Hindi Page 490

ਰਾਗੁ ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ਘਰੁ ੧
रागु गूजरी महला ३ घरु १
रागु गूजरी महला ३ घरु १

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਧ੍ਰਿਗੁ ਇਵੇਹਾ ਜੀਵਣਾ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਪਾਇ ॥
ध्रिगु इवेहा जीवणा जितु हरि प्रीति न पाइ ॥
ऐसे जीवन को तो धिक्कार है, जिसमें हरि के साथ प्रीति नहीं लगती।

ਜਿਤੁ ਕੰਮਿ ਹਰਿ ਵੀਸਰੈ ਦੂਜੈ ਲਗੈ ਜਾਇ ॥੧॥
जितु कमि हरि वीसरै दूजै लगै जाइ ॥१॥
ऐसे कार्य को भी धिक्कार है जिसमें हरि भूल जाता है तथा मन द्वैतभाव के साथ लग जाता है।॥ १॥

ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੀਐ ਮਨਾ ਜਿਤੁ ਸੇਵਿਐ ਗੋਵਿਦ ਪ੍ਰੀਤਿ ਊਪਜੈ ਅਵਰ ਵਿਸਰਿ ਸਭ ਜਾਇ ॥
ऐसा सतिगुरु सेवीऐ मना जितु सेविऐ गोविद प्रीति ऊपजै अवर विसरि सभ जाइ ॥
हे मन ! ऐसे सतगुरु की श्रद्धा से सेवा करनी चाहिए, जिसकी निष्काम सेवा करने से गोविन्द से प्रीति उत्पन्न हो जाए एवं शेष सब कुछ भूल हो जाए।

ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਚਿਤੁ ਗਹਿ ਰਹੈ ਜਰਾ ਕਾ ਭਉ ਨ ਹੋਵਈ ਜੀਵਨ ਪਦਵੀ ਪਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि सेती चितु गहि रहै जरा का भउ न होवई जीवन पदवी पाइ ॥१॥ रहाउ ॥
इस प्रकार चित्त ईश्वर के साथ लगा रहेगा एवं वृद्धावस्था का भय नहीं रहेगा और जीवन का मनोरथ मुक्ति मिल जाएगी॥ १॥ रहाउ॥

ਗੋਬਿੰਦ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਿਉ ਇਕੁ ਸਹਜੁ ਉਪਜਿਆ ਵੇਖੁ ਜੈਸੀ ਭਗਤਿ ਬਨੀ ॥
गोबिंद प्रीति सिउ इकु सहजु उपजिआ वेखु जैसी भगति बनी ॥
गोविंद के प्रेम से मेरे मन में एक ऐसा सहज सुख पैदा हो गया है कि मेरी भक्ति आनंदमय बन गई है।

ਆਪ ਸੇਤੀ ਆਪੁ ਖਾਇਆ ਤਾ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਆ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਈ ॥੨॥
आप सेती आपु खाइआ ता मनु निरमलु होआ जोती जोति समई ॥२॥
जब मैंने अपने अहंत्व को मार दिया तो मेरा मन पावन हो गया और मेरी ज्योति परम-ज्योति में समा गई॥ २॥

ਬਿਨੁ ਭਾਗਾ ਐਸਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਨ ਪਾਈਐ ਜੇ ਲੋਚੈ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
बिनु भागा ऐसा सतिगुरु न पाईऐ जे लोचै सभु कोइ ॥
अहोभाग्य के बिना ऐसा सतगुरु प्राप्त नहीं हो सकता, जितनी चाहे सभी अभिलाषा कर लें।

ਕੂੜੈ ਕੀ ਪਾਲਿ ਵਿਚਹੁ ਨਿਕਲੈ ਤਾ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੋਇ ॥੩॥
कूड़ै की पालि विचहु निकलै ता सदा सुखु होइ ॥३॥
यदि झूठ का पर्दा भीतर से दूर हो जाए तो सदैव सुख प्राप्त हो जाता है॥ ३॥

ਨਾਨਕ ਐਸੇ ਸਤਿਗੁਰ ਕੀ ਕਿਆ ਓਹੁ ਸੇਵਕੁ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਗੁਰ ਆਗੈ ਜੀਉ ਧਰੇਇ ॥
नानक ऐसे सतिगुर की किआ ओहु सेवकु सेवा करे गुर आगै जीउ धरेइ ॥
हे नानक ! ऐसे सतगुरु की वह सेवक क्या सेवा कर सकता है ? केवल गुरु के समक्ष उसे अपना मन एवं जीवन अर्पित कर देना ही सच्ची सेवा है।

ਸਤਿਗੁਰ ਕਾ ਭਾਣਾ ਚਿਤਿ ਕਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਆਪੇ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇਇ ॥੪॥੧॥੩॥
सतिगुर का भाणा चिति करे सतिगुरु आपे क्रिपा करेइ ॥४॥१॥३॥
यदि वह सतगुरु की रज़ा को याद रखे तो वह स्वयं ही उस पर कृपा-दृष्टि कर देता है॥ ४ ॥ १॥ ३॥

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गूजरी महला ३ ॥
गूजरी महला ३ ॥

ਹਰਿ ਕੀ ਤੁਮ ਸੇਵਾ ਕਰਹੁ ਦੂਜੀ ਸੇਵਾ ਕਰਹੁ ਨ ਕੋਇ ਜੀ ॥
हरि की तुम सेवा करहु दूजी सेवा करहु न कोइ जी ॥
हे भाई ! तुम हरि की ही सेवा -भक्ति करो तथा उसके अतिरिक्त किसी दूसरे की सेवा मत करो।

ਹਰਿ ਕੀ ਸੇਵਾ ਤੇ ਮਨਹੁ ਚਿੰਦਿਆ ਫਲੁ ਪਾਈਐ ਦੂਜੀ ਸੇਵਾ ਜਨਮੁ ਬਿਰਥਾ ਜਾਇ ਜੀ ॥੧॥
हरि की सेवा ते मनहु चिंदिआ फलु पाईऐ दूजी सेवा जनमु बिरथा जाइ जी ॥१॥
हरि की सेवा-भक्ति करने से मनोवांछित फल प्राप्त होता है परन्तु किसी दूसरे की सेवा करने से अमूल्य मानव-जन्म व्यर्थ ही चला जाता है॥ १॥

ਹਰਿ ਮੇਰੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਰੀਤਿ ਹੈ ਹਰਿ ਮੇਰੀ ਹਰਿ ਮੇਰੀ ਕਥਾ ਕਹਾਨੀ ਜੀ ॥
हरि मेरी प्रीति रीति है हरि मेरी हरि मेरी कथा कहानी जी ॥
हे भाई ! हरि ही मेरा प्रेम एवं जीवन-आचरण है तथा हरि ही मेरी कथा एवं कहानी है।

ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ਏਹਾ ਸੇਵ ਬਨੀ ਜੀਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर प्रसादि मेरा मनु भीजै एहा सेव बनी जीउ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की दया से मेरा मन प्रभु-प्रेम में भीग गया है, यही मेरी सेवा-भक्ति बनी है॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਸਿਮ੍ਰਿਤਿ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਸਾਸਤ੍ਰ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਬੰਧਪੁ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਭਾਈ ॥
हरि मेरा सिम्रिति हरि मेरा सासत्र हरि मेरा बंधपु हरि मेरा भाई ॥
हे भाई ! हरि ही मेरी स्मृति, मेरा शास्त्र, संबंधी एवं मेरा भाई है।

ਹਰਿ ਕੀ ਮੈ ਭੂਖ ਲਾਗੈ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤੈ ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਸਾਕੁ ਅੰਤਿ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੨॥
हरि की मै भूख लागै हरि नामि मेरा मनु त्रिपतै हरि मेरा साकु अंति होइ सखाई ॥२॥
हरि की मुझे भूख लगी रहती है और हरि के नाम से मेरा मन जाता है। हरेि ही मेरा रिश्तेदार है और वही मेरा अंतिमकाल का सखा है॥ २॥

ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਹੋਰ ਰਾਸਿ ਕੂੜੀ ਹੈ ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਨ ਜਾਈ ॥
हरि बिनु होर रासि कूड़ी है चलदिआ नालि न जाई ॥
हरि के बिना दूसरी सब पूंजी झूठी है। जब प्राणी संसार से कूच करता है तो यह उसके साथ नहीं जाती।

ਹਰਿ ਮੇਰਾ ਧਨੁ ਮੇਰੈ ਸਾਥਿ ਚਾਲੈ ਜਹਾ ਹਉ ਜਾਉ ਤਹ ਜਾਈ ॥੩॥
हरि मेरा धनु मेरै साथि चालै जहा हउ जाउ तह जाई ॥३॥
हरि मेरा अमूल्य धन है जो मेरे साथ (परलोक में) चलेगा, जहाँ किधर भी मैं जाऊँगा, वंही यह साथ जाएगा ॥ ३॥

ਸੋ ਝੂਠਾ ਜੋ ਝੂਠੇ ਲਾਗੈ ਝੂਠੇ ਕਰਮ ਕਮਾਈ ॥
सो झूठा जो झूठे लागै झूठे करम कमाई ॥
जो झूठ से लगा हुआ है, वह झूठा है और जो कर्म वह करता है, वे भी झूठे हैं।

ਕਹੈ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਕਾ ਭਾਣਾ ਹੋਆ ਕਹਣਾ ਕਛੂ ਨ ਜਾਈ ॥੪॥੨॥੪॥
कहै नानकु हरि का भाणा होआ कहणा कछू न जाई ॥४॥२॥४॥
नानक कहते हैं कि दुनिया में सब कुछ हरि की इच्छानुसार ही होता है। नश्वर प्राणी का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं ॥ ४॥ २॥ ४

ਗੂਜਰੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गूजरी महला ३ ॥
गूजरी महला ३ ॥

ਜੁਗ ਮਾਹਿ ਨਾਮੁ ਦੁਲੰਭੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਾਇਆ ਜਾਇ ॥
जुग माहि नामु दुल्मभु है गुरमुखि पाइआ जाइ ॥
इस कलियुग में भगवान का नाम बड़ा दुर्लभ है तथा गुरु की शरण लेने से ही इसकी प्राप्ति होती है।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਵਈ ਵੇਖਹੁ ਕੋ ਵਿਉਪਾਇ ॥੧॥
बिनु नावै मुकति न होवई वेखहु को विउपाइ ॥१॥
नाम के बिना जीव की मुक्ति नहीं होती, चाहे कोई जितना भी उपाय करके देख लो॥ १॥

ਬਲਿਹਾਰੀ ਗੁਰ ਆਪਣੇ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੈ ਜਾਉ ॥
बलिहारी गुर आपणे सद बलिहारै जाउ ॥
मैं अपने गुरु पर कुर्बान जाता हूँ, सदैव ही उन पर न्यौछावर हूँ।

ਸਤਿਗੁਰ ਮਿਲਿਐ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਸਹਜੇ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुर मिलिऐ हरि मनि वसै सहजे रहै समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चे गुरु को मिलने से हरि-प्रभु मन में बस जाता है और तब वह सहज ही उसमें समाया रहता है॥ १॥ रहाउ ॥

ਜਾਂ ਭਉ ਪਾਏ ਆਪਣਾ ਬੈਰਾਗੁ ਉਪਜੈ ਮਨਿ ਆਇ ॥
जां भउ पाए आपणा बैरागु उपजै मनि आइ ॥
जब हरि का भय मन में उत्पन्न होता है तो जीव संसार से वैरागी हो जाता है।

ਬੈਰਾਗੈ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੨॥
बैरागै ते हरि पाईऐ हरि सिउ रहै समाइ ॥२॥
वैराग्य द्वारा ही हरि-प्रभु प्राप्त होता है तथा जीव हरि के साथ समाया रहता है।॥ २॥

ਸੇਇ ਮੁਕਤ ਜਿ ਮਨੁ ਜਿਣਹਿ ਫਿਰਿ ਧਾਤੁ ਨ ਲਾਗੈ ਆਇ ॥
सेइ मुकत जि मनु जिणहि फिरि धातु न लागै आइ ॥
वही जीव मुक्त होते हैं, जो अपने मन को जीत लेते हैं और माया उनके साथ दोबारा नहीं लगती।

ਦਸਵੈ ਦੁਆਰਿ ਰਹਤ ਕਰੇ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਪਾਇ ॥੩॥
दसवै दुआरि रहत करे त्रिभवण सोझी पाइ ॥३॥
वे दशम द्वार में रहते हैं और उन्हें तीनों लोकों का ज्ञान प्राप्त हो जाता है॥ ३॥

ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਤੇ ਗੁਰੁ ਹੋਇਆ ਵੇਖਹੁ ਤਿਸ ਕੀ ਰਜਾਇ ॥
नानक गुर ते गुरु होइआ वेखहु तिस की रजाइ ॥
गुरु नानक की कृपा-दृष्टि से भाई लहना गुरु अंगद बन गया, उस परमात्मा की आश्चर्यजनक रज़ा देखो।

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