ਆਪ ਹੀ ਧਾਰਨ ਧਾਰੇ ਕੁਦਰਤਿ ਹੈ ਦੇਖਾਰੇ ਬਰਨੁ ਚਿਹਨੁ ਨਾਹੀ ਮੁਖ ਨ ਮਸਾਰੇ ॥
आप ही धारन धारे कुदरति है देखारे बरनु चिहनु नाही मुख न मसारे ॥
वह स्वयं ही पूरे जगत को आसरा दे रहा है, अपनी कुदरत को दिखा रहा है, फिर भी रंग, रूप, वर्ण, चित्र, मुँह से इतर है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਭਗਤੁ ਦਰਿ ਤੁਲਿ ਬ੍ਰਹਮ ਸਮਸਰਿ ਏਕ ਜੀਹ ਕਿਆ ਬਖਾਨੈ ॥
जनु नानकु भगतु दरि तुलि ब्रहम समसरि एक जीह किआ बखानै ॥
गुरु नानक कहते हैं- जो भक्त प्रभु के दरबार में प्रभु रूप हो गए हैं, एक जीभ से उनका क्या बखान किया जाए।
ਹਾਂ ਕਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਿ ॥੩॥
हां कि बलि बलि बलि बलि सद बलिहारि ॥३॥
हाँ, उन पर मैं सदैव कुर्बान हूँ॥३॥
ਸਰਬ ਗੁਣ ਨਿਧਾਨੰ ਕੀਮਤਿ ਨ ਗੵਾਨੰ ਧੵਾਨੰ ਊਚੇ ਤੇ ਊਚੌ ਜਾਨੀਜੈ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੋ ਥਾਨੰ ॥
सरब गुण निधानं कीमति न ग्यानं ध्यानं ऊचे ते ऊचौ जानीजै प्रभ तेरो थानं ॥
हे प्रभु ! तू सर्व गुणों का भण्डार है, तेरे ज्ञान-ध्यान की महत्ता व्यक्त नहीं की जा सकती। तेरा स्थान सबसे ऊँचा है।
ਮਨੁ ਧਨੁ ਤੇਰੋ ਪ੍ਰਾਨੰ ਏਕੈ ਸੂਤਿ ਹੈ ਜਹਾਨੰ ਕਵਨ ਉਪਮਾ ਦੇਉ ਬਡੇ ਤੇ ਬਡਾਨੰ ॥
मनु धनु तेरो प्रानं एकै सूति है जहानं कवन उपमा देउ बडे ते बडानं ॥
मन, धन, प्राण सर्वस्व तेरा दिया हुआ है, पूरे संसार को तूने एक सूत्र में पिरोया हुआ है, तू इतना बड़ा है कि तेरी उपमा नहीं की जा सकती।
ਜਾਨੈ ਕਉਨੁ ਤੇਰੋ ਭੇਉ ਅਲਖ ਅਪਾਰ ਦੇਉ ਅਕਲ ਕਲਾ ਹੈ ਪ੍ਰਭ ਸਰਬ ਕੋ ਧਾਨੰ ॥
जानै कउनु तेरो भेउ अलख अपार देउ अकल कला है प्रभ सरब को धानं ॥
तेरा रहस्य कोई नहीं जानता, तू अलख अपार देवाधिदेव, सर्वशक्तिमान है। हे प्रभु ! तू सबका पालन कर रहा है।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਭਗਤੁ ਦਰਿ ਤੁਲਿ ਬ੍ਰਹਮ ਸਮਸਰਿ ਏਕ ਜੀਹ ਕਿਆ ਬਖਾਨੈ ॥
जनु नानकु भगतु दरि तुलि ब्रहम समसरि एक जीह किआ बखानै ॥
दास नानक एक जीभ से उस भक्त का क्या बखान कर सकता है, जो ब्रह्मा रूप हो गया है।
ਹਾਂ ਕਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਬਲਿ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰਿ ॥੪॥
हां कि बलि बलि बलि बलि सद बलिहारि ॥४॥
हाँ, उस पर मैं केवल सदैव कुर्बान हूँ॥४॥
ਨਿਰੰਕਾਰੁ ਆਕਾਰ ਅਛਲ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
निरंकारु आकार अछल पूरन अबिनासी ॥
ईश्वर निराकार है, उससे कोई छल-कपट नहीं कर सकता, वह परिपूर्ण है, अविनाशी है।
ਹਰਖਵੰਤ ਆਨੰਤ ਰੂਪ ਨਿਰਮਲ ਬਿਗਾਸੀ ॥
हरखवंत आनंत रूप निरमल बिगासी ॥
वह खुशियों का घर है, उसके रूप अनन्त हैं, वह पावनस्वरूप एवं सदा खिला रहने वाला है।
ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਬੇਅੰਤ ਅੰਤੁ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਨਹੀ ਪਾਸੀ ॥
गुण गावहि बेअंत अंतु इकु तिलु नही पासी ॥
जो बे-अन्त है, पूरी दुनिया उसका गुण-गान करती है, परन्तु उसके गुणों का एक तिल मात्र भी गायन नहीं करती।
ਜਾ ਕਉ ਹੋਂਹਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਸੁ ਜਨੁ ਪ੍ਰਭ ਤੁਮਹਿ ਮਿਲਾਸੀ ॥
जा कउ होंहि क्रिपाल सु जनु प्रभ तुमहि मिलासी ॥
हे प्रभु ! जिस भक्त पर तेरी कृपा हो जाती है, वह तुझ में विलीन हो जाता है।
ਧੰਨਿ ਧੰਨਿ ਤੇ ਧੰਨਿ ਜਨ ਜਿਹ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਭਯਉ ॥
धंनि धंनि ते धंनि जन जिह क्रिपालु हरि हरि भयउ ॥
वे भक्तजन धन्य हैं, जिन पर परमात्मा कृपालु हो गया है।
ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨ ਪਰਸਿਅਉ ਸਿ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਹ ਥੇ ਰਹਿਓ ॥੫॥
हरि गुरु नानकु जिन परसिअउ सि जनम मरण दुह थे रहिओ ॥५॥
जिसका परमेश्वर रूप गुरु नानक से साक्षात्कार हुआ है, वह जन्म-मरण दोनों से रहित हो गया है॥५॥
ਸਤਿ ਸਤਿ ਹਰਿ ਸਤਿ ਸਤਿ ਸਤੇ ਸਤਿ ਭਣੀਐ ॥
सति सति हरि सति सति सते सति भणीऐ ॥
ईश्वर परमसत्य है, सत्यस्वरूप है, केवल वही सत्य कहा जाता है।
ਦੂਸਰ ਆਨ ਨ ਅਵਰੁ ਪੁਰਖੁ ਪਊਰਾਤਨੁ ਸੁਣੀਐ ॥
दूसर आन न अवरु पुरखु पऊरातनु सुणीऐ ॥
उसके अतिरिक्त दूसरा कोई आदिपुरुष नहीं सुना।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮੁ ਲੈਤ ਮਨਿ ਸਭ ਸੁਖ ਪਾਏ ॥
अम्रितु हरि को नामु लैत मनि सभ सुख पाए ॥
यदि अमृतमय हरिनाम जपा जाए तो मन को सर्व सुख प्राप्त हो जाते हैं।
ਜੇਹ ਰਸਨ ਚਾਖਿਓ ਤੇਹ ਜਨ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਏ ॥
जेह रसन चाखिओ तेह जन त्रिपति अघाए ॥
जिस जिज्ञासु ने अपनी जिह्म से नाम का जाप किया है, वह तृप्त हो गया है।
ਜਿਹ ਠਾਕੁਰੁ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨੁ ਭਯੋੁ ਸਤਸੰਗਤਿ ਤਿਹ ਪਿਆਰੁ ॥
जिह ठाकुरु सुप्रसंनु भयो सतसंगति तिह पिआरु ॥
जिस पर मालिक प्रसन्न होता है, उसी का सत्संगत से प्रेम होता है।
ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨੑ ਪਰਸਿਓ ਤਿਨੑ ਸਭ ਕੁਲ ਕੀਓ ਉਧਾਰੁ ॥੬॥
हरि गुरु नानकु जिन्ह परसिओ तिन्ह सभ कुल कीओ उधारु ॥६॥
जिन जीवों का परमेश्वर रूप गुरु नानक से मिलाप हुआ है, उनकी समूची कुल का उद्धार हो गया है॥६॥
ਸਚੁ ਸਭਾ ਦੀਬਾਣੁ ਸਚੁ ਸਚੇ ਪਹਿ ਧਰਿਓ ॥
सचु सभा दीबाणु सचु सचे पहि धरिओ ॥
सत्यस्वरूप परमेश्वर की सभा अटल है, उसकी अदालत सदैव स्थिर है, वह सत्य रूप में स्थित है।
ਸਚੈ ਤਖਤਿ ਨਿਵਾਸੁ ਸਚੁ ਤਪਾਵਸੁ ਕਰਿਓ ॥
सचै तखति निवासु सचु तपावसु करिओ ॥
उसका सिंहासन भी शाश्वत है, जहाँ वह विराजमान होता है, वह सच्चा इंसाफ ही करता है।
ਸਚਿ ਸਿਰਜੵਿਉ ਸੰਸਾਰੁ ਆਪਿ ਆਭੁਲੁ ਨ ਭੁਲਉ ॥
सचि सिरज्यिउ संसारु आपि आभुलु न भुलउ ॥
सच्चे मालिक ने स्वयं ही संसार बनाया है और (जीव बेशक गलतियों का पुतला है परन्तु) वह कभी भूल नहीं करता।
ਰਤਨ ਨਾਮੁ ਅਪਾਰੁ ਕੀਮ ਨਹੁ ਪਵੈ ਅਮੁਲਉ ॥
रतन नामु अपारु कीम नहु पवै अमुलउ ॥
उसका नाम रत्न अपार है, जिसकी कीमत ऑकना संभव नहीं, बल्कि अमूल्य है।
ਜਿਹ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ਹੋਯਉ ਗੋੁਬਿੰਦੁ ਸਰਬ ਸੁਖ ਤਿਨਹੂ ਪਾਏ ॥
जिह क्रिपालु होयउ गोबिंदु सरब सुख तिनहू पाए ॥
जिस पर ईश्वर कृपालु होता है, उसे ही सर्व सुख प्राप्त होते हैं।
ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨੑ ਪਰਸਿਓ ਤੇ ਬਹੁੜਿ ਫਿਰਿ ਜੋਨਿ ਨ ਆਏ ॥੭॥
हरि गुरु नानकु जिन्ह परसिओ ते बहुड़ि फिरि जोनि न आए ॥७॥
जिन लोगों को हरि रूप गुरु नानक की चरण-शरण प्राप्त हुई, वे योनियों के चक्र से मुक्त हो गए॥७ ॥
ਕਵਨੁ ਜੋਗੁ ਕਉਨੁ ਗੵਾਨੁ ਧੵਾਨੁ ਕਵਨ ਬਿਧਿ ਉਸ੍ਤਤਿ ਕਰੀਐ ॥
कवनु जोगु कउनु ग्यानु ध्यानु कवन बिधि उस्तति करीऐ ॥
वह कौन-सा योग, ज्ञान, ध्यान एवं तरीका है, जिससे परमात्मा की स्तुति की जाए।
ਸਿਧ ਸਾਧਿਕ ਤੇਤੀਸ ਕੋਰਿ ਤਿਰੁ ਕੀਮ ਨ ਪਰੀਐ ॥
सिध साधिक तेतीस कोरि तिरु कीम न परीऐ ॥
हे परमेश्वर ! बड़े-बड़े सिद्ध-साधक (हुए हैं), तेंतीस करोड़ देवता (माने जाते हैं लेकिन वे) भी तेरी महिमा नहीं जान पाए।
ਬ੍ਰਹਮਾਦਿਕ ਸਨਕਾਦਿ ਸੇਖ ਗੁਣ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਏ ॥
ब्रहमादिक सनकादि सेख गुण अंतु न पाए ॥
ब्रह्मा, ब्रह्मा के पुत्र सनक, सनन्दन और इनके अलावा शेषनाग भी तेरे गुणों का रहस्य नहीं पा सके।
ਅਗਹੁ ਗਹਿਓ ਨਹੀ ਜਾਇ ਪੂਰਿ ਸ੍ਰਬ ਰਹਿਓ ਸਮਾਏ ॥
अगहु गहिओ नही जाइ पूरि स्रब रहिओ समाए ॥
तू अगम्य है, तुझे पकड़ में नहीं लिया जा सकता, इसके बावजूद भी सब में व्याप्त है।
ਜਿਹ ਕਾਟੀ ਸਿਲਕ ਦਯਾਲ ਪ੍ਰਭਿ ਸੇਇ ਜਨ ਲਗੇ ਭਗਤੇ ॥
जिह काटी सिलक दयाल प्रभि सेइ जन लगे भगते ॥
दयालु प्रभु ने जिसकी बन्धनों की रस्सी काट दी है, वही सेवक भक्ति में लगा है।
ਹਰਿ ਗੁਰੁ ਨਾਨਕੁ ਜਿਨੑ ਪਰਸਿਓ ਤੇ ਇਤ ਉਤ ਸਦਾ ਮੁਕਤੇ ॥੮॥
हरि गुरु नानकु जिन्ह परसिओ ते इत उत सदा मुकते ॥८॥
जिसने परमेश्वर रूप गुरु नानक से चरण-शरण प्राप्त की, वह लोक-परलोक में से सदा के लिए मुक्त हो गया है॥८॥
ਪ੍ਰਭ ਦਾਤਉ ਦਾਤਾਰ ਪਰੵਿਉ ਜਾਚਕੁ ਇਕੁ ਸਰਨਾ ॥
प्रभ दातउ दातार परि्यउ जाचकु इकु सरना ॥
हे प्रभु ! तू दातार है, तू ही देने वाला है, मैं याचक तेरी शरण में आया हूँ।
ਮਿਲੈ ਦਾਨੁ ਸੰਤ ਰੇਨ ਜੇਹ ਲਗਿ ਭਉਜਲੁ ਤਰਨਾ ॥
मिलै दानु संत रेन जेह लगि भउजलु तरना ॥
मुझे संत-पुरुषों की चरण-धूल प्रदान करो, जिसके द्वारा संसार-सागर को पार करना है।
ਬਿਨਤਿ ਕਰਉ ਅਰਦਾਸਿ ਸੁਨਹੁ ਜੇ ਠਾਕੁਰ ਭਾਵੈ ॥
बिनति करउ अरदासि सुनहु जे ठाकुर भावै ॥
मैं विनती करता हूँ, यदि तेरी मर्जी हो तो मेरी अरदास सुन लो।