Hindi Page 128

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥

ਮਨਮੁਖ ਪੜਹਿ ਪੰਡਿਤ ਕਹਾਵਹਿ ॥
मनमुख पड़हि पंडित कहावहि ॥
स्वेच्छाचारी जीव द्वैतभाव में ग्रंथ पढ़ते रहते हैं और स्वयं को विद्वान कहलवाते हैं।

ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ॥
दूजै भाइ महा दुखु पावहि ॥
वे माया के मोह में फँसकर बहुत दुखी होते हैं।

ਬਿਖਿਆ ਮਾਤੇ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ਨਾਹੀ ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੂਨੀ ਆਵਣਿਆ ॥੧॥
बिखिआ माते किछु सूझै नाही फिरि फिरि जूनी आवणिआ ॥१॥
वह विष रूपी माया के मोह में मग्न रहते हैं और प्रभु बारे उन्हें कोई ज्ञान नहीं मिलता, जिसके कारण वह पुनः पुनः योनियों के चक्र में पड़े रहते हैं।॥१॥

ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी हउमै मारि मिलावणिआ ॥
मैं कुर्बान हूँ, मेरा जीवन उन पर कुर्बान है जो अपने अहंकार को नष्ट करके ईश्वर में विलीन हो जाते हैं।

ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਤੇ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਹਰਿ ਰਸੁ ਸਹਜਿ ਪੀਆਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर सेवा ते हरि मनि वसिआ हरि रसु सहजि पीआवणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु की सेवा से ईश्वर मनुष्य के हृदय में आ बसता है और वह सहज ही हरि-रस पान करता रहता है॥१॥ रहाउ॥

ਵੇਦੁ ਪੜਹਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਨਹੀ ਆਇਆ ॥
वेदु पड़हि हरि रसु नही आइआ ॥
कुछ व्यक्ति वेद पढ़ते हैं परन्तु उन्हें हरि-रस का आनंद नहीं मिलता।

ਵਾਦੁ ਵਖਾਣਹਿ ਮੋਹੇ ਮਾਇਆ ॥
वादु वखाणहि मोहे माइआ ॥
मोह-माया के कारण बुद्धिहीन हुए वह वाद-विवाद करते रहते हैं।

ਅਗਿਆਨਮਤੀ ਸਦਾ ਅੰਧਿਆਰਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੂਝਿ ਹਰਿ ਗਾਵਣਿਆ ॥੨॥
अगिआनमती सदा अंधिआरा गुरमुखि बूझि हरि गावणिआ ॥२॥
अज्ञान बुद्धि वाले हमेशा अज्ञानता के अंधकार में हैं। गुरमुख ईश्वर को जान लेते हैं और हरि का यशोगान करते रहते हैं।॥२ ॥

ਅਕਥੋ ਕਥੀਐ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਵੈ ॥ 
अकथो कथीऐ सबदि सुहावै ॥
जो व्यक्ति अकथनीय प्रभु की महिमा का कथन करता रहता है, वह नाम द्वारा सुन्दर बन जाता है।

ਗੁਰਮਤੀ ਮਨਿ ਸਚੋ ਭਾਵੈ ॥
गुरमती मनि सचो भावै ॥ 
गुरु की मति द्वारा सत्य-प्रभु उसके मन को प्रिय लगता है। 

ਸਚੋ ਸਚੁ ਰਵਹਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਇਹੁ ਮਨੁ ਸਚਿ ਰੰਗਾਵਣਿਆ ॥੩॥
सचो सचु रवहि दिनु राती इहु मनु सचि रंगावणिआ ॥३॥
वह दिन-रात सत्य-परमेश्वर का ही सिमरन करता रहता है। उसका यह मन सत्य-प्रभु के प्रेम में मग्न रहता है॥३॥

ਜੋ ਸਚਿ ਰਤੇ ਤਿਨ ਸਚੋ ਭਾਵੈ ॥
जो सचि रते तिन सचो भावै ॥
जो सत्य-प्रभु के प्रेम में मग्न रहते हैं, उन्हें सत्य-प्रभु ही प्रिय लगता है।

ਆਪੇ ਦੇਇ ਨ ਪਛੋਤਾਵੈ ॥
आपे देइ न पछोतावै ॥
प्रभु उन्हें अपने प्रेम की देन स्वयं ही देता है और यह देन देकर वह अफसोस नहीं करता।

ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਸਦਾ ਸਚੁ ਜਾਤਾ ਮਿਲਿ ਸਚੇ ਸੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੪॥
गुर कै सबदि सदा सचु जाता मिलि सचे सुखु पावणिआ ॥४॥
गुरु के शब्द से सत्य प्रभु सदैव ही जाना जाता है। सत्यस्वरूप प्रभु को मिलने से बड़ा आनंद प्राप्त होता है ॥४॥

ਕੂੜੁ ਕੁਸਤੁ ਤਿਨਾ ਮੈਲੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
कूड़ु कुसतु तिना मैलु न लागै ॥
झूठ एवं कपट की मैल उनको नहीं लगती क्योंकि

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ॥
गुर परसादी अनदिनु जागै ॥
वे रात-दिन गुरु की कृपा से भजन में जागते हैं।

ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਘਟ ਭੀਤਰਿ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਵਣਿਆ ॥੫॥
निरमल नामु वसै घट भीतरि जोती जोति मिलावणिआ ॥५॥
निर्मल नाम उनके हृदय में निवास करता है और उनकी ज्योति प्रभु की ज्योति में विलीन हो जाती है।॥५॥

ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਪੜਹਿ ਹਰਿ ਤਤੁ ਨ ਜਾਣਹਿ ॥
त्रै गुण पड़हि हरि ततु न जाणहि ॥
मनमुख ऐसी पुस्तकें पढ़ते हैं, जिनका संबंध त्रिगुणात्मक माया से होता है। वह परम तत्व ईश्वर को नहीं समझ सकते।

ਮੂਲਹੁ ਭੁਲੇ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਨ ਪਛਾਣਹਿ ॥
मूलहु भुले गुर सबदु न पछाणहि ॥
ऐसे व्यक्ति जगत् के मूल प्रभु को भूले हुए हैं परन्तु गुरु की वाणी का बोध नहीं करते।

ਮੋਹ ਬਿਆਪੇ ਕਿਛੁ ਸੂਝੈ ਨਾਹੀ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਪਾਵਣਿਆ ॥੬॥
मोह बिआपे किछु सूझै नाही गुर सबदी हरि पावणिआ ॥६॥
वे मोह-माया में मग्न हैं और उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता कि भगवान गुरु की वाणी द्वारा ही मिलता है।॥६॥

ਵੇਦੁ ਪੁਕਾਰੈ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਮਾਇਆ ॥
वेदु पुकारै त्रिबिधि माइआ ॥
वेद पुकार-पुकार कर कह रहे हैं कि माया त्रिगुणात्मक है

ਮਨਮੁਖ ਨ ਬੂਝਹਿ ਦੂਜੈ ਭਾਇਆ ॥
मनमुख न बूझहि दूजै भाइआ ॥
परन्तु स्वेच्छाचारी जीवों को कोई सूझ ही नहीं होती, उन्हें तो माया का मोह ही प्यारा लगता है।

ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਪੜਹਿ ਹਰਿ ਏਕੁ ਨ ਜਾਣਹਿ ਬਿਨੁ ਬੂਝੇ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੭॥
त्रै गुण पड़हि हरि एकु न जाणहि बिनु बूझे दुखु पावणिआ ॥७॥
वह त्रिगुणात्मक माया से संबंधित ग्रंथ पढ़ते रहते हैं परन्तु उस एक ईश्वर को नहीं जान सकते। वह एक ईश्वर को समझे बिना बहुत दु:खी होते हैं॥७ ॥

ਜਾ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਾ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥
जा तिसु भावै ता आपि मिलाए ॥
जब भगवान को उपयुक्त लगता है तो ही वह जीव को अपने साथ मिला लेता है।

ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸਹਸਾ ਦੂਖੁ ਚੁਕਾਏ ॥
गुर सबदी सहसा दूखु चुकाए ॥
भगवान गुरु-शब्द द्वारा जीव का भय एवं दुःख दूर कर देता है।

ਨਾਨਕ ਨਾਵੈ ਕੀ ਸਚੀ ਵਡਿਆਈ ਨਾਮੋ ਮੰਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੮॥੩੦॥੩੧॥
नानक नावै की सची वडिआई नामो मंनि सुखु पावणिआ ॥८॥३०॥३१॥
हे नानक ! भगवान जिसे अपने नाम की महानता प्रदान कर देता है, वह अपने मन में नाम को बसाकर सुख प्राप्त करता है॥८॥३०॥३१॥

ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥
माझ महला ३ ॥
माझ महला ३ ॥

ਨਿਰਗੁਣੁ ਸਰਗੁਣੁ ਆਪੇ ਸੋਈ ॥
निरगुणु सरगुणु आपे सोई ॥
ईश्वर स्वयं ही निर्गुण और स्वयं ही सगुण है।

ਤਤੁ ਪਛਾਣੈ ਸੋ ਪੰਡਿਤੁ ਹੋਈ ॥
ततु पछाणै सो पंडितु होई ॥
जो इस ज्ञान को समझ लेता है वही पण्डित बन जाता है।

ਆਪਿ ਤਰੈ ਸਗਲੇ ਕੁਲ ਤਾਰੈ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਵਣਿਆ ॥੧॥
आपि तरै सगले कुल तारै हरि नामु मंनि वसावणिआ ॥१॥
जो मनुष्य हरिनाम अपने हृदय में बसा लेता है, वह स्वयं भवसागर से पार हो जाता है और अपने समूचे वंश को भी भवसागर से पार करवा देता है॥१॥

ਹਉ ਵਾਰੀ ਜੀਉ ਵਾਰੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਖਿ ਸਾਦੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥
हउ वारी जीउ वारी हरि रसु चखि सादु पावणिआ ॥
मैं कुर्बान हूँ, मेरा जीवन भी उन पर कुर्बान है जो हरि रस का पान करते हैं और इसके स्वाद को प्राप्त करते हैं। 

ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਾਖਹਿ ਸੇ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਨਿਰਮਲ ਨਾਮੁ ਧਿਆਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि रसु चाखहि से जन निरमल निरमल नामु धिआवणिआ ॥१॥ रहाउ ॥
जो हरि रस का पान करते हैं, वह पवित्र पुरुष हैं और वह निर्मल नाम का सिमरन करते हैं।॥१॥ रहाउ॥

ਸੋ ਨਿਹਕਰਮੀ ਜੋ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੇ ॥
सो निहकरमी जो सबदु बीचारे ॥
जो व्यक्ति शब्द का चिन्तन करता है, वहीं कर्मयोगी है।

ਅੰਤਰਿ ਤਤੁ ਗਿਆਨਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ॥
अंतरि ततु गिआनि हउमै मारे ॥
उसके हृदय में परम तत्व प्रभु का ज्ञान प्रगट हो जाता है और वह अपने अहंकार को नष्ट कर देता है।

ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਏ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਮੇਟਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੨॥
नामु पदारथु नउ निधि पाए त्रै गुण मेटि समावणिआ ॥२॥
वह नाम-पदार्थ से नवनिधि पा लेता है और माया के त्रिगुणों को मिटाकर भगवान में लीन हो जाता है ॥२॥

ਹਉਮੈ ਕਰੈ ਨਿਹਕਰਮੀ ਨ ਹੋਵੈ ॥
हउमै करै निहकरमी न होवै ॥
जो व्यक्ति अहंकार करता है, वह कर्मों के बंधनों से मुक्त नहीं होता।

ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਉਮੈ ਖੋਵੈ ॥
गुर परसादी हउमै खोवै ॥
लेकिन गुरु की कृपा से मनुष्य अपना अहंकार नष्ट कर देता है।

ਅੰਤਰਿ ਬਿਬੇਕੁ ਸਦਾ ਆਪੁ ਵੀਚਾਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਗੁਣ ਗਾਵਣਿਆ ॥੩॥
अंतरि बिबेकु सदा आपु वीचारे गुर सबदी गुण गावणिआ ॥३॥
उसके अन्तर्मन में विवेक उत्पन्न हो जाता है, वह सदा अपने स्वरूप का चिंतन करता है और गुरु के शब्द से हरि-प्रभु का यशोगान करता है॥३ ॥

ਹਰਿ ਸਰੁ ਸਾਗਰੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸੋਈ ॥
हरि सरु सागरु निरमलु सोई ॥
निर्मल भगवान स्वयं ही सरोवर है और स्वयं ही सागर है।

ਸੰਤ ਚੁਗਹਿ ਨਿਤ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਈ ॥
हरि सरु सागरु निरमलु सोई ॥
निर्मल भगवान स्वयं ही सरोवर है और स्वयं ही सागर है।

ਇਸਨਾਨੁ ਕਰਹਿ ਸਦਾ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਚੁਕਾਵਣਿਆ ॥੪॥
इसनानु करहि सदा दिनु राती हउमै मैलु चुकावणिआ ॥४
वह भगवान रूपी सरोवर में दिन-रात स्नान करते रहते हैं और अपने अहंकार की मैल स्वच्छ करते रहते हैं ॥४॥

ਨਿਰਮਲ ਹੰਸਾ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਆਰਿ ॥
निरमल हंसा प्रेम पिआरि ॥
जीव रूपी हंस प्रेम एवं प्यार से निर्मल हो जाते हैं और

ਹਰਿ ਸਰਿ ਵਸੈ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ॥
हरि सरि वसै हउमै मारि ॥
अपने अहंकार को मार कर भगवान रूपी सरोवर में निवास करते हैं।

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