Hindi Page 1345

ਭਉ ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਸੁਖੁ ਸਾਰੁ ॥
भउ खाणा पीणा सुखु सारु ॥
ईश्वर के भय में रहना ही खाना-पीना एवं सुखमय है।

ਹਰਿ ਜਨ ਸੰਗਤਿ ਪਾਵੈ ਪਾਰੁ ॥
हरि जन संगति पावै पारु ॥
हरि-भक्त सत्संगत में संसार-सागर से मुक्त हो जाता है।

ਸਚੁ ਬੋਲੈ ਬੋਲਾਵੈ ਪਿਆਰੁ ॥
सचु बोलै बोलावै पिआरु ॥
वह सत्य बोलता है और प्रेम की भाषा ही बोलता रहता है।

ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਕਰਣੀ ਹੈ ਸਾਰੁ ॥੭॥
गुर का सबदु करणी है सारु ॥७॥
गुरु का उपदेश ही उसके लिए उत्तम कर्म है॥ ७॥

ਹਰਿ ਜਸੁ ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਪਤਿ ਪੂਜਾ ॥
हरि जसु करमु धरमु पति पूजा ॥
जो व्यक्ति ईश्वर के यशोगान को अपना कर्म-धर्म, पूजा-पाठ एवं प्रतिष्ठा मानता है,

ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਅਗਨੀ ਮਹਿ ਭੂੰਜਾ ॥
काम क्रोध अगनी महि भूंजा ॥
वह काम-क्रोध को ज्ञानाग्नि में जला देता है।

ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਤਉ ਮਨੁ ਭੀਜਾ ॥
हरि रसु चाखिआ तउ मनु भीजा ॥
हरिनाम रस से मन आनंदित हो जाता है और

ਪ੍ਰਣਵਤਿ ਨਾਨਕੁ ਅਵਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ॥੮॥੫॥
प्रणवति नानकु अवरु न दूजा ॥८॥५॥
गुरु नानक का कथन है कि अन्य कोई नहीं रहता॥ ८॥ ५॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਅੰਤਰਿ ਪੂਜਾ ॥
राम नामु जपि अंतरि पूजा ॥
अन्तर्मन में दत्तचित होकर ईश्वर का नाम जपना ही सच्ची पूजा है।

ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ਅਵਰੁ ਨਹੀ ਦੂਜਾ ॥੧॥
गुर सबदु वीचारि अवरु नही दूजा ॥१॥
गुरु के उपदेश का चिंतन करके देख लो, एक ईश्वर के अतिरिक्त किसी दूसरे का ख्याल नहीं रहता॥ १॥

ਏਕੋ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਸਭ ਠਾਈ ॥
एको रवि रहिआ सभ ठाई ॥
हर जगह पर एक परमेश्वर ही मौजूद है,

ਅਵਰੁ ਨ ਦੀਸੈ ਕਿਸੁ ਪੂਜ ਚੜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अवरु न दीसै किसु पूज चड़ाई ॥१॥ रहाउ ॥
अन्य कोई दृष्टिगत नहीं होता, फिर उसके अलावा किसकी पूजा-अर्चना की जाए॥ १॥रहाउ॥

ਮਨੁ ਤਨੁ ਆਗੈ ਜੀਅੜਾ ਤੁਝ ਪਾਸਿ ॥
मनु तनु आगै जीअड़ा तुझ पासि ॥
हे परमपिता! मन, तन, प्राण सब तुझे अर्पण है,

ਜਿਉ ਭਾਵੈ ਤਿਉ ਰਖਹੁ ਅਰਦਾਸਿ ॥੨॥
जिउ भावै तिउ रखहु अरदासि ॥२॥
मेरी प्रार्थना है कि जैसे तुम्हें ठीक लगता है, वैसे ही हमें रखो॥ २॥

ਸਚੁ ਜਿਹਵਾ ਹਰਿ ਰਸਨ ਰਸਾਈ ॥
सचु जिहवा हरि रसन रसाई ॥
यह जिव्हा हरिनाम रस में लीन होकर रसमय हो गई है।

ਗੁਰਮਤਿ ਛੂਟਸਿ ਪ੍ਰਭ ਸਰਣਾਈ ॥੩॥
गुरमति छूटसि प्रभ सरणाई ॥३॥
गुरु की शिक्षा एवं प्रभु की शरण में आने से ही मुक्ति होती है॥ ३॥

ਕਰਮ ਧਰਮ ਪ੍ਰਭਿ ਮੇਰੈ ਕੀਏ ॥
करम धरम प्रभि मेरै कीए ॥
मेरे प्रभु ने कर्म धर्म बनाए हैं लेकिन

ਨਾਮੁ ਵਡਾਈ ਸਿਰਿ ਕਰਮਾਂ ਕੀਏ ॥੪॥
नामु वडाई सिरि करमां कीए ॥४॥
हरिनाम की बड़ाई को सर्वोत्तम कर्म बनाया है॥ ४॥

ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਵਸਿ ਚਾਰਿ ਪਦਾਰਥ ॥
सतिगुर कै वसि चारि पदारथ ॥
काम, अर्थ, धर्म एवं मोक्ष सतिगुरु के वश में हैं,

ਤੀਨਿ ਸਮਾਏ ਏਕ ਕ੍ਰਿਤਾਰਥ ॥੫॥
तीनि समाए एक क्रितारथ ॥५॥
तीन तो यही समा जाते हैं और चौथा (मोक्ष) कृतार्थ कर देता है॥ ५॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਏ ਮੁਕਤਿ ਧਿਆਨਾਂ ॥
सतिगुरि दीए मुकति धिआनां ॥
सतिगुरु जीव को मुक्ति प्रदान करता है और परमात्मा के ध्यान में लगाता है।

ਹਰਿ ਪਦੁ ਚੀਨੑਿ ਭਏ ਪਰਧਾਨਾ ॥੬॥
हरि पदु चीन्हि भए परधाना ॥६॥
इस प्रकार हरिपद को जानकर जीव प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं।॥ ६॥

ਮਨੁ ਤਨੁ ਸੀਤਲੁ ਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥
मनु तनु सीतलु गुरि बूझ बुझाई ॥
गुरु के समझाने से मन तन शीतल हो जाता है।

ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਵਾਜੇ ਕਿਨਿ ਕੀਮਤਿ ਪਾਈ ॥੭॥
प्रभु निवाजे किनि कीमति पाई ॥७॥
जिन्हें प्रभु शोभा प्रदान करता है, उनकी महता कौन प्राप्त कर सकता है॥ ७॥

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥
कहु नानक गुरि बूझ बुझाई ॥
गुरु नानक फुरमाते हैं कि गुरु ने उपदेश देते हुए यही समझाया है कि

ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਗਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ॥੮॥੬॥
नाम बिना गति किनै न पाई ॥८॥६॥
हरिनाम के बिना किसी ने मुक्ति प्राप्त नहीं की।॥ ८॥ ६॥

ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
प्रभाती महला १ ॥
प्रभाती महला १ ॥

ਇਕਿ ਧੁਰਿ ਬਖਸਿ ਲਏ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਸਚੀ ਬਣਤ ਬਣਾਈ ॥
इकि धुरि बखसि लए गुरि पूरै सची बणत बणाई ॥
पूर्णगुरु ने ऐसी रीति बनाई है कि कुछ लोगों को प्रारम्भ से ही कृपा करके बचा लिया है।

ਹਰਿ ਰੰਗ ਰਾਤੇ ਸਦਾ ਰੰਗੁ ਸਾਚਾ ਦੁਖ ਬਿਸਰੇ ਪਤਿ ਪਾਈ ॥੧॥
हरि रंग राते सदा रंगु साचा दुख बिसरे पति पाई ॥१॥
वे सदैव ईश्वर की भक्ति में लीन रहते हैं, उनके दुख-दर्द समाप्त हो जाते हैं और वे इज्जत प्राप्त करते हैं।॥ १॥

ਝੂਠੀ ਦੁਰਮਤਿ ਕੀ ਚਤੁਰਾਈ ॥
झूठी दुरमति की चतुराई ॥
दुर्मति की चतुराई झूठी है,

ਬਿਨਸਤ ਬਾਰ ਨ ਲਾਗੈ ਕਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बिनसत बार न लागै काई ॥१॥ रहाउ ॥
जिसे नाश होते कोई समय नहीं लगता॥ १॥रहाउ॥

ਮਨਮੁਖ ਕਉ ਦੁਖੁ ਦਰਦੁ ਵਿਆਪਸਿ ਮਨਮੁਖਿ ਦੁਖੁ ਨ ਜਾਈ ॥
मनमुख कउ दुखु दरदु विआपसि मनमुखि दुखु न जाई ॥
स्वेच्छाचारी को दुख दर्द सताते रहते हैं, उसके दुखों का अन्त नहीं होता।

ਸੁਖ ਦੁਖ ਦਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਮੇਲਿ ਲਏ ਸਰਣਾਈ ॥੨॥
सुख दुख दाता गुरमुखि जाता मेलि लए सरणाई ॥२॥
जीव जब गुरु द्वारा सुख दुख देने वाले मालिक को जान लेता है तो वह शरण में लेकर उसे मिला लेता है॥ २॥

ਮਨਮੁਖ ਤੇ ਅਭ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵਸਿ ਹਉਮੈ ਪਚਹਿ ਦਿਵਾਨੇ ॥
मनमुख ते अभ भगति न होवसि हउमै पचहि दिवाने ॥
स्वेच्छाचारी से भगवान की भक्ति नहीं हो पाती, वह अहंकार में लीन रहकर बावला बना रहता है।

ਇਹੁ ਮਨੂਆ ਖਿਨੁ ਊਭਿ ਪਇਆਲੀ ਜਬ ਲਗਿ ਸਬਦ ਨ ਜਾਨੇ ॥੩॥
इहु मनूआ खिनु ऊभि पइआली जब लगि सबद न जाने ॥३॥
यह मन जब तक प्रभु-शब्द को नहीं जानता, तब तक आकाश पाताल में ही भटकता है॥ ३॥

ਭੂਖ ਪਿਆਸਾ ਜਗੁ ਭਇਆ ਤਿਪਤਿ ਨਹੀ ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਪਾਏ ॥
भूख पिआसा जगु भइआ तिपति नही बिनु सतिगुर पाए ॥
दुनिया भूख प्यास की शिकार बनी हुई है और सच्चे गुरु के बिना इसकी तृप्ति नहीं होती।

ਸਹਜੈ ਸਹਜੁ ਮਿਲੈ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ਦਰਗਹ ਪੈਧਾ ਜਾਏ ॥੪॥
सहजै सहजु मिलै सुखु पाईऐ दरगह पैधा जाए ॥४॥
जिसे सहज स्वाभाविक शान्ति मिलती है, वही सुख पाता है और प्रभु के दरबार में सम्मान का हकदार बनता है।॥ ४॥

ਦਰਗਹ ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ਇਕੁ ਆਪੇ ਨਿਰਮਲ ਗੁਰ ਕੀ ਬਾਣੀ ॥
दरगह दाना बीना इकु आपे निरमल गुर की बाणी ॥
गुरु की निर्मल वाणी से ज्ञान प्राप्त होता है कि केवल परमात्मा ही बुद्धिमान है।

ਆਪੇ ਸੁਰਤਾ ਸਚੁ ਵੀਚਾਰਸਿ ਆਪੇ ਬੂਝੈ ਪਦੁ ਨਿਰਬਾਣੀ ॥੫॥
आपे सुरता सचु वीचारसि आपे बूझै पदु निरबाणी ॥५॥
वह स्वयं’ ध्यानपूर्वक सुनने वाला एवं चिंतनशील है और स्वयं निर्वाणपद को बूझता है॥ ५॥

ਜਲੁ ਤਰੰਗ ਅਗਨੀ ਪਵਨੈ ਫੁਨਿ ਤ੍ਰੈ ਮਿਲਿ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
जलु तरंग अगनी पवनै फुनि त्रै मिलि जगतु उपाइआ ॥
उसने जल की तरंगों, अग्नि, पवन तीनों को मिलाकर जगत को उत्पन्न किया है।

ਐਸਾ ਬਲੁ ਛਲੁ ਤਿਨ ਕਉ ਦੀਆ ਹੁਕਮੀ ਠਾਕਿ ਰਹਾਇਆ ॥੬॥
ऐसा बलु छलु तिन कउ दीआ हुकमी ठाकि रहाइआ ॥६॥
उसने जगत की चीजों में ऐसा बल-छल प्रदान किया है कि सब उसके हुक्म में बंधे हुए हैं।॥ ६॥

ਐਸੇ ਜਨ ਵਿਰਲੇ ਜਗ ਅੰਦਰਿ ਪਰਖਿ ਖਜਾਨੈ ਪਾਇਆ ॥
ऐसे जन विरले जग अंदरि परखि खजानै पाइआ ॥
संसार में ऐसे विरले ही व्यक्ति हैं, और उनकी परख करके खजाने में डाल दिया जाता है

ਜਾਤਿ ਵਰਨ ਤੇ ਭਏ ਅਤੀਤਾ ਮਮਤਾ ਲੋਭੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥੭॥
जाति वरन ते भए अतीता ममता लोभु चुकाइआ ॥७॥
जो जाति-पाति, वर्ण, वासनाओं, मोह-ममता एवं लोभ से दूर रहते हैं।७॥

ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਤੀਰਥ ਸੇ ਨਿਰਮਲ ਦੁਖੁ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਚੁਕਾਇਆ ॥
नामि रते तीरथ से निरमल दुखु हउमै मैलु चुकाइआ ॥
वही लोग निर्मल होते हैं, जो प्रभु-नाम रूपी तीर्थ में स्नान करते हैं, उनका दुख, अभिमान एवं पापों की मैल दूर हो जाती है।

ਨਾਨਕੁ ਤਿਨ ਕੇ ਚਰਨ ਪਖਾਲੈ ਜਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚਾ ਭਾਇਆ ॥੮॥੭॥
नानकु तिन के चरन पखालै जिना गुरमुखि साचा भाइआ ॥८॥७॥
गुरु नानक का फुरमान है कि उन महापुरुषों के चरण धोना हमारा अहोभाग्य है, जिनको ईश्वर प्यारा लगता है॥ ८॥ ७॥

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