Hindi Page 291

ਆਪਨ ਖੇਲੁ ਆਪਿ ਵਰਤੀਜਾ ॥
आपन खेलु आपि वरतीजा ॥
हे नानक ! (सृष्टि रूपी) अपनी लीला अकाल पुरुष ने स्वयं ही रची है,

ਨਾਨਕ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ਨ ਦੂਜਾ ॥੧॥
नानक करनैहारु न दूजा ॥१॥
इसके अलावा दूसरा कोई रचयिता नहीं ॥ १॥

ਜਬ ਹੋਵਤ ਪ੍ਰਭ ਕੇਵਲ ਧਨੀ ॥
जब होवत प्रभ केवल धनी ॥
जब जगत् का स्वामी परमात्मा केवल स्वयं ही था,

ਤਬ ਬੰਧ ਮੁਕਤਿ ਕਹੁ ਕਿਸ ਕਉ ਗਨੀ ॥
तब बंध मुकति कहु किस कउ गनी ॥
तब बताओ किसे बन्धनयुक्त एवं किसे बन्धनमुक्त गिना जाता था ?

ਜਬ ਏਕਹਿ ਹਰਿ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥
जब एकहि हरि अगम अपार ॥
जब केवल अगम्य एवं अपार हरि ही था,

ਤਬ ਨਰਕ ਸੁਰਗ ਕਹੁ ਕਉਨ ਅਉਤਾਰ ॥
तब नरक सुरग कहु कउन अउतार ॥
तब बताओ, नरकों तथा स्वर्गों में आने वाले कौन से प्राणी थे।

ਜਬ ਨਿਰਗੁਨ ਪ੍ਰਭ ਸਹਜ ਸੁਭਾਇ ॥
जब निरगुन प्रभ सहज सुभाइ ॥
जब निर्गुण परमात्मा अपने सहज स्वभाव सहित था,

ਤਬ ਸਿਵ ਸਕਤਿ ਕਹਹੁ ਕਿਤੁ ਠਾਇ ॥
तब सिव सकति कहहु कितु ठाइ ॥
तब बताओ शिव-शक्ति किस स्थान पर थे?

ਜਬ ਆਪਹਿ ਆਪਿ ਅਪਨੀ ਜੋਤਿ ਧਰੈ ॥
जब आपहि आपि अपनी जोति धरै ॥
जब परमात्मा स्वयं ही अपनी ज्योति प्रज्वलित किए बैठा था,

ਤਬ ਕਵਨ ਨਿਡਰੁ ਕਵਨ ਕਤ ਡਰੈ ॥
तब कवन निडरु कवन कत डरै ॥
तब कौन निडर था और कौन किससे डरता था ?

ਆਪਨ ਚਲਿਤ ਆਪਿ ਕਰਨੈਹਾਰ ॥
आपन चलित आपि करनैहार ॥
हे नानक ! परमात्मा अगम्य एवं अपार है।

ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥੨॥
नानक ठाकुर अगम अपार ॥२॥
अपने कौतुक स्वयं ही करने वाला है ॥२॥

ਅਬਿਨਾਸੀ ਸੁਖ ਆਪਨ ਆਸਨ ॥
अबिनासी सुख आपन आसन ॥
जब अमर परमात्मा अपने सुखदायक आसन पर विराजमान था,

ਤਹ ਜਨਮ ਮਰਨ ਕਹੁ ਕਹਾ ਬਿਨਾਸਨ ॥
तह जनम मरन कहु कहा बिनासन ॥
बताओ तब जन्म-मरण और विनाश (काल) कहाँ थे?

ਜਬ ਪੂਰਨ ਕਰਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥
जब पूरन करता प्रभु सोइ ॥
जब पूर्ण अकाल पुरुष कर्तार ही था,

ਤਬ ਜਮ ਕੀ ਤ੍ਰਾਸ ਕਹਹੁ ਕਿਸੁ ਹੋਇ ॥
तब जम की त्रास कहहु किसु होइ ॥
बताओ तब मृत्यु का भय किसे हो सकता था ?

ਜਬ ਅਬਿਗਤ ਅਗੋਚਰ ਪ੍ਰਭ ਏਕਾ ॥
जब अबिगत अगोचर प्रभ एका ॥
जब केवल अलक्ष्य एवं अगोचर परमात्मा ही था,

ਤਬ ਚਿਤ੍ਰ ਗੁਪਤ ਕਿਸੁ ਪੂਛਤ ਲੇਖਾ ॥
तब चित्र गुपत किसु पूछत लेखा ॥
तब चित्रगुप्त किस से लेखा पूछते थे ?

ਜਬ ਨਾਥ ਨਿਰੰਜਨ ਅਗੋਚਰ ਅਗਾਧੇ ॥
जब नाथ निरंजन अगोचर अगाधे ॥
जब केवल निरंजन, अगोचर एवं अथाह नाथ (परमात्मा) ही था,

ਤਬ ਕਉਨ ਛੁਟੇ ਕਉਨ ਬੰਧਨ ਬਾਧੇ ॥
तब कउन छुटे कउन बंधन बाधे ॥
तब कौन माया के बन्धन से मुक्त थे और कौन बन्धनों में फंसे हुए थे ?

ਆਪਨ ਆਪ ਆਪ ਹੀ ਅਚਰਜਾ ॥
आपन आप आप ही अचरजा ॥
परमात्मा सब कुछ अपने आप से ही है, वह स्वयं ही अद्भुत है।

ਨਾਨਕ ਆਪਨ ਰੂਪ ਆਪ ਹੀ ਉਪਰਜਾ ॥੩॥
नानक आपन रूप आप ही उपरजा ॥३॥
हे नानक ! अपना रूप उसने स्वयं ही उत्पन्न किया है ॥३॥

ਜਹ ਨਿਰਮਲ ਪੁਰਖੁ ਪੁਰਖ ਪਤਿ ਹੋਤਾ ॥
जह निरमल पुरखु पुरख पति होता ॥
जहां निर्मल पुरुष ही पुरुषों का पति होता था

ਤਹ ਬਿਨੁ ਮੈਲੁ ਕਹਹੁ ਕਿਆ ਧੋਤਾ ॥
तह बिनु मैलु कहहु किआ धोता ॥
और वहाँ कोई मैल नहीं थी, बताओ ! तब वहाँ स्वच्छ करने को क्या था?

ਜਹ ਨਿਰੰਜਨ ਨਿਰੰਕਾਰ ਨਿਰਬਾਨ ॥
जह निरंजन निरंकार निरबान ॥
जहाँ केवल निरंजन, निरंकार एवं निर्लिप्त परमात्मा ही था,

ਤਹ ਕਉਨ ਕਉ ਮਾਨ ਕਉਨ ਅਭਿਮਾਨ ॥
तह कउन कउ मान कउन अभिमान ॥
वहाँ किसका मान एवं किसका अभिमान होता था ?

ਜਹ ਸਰੂਪ ਕੇਵਲ ਜਗਦੀਸ ॥
जह सरूप केवल जगदीस ॥
जहाँ केवल सृष्टि के स्वामी जगदीश का ही रूप था,

ਤਹ ਛਲ ਛਿਦ੍ਰ ਲਗਤ ਕਹੁ ਕੀਸ ॥
तह छल छिद्र लगत कहु कीस ॥
बताओ, वहाँ छल-कपट एवं पाप किसको दुःखी करते थे ?

ਜਹ ਜੋਤਿ ਸਰੂਪੀ ਜੋਤਿ ਸੰਗਿ ਸਮਾਵੈ ॥
जह जोति सरूपी जोति संगि समावै ॥
जहाँ ज्योति स्वरूप अपनी ज्योति से ही समाया हुआ था,

ਤਹ ਕਿਸਹਿ ਭੂਖ ਕਵਨੁ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ॥
तह किसहि भूख कवनु त्रिपतावै ॥
तब वहाँ किसे भूख लगती थी और किसे तृप्ति आती थी ?

ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਕਰਨੈਹਾਰੁ ॥
करन करावन करनैहारु ॥
सृष्टि का रचयिता करतार स्वयं ही सबकुछ करने वाला और प्राणियों से कराने वाला है

ਨਾਨਕ ਕਰਤੇ ਕਾ ਨਾਹਿ ਸੁਮਾਰੁ ॥੪॥
नानक करते का नाहि सुमारु ॥४॥
हे नानक ! दुनिया का निर्माण करने वाले परमात्मा का कोई अन्त नहीं है ॥४॥

ਜਬ ਅਪਨੀ ਸੋਭਾ ਆਪਨ ਸੰਗਿ ਬਨਾਈ ॥
जब अपनी सोभा आपन संगि बनाई ॥
जब परमात्मा ने अपनी शोभा अपने साथ ही बनाई थी,

ਤਬ ਕਵਨ ਮਾਇ ਬਾਪ ਮਿਤ੍ਰ ਸੁਤ ਭਾਈ ॥
तब कवन माइ बाप मित्र सुत भाई ॥
तब माता-पिता, मित्र, पुत्र एवं भाई कौन थे ?

ਜਹ ਸਰਬ ਕਲਾ ਆਪਹਿ ਪਰਬੀਨ ॥
जह सरब कला आपहि परबीन ॥
जब वह स्वयं ही सर्वकला में पूरी तरह प्रवीण था,

ਤਹ ਬੇਦ ਕਤੇਬ ਕਹਾ ਕੋਊ ਚੀਨ ॥
तह बेद कतेब कहा कोऊ चीन ॥
तब वेद तथा कतेब को कहाँ कोई पहचानता था।

ਜਬ ਆਪਨ ਆਪੁ ਆਪਿ ਉਰਿ ਧਾਰੈ ॥
जब आपन आपु आपि उरि धारै ॥
जब अकाल पुरुष अपने आपको अपने हृदय में ही धारण किए रखता था,

ਤਉ ਸਗਨ ਅਪਸਗਨ ਕਹਾ ਬੀਚਾਰੈ ॥
तउ सगन अपसगन कहा बीचारै ॥
तब शगुन (शुभ) एवं अपशगुन (अशुभ लग्नों) का कौन सोचता था ?

ਜਹ ਆਪਨ ਊਚ ਆਪਨ ਆਪਿ ਨੇਰਾ ॥
जह आपन ऊच आपन आपि नेरा ॥
जहाँ परमात्मा स्वयं ही ऊँचा और स्वयं ही निकट था,

ਤਹ ਕਉਨ ਠਾਕੁਰੁ ਕਉਨੁ ਕਹੀਐ ਚੇਰਾ ॥
तह कउन ठाकुरु कउनु कहीऐ चेरा ॥
वहाँ कौन स्वामी और कौन सेवक कहा जा सकता था ?

ਬਿਸਮਨ ਬਿਸਮ ਰਹੇ ਬਿਸਮਾਦ ॥
बिसमन बिसम रहे बिसमाद ॥
मैं प्रभु के अदभुत कौतुक देखकर चकित हो रहा हूँ।

ਨਾਨਕ ਅਪਨੀ ਗਤਿ ਜਾਨਹੁ ਆਪਿ ॥੫॥
नानक अपनी गति जानहु आपि ॥५॥
नानक का कथन है कि हे परमेश्वर ! अपनी गति तू स्वयं ही जानता है ॥५॥

ਜਹ ਅਛਲ ਅਛੇਦ ਅਭੇਦ ਸਮਾਇਆ ॥
जह अछल अछेद अभेद समाइआ ॥
जहाँ छलरहित, अल्लेद एवं अभेद परमेश्वर अपने आप में लीन था,

ਊਹਾ ਕਿਸਹਿ ਬਿਆਪਤ ਮਾਇਆ ॥
ऊहा किसहि बिआपत माइआ ॥
वहाँ माया किस पर प्रभाव करती थी ?

ਆਪਸ ਕਉ ਆਪਹਿ ਆਦੇਸੁ ॥
आपस कउ आपहि आदेसु ॥
जब ईश्वर स्वयं अपने आपको प्रणाम करता था,

ਤਿਹੁ ਗੁਣ ਕਾ ਨਾਹੀ ਪਰਵੇਸੁ ॥
तिहु गुण का नाही परवेसु ॥
तब (माया के) त्रिगुणों का (जगत् में) प्रवेश नहीं हुआ था।

ਜਹ ਏਕਹਿ ਏਕ ਏਕ ਭਗਵੰਤਾ ॥
जह एकहि एक एक भगवंता ॥
जहाँ केवल एक आप ही भगवान था,

ਤਹ ਕਉਨੁ ਅਚਿੰਤੁ ਕਿਸੁ ਲਾਗੈ ਚਿੰਤਾ ॥
तह कउनु अचिंतु किसु लागै चिंता ॥
वहाँ कौन बेफिक्र था और किसे चिन्ता लगती थी ?

ਜਹ ਆਪਨ ਆਪੁ ਆਪਿ ਪਤੀਆਰਾ ॥
जह आपन आपु आपि पतीआरा ॥
जहाँ परमात्मा अपने आप से स्वयं संतुष्ट था,

ਤਹ ਕਉਨੁ ਕਥੈ ਕਉਨੁ ਸੁਨਨੈਹਾਰਾ ॥
तह कउनु कथै कउनु सुननैहारा ॥
वहां कौन कहने वाला और कौन सुनने वाला था?

ਬਹੁ ਬੇਅੰਤ ਊਚ ਤੇ ਊਚਾ ॥
बहु बेअंत ऊच ते ऊचा ॥
हे नानक ! परमात्मा बड़ा अनन्त एवं सर्वोपरि है,

ਨਾਨਕ ਆਪਸ ਕਉ ਆਪਹਿ ਪਹੂਚਾ ॥੬॥
नानक आपस कउ आपहि पहूचा ॥६॥
केवल वही अपने आप तक पहुँचता है॥ ६॥

ਜਹ ਆਪਿ ਰਚਿਓ ਪਰਪੰਚੁ ਅਕਾਰੁ ॥
जह आपि रचिओ परपंचु अकारु ॥
जब परमात्मा ने स्वयं सृष्टि का परपंच रच दिया

ਤਿਹੁ ਗੁਣ ਮਹਿ ਕੀਨੋ ਬਿਸਥਾਰੁ ॥
तिहु गुण महि कीनो बिसथारु ॥
और माया के त्रिगुणों का प्रसार जगत् में कर दिया,

ਪਾਪੁ ਪੁੰਨੁ ਤਹ ਭਈ ਕਹਾਵਤ ॥
पापु पुंनु तह भई कहावत ॥
तो यह बात प्रचलित हो गई कि यह पाप है अथवा यह पुण्य है  

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