ਨਾਦਿ ਸਮਾਇਲੋ ਰੇ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟਿਲੇ ਦੇਵਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नादि समाइलो रे सतिगुरु भेटिले देवा ॥१॥ रहाउ ॥
सतगुरु से भेंट होने पर अनहद शब्द में समा गया हूँ।॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਜਹ ਝਿਲਿ ਮਿਲਿ ਕਾਰੁ ਦਿਸੰਤਾ ॥
जह झिलि मिलि कारु दिसंता ॥
जहाँ झिलमिल उजाले का प्रकाश दिखाई देता है,
ਤਹ ਅਨਹਦ ਸਬਦ ਬਜੰਤਾ ॥
तह अनहद सबद बजंता ॥
वहाँ अनहद शब्द बजता रहता है।
ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਸਮਾਨੀ ॥
जोती जोति समानी ॥
मेरी ज्योति परम ज्योति में विलीन हो गई है।
ਮੈ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਨੀ ॥੨॥
मै गुर परसादी जानी ॥२॥
गुरु की कृपा से मैंने इस तथ्य को समझ लिया है।२।
ਰਤਨ ਕਮਲ ਕੋਠਰੀ ॥
रतन कमल कोठरी ॥
हृदय-कमल की कोठरी में गुणों के रत्न विद्यमान हैं और
ਚਮਕਾਰ ਬੀਜੁਲ ਤਹੀ ॥
चमकार बीजुल तही ॥
वहाँ वे दामिनी की तरह चमकते हैं।
ਨੇਰੈ ਨਾਹੀ ਦੂਰਿ ॥
नेरै नाही दूरि ॥
वह प्रभु कहीं दूर नहीं अपितु पास ही है।
ਨਿਜ ਆਤਮੈ ਰਹਿਆ ਭਰਪੂਰਿ ॥੩॥
निज आतमै रहिआ भरपूरि ॥३॥
वह तो मेरी आत्मा में ही निवास कर रहा है।॥३॥
ਜਹ ਅਨਹਤ ਸੂਰ ਉਜੵਾਰਾ ॥
जह अनहत सूर उज्यारा ॥
जहाँ अनश्वर सूर्य का उजाला है,
ਤਹ ਦੀਪਕ ਜਲੈ ਛੰਛਾਰਾ ॥
तह दीपक जलै छंछारा ॥
वहाँ जलते हुए सूर्य एवं चन्द्रमा के दीपक तुच्छ प्रतीत होते हैं।
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਜਾਨਿਆ ॥
गुर परसादी जानिआ ॥
गुरु की अपार कृपा से मैंने यह समझ लिया है और
ਜਨੁ ਨਾਮਾ ਸਹਜ ਸਮਾਨਿਆ ॥੪॥੧॥
जनु नामा सहज समानिआ ॥४॥१॥
दास नामदेव सहज ही प्रभु में समा गया है ॥४॥१॥
ਘਰੁ ੪ ਸੋਰਠਿ ॥
घरु ४ सोरठि ॥
घरु ४ सोरठि ॥
ਪਾੜ ਪੜੋਸਣਿ ਪੂਛਿ ਲੇ ਨਾਮਾ ਕਾ ਪਹਿ ਛਾਨਿ ਛਵਾਈ ਹੋ ॥
पाड़ पड़ोसणि पूछि ले नामा का पहि छानि छवाई हो ॥
निकटवर्ती पड़ोसिन पूछती है कि हे नामदेव ! ‘तूने अपनी यह कुटिया किससे बनवाई है?”
ਤੋ ਪਹਿ ਦੁਗਣੀ ਮਜੂਰੀ ਦੈਹਉ ਮੋ ਕਉ ਬੇਢੀ ਦੇਹੁ ਬਤਾਈ ਹੋ ॥੧॥
तो पहि दुगणी मजूरी दैहउ मो कउ बेढी देहु बताई हो ॥१॥
तुम मुझे उस बढ़ई के बारे में बता दो, मैं उसे तुझ से भी दुगुनी मजदूरी दूँगी।॥१॥
ਰੀ ਬਾਈ ਬੇਢੀ ਦੇਨੁ ਨ ਜਾਈ ॥
री बाई बेढी देनु न जाई ॥
अरी बहन ! उस बढ़ई के बारे में तुझे बताया अथवा उसका पता दिया नहीं जा सकता।
ਦੇਖੁ ਬੇਢੀ ਰਹਿਓ ਸਮਾਈ ॥
देखु बेढी रहिओ समाई ॥
देख ! मेरा बढ़ई तो सबमें समां रहा है।
ਹਮਾਰੈ ਬੇਢੀ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हमारै बेढी प्रान अधारा ॥१॥ रहाउ ॥
वह बढ़ई हमारे प्राणो का आधार है।॥१॥ रहाउ ॥
ਬੇਢੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਜੂਰੀ ਮਾਂਗੈ ਜਉ ਕੋਊ ਛਾਨਿ ਛਵਾਵੈ ਹੋ ॥
बेढी प्रीति मजूरी मांगै जउ कोऊ छानि छवावै हो ॥
यदि कोई उससे कुटिया बनवाना चाहे तो बढ़ई प्रीति की ही मजदूरी माँगता है।
ਲੋਗ ਕੁਟੰਬ ਸਭਹੁ ਤੇ ਤੋਰੈ ਤਉ ਆਪਨ ਬੇਢੀ ਆਵੈ ਹੋ ॥੨॥
लोग कुट्मब सभहु ते तोरै तउ आपन बेढी आवै हो ॥२॥
जब मनुष्य लोगो एवं कुटुंब से रिश्ता तोड़ लेता है तो बढ़ई ही हृदय में आ जाता है।॥२॥
ਐਸੋ ਬੇਢੀ ਬਰਨਿ ਨ ਸਾਕਉ ਸਭ ਅੰਤਰ ਸਭ ਠਾਂਈ ਹੋ ॥
ऐसो बेढी बरनि न साकउ सभ अंतर सभ ठांई हो ॥
मैं ऐसे बढ़ई के बारे में वर्णन नहीं कर सकता, चूँकि वह तो सबके भीतर में स्थित है एवं सर्वव्यापी है।
ਗੂੰਗੈ ਮਹਾ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ ਚਾਖਿਆ ਪੂਛੇ ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ਹੋ ॥੩॥
गूंगै महा अम्रित रसु चाखिआ पूछे कहनु न जाई हो ॥३॥
जैसे कोई गूंगा महा अमृत रस को चखता हैं, परन्तु यदि उससे पूछा जाए तो वह इसे कथन नहीं कर सकता ॥३॥
ਬੇਢੀ ਕੇ ਗੁਣ ਸੁਨਿ ਰੀ ਬਾਈ ਜਲਧਿ ਬਾਂਧਿ ਧ੍ਰੂ ਥਾਪਿਓ ਹੋ ॥
बेढी के गुण सुनि री बाई जलधि बांधि ध्रू थापिओ हो ॥
अरी बहन ! तू उस बढ़ई की महिमा सुन: उसने ही समुद्र पर सेतु बनाया था और भक्त ध्रुव को भी उसने ही उच्च पदवी पर स्थापित किया था।
ਨਾਮੇ ਕੇ ਸੁਆਮੀ ਸੀਅ ਬਹੋਰੀ ਲੰਕ ਭਭੀਖਣ ਆਪਿਓ ਹੋ ॥੪॥੨॥
नामे के सुआमी सीअ बहोरी लंक भभीखण आपिओ हो ॥४॥२॥
नामदेव के स्वामी राम ही लंका पर विजय पाकर सीता जी को ले आए थे और लंका का शाशन विभीषण को सौंप दिया था। ॥४॥२॥
ਸੋਰਠਿ ਘਰੁ ੩ ॥
सोरठि घरु ३ ॥
सोरठि घरु ३ ॥
ਅਣਮੜਿਆ ਮੰਦਲੁ ਬਾਜੈ ॥
अणमड़िआ मंदलु बाजै ॥
खाल के बिना मढ़ा हुआ ढोलक बजता है।
ਬਿਨੁ ਸਾਵਣ ਘਨਹਰੁ ਗਾਜੈ ॥
बिनु सावण घनहरु गाजै ॥
सावन के बिना ही बादल गर्जता है।
ਬਾਦਲ ਬਿਨੁ ਬਰਖਾ ਹੋਈ ॥
बादल बिनु बरखा होई ॥
बादल के बिना ही वर्षा होती है,
ਜਉ ਤਤੁ ਬਿਚਾਰੈ ਕੋਈ ॥੧॥
जउ ततु बिचारै कोई ॥१॥
यदि कोई परम-तत्व का विचार करता है तो ही ऐसा प्रतीत होता है ॥१॥
ਮੋ ਕਉ ਮਿਲਿਓ ਰਾਮੁ ਸਨੇਹੀ ॥
मो कउ मिलिओ रामु सनेही ॥
मुझे अपना स्नेही राम मिल गया है,
ਜਿਹ ਮਿਲਿਐ ਦੇਹ ਸੁਦੇਹੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जिह मिलिऐ देह सुदेही ॥१॥ रहाउ ॥
जिसको मिलने से मेरी यह देह निर्मल बन गई है ॥१॥ रहाउ ॥
ਮਿਲਿ ਪਾਰਸ ਕੰਚਨੁ ਹੋਇਆ ॥
मिलि पारस कंचनु होइआ ॥
पारस रूपी गुरु से मिलकर मैं सोना अर्थात् पावन बन गया हूँ।
ਮੁਖ ਮਨਸਾ ਰਤਨੁ ਪਰੋਇਆ ॥
मुख मनसा रतनु परोइआ ॥
अपने मुँह एवं मन में उस प्रभु-नाम के रत्नों को पिरोया हुआ है।
ਨਿਜ ਭਾਉ ਭਇਆ ਭ੍ਰਮੁ ਭਾਗਾ ॥
निज भाउ भइआ भ्रमु भागा ॥
उस प्रभु को मैं अपना समझ कर प्यार करता हूँ और मेरा भ्रम निवृत हो गया है।
ਗੁਰ ਪੂਛੇ ਮਨੁ ਪਤੀਆਗਾ ॥੨॥
गुर पूछे मनु पतीआगा ॥२॥
गुरु से उपदेश प्राप्त करके मेरा मन तृप्त हो गया है॥२॥
ਜਲ ਭੀਤਰਿ ਕੁੰਭ ਸਮਾਨਿਆ ॥
जल भीतरि कु्मभ समानिआ ॥
जैसे जल घड़े के भीतर ही समाया हुआ है
ਸਭ ਰਾਮੁ ਏਕੁ ਕਰਿ ਜਾਨਿਆ ॥
सभ रामु एकु करि जानिआ ॥
वैसे ही मैं जानता हूँ कि एक राम ही सब जीवों में समाया हुआ है।
ਗੁਰ ਚੇਲੇ ਹੈ ਮਨੁ ਮਾਨਿਆ ॥
गुर चेले है मनु मानिआ ॥
चेले का मन गुरु पर ही भरोसा करता है।
ਜਨ ਨਾਮੈ ਤਤੁ ਪਛਾਨਿਆ ॥੩॥੩॥
जन नामै ततु पछानिआ ॥३॥३॥
सेवक नामदेव ने इस तथ्य को पहचान लिया है ॥३॥३॥
ਰਾਗੁ ਸੋਰਠਿ ਬਾਣੀ ਭਗਤ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀ ਕੀ
रागु सोरठि बाणी भगत रविदास जी की
रागु सोरठि बाणी भगत रविदास जी की
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਜਬ ਹਮ ਹੋਤੇ ਤਬ ਤੂ ਨਾਹੀ ਅਬ ਤੂਹੀ ਮੈ ਨਾਹੀ ॥
जब हम होते तब तू नाही अब तूही मै नाही ॥
हे ईश्वर ! जब मुझ में आत्माभिमान था, तब तू मुझ में नहीं था, अब जब तू मेरे भीतर है तो मेरा आत्माभिमान दूर हो गया है।
ਅਨਲ ਅਗਮ ਜੈਸੇ ਲਹਰਿ ਮਇ ਓਦਧਿ ਜਲ ਕੇਵਲ ਜਲ ਮਾਂਹੀ ॥੧॥
अनल अगम जैसे लहरि मइ ओदधि जल केवल जल मांही ॥१॥
जैसे-जैसे अग्नि की अनंत चिंगारियाँ होती हैं, पर वे अग्नि का ही रूप होती हैं। पवन के साथ बड़े समुद्र में भारी लहरें उठती हैं परन्तु वे लहरें केवल समुद्र के जल में जल ही होती हैं वैसे ही यह जगत परमात्मा में से पैदा होने के कारण उसका रूप है ।१।
ਮਾਧਵੇ ਕਿਆ ਕਹੀਐ ਭ੍ਰਮੁ ਐਸਾ ॥
माधवे किआ कहीऐ भ्रमु ऐसा ॥
हे माधव ! हम प्राणियों का तो भ्रम ही ऐसा है, हम इसके बारे में क्या कह सकते हैं ?
ਜੈਸਾ ਮਾਨੀਐ ਹੋਇ ਨ ਤੈਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जैसा मानीऐ होइ न तैसा ॥१॥ रहाउ ॥
जैसा हम किसी वस्तु को मानते हैं, वह वैसी नहीं होती॥ १ ॥ रहाउ॥
ਨਰਪਤਿ ਏਕੁ ਸਿੰਘਾਸਨਿ ਸੋਇਆ ਸੁਪਨੇ ਭਇਆ ਭਿਖਾਰੀ ॥
नरपति एकु सिंघासनि सोइआ सुपने भइआ भिखारी ॥
जैसे एक राजा अपने सिंहासन पर निद्रा-मग्न हो जाता है और स्वप्न में वह भिखारी बन जाता है।
ਅਛਤ ਰਾਜ ਬਿਛੁਰਤ ਦੁਖੁ ਪਾਇਆ ਸੋ ਗਤਿ ਭਈ ਹਮਾਰੀ ॥੨॥
अछत राज बिछुरत दुखु पाइआ सो गति भई हमारी ॥२॥
उसका राज्य अच्छा है परन्तु इससे विछुड़ कर वह बहुत दुखी होता है।ऐसी ही हालत हमारी हुई है ॥२॥