ਐਸੋ ਹਰਿ ਰਸੁ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਰੀ ਉਲਟਿ ਧਰੀ ॥੧॥
ऐसो हरि रसु बरनि न साकउ गुरि पूरै मेरी उलटि धरी ॥१॥
हरि-रस इतना मीठा है कि मैं उसका वर्णन नहीं कर सकता। पूर्ण गुरु ने मेरी परन्मुखी वृति को अन्तर्मुखी कर दिया है॥१॥
ਪੇਖਿਓ ਮੋਹਨੁ ਸਭ ਕੈ ਸੰਗੇ ਊਨ ਨ ਕਾਹੂ ਸਗਲ ਭਰੀ ॥
पेखिओ मोहनु सभ कै संगे ऊन न काहू सगल भरी ॥
उस मोहन को सब जीवों के साथ बसता देखा हैं, कोई भी स्थान उससे रिक्त नहीं तथा सारी सृष्टि ही उससे भरपूर है।
ਪੂਰਨ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਕਿਰਪਾ ਨਿਧਿ ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰੀ ਪੂਰੀ ਪਰੀ ॥੨॥੭॥੯੩॥
पूरन पूरि रहिओ किरपा निधि कहु नानक मेरी पूरी परी ॥२॥७॥९३॥
हे नानक ! वह कृपानिधि सर्वव्यापक है और मेरी कामना पूरी हो गई है ॥२॥७॥६३॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮਨ ਕਿਆ ਕਹਤਾ ਹਉ ਕਿਆ ਕਹਤਾ ॥
मन किआ कहता हउ किआ कहता ॥
हे मन ! तू क्या कहता है और मैं क्या कहता हूँ ?
ਜਾਨ ਪ੍ਰਬੀਨ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਮੇਰੇ ਤਿਸੁ ਆਗੈ ਕਿਆ ਕਹਤਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जान प्रबीन ठाकुर प्रभ मेरे तिसु आगै किआ कहता ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे ठाकुर प्रभु ! तू मन की बात को जानने वाला एवं प्रवीण है, तेरे समक्ष मैं क्या कह सकता हूँ॥ १॥ रहाउ॥
ਅਨਬੋਲੇ ਕਉ ਤੁਹੀ ਪਛਾਨਹਿ ਜੋ ਜੀਅਨ ਮਹਿ ਹੋਤਾ ॥
अनबोले कउ तुही पछानहि जो जीअन महि होता ॥
जो मन में होता है, तू उसे बिना बोले ही पहचान लेता है।
ਰੇ ਮਨ ਕਾਇ ਕਹਾ ਲਉ ਡਹਕਹਿ ਜਉ ਪੇਖਤ ਹੀ ਸੰਗਿ ਸੁਨਤਾ ॥੧॥
रे मन काइ कहा लउ डहकहि जउ पेखत ही संगि सुनता ॥१॥
हे मन ! तू किसलिए और कब तक दूसरों से छल करता रहेगा, जबकि तेरे साथ बसता प्रभु सबकुछ देखता एवं सुनता है॥ १॥
ਐਸੋ ਜਾਨਿ ਭਏ ਮਨਿ ਆਨਦ ਆਨ ਨ ਬੀਓ ਕਰਤਾ ॥
ऐसो जानि भए मनि आनद आन न बीओ करता ॥
यह जान कर मेरे मन में बड़ा आनंद पैदा हो गया है कि परमात्मा के अलावा अन्य कोई भी रचयिता नहीं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਰਾ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਨ ਕਬਹੂ ਲਹਤਾ ॥੨॥੮॥੯੪॥
कहु नानक गुर भए दइआरा हरि रंगु न कबहू लहता ॥२॥८॥९४॥
हे नानक ! गुरु मुझ पर दयालु हो गया है और हरि का रंग मन से कभी नहीं उतरता ॥ २॥ ८॥ ६४॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਨਿੰਦਕੁ ਐਸੇ ਹੀ ਝਰਿ ਪਰੀਐ ॥
निंदकु ऐसे ही झरि परीऐ ॥
निंदक यूं ध्वस्त हो जाता है,”
ਇਹ ਨੀਸਾਨੀ ਸੁਨਹੁ ਤੁਮ ਭਾਈ ਜਿਉ ਕਾਲਰ ਭੀਤਿ ਗਿਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
इह नीसानी सुनहु तुम भाई जिउ कालर भीति गिरीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
जैसे कल्लर की मिट्टी की बनी दीवार गिर जाती है, हे भाई ! तुम यह निशानी सुनो।॥ १॥ रहाउ ॥
ਜਉ ਦੇਖੈ ਛਿਦ੍ਰੁ ਤਉ ਨਿੰਦਕੁ ਉਮਾਹੈ ਭਲੋ ਦੇਖਿ ਦੁਖ ਭਰੀਐ ॥
जउ देखै छिद्रु तउ निंदकु उमाहै भलो देखि दुख भरीऐ ॥
जब किसी मनुष्य का अवगुण देखता है तो निंदक बड़ा खुश होता है किन्तु उसका शुभ गुण देख कर वह दुख से भर जाता है।
ਆਠ ਪਹਰ ਚਿਤਵੈ ਨਹੀ ਪਹੁਚੈ ਬੁਰਾ ਚਿਤਵਤ ਚਿਤਵਤ ਮਰੀਐ ॥੧॥
आठ पहर चितवै नही पहुचै बुरा चितवत चितवत मरीऐ ॥१॥
वह आठों प्रहर दूसरों का बुरा सोचता रहता है किन्तु बुरा करने में कामयाब नहीं होता। वह दूसरों का बुरा करने में सोचता-सोचता ही जीवन छोड़ जाता है॥ १॥
ਨਿੰਦਕੁ ਪ੍ਰਭੂ ਭੁਲਾਇਆ ਕਾਲੁ ਨੇਰੈ ਆਇਆ ਹਰਿ ਜਨ ਸਿਉ ਬਾਦੁ ਉਠਰੀਐ ॥
निंदकु प्रभू भुलाइआ कालु नेरै आइआ हरि जन सिउ बादु उठरीऐ ॥
वास्तव में प्रभु ने ही निंदक को भुलाया हुआ है और उसकी मृत्यु निकट आ गई है। अतः वह भक्तजनों से झगड़ा उत्पन्न कर लेता है।
ਨਾਨਕ ਕਾ ਰਾਖਾ ਆਪਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸੁਆਮੀ ਕਿਆ ਮਾਨਸ ਬਪੁਰੇ ਕਰੀਐ ॥੨॥੯॥੯੫॥
नानक का राखा आपि प्रभु सुआमी किआ मानस बपुरे करीऐ ॥२॥९॥९५॥
स्वामी प्रभु स्वयं नानक का रखवाला वन गया है, फिर बेचारा मनुष्य भला क्या बिगाड़ सकता है॥ २॥ ६ ॥ ६५ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਐਸੇ ਕਾਹੇ ਭੂਲਿ ਪਰੇ ॥
ऐसे काहे भूलि परे ॥
पता नहीं मनुष्य क्यों भूला हुआ है ?
ਕਰਹਿ ਕਰਾਵਹਿ ਮੂਕਰਿ ਪਾਵਹਿ ਪੇਖਤ ਸੁਨਤ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करहि करावहि मूकरि पावहि पेखत सुनत सदा संगि हरे ॥१॥ रहाउ ॥
वह स्वयं पाप-कर्म करता एवं करवाता है, लेकिन इस बात से इन्कार करता है। लेकिन ईश्वर सदैव साथ रहता हुआ सबकुछ देखता-सुनता रहता है॥ १॥ रहाउ॥
ਕਾਚ ਬਿਹਾਝਨ ਕੰਚਨ ਛਾਡਨ ਬੈਰੀ ਸੰਗਿ ਹੇਤੁ ਸਾਜਨ ਤਿਆਗਿ ਖਰੇ ॥
काच बिहाझन कंचन छाडन बैरी संगि हेतु साजन तिआगि खरे ॥
वह नाम रूपी कंचन को छोड़कर माया रूपी काँच का सौदा करता है और अपने शत्रुओं-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार से प्रेम करता है और अपने सज्जनों-सत्य, संतोष, दया, धर्म, पुण्य को त्याग देता है।
ਹੋਵਨੁ ਕਉਰਾ ਅਨਹੋਵਨੁ ਮੀਠਾ ਬਿਖਿਆ ਮਹਿ ਲਪਟਾਇ ਜਰੇ ॥੧॥
होवनु कउरा अनहोवनु मीठा बिखिआ महि लपटाइ जरे ॥१॥
उसे अविनाशी प्रभु कड़वा लगता है और नाशवान् संसार मीठा लगता है। वह माया रूपी विष से लिपट कर जल जाता है॥ १ ॥
ਅੰਧ ਕੂਪ ਮਹਿ ਪਰਿਓ ਪਰਾਨੀ ਭਰਮ ਗੁਬਾਰ ਮੋਹ ਬੰਧਿ ਪਰੇ ॥
अंध कूप महि परिओ परानी भरम गुबार मोह बंधि परे ॥
ऐसे प्राणी अन्धकूप में गिरे हुए हैं और भ्रम के अँधेरे एवं मोह के बन्धनों में फंसे हुए हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਹੋਤ ਦਇਆਰਾ ਗੁਰੁ ਭੇਟੈ ਕਾਢੈ ਬਾਹ ਫਰੇ ॥੨॥੧੦॥੯੬॥
कहु नानक प्रभ होत दइआरा गुरु भेटै काढै बाह फरे ॥२॥१०॥९६॥
हे नानक ! जब प्रभु दयालु हो जाता है तो वह मनुष्य को गुरु से मिलाकर बांह पकड़कर उसे अंधकूप में से बाहर निकाल देता है॥ २ ॥ १० ॥ ६६ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਮਨ ਤਨ ਰਸਨਾ ਹਰਿ ਚੀਨੑਾ ॥
मन तन रसना हरि चीन्हा ॥
मन, तन एवं जिह्मा से सिमरन करके भगवान को पहचान लिया है।
ਭਏ ਅਨੰਦਾ ਮਿਟੇ ਅੰਦੇਸੇ ਸਰਬ ਸੂਖ ਮੋ ਕਉ ਗੁਰਿ ਦੀਨੑਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
भए अनंदा मिटे अंदेसे सरब सूख मो कउ गुरि दीन्हा ॥१॥ रहाउ ॥
मेरे सारे संदेह मिट गए हैं और बड़ा आनंद हो गया है। गुरु ने मुझे सर्वसुख प्रदान किए हैं।॥ १॥ रहाउ ॥
ਇਆਨਪ ਤੇ ਸਭ ਭਈ ਸਿਆਨਪ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਦਾਨਾ ਬੀਨਾ ॥
इआनप ते सभ भई सिआनप प्रभु मेरा दाना बीना ॥
मेरा प्रभु बड़ा चतुर है, सर्वज्ञाता है। मेरे मन में नासमझी की जगह पूरी समझ पैदा हो गई है।
ਹਾਥ ਦੇਇ ਰਾਖੈ ਅਪਨੇ ਕਉ ਕਾਹੂ ਨ ਕਰਤੇ ਕਛੁ ਖੀਨਾ ॥੧॥
हाथ देइ राखै अपने कउ काहू न करते कछु खीना ॥१॥
प्रभु हाथ देकर अपने सेवक की रक्षा करता है और कोई भी उसका नुकसान नहीं कर सकता ॥ १॥
ਬਲਿ ਜਾਵਉ ਦਰਸਨ ਸਾਧੂ ਕੈ ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਲੀਨਾ ॥
बलि जावउ दरसन साधू कै जिह प्रसादि हरि नामु लीना ॥
मैं साधु के दर्शन पर बलिहारी जाता हूँ, जिसकी कृपा से हरि-नाम प्राप्त किया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਠਾਕੁਰ ਭਾਰੋਸੈ ਕਹੂ ਨ ਮਾਨਿਓ ਮਨਿ ਛੀਨਾ ॥੨॥੧੧॥੯੭॥
कहु नानक ठाकुर भारोसै कहू न मानिओ मनि छीना ॥२॥११॥९७॥
हे नानक ! मैंने अपने ठाकुर पर भरोसा रखकर किसी अन्य को मन में एक क्षण के लिए भी नहीं माना ॥ २॥ ११॥ ६७ ॥
ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
बिलावलु महला ५ ॥
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਮੇਰੀ ਰਾਖਿ ਲਈ ॥
गुरि पूरै मेरी राखि लई ॥
गुरु ने मेरी लाज रख ली है,
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦੇ ਮਹਿ ਦੀਨੋ ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੀ ਮੈਲੁ ਗਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अम्रित नामु रिदे महि दीनो जनम जनम की मैलु गई ॥१॥ रहाउ ॥
उसने अमृत नाम मेरे हृदय में बसा दिया है, जिससे जन्म-जन्मांतर की मैल दूर हो गई है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਿਵਰੇ ਦੂਤ ਦੁਸਟ ਬੈਰਾਈ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਕਾ ਜਪਿਆ ਜਾਪੁ ॥
निवरे दूत दुसट बैराई गुर पूरे का जपिआ जापु ॥
जब पूर्ण गुरु का जाप जपा तो मेरे वैरी दुष्ट दूत-काम, क्रोध, लोभ, मोह एवं अहंकार दूर हो गए।