ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਗਨਿ ਮਿਨਿ ਦੇਖਹੁ ਮਨੈ ਮਾਹਿ ਸਰਪਰ ਚਲਨੋ ਲੋਗ ॥
गनि मिनि देखहु मनै माहि सरपर चलनो लोग ॥
“(हे जिज्ञासु !) अपने चित्त में भलीभाँति विचार कर देख लो, कि लोगों ने इस दुनिया से निश्चित ही चले जाना है।
ਆਸ ਅਨਿਤ ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਟੈ ਨਾਨਕ ਨਾਮ ਅਰੋਗ ॥੧॥
आस अनित गुरमुखि मिटै नानक नाम अरोग ॥१॥
हे नानक ! क्षणभंगुर पदार्थों की तृष्णा गुरु की शरण लेने से ही मिटती है। केवल भगवान के नाम में ही अरोग्यता है ॥१॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਗਗਾ ਗੋਬਿਦ ਗੁਣ ਰਵਹੁ ਸਾਸਿ ਸਾਸਿ ਜਪਿ ਨੀਤ ॥
गगा गोबिद गुण रवहु सासि सासि जपि नीत ॥
ग – (हे जिज्ञासु !) अपने प्रत्येक श्वास से गोविन्द की गुणस्तुति करते रहो और नित्य उसका भजन करो।
ਕਹਾ ਬਿਸਾਸਾ ਦੇਹ ਕਾ ਬਿਲਮ ਨ ਕਰਿਹੋ ਮੀਤ ॥
कहा बिसासा देह का बिलम न करिहो मीत ॥
शरीर के ऊपर क्या विश्वास किया जा सकता है ? हे मेरे मित्र ! देरी न कर।
ਨਹ ਬਾਰਿਕ ਨਹ ਜੋਬਨੈ ਨਹ ਬਿਰਧੀ ਕਛੁ ਬੰਧੁ ॥
नह बारिक नह जोबनै नह बिरधी कछु बंधु ॥
चाहे बचपन हो, जवानी हो, बुढ़ापा हो, मृत्यु को आने से किसी समय भी रुकावट नहीं है।
ਓਹ ਬੇਰਾ ਨਹ ਬੂਝੀਐ ਜਉ ਆਇ ਪਰੈ ਜਮ ਫੰਧੁ ॥
ओह बेरा नह बूझीऐ जउ आइ परै जम फंधु ॥
उस वक्त का पता नहीं लग सकता कि कब यमराज का रस्सा गले में आ पड़ता है।
ਗਿਆਨੀ ਧਿਆਨੀ ਚਤੁਰ ਪੇਖਿ ਰਹਨੁ ਨਹੀ ਇਹ ਠਾਇ ॥
गिआनी धिआनी चतुर पेखि रहनु नही इह ठाइ ॥
यह बात समझ लो चाहे कोई ज्ञानी हो, चाहे कोई ध्यानी हो, चाहे कोई चतुर हो, किसी ने भी दुनिया में सदा नहीं रहना।
ਛਾਡਿ ਛਾਡਿ ਸਗਲੀ ਗਈ ਮੂੜ ਤਹਾ ਲਪਟਾਹਿ ॥
छाडि छाडि सगली गई मूड़ तहा लपटाहि ॥
मूर्ख ही उन वस्तुओं की प्राप्ति में लगते हैं, जिन्हें समूचा जगत् त्याग गया है।
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਸਿਮਰਤ ਰਹੈ ਜਾਹੂ ਮਸਤਕਿ ਭਾਗ ॥
गुर प्रसादि सिमरत रहै जाहू मसतकि भाग ॥
जिसके माथे पर शुभ भाग्य लिखा हुआ है, वह गुरु की कृपा से प्रभु का भजन करता रहता है।
ਨਾਨਕ ਆਏ ਸਫਲ ਤੇ ਜਾ ਕਉ ਪ੍ਰਿਅਹਿ ਸੁਹਾਗ ॥੧੯॥
नानक आए सफल ते जा कउ प्रिअहि सुहाग ॥१९॥
हे नानक ! जिन्हें प्रियतम प्रभु का सौभाग्य प्राप्त है, उनका ही इस संसार में आगमन सफल है॥ १६॥
ਸਲੋਕੁ ॥
लोकु ॥
श्लोक॥
ਘੋਖੇ ਸਾਸਤ੍ਰ ਬੇਦ ਸਭ ਆਨ ਨ ਕਥਤਉ ਕੋਇ ॥
घोखे सासत्र बेद सभ आन न कथतउ कोइ ॥
मैंने समस्त शास्त्र एवं वेद अध्ययन करके देख लिए हैं। कोई भी यह नहीं बताता किं भगवान के अलावा कोई अन्य भी हमेशा रहने वाला है।
ਆਦਿ ਜੁਗਾਦੀ ਹੁਣਿ ਹੋਵਤ ਨਾਨਕ ਏਕੈ ਸੋਇ ॥੧॥
आदि जुगादी हुणि होवत नानक एकै सोइ ॥१॥
हे नानक ! एक परमेश्वर ही सृष्टि के आदि में, युगों के आरम्भ में था, अब है और हमेशा ही रहने वाला है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਘਘਾ ਘਾਲਹੁ ਮਨਹਿ ਏਹ ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਦੂਸਰ ਨਾਹਿ ॥
घघा घालहु मनहि एह बिनु हरि दूसर नाहि ॥
घ – अपने मन में यह बात दृढ़ कर लो कि प्रभु के अलावा कोई नहीं।
ਨਹ ਹੋਆ ਨਹ ਹੋਵਨਾ ਜਤ ਕਤ ਓਹੀ ਸਮਾਹਿ ॥
नह होआ नह होवना जत कत ओही समाहि ॥
न कोई था और न ही आगे कोई होगा। वह प्रभु सर्वव्यापक हो रहा है।
ਘੂਲਹਿ ਤਉ ਮਨ ਜਉ ਆਵਹਿ ਸਰਨਾ ॥
घूलहि तउ मन जउ आवहि सरना ॥
हे मन ! यदि तू प्रभु की शरण लेगा तो ही प्रभु में लीन होगा।
ਨਾਮ ਤਤੁ ਕਲਿ ਮਹਿ ਪੁਨਹਚਰਨਾ ॥
नाम ततु कलि महि पुनहचरना ॥
इस कलियुग में प्रभु का नाम ही वास्तविक प्रायश्चित कर्म है।
ਘਾਲਿ ਘਾਲਿ ਅਨਿਕ ਪਛੁਤਾਵਹਿ ॥
घालि घालि अनिक पछुतावहि ॥
दुविधा में मेहनत-परिश्रम करके अनेकों पश्चाताप करते हैं।
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਕਹਾ ਥਿਤਿ ਪਾਵਹਿ ॥
बिनु हरि भगति कहा थिति पावहि ॥
भगवान की भक्ति के सिवाय कैसे शांति मिल सकती हैं ?
ਘੋਲਿ ਮਹਾ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਤਿਹ ਪੀਆ ॥
घोलि महा रसु अम्रितु तिह पीआ ॥
हे नानक ! वह इसे घोलकर पान करता है
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਗੁਰਿ ਜਾ ਕਉ ਦੀਆ ॥੨੦॥
नानक हरि गुरि जा कउ दीआ ॥२०॥
जिसे हरि रूप गुरु जी महारस अमृत प्रदान करते हैं॥ २०॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥
ਙਣਿ ਘਾਲੇ ਸਭ ਦਿਵਸ ਸਾਸ ਨਹ ਬਢਨ ਘਟਨ ਤਿਲੁ ਸਾਰ ॥
ङणि घाले सभ दिवस सास नह बढन घटन तिलु सार ॥
समस्त दिवस एवं श्वास प्रभु ने गिन कर ही मनुष्य में डाले हैं। वह एक तिलमात्र भी न अधिक होते हैं और न ही कम होते हैं।
ਜੀਵਨ ਲੋਰਹਿ ਭਰਮ ਮੋਹ ਨਾਨਕ ਤੇਊ ਗਵਾਰ ॥੧॥
जीवन लोरहि भरम मोह नानक तेऊ गवार ॥१॥
हे नानक ! जो व्यक्ति भ्रम एवं मोह में जिंदगी जीना चाहते हैं, ऐसे व्यक्ति मूर्ख हैं।॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਙੰਙਾ ਙ੍ਰਾਸੈ ਕਾਲੁ ਤਿਹ ਜੋ ਸਾਕਤ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨ ॥
ङंङा ङ्रासै कालु तिह जो साकत प्रभि कीन ॥
ङ – काल (मृत्यु) उसे अपना ग्रास बना लेता है, जिसे प्रभु ने नास्तिक बना दिया है।
ਅਨਿਕ ਜੋਨਿ ਜਨਮਹਿ ਮਰਹਿ ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਨ ਚੀਨ ॥
अनिक जोनि जनमहि मरहि आतम रामु न चीन ॥
जो व्यक्ति राम को अनुभव नहीं करते, वे अनेकों योनियों में जन्मते-मरते रहते हैं।
ਙਿਆਨ ਧਿਆਨ ਤਾਹੂ ਕਉ ਆਏ ॥
ङिआन धिआन ताहू कउ आए ॥
केवल वही व्यक्ति ज्ञान एवं ध्यान को प्राप्त करता है,
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਹ ਆਪਿ ਦਿਵਾਏ ॥
करि किरपा जिह आपि दिवाए ॥
जिस पर ईश्वर स्वयं कृपा करके देता है।
ਙਣਤੀ ਙਣੀ ਨਹੀ ਕੋਊ ਛੂਟੈ ॥
ङणती ङणी नही कोऊ छूटै ॥
कर्मों का लेखा पता करने से कोई भी मुक्त नहीं हो सकता।
ਕਾਚੀ ਗਾਗਰਿ ਸਰਪਰ ਫੂਟੈ ॥
काची गागरि सरपर फूटै ॥
यह शरीर मिट्टी की कच्ची गागर है जिस ने निश्चित ही टूट जाना है,
ਸੋ ਜੀਵਤ ਜਿਹ ਜੀਵਤ ਜਪਿਆ ॥
सो जीवत जिह जीवत जपिआ ॥
केवल वही जीवित है, जो जीवित ही प्रभु का भजन करता है।
ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਨਾਨਕ ਨਹ ਛਪਿਆ ॥੨੧॥
प्रगट भए नानक नह छपिआ ॥२१॥
हे नानक ! भगवान का सिमरन करने वाला मनुष्य छिपा नहीं रहता अपितु जगत् में प्रसिद्ध हो जाता है।॥२१॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਚਿਤਿ ਚਿਤਵਉ ਚਰਣਾਰਬਿੰਦ ਊਧ ਕਵਲ ਬਿਗਸਾਂਤ ॥
चिति चितवउ चरणारबिंद ऊध कवल बिगसांत ॥
अपने चित्त में प्रभु के सुन्दर चरणों का चिन्तन करने से मेरा विपरीत मन कमल की भाँति प्रफुल्लित हो गया है।
ਪ੍ਰਗਟ ਭਏ ਆਪਹਿ ਗੋੁਬਿੰਦ ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਮਤਾਂਤ ॥੧॥
प्रगट भए आपहि गोबिंद नानक संत मतांत ॥१॥
हे नानक ! संतजनों के उपदेश से गोविन्द स्वयं ही प्रकट हो जाता है॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਚਚਾ ਚਰਨ ਕਮਲ ਗੁਰ ਲਾਗਾ ॥
चचा चरन कमल गुर लागा ॥
च – जब गुरु के सुन्दर चरणों में मन लगा,
ਧਨਿ ਧਨਿ ਉਆ ਦਿਨ ਸੰਜੋਗ ਸਭਾਗਾ ॥
धनि धनि उआ दिन संजोग सभागा ॥
वह दिन बड़ा शुभ है, वह संयोग भी भाग्यशाली है ।
ਚਾਰਿ ਕੁੰਟ ਦਹ ਦਿਸਿ ਭ੍ਰਮਿ ਆਇਓ ॥
चारि कुंट दह दिसि भ्रमि आइओ ॥
मैं चारों तरफ एवं दस दिशाओं से भटक कर आया हूँ।
ਭਈ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤਬ ਦਰਸਨੁ ਪਾਇਓ ॥
भई क्रिपा तब दरसनु पाइओ ॥
जब प्रभु ने कृपा की तो ही मुझे गुरु के दर्शन प्राप्त हुए।
ਚਾਰ ਬਿਚਾਰ ਬਿਨਸਿਓ ਸਭ ਦੂਆ ॥
चार बिचार बिनसिओ सभ दूआ ॥
भगवान की महिमा का विचार करने से समूह द्वैतवाद नाश हो गया है।
ਸਾਧਸੰਗਿ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲ ਹੂਆ ॥
साधसंगि मनु निरमल हूआ ॥
संतों की संगति में मेरा मन निर्मल हो गया है।
ਚਿੰਤ ਬਿਸਾਰੀ ਏਕ ਦ੍ਰਿਸਟੇਤਾ ॥
चिंत बिसारी एक द्रिसटेता ॥
हे नानक ! वह चिन्ता को भूल जाता है और वह एक ईश्वर के दर्शन कर लेता है,
ਨਾਨਕ ਗਿਆਨ ਅੰਜਨੁ ਜਿਹ ਨੇਤ੍ਰਾ ॥੨੨॥
नानक गिआन अंजनु जिह नेत्रा ॥२२॥
जिसके नेत्रों में ज्ञान का सुरमा पड़ जाता है ॥२२॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਛਾਤੀ ਸੀਤਲ ਮਨੁ ਸੁਖੀ ਛੰਤ ਗੋਬਿਦ ਗੁਨ ਗਾਇ ॥
छाती सीतल मनु सुखी छंत गोबिद गुन गाइ ॥
गोविन्द की महिमा के छंद गायन करने से छाती शीतल एवं मन सुखी हो जाता है।
ਐਸੀ ਕਿਰਪਾ ਕਰਹੁ ਪ੍ਰਭ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਇ ॥੧॥
ऐसी किरपा करहु प्रभ नानक दास दसाइ ॥१॥
नानक की प्रार्थना है कि हे मेरे प्रभु! मुझ पर ऐसी कृपा-दृष्टि करो कि मैं तेरे दासों का दास बन जाऊँ॥ १॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਛਛਾ ਛੋਹਰੇ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ॥
छछा छोहरे दास तुमारे ॥
छ – मैं तेरा दास बालक हूँ।
ਦਾਸ ਦਾਸਨ ਕੇ ਪਾਨੀਹਾਰੇ ॥
दास दासन के पानीहारे ॥
मैं तेरे दासों के दासों का जल भरने वाला हूँ।
ਛਛਾ ਛਾਰੁ ਹੋਤ ਤੇਰੇ ਸੰਤਾ ॥
छछा छारु होत तेरे संता ॥
छ – मैं तेरे संतों की चरण-धूलि बन जाऊँ,”