ਆਸਾ ਇਤੀ ਆਸ ਕਿ ਆਸ ਪੁਰਾਈਐ ॥
आसा इती आस कि आस पुराईऐ ॥
हे प्रभु ! मिलन की आशा इतनी ज्यादा है कि मेरी आशा को पूरी कर दो।
ਸਤਿਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲ ਤ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ॥
सतिगुर भए दइआल त पूरा पाईऐ ॥
जब सतगुरु दया करता है तो आशा पूरी हो जाती है।
ਮੈ ਤਨਿ ਅਵਗਣ ਬਹੁਤੁ ਕਿ ਅਵਗਣ ਛਾਇਆ ॥
मै तनि अवगण बहुतु कि अवगण छाइआ ॥
मेरे तन में अवगुण ही अवगुण भरे हुए हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਸਤਿਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲ ਤ ਮਨੁ ਠਹਰਾਇਆ ॥੫॥
हरिहां सतिगुर भए दइआल त मनु ठहराइआ ॥५॥
हरिहां, जब सतगुरु की दया हुई तो मेरा मन टिक गया॥ ५॥
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਬੇਅੰਤੁ ਬੇਅੰਤੁ ਧਿਆਇਆ ॥
कहु नानक बेअंतु बेअंतु धिआइआ ॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि जिसने भी बेअन्त शक्ति परब्रह्म का ध्यान किया है,
ਦੁਤਰੁ ਇਹੁ ਸੰਸਾਰੁ ਸਤਿਗੁਰੂ ਤਰਾਇਆ ॥
दुतरु इहु संसारु सतिगुरू तराइआ ॥
सतिगुरु ने उसे इस दुस्तर संसार-सागर से पार उतार दिया है।
ਮਿਟਿਆ ਆਵਾ ਗਉਣੁ ਜਾਂ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ॥
मिटिआ आवा गउणु जां पूरा पाइआ ॥
जब पूर्ण प्रभु प्राप्त हो जाता है तो आवागमन मिट जाता है।
ਹਰਿਹਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਪਾਇਆ ॥੬॥
हरिहां अम्रितु हरि का नामु सतिगुर ते पाइआ ॥६॥
हरिहां, हरि का नाम अमृतमय है, जो सतिगुरु से प्राप्त होता है॥ ६॥
ਮੇਰੈ ਹਾਥਿ ਪਦਮੁ ਆਗਨਿ ਸੁਖ ਬਾਸਨਾ ॥
मेरै हाथि पदमु आगनि सुख बासना ॥
मेरे हाथ में पदम चिन्ह है, घर आंगन में सुख ही सुख हो गया है।
ਸਖੀ ਮੋਰੈ ਕੰਠਿ ਰਤੰਨੁ ਪੇਖਿ ਦੁਖੁ ਨਾਸਨਾ ॥
सखी मोरै कंठि रतंनु पेखि दुखु नासना ॥
हे सखी ! मेरे गले में हरिनाम रूपी रत्न है, जिसे देखकर दुख भाग गए हैं।
ਬਾਸਉ ਸੰਗਿ ਗੁਪਾਲ ਸਗਲ ਸੁਖ ਰਾਸਿ ਹਰਿ ॥
बासउ संगि गुपाल सगल सुख रासि हरि ॥
जो सर्व सुखों का घर है, मैं उस हरि के साथ रहती हूँ।
ਹਰਿਹਾਂ ਰਿਧਿ ਸਿਧਿ ਨਵ ਨਿਧਿ ਬਸਹਿ ਜਿਸੁ ਸਦਾ ਕਰਿ ॥੭॥
हरिहां रिधि सिधि नव निधि बसहि जिसु सदा करि ॥७॥
हरिहां, सब ऋद्धियाँ-सिद्धियाँ एवं नौ निधियां सदा प्रभु के हाथ में रहती हैं।॥ ७॥
ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਰਾਵਣਿ ਜਾਹਿ ਸੇਈ ਤਾ ਲਾਜੀਅਹਿ ॥
पर त्रिअ रावणि जाहि सेई ता लाजीअहि ॥
जो पराई नारी के साथ रंगरलियां मनाते हैं, ऐसे लोग शर्मिन्दा ही होते हैं।
ਨਿਤਪ੍ਰਤਿ ਹਿਰਹਿ ਪਰ ਦਰਬੁ ਛਿਦ੍ਰ ਕਤ ਢਾਕੀਅਹਿ ॥
नितप्रति हिरहि पर दरबु छिद्र कत ढाकीअहि ॥
जो लोग प्रतिदिन पराया धन चुराने में लगे रहते हैं, उनके ऐब कैसे ढंके जा सकते हैं।
ਹਰਿ ਗੁਣ ਰਮਤ ਪਵਿਤ੍ਰ ਸਗਲ ਕੁਲ ਤਾਰਈ ॥
हरि गुण रमत पवित्र सगल कुल तारई ॥
ईश्वर का गुणगान करने से मन पवित्र हो जाता है और पूरी कुल की मुक्ति हो जाती है।
ਹਰਿਹਾਂ ਸੁਨਤੇ ਭਏ ਪੁਨੀਤ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਬੀਚਾਰਈ ॥੮॥
हरिहां सुनते भए पुनीत पारब्रहमु बीचारई ॥८॥
हरिहां, जो व्यक्ति परब्रह्म का चिंतन करते हैं, उसका यशोगान सुनते हैं, वे पवित्र हो जाते हैं।॥ ८॥
ਊਪਰਿ ਬਨੈ ਅਕਾਸੁ ਤਲੈ ਧਰ ਸੋਹਤੀ ॥
ऊपरि बनै अकासु तलै धर सोहती ॥
ऊपर आकाश टिका हुआ है और नीचे हरी-भरी सुन्दर धरती है।
ਦਹ ਦਿਸ ਚਮਕੈ ਬੀਜੁਲਿ ਮੁਖ ਕਉ ਜੋਹਤੀ ॥
दह दिस चमकै बीजुलि मुख कउ जोहती ॥
दसों दिशाओं में चमकती बिजली इसके मुख को देखती है।
ਖੋਜਤ ਫਿਰਉ ਬਿਦੇਸਿ ਪੀਉ ਕਤ ਪਾਈਐ ॥
खोजत फिरउ बिदेसि पीउ कत पाईऐ ॥
देस-परदेस खोजती फिर रही हूँ, प्रभु को कैसे पाया जा सकता है।
ਹਰਿਹਾਂ ਜੇ ਮਸਤਕਿ ਹੋਵੈ ਭਾਗੁ ਤ ਦਰਸਿ ਸਮਾਈਐ ॥੯॥
हरिहां जे मसतकि होवै भागु त दरसि समाईऐ ॥९॥
हरिहां, यदि माथे पर भाग्य हो तो दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।॥ ९॥
ਡਿਠੇ ਸਭੇ ਥਾਵ ਨਹੀ ਤੁਧੁ ਜੇਹਿਆ ॥
डिठे सभे थाव नही तुधु जेहिआ ॥
“{यहाँ पर गुरु जी ने गुरु रामदास की नगरी अमृतसर की सराहना की है} हे गुरु की नगरी ! मैंने सब स्थानों को देखा है, लेकिन तेरे जैसी कोई नगरी नहीं।
ਬਧੋਹੁ ਪੁਰਖਿ ਬਿਧਾਤੈ ਤਾਂ ਤੂ ਸੋਹਿਆ ॥
बधोहु पुरखि बिधातै तां तू सोहिआ ॥
दरअसल कर्ता पुरुष विधाता ने स्वयं तुझे बनाया तो ही तू शोभा दे रही है।
ਵਸਦੀ ਸਘਨ ਅਪਾਰ ਅਨੂਪ ਰਾਮਦਾਸ ਪੁਰ ॥
वसदी सघन अपार अनूप रामदास पुर ॥
अनुपम रामदासपुर (अमृतसर) में अनेक लोग रहते हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਨਾਨਕ ਕਸਮਲ ਜਾਹਿ ਨਾਇਐ ਰਾਮਦਾਸ ਸਰ ॥੧੦॥
हरिहां नानक कसमल जाहि नाइऐ रामदास सर ॥१०॥
नानक कहते हैं कि यहां रामदास सरोवर में स्नान करने से सब पाप-दोष दूर हो जाते हैं।॥ १०॥
ਚਾਤ੍ਰਿਕ ਚਿਤ ਸੁਚਿਤ ਸੁ ਸਾਜਨੁ ਚਾਹੀਐ ॥
चात्रिक चित सुचित सु साजनु चाहीऐ ॥
चातक की तरह एकाग्रचित होकर सज्जन प्रभु से प्रेम करना चाहिए।
ਜਿਸੁ ਸੰਗਿ ਲਾਗੇ ਪ੍ਰਾਣ ਤਿਸੈ ਕਉ ਆਹੀਐ ॥
जिसु संगि लागे प्राण तिसै कउ आहीऐ ॥
जिससे प्राणों से बढ़कर प्रेम लग जाए, उसी को चाहना चाहिए।
ਬਨੁ ਬਨੁ ਫਿਰਤ ਉਦਾਸ ਬੂੰਦ ਜਲ ਕਾਰਣੇ ॥
बनु बनु फिरत उदास बूंद जल कारणे ॥
जैसे पपीहा स्वाति बूंद के लिए उदास होकर वन-वन भटकता है, वैसे ही हरिभक्त हरिनाम की कामना करते हैं।
ਹਰਿਹਾਂ ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਮਾਂਗੈ ਨਾਮੁ ਨਾਨਕ ਬਲਿਹਾਰਣੇ ॥੧੧॥
हरिहां तिउ हरि जनु मांगै नामु नानक बलिहारणे ॥११॥
नानक फुरमाते हैं- हम तो उन जिज्ञासुओं पर कुर्बान जाते हैं॥ ११॥
ਮਿਤ ਕਾ ਚਿਤੁ ਅਨੂਪੁ ਮਰੰਮੁ ਨ ਜਾਨੀਐ ॥
मित का चितु अनूपु मरमु न जानीऐ ॥
मित्र (प्रभु) का दिल अनुपम है, उसका रहस्य कोई नहीं जानता।
ਗਾਹਕ ਗੁਨੀ ਅਪਾਰ ਸੁ ਤਤੁ ਪਛਾਨੀਐ ॥
गाहक गुनी अपार सु ततु पछानीऐ ॥
गुणों के ग्राहक तथ्य को पहचान लेते हैं कि
ਚਿਤਹਿ ਚਿਤੁ ਸਮਾਇ ਤ ਹੋਵੈ ਰੰਗੁ ਘਨਾ ॥
चितहि चितु समाइ त होवै रंगु घना ॥
यदि दिल प्रभु में समा जाए तो अत्यंत आनंद प्राप्त होता है।
ਹਰਿਹਾਂ ਚੰਚਲ ਚੋਰਹਿ ਮਾਰਿ ਤ ਪਾਵਹਿ ਸਚੁ ਧਨਾ ॥੧੨॥
हरिहां चंचल चोरहि मारि त पावहि सचु धना ॥१२॥
हरिहां, अगर कामादिक चंचल चोरों को मार दिया जाए तो सच्चा धन (प्रभु) प्राप्त हो जाता है।॥ १२॥
ਸੁਪਨੈ ਊਭੀ ਭਈ ਗਹਿਓ ਕੀ ਨ ਅੰਚਲਾ ॥
सुपनै ऊभी भई गहिओ की न अंचला ॥
सपने में प्रभु को देखकर मैं उठकर बैठ गई लेकिन मैंने उसका आंचल क्यों नहीं पकड़ा।
ਸੁੰਦਰ ਪੁਰਖ ਬਿਰਾਜਿਤ ਪੇਖਿ ਮਨੁ ਬੰਚਲਾ ॥
सुंदर पुरख बिराजित पेखि मनु बंचला ॥
आप ही वजह बताते हैं कि प्रियतम प्रभु के सुन्दर रूप को देखकर मन मोहित हो गया था, इसलिए ध्यान न दिया।
ਖੋਜਉ ਤਾ ਕੇ ਚਰਣ ਕਹਹੁ ਕਤ ਪਾਈਐ ॥
खोजउ ता के चरण कहहु कत पाईऐ ॥
मैं उसके चरण ढूंढ रही हूँ, बताओ वह मुझे कैसे प्राप्त हो सकता है।
ਹਰਿਹਾਂ ਸੋਈ ਜਤੰਨੁ ਬਤਾਇ ਸਖੀ ਪ੍ਰਿਉ ਪਾਈਐ ॥੧੩॥
हरिहां सोई जतंनु बताइ सखी प्रिउ पाईऐ ॥१३॥
हे सखी ! वही उपाय बताना, जिससे प्रिय-प्रभु को पा लिया जाए॥ १३॥
ਨੈਣ ਨ ਦੇਖਹਿ ਸਾਧ ਸਿ ਨੈਣ ਬਿਹਾਲਿਆ ॥
नैण न देखहि साध सि नैण बिहालिआ ॥
जो आँखें साधुओं के दर्शन नहीं करती, वे बेहाल हो जाती हैं।
ਕਰਨ ਨ ਸੁਨਹੀ ਨਾਦੁ ਕਰਨ ਮੁੰਦਿ ਘਾਲਿਆ ॥
करन न सुनही नादु करन मुंदि घालिआ ॥
जो कान परमात्मा का भजन नहीं सुनते, उनको बंद कर देना चाहिए।
ਰਸਨਾ ਜਪੈ ਨ ਨਾਮੁ ਤਿਲੁ ਤਿਲੁ ਕਰਿ ਕਟੀਐ ॥
रसना जपै न नामु तिलु तिलु करि कटीऐ ॥
जो जिह्म हरिनाम नहीं जपती, उसके टुकड़े कर-करके काट देना चाहिए।
ਹਰਿਹਾਂ ਜਬ ਬਿਸਰੈ ਗੋਬਿਦ ਰਾਇ ਦਿਨੋ ਦਿਨੁ ਘਟੀਐ ॥੧੪॥
हरिहां जब बिसरै गोबिद राइ दिनो दिनु घटीऐ ॥१४॥
हरिहां, जब परमात्मा भूल जाता है तो प्रतिदिन जीवन खत्म हो जाता है॥ १४॥
ਪੰਕਜ ਫਾਥੇ ਪੰਕ ਮਹਾ ਮਦ ਗੁੰਫਿਆ ॥
पंकज फाथे पंक महा मद गु्मफिआ ॥
भंवरे का पंख कमल-पुष्प की खुशबू में मदमस्त होकर उसी में फंस जाता है।
ਅੰਗ ਸੰਗ ਉਰਝਾਇ ਬਿਸਰਤੇ ਸੁੰਫਿਆ ॥
अंग संग उरझाइ बिसरते सु्मफिआ ॥
फिर पंखुड़ियों से उलझ कर उसे उड़ना ही भूल जाता है।