ਜਹ ਦੇਖਾ ਤੂ ਸਭਨੀ ਥਾਈ ॥
जह देखा तू सभनी थाई ॥
हे ईश्वर ! जिधर भी देखता हूँ, तू सब स्थानों में व्याप्त है।
ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥
पूरै गुरि सभ सोझी पाई ॥
पूर्ण गुरु से यही सूझ प्राप्त हुई है कि
ਨਾਮੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਸਦਾ ਸਦ ਇਹੁ ਮਨੁ ਨਾਮੇ ਰਾਤਾ ਹੇ ॥੧੨॥
नामो नामु धिआईऐ सदा सद इहु मनु नामे राता हे ॥१२॥
सर्वदा नाम का मनन करो, क्योंकि यह मन नाम में ही लीन होता है। १२॥
ਨਾਮੇ ਰਾਤਾ ਪਵਿਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥
नामे राता पवितु सरीरा ॥
प्रभु-नाम लीन शरीर पवित्र है,”
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਡੂਬਿ ਮੁਏ ਬਿਨੁ ਨੀਰਾ ॥
बिनु नावै डूबि मुए बिनु नीरा ॥
परन्तु नामविहीन मनुष्य जल के बिना ही डूबकर मर जाते हैं।
ਆਵਹਿ ਜਾਵਹਿ ਨਾਮੁ ਨਹੀ ਬੂਝਹਿ ਇਕਨਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦੁ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੧੩॥
आवहि जावहि नामु नही बूझहि इकना गुरमुखि सबदु पछाता हे ॥१३॥
वह नाम रहस्य को नहीं समझता और जन्मता-मरता रहता है, कुछ लोगों ने गुरु के सान्निध्य में शब्द पहचान लिया है॥ १३॥
ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥
पूरै सतिगुरि बूझ बुझाई ॥
पूर्ण सतिगुरु ने यही ज्ञान बतलाया है कि
ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਮੁਕਤਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਈ ॥
विणु नावै मुकति किनै न पाई ॥
नाम के बिना किसी ने भी प्राप्त नहीं की।
ਨਾਮੇ ਨਾਮਿ ਮਿਲੈ ਵਡਿਆਈ ਸਹਜਿ ਰਹੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤਾ ਹੇ ॥੧੪॥
नामे नामि मिलै वडिआई सहजि रहै रंगि राता हे ॥१४॥
परमात्मा के नाम से ही जीव को लोक-परलोक में बड़ाई मिलती है और सहज ही प्रभु-रंग में लीन रहता है॥ १४॥
ਕਾਇਆ ਨਗਰੁ ਢਹੈ ਢਹਿ ਢੇਰੀ ॥
काइआ नगरु ढहै ढहि ढेरी ॥
शरीर रूपी नगरी आखिरकार ध्वस्त होकर राख की ढेरी बन जाती है और
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਚੂਕੈ ਨਹੀ ਫੇਰੀ ॥
बिनु सबदै चूकै नही फेरी ॥
शब्द के बिना जीव का आवागमन नहीं छूटता।
ਸਾਚੁ ਸਲਾਹੇ ਸਾਚਿ ਸਮਾਵੈ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੧੫॥
साचु सलाहे साचि समावै जिनि गुरमुखि एको जाता हे ॥१५॥
जिसने गुरु के सान्निध्य में एक परमात्मा को जान लिया है, वह उस परम-सत्य का स्तुतिगान करके उस में ही विलीन हो जाता है॥ १५॥
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥ ਸਾਚਾ ਸਬਦੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਆਏ ॥
जिस नो नदरि करे सो पाए ॥ साचा सबदु वसै मनि आए ॥
जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि करता है, वही उसे पाता है और सच्चा शब्द उसके मन में आ बसता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਨਿਰੰਕਾਰੀ ਦਰਿ ਸਾਚੈ ਸਾਚੁ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੧੬॥੮॥
नानक नामि रते निरंकारी दरि साचै साचु पछाता हे ॥१६॥८॥
हे नानक ! वही मनुष्य निरंकार के उपासक हैं, जो नाम में लीन रहते हैं, जिन्होंने सत्य को पहचान लिया है, वे सच्चे द्वार पर स्वीकार हो जाते हैं।॥ १६॥ ८॥
ਮਾਰੂ ਸੋਲਹੇ ੩ ॥
मारू सोलहे ३ ॥
मारू सोलहे ३॥
ਆਪੇ ਕਰਤਾ ਸਭੁ ਜਿਸੁ ਕਰਣਾ ॥
आपे करता सभु जिसु करणा ॥
हे ईश्वर ! तू स्वयं ही कर्ता है, जिसने सब करना है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾ ॥
जीअ जंत सभि तेरी सरणा ॥
जीव-जन्तु सभी तेरी शरण में हैं।
ਆਪੇ ਗੁਪਤੁ ਵਰਤੈ ਸਭ ਅੰਤਰਿ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੧॥
आपे गुपतु वरतै सभ अंतरि गुर कै सबदि पछाता हे ॥१॥
तू स्वयं सबके मन में गुप्त रूप में व्याप्त है और भक्तों ने तुझे गुरु के शब्द द्वारा पहचान लिया है॥ १॥
ਹਰਿ ਕੇ ਭਗਤਿ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥
हरि के भगति भरे भंडारा ॥
भगवान के भण्डार भक्ति से भरे हुए हैं और
ਆਪੇ ਬਖਸੇ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
आपे बखसे सबदि वीचारा ॥
वह शब्द के चिंतन द्वारा स्वयं ही देता है।
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਕਰਸਹਿ ਸਚੇ ਸਿਉ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਹੇ ॥੨॥
जो तुधु भावै सोई करसहि सचे सिउ मनु राता हे ॥२॥
जो तुझे मंजूर है, वही करते हैं और भक्तों का मन सत्य में ही लीन रहता है॥ २॥
ਆਪੇ ਹੀਰਾ ਰਤਨੁ ਅਮੋਲੋ ॥
आपे हीरा रतनु अमोलो ॥
अमूल्य हीरा एवं रत्न तू स्वयं ही है।
ਆਪੇ ਨਦਰੀ ਤੋਲੇ ਤੋਲੋ ॥
आपे नदरी तोले तोलो ॥
तू अपनी कृपा-दृष्टि से हीरे-रत्नों को परखकर स्वयं ही तौलता है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਸਰਣਿ ਤੁਮਾਰੀ ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਆਪਿ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੩॥
जीअ जंत सभि सरणि तुमारी करि किरपा आपि पछाता हे ॥३॥
सभी जीव तुम्हारी शरण में हैं और तू स्वयं ही कृपा करके पहचाना जाता है॥ ३॥
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਹੋਵੈ ਧੁਰਿ ਤੇਰੀ ॥
जिस नो नदरि होवै धुरि तेरी ॥
जिस पर तेरी कृपा-दृष्टि होती है,”
ਮਰੈ ਨ ਜੰਮੈ ਚੂਕੈ ਫੇਰੀ ॥
मरै न जमै चूकै फेरी ॥
उसका जन्म-मरण का चक्र छूट जाता है।
ਸਾਚੇ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਏਕੋ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੪॥
साचे गुण गावै दिनु राती जुगि जुगि एको जाता हे ॥४॥
वह दिन-रात सच्चे प्रभु के गुण गाता है और युग-युगांतर उस एक का ही अस्तित्व मानता है॥४॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਉਪਾਇਆ ॥
माइआ मोहि सभु जगतु उपाइआ ॥
हे परमात्मा ! माया-मोह एवं समूचा जगत् तूने उत्पन्न किया,”
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਦੇਵ ਸਬਾਇਆ ॥
ब्रहमा बिसनु देव सबाइआ ॥
ब्रह्मा, विष्णु एवं देवताओं की रचना की।
ਜੋ ਤੁਧੁ ਭਾਣੇ ਸੇ ਨਾਮਿ ਲਾਗੇ ਗਿਆਨ ਮਤੀ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੫॥
जो तुधु भाणे से नामि लागे गिआन मती पछाता हे ॥५॥
जो तुझे अच्छे लगे, वे तेरे नाम में लीन हो गए और उन्होंने ज्ञान मति द्वारा तुझे पहचान लिया॥ ५॥
ਪਾਪ ਪੁੰਨ ਵਰਤੈ ਸੰਸਾਰਾ ॥
पाप पुंन वरतै संसारा ॥
समूचे संसार में पाप-पुण्य फैला हुआ है।
ਹਰਖੁ ਸੋਗੁ ਸਭੁ ਦੁਖੁ ਹੈ ਭਾਰਾ ॥
हरखु सोगु सभु दुखु है भारा ॥
खुशी एवं गम, सब भारी दुख हैं।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ਜਿਨਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੬॥
गुरमुखि होवै सो सुखु पाए जिनि गुरमुखि नामु पछाता हे ॥६॥
जो गुरुमुख होता है, वही सुख प्राप्त करता है, जिसने गुरु के सान्निध्य में हरि-नाम को पहचान लिया है॥ ६॥
ਕਿਰਤੁ ਨ ਕੋਈ ਮੇਟਣਹਾਰਾ ॥
किरतु न कोई मेटणहारा ॥
जीव का कर्म-फल कोई भी मिटाने वाला नहीं है और
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਮੋਖ ਦੁਆਰਾ ॥
गुर कै सबदे मोख दुआरा ॥
गुरु के उपदेश से ही मुक्ति का द्वार मिलता है।
ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋ ਫਲੁ ਪਾਇਆ ਜਿਨਿ ਆਪੁ ਮਾਰਿ ਪਛਾਤਾ ਹੇ ॥੭॥
पूरबि लिखिआ सो फलु पाइआ जिनि आपु मारि पछाता हे ॥७॥
जिस मनुष्य ने अहम् को मिटाकर सत्य को पहचान लिया है, उसने वही फल पाया है, जो उसकी तकदीर में पूर्व ही लिखा हुआ है॥ ७॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਹਰਿ ਸਿਉ ਚਿਤੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
माइआ मोहि हरि सिउ चितु न लागै ॥
माया-मोह के कारण मनुष्य का परमात्मा में चित नहीं लगता और
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਘਣਾ ਦੁਖੁ ਆਗੈ ॥
दूजै भाइ घणा दुखु आगै ॥
द्वैतभाव के कारण भारी दुख भोगता है।
ਮਨਮੁਖ ਭਰਮਿ ਭੁਲੇ ਭੇਖਧਾਰੀ ਅੰਤ ਕਾਲਿ ਪਛੁਤਾਤਾ ਹੇ ॥੮॥
मनमुख भरमि भुले भेखधारी अंत कालि पछुताता हे ॥८॥
मनमुख अनेक वेष धारण करके भ्र्म में भटकता है और अंतकाल पछताता है॥ ८॥
ਹਰਿ ਕੈ ਭਾਣੈ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਏ ॥
हरि कै भाणै हरि गुण गाए ॥
परमात्मा की इच्छा से जीव उसका गुणगान करता है और
ਸਭਿ ਕਿਲਬਿਖ ਕਾਟੇ ਦੂਖ ਸਬਾਏ ॥
सभि किलबिख काटे दूख सबाए ॥
वह उसके सभी पाप-दुख काट देता है।
ਹਰਿ ਨਿਰਮਲੁ ਨਿਰਮਲ ਹੈ ਬਾਣੀ ਹਰਿ ਸੇਤੀ ਮਨੁ ਰਾਤਾ ਹੇ ॥੯॥
हरि निरमलु निरमल है बाणी हरि सेती मनु राता हे ॥९॥
निर्मल परमात्मा की वाणी भी निर्मल है और मन उसमें ही लीन रहता है॥ ९॥
ਜਿਸ ਨੋ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਗੁਣ ਨਿਧਿ ਪਾਏ ॥
जिस नो नदरि करे सो गुण निधि पाए ॥
जिस पर वह कृपा करता है, वह उस गुणों के भण्डार को प्राप्त कर लेता है और
ਹਉਮੈ ਮੇਰਾ ਠਾਕਿ ਰਹਾਏ ॥
हउमै मेरा ठाकि रहाए ॥
वह अपने अहम् एवं अपनत्व को मन से दूर कर देता है।
ਗੁਣ ਅਵਗਣ ਕਾ ਏਕੋ ਦਾਤਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਵਿਰਲੀ ਜਾਤਾ ਹੇ ॥੧੦॥
गुण अवगण का एको दाता गुरमुखि विरली जाता हे ॥१०॥
गुण-अवगुणों का प्रदाता एक परमेश्वर ही है, कोई विरला गुरुमुख ही इस तथ्य को जानता है॥ १०॥
ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਨਿਰਮਲੁ ਅਤਿ ਅਪਾਰਾ ॥
मेरा प्रभु निरमलु अति अपारा ॥
मेरा प्रभु निर्मल एवं अपरंपार है और
ਆਪੇ ਮੇਲੈ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਾ ॥
आपे मेलै गुर सबदि वीचारा ॥
गुरु-शब्द के चिंतन द्वारा स्वयं ही मिला लेता है।