Hindi Page 196

ਅਉਖਧ ਮੰਤ੍ਰ ਤੰਤ ਸਭਿ ਛਾਰੁ ॥
अउखध मंत्र तंत सभि छारु ॥
प्रभु के अलावा समस्त औषधियां एवं मंत्र-तंत्र व्यर्थ हैं

ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਰਿਦੇ ਮਹਿ ਧਾਰੁ ॥੩॥
करणैहारु रिदे महि धारु ॥३॥
इसलिए सृजनहार प्रभु को अपने हृदय में धारण करो ॥३॥

ਤਜਿ ਸਭਿ ਭਰਮ ਭਜਿਓ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥
तजि सभि भरम भजिओ पारब्रहमु ॥
हे नानक ! सभी भ्रम त्यागकर पारब्रह्म प्रभु का ही भजन करो

ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਅਟਲ ਇਹੁ ਧਰਮੁ ॥੪॥੮੦॥੧੪੯॥
कहु नानक अटल इहु धरमु ॥४॥८०॥१४९॥
चूंकि यही अटल धर्म है ॥४॥८०॥१४९॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਭੇਟੇ ਗੁਰ ਸੋਈ ॥
करि किरपा भेटे गुर सोई ॥
भगवान जिस व्यक्ति पर अपनी कृपा कर देता है, उसे गुरु मिल जाता है।

ਤਿਤੁ ਬਲਿ ਰੋਗੁ ਨ ਬਿਆਪੈ ਕੋਈ ॥੧॥
तितु बलि रोगु न बिआपै कोई ॥१॥
ऐसे व्यक्ति को गुरु के बल के फलस्वरूप कोई रोग नहीं लगता ॥ १॥

ਰਾਮ ਰਮਣ ਤਰਣ ਭੈ ਸਾਗਰ ॥
राम रमण तरण भै सागर ॥
सर्वव्यापक राम की आराधना करने से भयानक संसार सागर पार किया जाता है।

ਸਰਣਿ ਸੂਰ ਫਾਰੇ ਜਮ ਕਾਗਰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरणि सूर फारे जम कागर ॥१॥ रहाउ ॥
शूरवीर गुरु का आश्रय लेने से यमों के लेखे खत्म हो जाते हैं।॥ १॥ रहाउ ॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਮੰਤ੍ਰੁ ਦੀਓ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥
सतिगुरि मंत्रु दीओ हरि नाम ॥
सतिगुरु ने मुझे हरि के नाम का मंत्र प्रदान किया है।

ਇਹ ਆਸਰ ਪੂਰਨ ਭਏ ਕਾਮ ॥੨॥
इह आसर पूरन भए काम ॥२॥
इस आश्रय द्वारा मेरे सभी कार्य सफल हो गए हैं॥ २॥

ਜਪ ਤਪ ਸੰਜਮ ਪੂਰੀ ਵਡਿਆਈ ॥  
जप तप संजम पूरी वडिआई ॥
मुझे ध्यान, तपस्या, संयम एवं पूर्ण प्रशंसा प्राप्त हो गए,”

ਗੁਰ ਕਿਰਪਾਲ ਹਰਿ ਭਏ ਸਹਾਈ ॥੩॥
गुर किरपाल हरि भए सहाई ॥३॥
जब गुरु जी कृपा के घर में आए तो भगवान भी सहायक बन गए ॥ ३॥

ਮਾਨ ਮੋਹ ਖੋਏ ਗੁਰਿ ਭਰਮ ॥
मान मोह खोए गुरि भरम ॥
हे नानक ! देख, गुरु ने जिस व्यक्ति के घमण्ड, मोह एवं भ्रम नाश कर दिए हैं,

ਪੇਖੁ ਨਾਨਕ ਪਸਰੇ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ॥੪॥੮੧॥੧੫੦॥
पेखु नानक पसरे पारब्रहम ॥४॥८१॥१५०
उस व्यक्ति को पारब्रह्म प्रभु के सर्वत्र दर्शन हो गए हैं॥ ४ ॥ ८१ ॥ १५० ॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਬਿਖੈ ਰਾਜ ਤੇ ਅੰਧੁਲਾ ਭਾਰੀ ॥
बिखै राज ते अंधुला भारी ॥
अन्धा मनुष्य अत्याचारी सम्राट से भला है।

ਦੁਖਿ ਲਾਗੈ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਚਿਤਾਰੀ ॥੧॥
दुखि लागै राम नामु चितारी ॥१॥
क्योंकि दुख लगने पर अंधा मनुष्य राम के नाम का भजन करता है। १॥

ਤੇਰੇ ਦਾਸ ਕਉ ਤੁਹੀ ਵਡਿਆਈ ॥
तेरे दास कउ तुही वडिआई ॥
हे प्रभु ! अपने सेवक की तू ही मान-प्रतिष्ठा है।

ਮਾਇਆ ਮਗਨੁ ਨਰਕਿ ਲੈ ਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
माइआ मगनु नरकि लै जाई ॥१॥ रहाउ ॥
माया का नशा प्राणी को नरक में ले जाता है॥ १॥ रहाउ॥

ਰੋਗ ਗਿਰਸਤ ਚਿਤਾਰੇ ਨਾਉ ॥
रोग गिरसत चितारे नाउ ॥
रोग से ग्रस्त हुआ अन्धा मनुष्य नाम का सिमरन करता है।

ਬਿਖੁ ਮਾਤੇ ਕਾ ਠਉਰ ਨ ਠਾਉ ॥੨॥
बिखु माते का ठउर न ठाउ ॥२॥
परन्तु विकारों में मस्त हुए दुराचारी मनुष्य को कोई सुख का स्थान नहीं मिलता॥ २॥

ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
चरन कमल सिउ लागी प्रीति ॥
जो व्यक्ति प्रभु के चरण-कमलों से प्रेम करता है,

ਆਨ ਸੁਖਾ ਨਹੀ ਆਵਹਿ ਚੀਤਿ ॥੩॥
आन सुखा नही आवहि चीति ॥३॥
वह अन्य लौकिक सुखों का ध्यान ही नहीं करता ॥ ३॥

ਸਦਾ ਸਦਾ ਸਿਮਰਉ ਪ੍ਰਭ ਸੁਆਮੀ ॥
सदा सदा सिमरउ प्रभ सुआमी ॥
सदैव ही जगत् के स्वामी प्रभु का भजन करो।

ਮਿਲੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ॥੪॥੮੨॥੧੫੧॥
मिलु नानक हरि अंतरजामी ॥४॥८२॥१५१॥
नानक की प्रार्थना है कि हे अन्तर्यामी प्रभु! मुझे आकर मिलो॥ ४॥ ८२॥ १५१॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਆਠ ਪਹਰ ਸੰਗੀ ਬਟਵਾਰੇ ॥
आठ पहर संगी बटवारे ॥
आठों प्रहर (कामादिक पांचों विकार) लुटेरे मेरे साथी बने हुए थे।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭਿ ਲਏ ਨਿਵਾਰੇ ॥੧॥
करि किरपा प्रभि लए निवारे ॥१॥
अपनी कृपा करके प्रभु ने उनको तितर-बितर (नष्ट) कर दिया है॥ १ ॥

ਐਸਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਰਮਹੁ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
ऐसा हरि रसु रमहु सभु कोइ ॥
प्रत्येक प्राणी ऐसे समर्थ शाली प्रभु के नाम-रस का आस्वादन करे

ਸਰਬ ਕਲਾ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਭੁ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरब कला पूरन प्रभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥
जो ईश्वर सर्वकला सम्पूर्ण है। ॥ १॥ रहाउ ॥

ਮਹਾ ਤਪਤਿ ਸਾਗਰ ਸੰਸਾਰ ॥
महा तपति सागर संसार ॥
कामादिक विकारों की संसार-सागर में बड़ी तेज गर्मी पड़ रही है।

ਪ੍ਰਭ ਖਿਨ ਮਹਿ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਣਹਾਰ॥੨॥
प्रभ खिन महि पारि उतारणहार ॥२॥
लेकिन प्रभु एक क्षण में ही प्राणी को इस जलन से पार कर देने वाला है॥ २ ॥

ਅਨਿਕ ਬੰਧਨ ਤੋਰੇ ਨਹੀ ਜਾਹਿ ॥
अनिक बंधन तोरे नही जाहि ॥
ऐसे अनेक बंधन हैं, जो काटे नहीं जा सकते।

ਸਿਮਰਤ ਨਾਮ ਮੁਕਤਿ ਫਲ ਪਾਹਿ ॥੩॥
सिमरत नाम मुकति फल पाहि ॥३॥
लेकिन भगवान के नाम का सिमरन करने से मनुष्य मोक्ष फल प्राप्त कर लेता है॥ ३॥

ਉਕਤਿ ਸਿਆਨਪ ਇਸ ਤੇ ਕਛੁ ਨਾਹਿ ॥
उकति सिआनप इस ते कछु नाहि ॥
हे नानक ! मनुष्य किसी युक्ति अथवा चतुरता से कुछ नहीं कर सकता।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਗੁਣ ਗਾਹਿ ॥੪॥੮੩॥੧੫੨॥
करि किरपा नानक गुण गाहि ॥४॥८३॥१५२॥
हे प्रभु ! कृपा कर चूंकि वह तेरा ही यश गायन करता रहे ॥४॥८३॥१५२॥

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਥਾਤੀ ਪਾਈ ਹਰਿ ਕੋ ਨਾਮ ॥
थाती पाई हरि को नाम ॥
जिसे हरि के नाम का धन प्राप्त हो जाता है,

ਬਿਚਰੁ ਸੰਸਾਰ ਪੂਰਨ ਸਭਿ ਕਾਮ ॥੧॥
बिचरु संसार पूरन सभि काम ॥१॥
वह निसंकोच होकर संसार में गतिमान होता है और उसके सारे कार्य सफल हो जाते हैं।॥ १॥

ਵਡਭਾਗੀ ਹਰਿ ਕੀਰਤਨੁ ਗਾਈਐ ॥
वडभागी हरि कीरतनु गाईऐ ॥
सौभाग्यवश ही ईश्वर का भजन गायन किया जा सकता है।

ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਤੂੰ ਦੇਹਿ ਤ ਪਾਈਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
पारब्रहम तूं देहि त पाईऐ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे पारब्रह्म प्रभु ! यदि तू हम प्राणियों को गुणस्तुति की देन प्रदान करे तो ही मिल सकती है॥ १॥ रहाउ॥

ਹਰਿ ਕੇ ਚਰਣ ਹਿਰਦੈ ਉਰਿ ਧਾਰਿ ॥
हरि के चरण हिरदै उरि धारि ॥
प्रभु के सुन्दर चरण अपने हृदय में बसाओ।

ਭਵ ਸਾਗਰੁ ਚੜਿ ਉਤਰਹਿ ਪਾਰਿ ॥੨॥
भव सागरु चड़ि उतरहि पारि ॥२॥
प्रभु-चरणों के जहाज पर सवार होने से ही भवसागर से पार हुआ जा सकता है॥ २ ॥

ਸਾਧੂ ਸੰਗੁ ਕਰਹੁ ਸਭੁ ਕੋਇ ॥
साधू संगु करहु सभु कोइ ॥
प्रत्येक प्राणी को संतों की संगति करनी चाहिए,

ਸਦਾ ਕਲਿਆਣ ਫਿਰਿ ਦੂਖੁ ਨ ਹੋਇ ॥੩॥
सदा कलिआण फिरि दूखु न होइ ॥३॥
जिससे सदैव कल्याण मिलता है और पुनः कोई दुःख प्राप्त नहीं होता ॥ ३॥

ਪ੍ਰੇਮ ਭਗਤਿ ਭਜੁ ਗੁਣੀ ਨਿਧਾਨੁ ॥
प्रेम भगति भजु गुणी निधानु ॥
हे नानक ! प्रेमा-भक्ति द्वारा गुणों के भण्डार भगवान का भजन करो,

ਨਾਨਕ ਦਰਗਹ ਪਾਈਐ ਮਾਨੁ ॥੪॥੮੪॥੧੫੩॥
नानक दरगह पाईऐ मानु ॥४॥८४॥१५३॥
इस तरह प्रभु के दरबार में मान-सम्मान प्राप्त होता है ॥४॥८४॥१५३॥                                                                                   

ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥

ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰਨ ਹਰਿ ਮੀਤ ॥
जलि थलि महीअलि पूरन हरि मीत ॥
जल, धरती एवं गगन में मित्र-प्रभु सर्वव्यापक है।

ਭ੍ਰਮ ਬਿਨਸੇ ਗਾਏ ਗੁਣ ਨੀਤ ॥੧॥
भ्रम बिनसे गाए गुण नीत ॥१॥
उस प्रभु का नित्य यशोगान करने से भ्रम निवृत हो जाते हैं। ॥ १ ॥

ਊਠਤ ਸੋਵਤ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਪਹਰੂਆ ॥
ऊठत सोवत हरि संगि पहरूआ ॥
जागते-सोते हर समय प्रभु मनुष्य के साथ रक्षक-रूप में है।

ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਣਿ ਜਮ ਨਹੀ ਡਰੂਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा कै सिमरणि जम नही डरूआ ॥१॥ रहाउ ॥
उस प्रभु का सिमरन करने से मनुष्य मृत्यु के दूत के भय से रहित हो जाता है। १॥ रहाउ॥

ਚਰਣ ਕਮਲ ਪ੍ਰਭ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸੁ ॥
चरण कमल प्रभ रिदै निवासु ॥
यदि प्रभु के सुन्दर चरण हृदय में निवास कर जाए तो

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