ਮੂਲ ਬਿਨਾ ਸਾਖਾ ਕਤ ਆਹੈ ॥੧॥
मूल बिना साखा कत आहै ॥१॥
जड़ के बिना भला शाखा कैसे हो सकती है॥१॥
ਗੁਰੁ ਗੋਵਿੰਦੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਧਿਆਇ ॥
गुरु गोविंदु मेरे मन धिआइ ॥
हे मेरे मन ! गुरु-परमेश्वर का मनन करो,
ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮੈਲੁ ਉਤਾਰੈ ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ਮਿਲਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जनम जनम की मैलु उतारै बंधन काटि हरि संगि मिलाइ ॥१॥ रहाउ ॥
वह जन्म-जन्मांतर की मैल उतार कर और सब यन्घनों को काटकर ईश्वर के संग मिला देता है।१॥ रहाउ॥
ਤੀਰਥਿ ਨਾਇ ਕਹਾ ਸੁਚਿ ਸੈਲੁ ॥
तीरथि नाइ कहा सुचि सैलु ॥
तीर्थों पर स्नान करने से पत्थर-दिल कैसे शुद्ध हो सकता है,
ਮਨ ਕਉ ਵਿਆਪੈ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ॥
मन कउ विआपै हउमै मैलु ॥
मन को तो अहम् की मैल लगी रहती है।
ਕੋਟਿ ਕਰਮ ਬੰਧਨ ਕਾ ਮੂਲੁ ॥
कोटि करम बंधन का मूलु ॥
करोड़ों कर्मकाण्ड भी मात्र बन्धनों का कारण हैं,
ਹਰਿ ਕੇ ਭਜਨ ਬਿਨੁ ਬਿਰਥਾ ਪੂਲੁ ॥੨॥
हरि के भजन बिनु बिरथा पूलु ॥२॥
ईश्वर के भजन बिना कमों का गठ्ठर व्यर्थ है॥२॥
ਬਿਨੁ ਖਾਏ ਬੂਝੈ ਨਹੀ ਭੂਖ ॥
बिनु खाए बूझै नही भूख ॥
कुछ भोजन इत्यादि खाए बिना भूख दूर नहीं होती,
ਰੋਗੁ ਜਾਇ ਤਾਂ ਉਤਰਹਿ ਦੂਖ ॥
रोगु जाइ तां उतरहि दूख ॥
जब कोई रोग दूर हो जाता है तो ही दुःख समाप्त होता है।
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਲੋਭ ਮੋਹਿ ਬਿਆਪਿਆ ॥
काम क्रोध लोभ मोहि बिआपिआ ॥
जीव केवल काम, क्रोध, लोभ, मोह में लिप्त रहता है,
ਜਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨਾ ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਨਹੀ ਜਾਪਿਆ ॥੩॥
जिनि प्रभि कीना सो प्रभु नही जापिआ ॥३॥
जिस प्रभु ने बनाया है, उसे वह जानता ही नहीं॥३॥
ਧਨੁ ਧਨੁ ਸਾਧ ਧੰਨੁ ਹਰਿ ਨਾਉ ॥
धनु धनु साध धंनु हरि नाउ ॥
साधु पुरुष एवं हरि-नाम धन्य है।
ਆਠ ਪਹਰ ਕੀਰਤਨੁ ਗੁਣ ਗਾਉ ॥
आठ पहर कीरतनु गुण गाउ ॥
आठ प्रहर परमात्मा का संकीर्तन एवं गुणगान करो।
ਧਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਧਨੁ ਕਰਣੈਹਾਰ ॥
धनु हरि भगति धनु करणैहार ॥
परमात्मा की भक्ति धन्य है और भक्ति करनेवाला भी धन्य है।
ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਪੁਰਖ ਅਪਾਰ ॥੪॥੩੨॥੪੫॥
सरणि नानक प्रभ पुरख अपार ॥४॥३२॥४५॥
नानक तो अपार प्रभु की शरण में है॥४॥३२॥ ४५॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਗੁਰ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਹੋਏ ਭਉ ਗਏ ॥
गुर सुप्रसंन होए भउ गए ॥
अगर गुरु प्रसन्न हो जाए तो सब भय दूर हो जाते हैं और
ਨਾਮ ਨਿਰੰਜਨ ਮਨ ਮਹਿ ਲਏ ॥
नाम निरंजन मन महि लए ॥
मन में पावन हरिनाम स्थित हो जाता है।
ਦੀਨ ਦਇਆਲ ਸਦਾ ਕਿਰਪਾਲ ॥
दीन दइआल सदा किरपाल ॥
दीनदयाल प्रभु सदा कृपा करता है,
ਬਿਨਸਿ ਗਏ ਸਗਲੇ ਜੰਜਾਲ ॥੧॥
बिनसि गए सगले जंजाल ॥१॥
जिससे सारे जंजाल नष्ट हो जाते हैं।॥१॥
ਸੂਖ ਸਹਜ ਆਨੰਦ ਘਨੇ ॥
सूख सहज आनंद घने ॥
स्वाभाविक सुख एवं परमानंद बना रहता है
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਿਟੇ ਭੈ ਭਰਮਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਰਸਨ ਭਨੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
साधसंगि मिटे भै भरमा अम्रितु हरि हरि रसन भने ॥१॥ रहाउ ॥
साधु पुरुषों के संग जिव्हा से अमृतमय हरि नाम जपने से सब भय-भ्रम मिट जाते हैं ।॥१॥ रहाउ॥
ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਗੋ ਹੇਤੁ ॥
चरन कमल सिउ लागो हेतु ॥
अगर प्रभु-चरणों से प्रेम लग जाए तो
ਖਿਨ ਮਹਿ ਬਿਨਸਿਓ ਮਹਾ ਪਰੇਤੁ ॥
खिन महि बिनसिओ महा परेतु ॥
पल में अभिमान रूपी महाप्रेत नष्ट हो जाता है।
ਆਠ ਪਹਰ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਜਾਪਿ ॥
आठ पहर हरि हरि जपु जापि ॥
आठ प्रहर ईश्वर का जाप करो,
ਰਾਖਨਹਾਰ ਗੋਵਿਦ ਗੁਰ ਆਪਿ ॥੨॥
राखनहार गोविद गुर आपि ॥२॥
वह गुरु-परमेश्वर स्वयं रक्षा करने वाला है॥२॥
ਅਪਨੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਸਦਾ ਪ੍ਰਤਿਪਾਰੈ ॥
अपने सेवक कउ सदा प्रतिपारै ॥
वह अपने सेवकों का सदा पालन-पोषण करता है और
ਭਗਤ ਜਨਾ ਕੇ ਸਾਸ ਨਿਹਾਰੈ ॥
भगत जना के सास निहारै ॥
भक्तजनों का हर सॉस से ख्याल रखता है।
ਮਾਨਸ ਕੀ ਕਹੁ ਕੇਤਕ ਬਾਤ ॥
मानस की कहु केतक बात ॥
मनुष्य की क्या हैसियत है,
ਜਮ ਤੇ ਰਾਖੈ ਦੇ ਕਰਿ ਹਾਥ ॥੩॥
जम ते राखै दे करि हाथ ॥३॥
वह तो हाथ देकर यम से रक्षा करता है॥३॥
ਨਿਰਮਲ ਸੋਭਾ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਿ ॥
निरमल सोभा निरमल रीति ॥
तब शोभा और आचरण निर्मल हो जाता है
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਆਇਆ ਮਨਿ ਚੀਤਿ ॥
पारब्रहमु आइआ मनि चीति ॥
जब मन में परब्रहा याद आता है ।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਗੁਰਿ ਦੀਨੋ ਦਾਨੁ ॥
करि किरपा गुरि दीनो दानु ॥
हे नानक ! गुरु ने कृपा कर दान दिया है और
ਨਾਨਕ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਨਿਧਾਨੁ ॥੪॥੩੩॥੪੬॥
नानक पाइआ नामु निधानु ॥४॥३३॥४६॥
नाम रूपी सुखों का भण्डार पा लिया है॥४॥ ३३॥ ४६॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਕਰਣ ਕਾਰਣ ਸਮਰਥੁ ਗੁਰੁ ਮੇਰਾ ॥
करण कारण समरथु गुरु मेरा ॥
मेरा गुरु सब कुछ करने-कराने में समर्थ है,
ਜੀਅ ਪ੍ਰਾਣ ਸੁਖਦਾਤਾ ਨੇਰਾ ॥
जीअ प्राण सुखदाता नेरा ॥
आत्मा-प्राणों को सुख देने वाला है,
ਭੈ ਭੰਜਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਰਾਇ ॥
भै भंजन अबिनासी राइ ॥
वह सब भय नष्ट करने वाला एवं अविनाशी है।
ਦਰਸਨਿ ਦੇਖਿਐ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਜਾਇ ॥੧॥
दरसनि देखिऐ सभु दुखु जाइ ॥१॥
उसके दर्शन करने से सब दुःख दूर हो जाते हैं।॥१॥
ਜਤ ਕਤ ਪੇਖਉ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾ ॥
जत कत पेखउ तेरी सरणा ॥
जहाँ कहीं तेरी शरण देखता हूँ,
ਬਲਿ ਬਲਿ ਜਾਈ ਸਤਿਗੁਰ ਚਰਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
बलि बलि जाई सतिगुर चरणा ॥१॥ रहाउ ॥
मैं सतगुरु के चरणों पर कुर्बान जाता हूँ॥१॥ रहाउ॥
ਪੂਰਨ ਕਾਮ ਮਿਲੇ ਗੁਰਦੇਵ ॥
पूरन काम मिले गुरदेव ॥
गुरुदेव से साक्षात्कार कर सब कार्य पूर्ण हो गए हैं,
ਸਭਿ ਫਲਦਾਤਾ ਨਿਰਮਲ ਸੇਵ ॥
सभि फलदाता निरमल सेव ॥
वह सब फल प्रदान करने वाला है और सेवा भी पावन है।
ਕਰੁ ਗਹਿ ਲੀਨੇ ਅਪੁਨੇ ਦਾਸ ॥
करु गहि लीने अपुने दास ॥
हाथ देकर उसने अपने दास को बचा लिया है और
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਦੀਓ ਨਿਵਾਸ ॥੨॥
राम नामु रिद दीओ निवास ॥२॥
राम नाम हृदय में बसा दिया है।॥२॥
ਸਦਾ ਅਨੰਦੁ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਸੋਗੁ ॥
सदा अनंदु नाही किछु सोगु ॥
भक्तों के मन में सदा आनंद बना रहता है और कोई गम नहीं होता।
ਦੂਖੁ ਦਰਦੁ ਨਹ ਬਿਆਪੈ ਰੋਗੁ ॥
दूखु दरदु नह बिआपै रोगु ॥
दुःख-दर्द एवं रोग भी उन्हें नहीं छूता।
ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤੇਰਾ ਤੂ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥
सभु किछु तेरा तू करणैहारु ॥
सब कुछ तेरा है और तू ही करने वाला है
ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਗੁਰ ਅਗਮ ਅਪਾਰ ॥੩॥
पारब्रहम गुर अगम अपार ॥३॥
परब्रह्म गुरु अगम्य हे॥३॥
ਨਿਰਮਲ ਸੋਭਾ ਅਚਰਜ ਬਾਣੀ ॥ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪੂਰਨ ਮਨਿ ਭਾਣੀ ॥
निरमल सोभा अचरज बाणी ॥ पारब्रहम पूरन मनि भाणी ॥
तेरी शोभा अति निर्मल है,और वाणी आश्चर्यमय है। पूर्ण परब्रह्म के मन को भी अच्छी लगती है।
ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਰਵਿਆ ਸੋਇ ॥
जलि थलि महीअलि रविआ सोइ ॥
जमीन, आसमान एवं जल में वही व्याप्त है,
ਨਾਨਕ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਹੋਇ ॥੪॥੩੪॥੪੭॥
नानक सभु किछु प्रभ ते होइ ॥४॥३४॥४७॥
हे नानक ! संसार में सब कुछ प्रभु ही कर रहा है॥ ४॥ ३४॥ ४७॥
ਭੈਰਉ ਮਹਲਾ ੫ ॥
भैरउ महला ५ ॥
भैरउ महला ५॥
ਮਨੁ ਤਨੁ ਰਾਤਾ ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਚਰਣੇ ॥
मनु तनु राता राम रंगि चरणे ॥
यह मन-तन प्रभु-चरणों में ही लीन है,