ਤੂੰ ਥਾਨ ਥਨੰਤਰਿ ਭਰਪੂਰੁ ਹਹਿ ਕਰਤੇ ਸਭ ਤੇਰੀ ਬਣਤ ਬਣਾਵਣੀ ॥
तूं थान थनंतरि भरपूरु हहि करते सभ तेरी बणत बणावणी ॥
हे ईश्वर ! तू हर जगह पर विद्यमान है, यह सारी दुनिया तेरी ही बनाई हुई है।
ਰੰਗ ਪਰੰਗ ਸਿਸਟਿ ਸਭ ਸਾਜੀ ਬਹੁ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਭਾਂਤਿ ਉਪਾਵਣੀ ॥
रंग परंग सिसटि सभ साजी बहु बहु बिधि भांति उपावणी ॥
तूने अनेक रंगों वाली सृष्टि बनाई है और अनेक प्रकार के जीव उत्पन्न किए हैं।
ਸਭ ਤੇਰੀ ਜੋਤਿ ਜੋਤੀ ਵਿਚਿ ਵਰਤਹਿ ਗੁਰਮਤੀ ਤੁਧੈ ਲਾਵਣੀ ॥
सभ तेरी जोति जोती विचि वरतहि गुरमती तुधै लावणी ॥
सब में तेरी ही ज्योति कार्यशील है और तू जीवों को गुरु की शिक्षानुसार तल्लीन करता है।
ਜਿਨ ਹੋਹਿ ਦਇਆਲੁ ਤਿਨ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਹਿ ਮੁਖਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਸਮਝਾਵਣੀ ॥
जिन होहि दइआलु तिन सतिगुरु मेलहि मुखि गुरमुखि हरि समझावणी ॥
जिस पर दयालु होता है, उसे सतगुरु से मिला देता है और गुरु द्वारा परम-सत्य का भेद समझा देता है।
ਸਭਿ ਬੋਲਹੁ ਰਾਮ ਰਮੋ ਸ੍ਰੀ ਰਾਮ ਰਮੋ ਜਿਤੁ ਦਾਲਦੁ ਦੁਖ ਭੁਖ ਸਭ ਲਹਿ ਜਾਵਣੀ ॥੩॥
सभि बोलहु राम रमो स्री राम रमो जितु दालदु दुख भुख सभ लहि जावणी ॥३॥
सभी राम का भजन करो, इससे दुख-भूख एवं दारिद्रय सब दूर हो जाता है।॥ ३॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮ ਰਸੁ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
हरि हरि अम्रितु नाम रसु हरि अम्रितु हरि उर धारि ॥
परमात्मा का नाम अमृतमय एवं मीठा रस है, हरिनामामृत को हृदय में धारण करो।
ਵਿਚਿ ਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਵਰਤਦਾ ਬੁਝਹੁ ਸਬਦ ਵੀਚਾਰਿ ॥
विचि संगति हरि प्रभु वरतदा बुझहु सबद वीचारि ॥
शब्द के चिंतन द्वारा इस तथ्य की सूझ होती है कि संगत में प्रभु कार्यशील है।
ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਬਿਖੁ ਹਉਮੈ ਕਢੀ ਮਾਰਿ ॥
मनि हरि हरि नामु धिआइआ बिखु हउमै कढी मारि ॥
यदि मन में परमात्मा के नाम का ध्यान किया जाए तो अहम् का जहर निकल जाता है।
ਜਿਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਤਿਨ ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਸਭੁ ਹਾਰਿ ॥
जिन हरि हरि नामु न चेतिओ तिन जूऐ जनमु सभु हारि ॥
जो हरिनाम का चिंतन नहीं करता, वह पूरा जीवन जुए में हार जाता है।
ਗੁਰਿ ਤੁਠੈ ਹਰਿ ਚੇਤਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
गुरि तुठै हरि चेताइआ हरि नामा हरि उर धारि ॥
गुरु की प्रसन्नता से परमात्मा का चिंतन होता है और हरिनाम हृदय में अवस्थित हो जाता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਤੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਤਿਤੁ ਸਚੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੧॥
जन नानक ते मुख उजले तितु सचै दरबारि ॥१॥
नानक फुरमाते हैं कि वही मुख सच्चे दरबार में उज्ज्वल होते हैं॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਉਤਮੁ ਨਾਮੁ ਹੈ ਵਿਚਿ ਕਲਿਜੁਗ ਕਰਣੀ ਸਾਰੁ ॥
हरि कीरति उतमु नामु है विचि कलिजुग करणी सारु ॥
कलियुग में ईश्वर का कीर्तिगान ही उत्तम कर्म है।
ਮਤਿ ਗੁਰਮਤਿ ਕੀਰਤਿ ਪਾਈਐ ਹਰਿ ਨਾਮਾ ਹਰਿ ਉਰਿ ਹਾਰੁ ॥
मति गुरमति कीरति पाईऐ हरि नामा हरि उरि हारु ॥
गुरु के उपदेशानुसार हरिनाम का कीर्तिगान प्राप्त होता है और प्रभु हृदय में अवस्थित होता है।
ਵਡਭਾਗੀ ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਸਉਪਿਆ ਹਰਿ ਭੰਡਾਰੁ ॥
वडभागी जिन हरि धिआइआ तिन सउपिआ हरि भंडारु ॥
जिसने परमात्मा का ध्यान किया है, वही भाग्यशाली है, उसे हरि-भक्ति का भण्डार सौंपा गया है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜਿ ਕਰਮ ਕਮਾਵਣੇ ਨਿਤ ਹਉਮੈ ਹੋਇ ਖੁਆਰੁ ॥
बिनु नावै जि करम कमावणे नित हउमै होइ खुआरु ॥
नाम-संकीर्तन बिना जो कर्म किया जाता है, इससे नित्य अहम् में ख्वार होना पड़ता है।
ਜਲਿ ਹਸਤੀ ਮਲਿ ਨਾਵਾਲੀਐ ਸਿਰਿ ਭੀ ਫਿਰਿ ਪਾਵੈ ਛਾਰੁ ॥
जलि हसती मलि नावालीऐ सिरि भी फिरि पावै छारु ॥
यह इस तरह है जैसे हाथी को जल में नहलाया जाता है तो फिर भी वह सिर पर धूल ही डालता है।
ਹਰਿ ਮੇਲਹੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਦਇਆ ਕਰਿ ਮਨਿ ਵਸੈ ਏਕੰਕਾਰੁ ॥
हरि मेलहु सतिगुरु दइआ करि मनि वसै एकंकारु ॥
हे ईश्वर ! दया करके सतगुरु से मिला दो, ताकि मन में ऑकार(ओंकार) बस जाए।
ਜਿਨ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੁਣਿ ਹਰਿ ਮੰਨਿਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਜੈਕਾਰੁ ॥੨॥
जिन गुरमुखि सुणि हरि मंनिआ जन नानक तिन जैकारु ॥२॥
नानक फुरमाते हैं कि जिसने गुरु से परमात्मा का नाम-संकीर्तन सुना है, मनन किया है, उसी की जय जयकार हुई है॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਵਖਰੁ ਹੈ ਊਤਮੁ ਹਰਿ ਨਾਇਕੁ ਪੁਰਖੁ ਹਮਾਰਾ ॥
राम नामु वखरु है ऊतमु हरि नाइकु पुरखु हमारा ॥
राम का नाम ही उत्तम वस्तु है और समूची सृष्टि का नायक ईश्वर हमारा मालिक है।
ਹਰਿ ਖੇਲੁ ਕੀਆ ਹਰਿ ਆਪੇ ਵਰਤੈ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਕੀਆ ਵਣਜਾਰਾ ॥
हरि खेलु कीआ हरि आपे वरतै सभु जगतु कीआ वणजारा ॥
यह जगत-तमाशा ईश्वर ने रचा है, वह स्वयं ही कार्यशील है और समूचे जगत को उसने व्यापारी बनाया हुआ है।
ਸਭ ਜੋਤਿ ਤੇਰੀ ਜੋਤੀ ਵਿਚਿ ਕਰਤੇ ਸਭੁ ਸਚੁ ਤੇਰਾ ਪਾਸਾਰਾ ॥
सभ जोति तेरी जोती विचि करते सभु सचु तेरा पासारा ॥
हे कर्ता पुरुष ! सब में तेरी ज्योति विद्यमान है और सब ओर तेरा ही सत्य रूप में प्रसार है।
ਸਭਿ ਧਿਆਵਹਿ ਤੁਧੁ ਸਫਲ ਸੇ ਗਾਵਹਿ ਗੁਰਮਤੀ ਹਰਿ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
सभि धिआवहि तुधु सफल से गावहि गुरमती हरि निरंकारा ॥
हे निराकार ! सभी तेरा ध्यान करते हैं, गुरु-मतानुसार तेरा गुणानुवाद कर अपना जीवन सफल करते हैं।
ਸਭਿ ਚਵਹੁ ਮੁਖਹੁ ਜਗੰਨਾਥੁ ਜਗੰਨਾਥੁ ਜਗਜੀਵਨੋ ਜਿਤੁ ਭਵਜਲ ਪਾਰਿ ਉਤਾਰਾ ॥੪॥
सभि चवहु मुखहु जगंनाथु जगंनाथु जगजीवनो जितु भवजल पारि उतारा ॥४॥
हे भक्तजनो ! सभी मुख से परमात्मा का भजन करो, वह जगत का मालिक,-जगत का जीवन है, वही संसार-सागर से पार उतारने वाला है॥ ४॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੪ ॥
सलोक मः ४ ॥
श्लोक महला ४॥
ਹਮਰੀ ਜਿਹਬਾ ਏਕ ਪ੍ਰਭ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਅਗਮ ਅਥਾਹ ॥
हमरी जिहबा एक प्रभ हरि के गुण अगम अथाह ॥
हे प्रभु! हमारी जिव्हा केवल एक है, लेकिन तेरे गुण अगम्य एवं अथाह हैं।
ਹਮ ਕਿਉ ਕਰਿ ਜਪਹ ਇਆਣਿਆ ਹਰਿ ਤੁਮ ਵਡ ਅਗਮ ਅਗਾਹ ॥
हम किउ करि जपह इआणिआ हरि तुम वड अगम अगाह ॥
हम नादान लोग भला क्योंकर तेरा जाप कर सकते हैं, तुम बहुत बड़े हो, अगम्य एवं असीम हो।
ਹਰਿ ਦੇਹੁ ਪ੍ਰਭੂ ਮਤਿ ਊਤਮਾ ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਕੈ ਪਗਿ ਪਾਹ ॥
हरि देहु प्रभू मति ऊतमा गुर सतिगुर कै पगि पाह ॥
हे प्रभु! हमें उत्तम बुद्धि प्रदान करो और गुरु के चरणों में लगा दो।
ਸਤਸੰਗਤਿ ਹਰਿ ਮੇਲਿ ਪ੍ਰਭ ਹਮ ਪਾਪੀ ਸੰਗਿ ਤਰਾਹ ॥
सतसंगति हरि मेलि प्रभ हम पापी संगि तराह ॥
हमें सत्संगति में मिला दो, हम पापियों को संगत द्वारा पार उतार दो।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕਉ ਹਰਿ ਬਖਸਿ ਲੈਹੁ ਹਰਿ ਤੁਠੈ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਹ ॥
जन नानक कउ हरि बखसि लैहु हरि तुठै मेलि मिलाह ॥
हे प्रभु! दास नानक को क्षमा कर दो, तेरी खुशी में मिलाप होता है।
ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਸੁਣਿ ਬੇਨਤੀ ਹਮ ਪਾਪੀ ਕਿਰਮ ਤਰਾਹ ॥੧॥
हरि किरपा करि सुणि बेनती हम पापी किरम तराह ॥१॥
हे हरि ! हमारी विनती सुनो, कृपा करके हम पापी कीटों को पार उतार दो॥ १॥
ਮਃ ੪ ॥
मः ४ ॥
महला ४॥
ਹਰਿ ਕਰਹੁ ਕ੍ਰਿਪਾ ਜਗਜੀਵਨਾ ਗੁਰੁ ਸਤਿਗੁਰੁ ਮੇਲਿ ਦਇਆਲੁ ॥
हरि करहु क्रिपा जगजीवना गुरु सतिगुरु मेलि दइआलु ॥
हे श्री हरि ! दया करके गुरु से मिला दो।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਹਰਿ ਹਮ ਭਾਈਆ ਹਰਿ ਹੋਆ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾਲੁ ॥
गुर सेवा हरि हम भाईआ हरि होआ हरि किरपालु ॥
गुरु की सेवा ही हमें अच्छी लगती है, प्रभु कृपालु हो गया है,”