Hindi Page 768

ਅੰਦਰਹੁ ਦੁਰਮਤਿ ਦੂਜੀ ਖੋਈ ਸੋ ਜਨੁ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗਾ ॥
अंदरहु दुरमति दूजी खोई सो जनु हरि लिव लागा ॥
जिसने अपनी दुर्मति एवं द्वैतभाव को अपने मन से निकाल दिया है, वह हरि की आराधना में लग गया है।

ਜਿਨ ਕਉ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕੀਨੀ ਮੇਰੈ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਅਨਦਿਨੁ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥
जिन कउ क्रिपा कीनी मेरै सुआमी तिन अनदिनु हरि गुण गाए ॥
मेरे स्वामी ने जिन पर अपनी कृपा की है, उन्होंने रात-दिन हरि के गुण गाए हैं।

ਸੁਣਿ ਮਨ ਭੀਨੇ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਏ ॥੨॥
सुणि मन भीने सहजि सुभाए ॥२॥
हरि के गुण सुनकर उनका मन सहज-स्वभाव ही भीग गया है॥ २॥

ਜੁਗ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥
जुग महि राम नामु निसतारा ॥
हे भाई ! जगत में राम नाम द्वारा ही मुक्ति प्राप्त हो सकती है।

ਗੁਰ ਤੇ ਉਪਜੈ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਾ ॥
गुर ते उपजै सबदु वीचारा ॥
जीव के मन में शब्द का विचार गुरु से ही उत्पन्न होता है।

ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਾ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਪਿਆਰਾ ਜਿਸੁ ਕਿਰਪਾ ਕਰੇ ਸੁ ਪਾਏ ॥
गुर सबदु वीचारा राम नामु पिआरा जिसु किरपा करे सु पाए ॥
उसे गुरु के शब्द एवं ज्ञान द्वारा ही राम नाम प्यारा लगता है, लेकिन प्राप्ति भी उसे ही होती है, जिस पर परमात्मा अपनी कृपा करता है।

ਸਹਜੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਕਿਲਵਿਖ ਸਭਿ ਗਵਾਏ ॥
सहजे गुण गावै दिनु राती किलविख सभि गवाए ॥
ऐसा जीव सहज-स्वभाव दिन-रात परमात्मा का गुणगान करता रहता है और अपने सारे पाप दूर कर लेता है।

ਸਭੁ ਕੋ ਤੇਰਾ ਤੂ ਸਭਨਾ ਕਾ ਹਉ ਤੇਰਾ ਤੂ ਹਮਾਰਾ ॥
सभु को तेरा तू सभना का हउ तेरा तू हमारा ॥
हे ठाकुर ! सारे जीव तेरे सेवक हैं और तू सबका मालिक है। मैं भी तेरा सेवक हूँ और तू मेरा स्वामी है।

ਜੁਗ ਮਹਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਨਿਸਤਾਰਾ ॥੩॥
जुग महि राम नामु निसतारा ॥३॥
जगत में राम का नाम ही मोक्ष का साधन है॥ ३॥

ਸਾਜਨ ਆਇ ਵੁਠੇ ਘਰ ਮਾਹੀ ॥
साजन आइ वुठे घर माही ॥
जिनके हृदय-घर में सज्जन-प्रभु आकर बस जाए,

ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਅਘਾਹੀ ॥
हरि गुण गावहि त्रिपति अघाही ॥
वह हरि के गुण गाते रहते हैं और तृप्त एवं संतुष्ट हो जाते हैं।

ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ਸਦਾ ਤ੍ਰਿਪਤਾਸੀ ਫਿਰਿ ਭੂਖ ਨ ਲਾਗੈ ਆਏ ॥
हरि गुण गाइ सदा त्रिपतासी फिरि भूख न लागै आए ॥
जो हरि का गुणगान करके सदैव तृप्त रहते हैं, उन्हें फिर से कोई भूख आकर नहीं लगती।

ਦਹ ਦਿਸਿ ਪੂਜ ਹੋਵੈ ਹਰਿ ਜਨ ਕੀ ਜੋ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥
दह दिसि पूज होवै हरि जन की जो हरि हरि नामु धिआए ॥
जो हरिनाम का ध्यान करता रहता है, उस हरिजन की दसों दिशाओं में पूजा होती है।

ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਆਪੇ ਜੋੜਿ ਵਿਛੋੜੇ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕੋ ਦੂਜਾ ਨਾਹੀ ॥
नानक हरि आपे जोड़ि विछोड़े हरि बिनु को दूजा नाही ॥
हे नानक ! हरि स्वयं ही जीव का संयोग एवं वियोग बनाता है और उसके बिना अन्य कोई समर्थ नहीं है।

ਸਾਜਨ ਆਇ ਵੁਠੇ ਘਰ ਮਾਹੀ ॥੪॥੧॥
साजन आइ वुठे घर माही ॥४॥१॥
साजन-प्रभु उनके हृदय-घर में स्थित हो गया है ॥ ४॥ १॥

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਰਾਗੁ ਸੂਹੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੩ ॥
रागु सूही महला ३ घरु ३ ॥
रागु सूही महला ३ घरु ३ ॥

ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਰਾਖੈ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਰਖਦਾ ਆਇਆ ਰਾਮ ॥
भगत जना की हरि जीउ राखै जुगि जुगि रखदा आइआ राम ॥
हरि सदैव अपने भक्तजनों की लाज रखता है और युगों-युगांतरों से उनकी रक्षा करता आया है।

ਸੋ ਭਗਤੁ ਜੋ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥
सो भगतु जो गुरमुखि होवै हउमै सबदि जलाइआ राम ॥
वही उसका भक्त है, जो गुरुमुख बन गया है और जिसने शब्द द्वारा अपने अभिमान को जला दिया है।

ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਇਆ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਭਾਇਆ ਜਿਸ ਦੀ ਸਾਚੀ ਬਾਣੀ ॥
हउमै सबदि जलाइआ मेरे हरि भाइआ जिस दी साची बाणी ॥
जिसने शब्द द्वारा अपने अभिमान को जला दिया है, वही मेरे हरि को भाया है, जिसकी वाणी सत्य है।

ਸਚੀ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਗੁਰਮੁਖਿ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥
सची भगति करहि दिनु राती गुरमुखि आखि वखाणी ॥
गुरु ने जो भक्ति कहकर बताई है भक्तजन दिन रात सच्ची भक्ति ही करते रहते है।

ਭਗਤਾ ਕੀ ਚਾਲ ਸਚੀ ਅਤਿ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਸਚਾ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ॥
भगता की चाल सची अति निरमल नामु सचा मनि भाइआ ॥
भक्तों की जीवन युक्ति सच्ची एवं अत्यंत निर्मल है और परमात्मा का सच्चा नाम ही उनके मन को भाया है।

ਨਾਨਕ ਭਗਤ ਸੋਹਹਿ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਜਿਨੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਇਆ ॥੧॥
नानक भगत सोहहि दरि साचै जिनी सचो सचु कमाइआ ॥१॥
है नानक ! भक्तजन सत्य के दरबार में बड़ी शोभा प्राप्त करते है, जिन्होंने अपने जीवन में हमेशा परम सत्य की ही साधना की होती है।१॥

ਹਰਿ ਭਗਤਾ ਕੀ ਜਾਤਿ ਪਤਿ ਹੈ ਭਗਤ ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੇ ਰਾਮ ॥
हरि भगता की जाति पति है भगत हरि कै नामि समाणे राम ॥
हरि ही भक्तों की जाति एवं मान-सम्मान है और भक्त हरि के नाम स्मरण में ही लीन रहते हैं।

ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਵਹਿ ਜਿਨ ਗੁਣ ਅਵਗਣ ਪਛਾਣੇ ਰਾਮ ॥
हरि भगति करहि विचहु आपु गवावहि जिन गुण अवगण पछाणे राम ॥
जिन्होंने गुण एवं अवगुण पहचान लिए हैं, वे हरि की भक्ति करते हैं और अपने अन्तर्मन में से अभिमान को दूर कर देते हैं।

ਗੁਣ ਅਉਗਣ ਪਛਾਣੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਖਾਣੈ ਭੈ ਭਗਤਿ ਮੀਠੀ ਲਾਗੀ ॥
गुण अउगण पछाणै हरि नामु वखाणै भै भगति मीठी लागी ॥
वे अपने गुण एवं अवगुणों को पहचान कर हरि नाम का ही बखान करते रहते है। उन्हें हरि की भक्ति ही मीठी लगती है।

ਅਨਦਿਨੁ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਘਰ ਹੀ ਮਹਿ ਬੈਰਾਗੀ ॥
अनदिनु भगति करहि दिनु राती घर ही महि बैरागी ॥
वे दिन-रात भक्ति करते रहते हैं और गृहस्थ में रहते हुए वैरागी बने रहते हैं।

ਭਗਤੀ ਰਾਤੇ ਸਦਾ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹਰਿ ਜੀਉ ਵੇਖਹਿ ਸਦਾ ਨਾਲੇ ॥
भगती राते सदा मनु निरमलु हरि जीउ वेखहि सदा नाले ॥
भक्ति में लीन रहकर उनका मन सदैव निर्मल बना रहता है और वे सदैव अपने साथ देखते हैं।

ਨਾਨਕ ਸੇ ਭਗਤ ਹਰਿ ਕੈ ਦਰਿ ਸਾਚੇ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਸਮ੍ਹ੍ਹਾਲੇ ॥੨॥
नानक से भगत हरि कै दरि साचे अनदिनु नामु सम्हाले ॥२॥
हे नानक ! जो नाम-स्मरण करते रहते हैं, वे भक्त हरि सत्यवादी माने जाते हैं।॥ २॥

ਮਨਮੁਖ ਭਗਤਿ ਕਰਹਿ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਣੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਈ ਰਾਮ ॥
मनमुख भगति करहि बिनु सतिगुर विणु सतिगुर भगति न होई राम ॥
स्वेच्छाचारी जीव सतगुरु के बिना ही भक्ति करते हैं सतगुरु के बिना भक्ति सफल नहीं होती।

ਹਉਮੈ ਮਾਇਆ ਰੋਗਿ ਵਿਆਪੇ ਮਰਿ ਜਨਮਹਿ ਦੁਖੁ ਹੋਈ ਰਾਮ ॥
हउमै माइआ रोगि विआपे मरि जनमहि दुखु होई राम ॥
वे अहंत्व एवं माया के रोग में फंसे जन्म-मरण का भारी दुख लगा रहता है।

ਮਰਿ ਜਨਮਹਿ ਦੁਖੁ ਹੋਈ ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਪਰਜ ਵਿਗੋਈ ਵਿਣੁ ਗੁਰ ਤਤੁ ਨ ਜਾਨਿਆ ॥
मरि जनमहि दुखु होई दूजै भाइ परज विगोई विणु गुर ततु न जानिआ ॥
जीवन-मृत्यु के चक्र में फँसकर उन्हें भारी दुख होता है, द्वैतभाव में सारी दुनिया ही ख्वार हो रही है। गुरु के बिना किसी ने भी परम तत्व को नहीं जाना।

ਭਗਤਿ ਵਿਹੂਣਾ ਸਭੁ ਜਗੁ ਭਰਮਿਆ ਅੰਤਿ ਗਇਆ ਪਛੁਤਾਨਿਆ ॥
भगति विहूणा सभु जगु भरमिआ अंति गइआ पछुतानिआ ॥
भक्तिविहीन समूचा जगत् भटका हुआ है लेकिन अन्तिम समय इसे पछतावा ही हुआ है।

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