ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਕਰਮੁ ਹੋਵੈ ਤਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਪਾਈਐ ਵਿਣੁ ਕਰਮੈ ਪਾਇਆ ਨ ਜਾਇ ॥
करमु होवै ता सतिगुरु पाईऐ विणु करमै पाइआ न जाइ ॥
ईश्वर की कृपा हो तो सच्चा गुरु प्राप्त हो जाता है और कृपा के बिना वह प्राप्त नहीं होता।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਮਿਲਿਐ ਕੰਚਨੁ ਹੋਈਐ ਜਾਂ ਹਰਿ ਕੀ ਹੋਇ ਰਜਾਇ ॥੧॥
सतिगुरु मिलिऐ कंचनु होईऐ जां हरि की होइ रजाइ ॥१॥
जब परमात्मा की इच्छा होती है तो सच्चे गुरु से मिलकर जीव सोने की तरह शुद्ध हो जाता है।॥१॥
ਮਨ ਮੇਰੇ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
मन मेरे हरि हरि नामि चितु लाइ ॥
हे मेरे मन ! परमात्मा के नाम में ध्यान लगाओ।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਹਰਿ ਪਾਈਐ ਸਾਚਾ ਹਰਿ ਸਿਉ ਰਹੈ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सतिगुर ते हरि पाईऐ साचा हरि सिउ रहै समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
सच्चे गुरु से परमात्मा प्राप्त होता है और जीव सत्यस्वरूप प्रभु में विलीन रहता है॥१॥रहाउ॥
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਗਿਆਨੁ ਊਪਜੈ ਤਾਂ ਇਹ ਸੰਸਾ ਜਾਇ ॥
सतिगुर ते गिआनु ऊपजै तां इह संसा जाइ ॥
जब सच्चे गुरु की शिक्षा से ज्ञान उत्पन्न होता है तो हर संशय दूर हो जाता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਹਰਿ ਬੁਝੀਐ ਗਰਭ ਜੋਨੀ ਨਹ ਪਾਇ ॥੨॥
सतिगुर ते हरि बुझीऐ गरभ जोनी नह पाइ ॥२॥
सतगुरु से ही ईश्वर का रहस्य प्राप्त होता है और गर्भ योनियों से छुटकारा हो जाता है।॥२॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜੀਵਤ ਮਰੈ ਮਰਿ ਜੀਵੈ ਸਬਦੁ ਕਮਾਇ ॥
गुर परसादी जीवत मरै मरि जीवै सबदु कमाइ ॥
गुरु की कृपा से जो जीते जी विकारों की ओर से मरकर शब्द के अनुरूप आचरण करता है, वह जीवन्मुक्त हो जाता है।
ਮੁਕਤਿ ਦੁਆਰਾ ਸੋਈ ਪਾਏ ਜਿ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥੩॥
मुकति दुआरा सोई पाए जि विचहु आपु गवाइ ॥३॥
जो मन में से अहम्-भाव को निवृत्त कर देते हैं, वही मुक्ति प्राप्त करते हैं॥३॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸਿਵ ਘਰਿ ਜੰਮੈ ਵਿਚਹੁ ਸਕਤਿ ਗਵਾਇ ॥
गुर परसादी सिव घरि जमै विचहु सकति गवाइ ॥
गुरु की कृपा से जीव जब चेतना के घर जन्म लेता है तो माया-शक्ति को दूर कर देता है।
ਅਚਰੁ ਚਰੈ ਬਿਬੇਕ ਬੁਧਿ ਪਾਏ ਪੁਰਖੈ ਪੁਰਖੁ ਮਿਲਾਇ ॥੪॥
अचरु चरै बिबेक बुधि पाए पुरखै पुरखु मिलाइ ॥४॥
वह सहनशीलता अपनाकर विवेक बुद्धि प्राप्त करता और महापुरुष गुरु के संपर्क में रहकर प्रभु से मिल जाता है॥४॥
ਧਾਤੁਰ ਬਾਜੀ ਸੰਸਾਰੁ ਅਚੇਤੁ ਹੈ ਚਲੈ ਮੂਲੁ ਗਵਾਇ ॥
धातुर बाजी संसारु अचेतु है चलै मूलु गवाइ ॥
नासमझ संसार बाजी खेलता है और अपना मूल गंवा कर चला जाता है।
ਲਾਹਾ ਹਰਿ ਸਤਸੰਗਤਿ ਪਾਈਐ ਕਰਮੀ ਪਲੈ ਪਾਇ ॥੫॥
लाहा हरि सतसंगति पाईऐ करमी पलै पाइ ॥५॥
यदि सत्संगति में हरिनाम का स्तुतिगान किया जाए तो ही लाभ प्राप्त होता है, पर यह भी बड़े भाग्य से ही प्राप्त होता है॥५॥
ਸਤਿਗੁਰ ਵਿਣੁ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ਮਨਿ ਵੇਖਹੁ ਰਿਦੈ ਬੀਚਾਰਿ ॥
सतिगुर विणु किनै न पाइआ मनि वेखहु रिदै बीचारि ॥
मन में चिंतन करके देख लो, सतगुरु के बिना किसी को ईश्वर प्राप्त नहीं हुआ।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਭਵਜਲੁ ਉਤਰੇ ਪਾਰਿ ॥੬॥
वडभागी गुरु पाइआ भवजलु उतरे पारि ॥६॥
जो भाग्यशाली होते हैं, वे गुरु को पाकर संसार-सागर से पार उतर जाते हैं।॥६॥
ਹਰਿ ਨਾਮਾਂ ਹਰਿ ਟੇਕ ਹੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
हरि नामां हरि टेक है हरि हरि नामु अधारु ॥
हरिनाम ही हमारा अवलम्ब है और हरिनाम का ही आसरा है।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹੁ ਗੁਰੁ ਮੇਲਹੁ ਹਰਿ ਜੀਉ ਪਾਵਉ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੭॥
क्रिपा करहु गुरु मेलहु हरि जीउ पावउ मोख दुआरु ॥७॥
हे ईश्वर ! कृपा करके गुरु से मिला दो, ताकि मोक्ष द्वार प्राप्त हो जाए॥७॥
ਮਸਤਕਿ ਲਿਲਾਟਿ ਲਿਖਿਆ ਧੁਰਿ ਠਾਕੁਰਿ ਮੇਟਣਾ ਨ ਜਾਇ ॥
मसतकि लिलाटि लिखिआ धुरि ठाकुरि मेटणा न जाइ ॥
मालिक ने प्रारम्भ से जो भाग्य मस्तक पर लिख दिया है, उसे टाला नहीं जा सकता।
ਨਾਨਕ ਸੇ ਜਨ ਪੂਰਨ ਹੋਏ ਜਿਨ ਹਰਿ ਭਾਣਾ ਭਾਇ ॥੮॥੧॥
नानक से जन पूरन होए जिन हरि भाणा भाइ ॥८॥१॥
नानक कथन करते हैं कि जिनको ईश्वर की रज़ा अच्छी लगती है, वही व्यक्ति पूर्ण माने जाते हैं।॥८॥१॥
ਮਲਾਰ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मलार महला ३ ॥
मलार महला ३ ॥
ਬੇਦ ਬਾਣੀ ਜਗੁ ਵਰਤਦਾ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਕਰੇ ਬੀਚਾਰੁ ॥
बेद बाणी जगु वरतदा त्रै गुण करे बीचारु ॥
वेद-वाणी के अनुरूप पूरा जगत कार्यशील है, तीन गुणों का चिंतन करता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜਮ ਡੰਡੁ ਸਹੈ ਮਰਿ ਜਨਮੈ ਵਾਰੋ ਵਾਰ ॥
बिनु नावै जम डंडु सहै मरि जनमै वारो वार ॥
हरिनाम के मनन बिना यमराज से दण्ड भोगता है और बार-बार मरता एवं जन्मता है।
ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮੁਕਤਿ ਹੋਇ ਪਾਏ ਮੋਖ ਦੁਆਰੁ ॥੧॥
सतिगुर भेटे मुकति होइ पाए मोख दुआरु ॥१॥
जिसकी सतगुरु से भेंट होती है, वह मुक्ति पा लेता है और मोक्ष द्वार में प्रवेश कर जाता है।॥१॥
ਮਨ ਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਮਾਇ ॥
मन रे सतिगुरु सेवि समाइ ॥
हे मन ! सच्चे गुरु की सेवा में तल्लीन रहो,
ਵਡੈ ਭਾਗਿ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वडै भागि गुरु पूरा पाइआ हरि हरि नामु धिआइ ॥१॥ रहाउ ॥
क्योंकि पूर्ण गुरु बड़े भाग्य से ही प्राप्त होता है, तदन्तर हरिनाम का ध्यान किया जाता है॥१॥रहाउ॥
ਹਰਿ ਆਪਣੈ ਭਾਣੈ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਉਪਾਈ ਹਰਿ ਆਪੇ ਦੇਇ ਅਧਾਰੁ ॥
हरि आपणै भाणै स्रिसटि उपाई हरि आपे देइ अधारु ॥
परमेश्वर अपनी मर्जी से ही समूची सृष्टि को उत्पन्न करता है और रिजक ( रोजी,आजीविका) देकर स्वयं ही आसरा प्रदान करता है।
ਹਰਿ ਆਪਣੈ ਭਾਣੈ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਕੀਆ ਹਰਿ ਸਿਉ ਲਾਗਾ ਪਿਆਰੁ ॥
हरि आपणै भाणै मनु निरमलु कीआ हरि सिउ लागा पिआरु ॥
ईश्वरेच्छा से मन निर्मल होता है और परमेश्वर के साथ प्रेम उत्पन्न होता है।
ਹਰਿ ਕੈ ਭਾਣੈ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਆ ਸਭੁ ਜਨਮੁ ਸਵਾਰਣਹਾਰੁ ॥੨॥
हरि कै भाणै सतिगुरु भेटिआ सभु जनमु सवारणहारु ॥२॥
परमात्मा की रज़ा से सतगुरु से साक्षात्कार होता है और वह जीवन सफल कर देता है॥२॥
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਬਾਣੀ ਸਤਿ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥
वाहु वाहु बाणी सति है गुरमुखि बूझै कोइ ॥
कोई गुरु से ही इस रहस्य को समझता है कि परमात्मा की वाणी सत्य एवं प्रशंसनीय है।
ਵਾਹੁ ਵਾਹੁ ਕਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਾਲਾਹੀਐ ਤਿਸੁ ਜੇਵਡੁ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਇ ॥
वाहु वाहु करि प्रभु सालाहीऐ तिसु जेवडु अवरु न कोइ ॥
वह वाह-वाह करता प्रभु की सराहना करता है, क्योंकि उस जैसा बड़ा अन्य कोई नहीं।
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਕਰਮਿ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਇ ॥੩॥
आपे बखसे मेलि लए करमि परापति होइ ॥३॥
वह स्वयं ही कृपा करके अपने साथ मिला लेता है और उत्तम भाग्य से ही प्राप्त होता है॥३॥
ਸਾਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਮਾਹਰੋ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ਦਿਖਾਇ ॥
साचा साहिबु माहरो सतिगुरि दीआ दिखाइ ॥
वह सच्चा मालिक सर्वाधिकार सम्पन्न है, गुरु ने उसके दर्शन करवाए हैं।
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਵਰਸੈ ਮਨੁ ਸੰਤੋਖੀਐ ਸਚਿ ਰਹੈ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
अम्रितु वरसै मनु संतोखीऐ सचि रहै लिव लाइ ॥
जब नाम अमृत की वर्षा होती है तो मन संतुष्ट हो जाता है और प्रभु में ध्यान लगा रहता है।
ਹਰਿ ਕੈ ਨਾਇ ਸਦਾ ਹਰੀਆਵਲੀ ਫਿਰਿ ਸੁਕੈ ਨਾ ਕੁਮਲਾਇ ॥੪॥
हरि कै नाइ सदा हरीआवली फिरि सुकै ना कुमलाइ ॥४॥
परमात्मा के नाम-स्मरण से मन सदा हरा-भरा रहता है, फिर सूखकर मुरझाता नहीं॥४॥