दाता ॥
वास्तव में परमात्मा ही भक्त है,एक वही बड़ा दाता है,”
ਸੋਈ ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਬਿਧਾਤਾ ॥
सोई पूरन पुरखु बिधाता ॥
वही पूर्ण पुरुष विधाता है।
ਬਾਲ ਸਹਾਈ ਸੋਈ ਤੇਰਾ ਜੋ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਣਾ ॥੧੨॥
बाल सहाई सोई तेरा जो तेरै मनि भावणा ॥१२॥
वही तेरा बचपन का साथी है, जो तेरे मन को भाता है॥ १२॥
ਮਿਰਤੁ ਦੂਖ ਸੂਖ ਲਿਖਿ ਪਾਏ ॥
मिरतु दूख सूख लिखि पाए ॥
मृत्यु,दुख,सुख सब तकदीर में लिख दिए हैं और
ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਬਧਹਿ ਘਟਹਿ ਨ ਘਟਾਏ ॥
तिलु नही बधहि घटहि न घटाए ॥
तिल मात्र भी इनमें बढ़ोत्तरी नहीं होती और ये घटाने से भी घट नहीं सकते।
ਸੋਈ ਹੋਇ ਜਿ ਕਰਤੇ ਭਾਵੈ ਕਹਿ ਕੈ ਆਪੁ ਵਞਾਵਣਾ ॥੧੩॥
सोई होइ जि करते भावै कहि कै आपु वञावणा ॥१३॥
जो परमात्मा को मंजूर है, वही होता है, यदि यह कहा जाए कि मैं अपनी तकदीर बदल सकता हूँ तो यह स्वयं को तंग ही करना है॥ १३॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਸੇਈ ਕਾਢੇ ॥
अंध कूप ते सेई काढे ॥
वह रचयिता ही माया के अन्धकूप में से निकालता है और
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਟੂਟੇ ਗਾਂਢੇ ॥
जनम जनम के टूटे गांढे ॥
जन्म-जन्मांतर के टूटे हुए रिश्ते जोड़ देता है।
ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ਰਖੇ ਕਰਿ ਅਪੁਨੇ ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਗੋਬਿੰਦੁ ਧਿਆਵਣਾ ॥੧੪॥
किरपा धारि रखे करि अपुने मिलि साधू गोबिंदु धिआवणा ॥१४॥
वह कृपा करके अपना बना लेता है, अतः साधुओं के संग गोविन्द का ध्यान करना चाहिए॥ १४॥
ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹਣੁ ਨ ਜਾਈ ॥
तेरी कीमति कहणु न जाई ॥
हे ईश्वर ! तेरा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता,”
ਅਚਰਜ ਰੂਪੁ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥
अचरज रूपु वडी वडिआई ॥
तेरा रूप अद्भुत है, तेरी कीर्ति बहुत बड़ी है,”
ਭਗਤਿ ਦਾਨੁ ਮੰਗੈ ਜਨੁ ਤੇਰਾ ਨਾਨਕ ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਵਣਾ ॥੧੫॥੧॥੧੪॥੨੨॥੨੪॥੨॥੧੪॥੬੨॥
भगति दानु मंगै जनु तेरा नानक बलि बलि जावणा ॥१५॥१॥१४॥२२॥२४॥२॥१४॥६२॥
दास नानक तुझसे भक्ति का दान मॉगता और तुझ पर कुर्बान जाता है॥ १५॥१॥१४॥२२॥ २४॥ २॥ १४॥ ६२॥
ਮਾਰੂ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੩
मारू वार महला ३
मारू वार महला ३
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥
सलोकु मः १ ॥
श्लोक महला १॥
ਵਿਣੁ ਗਾਹਕ ਗੁਣੁ ਵੇਚੀਐ ਤਉ ਗੁਣੁ ਸਹਘੋ ਜਾਇ ॥
विणु गाहक गुणु वेचीऐ तउ गुणु सहघो जाइ ॥
ग्राहक के बिना किसी अन्य को गुण बेचा जाए तो वह सस्ता ही बिक जाता है।
ਗੁਣ ਕਾ ਗਾਹਕੁ ਜੇ ਮਿਲੈ ਤਉ ਗੁਣੁ ਲਾਖ ਵਿਕਾਇ ॥
गुण का गाहकु जे मिलै तउ गुणु लाख विकाइ ॥
अगर गुण का ग्राहक मिल जाए तो वह लाखों में बिकता है।