Hindi Page 875

ਪਾਂਡੇ ਤੁਮਰਾ ਰਾਮਚੰਦੁ ਸੋ ਭੀ ਆਵਤੁ ਦੇਖਿਆ ਥਾ ॥
पांडे तुमरा रामचंदु सो भी आवतु देखिआ था ॥
हे पांडे ! तुम्हारे (कथनानुसार) रामचंद्र का भी बहुत नाम सुना,

ਰਾਵਨ ਸੇਤੀ ਸਰਬਰ ਹੋਈ ਘਰ ਕੀ ਜੋਇ ਗਵਾਈ ਥੀ ॥੩॥
रावन सेती सरबर होई घर की जोइ गवाई थी ॥३॥
उनकी लंका नरेश रावण के साथ लड़ाई हुई और तदुपरांत उन्होंने पत्नी सीता गंवा दी थी।॥ ३॥

ਹਿੰਦੂ ਅੰਨ੍ਹਾ ਤੁਰਕੂ ਕਾਣਾ ॥
हिंदू अंन्हा तुरकू काणा ॥
हिन्दू अन्धा है और तुर्क काना है,”

ਦੁਹਾਂ ਤੇ ਗਿਆਨੀ ਸਿਆਣਾ ॥
दुहां ते गिआनी सिआणा ॥
मगर इन दोनों से ज्ञानी चतुर है।

ਹਿੰਦੂ ਪੂਜੈ ਦੇਹੁਰਾ ਮੁਸਲਮਾਣੁ ਮਸੀਤਿ ॥
हिंदू पूजै देहुरा मुसलमाणु मसीति ॥
हिन्दू मन्दिर में पूजा करता है और मुसलमान मस्जिद में सिजदा करता है।

ਨਾਮੇ ਸੋਈ ਸੇਵਿਆ ਜਹ ਦੇਹੁਰਾ ਨ ਮਸੀਤਿ ॥੪॥੩॥੭॥
नामे सोई सेविआ जह देहुरा न मसीति ॥४॥३॥७॥
नामदेव ने तो उस परमात्मा का ही सिमरन किया है, जो मन्दिर अथवा मस्जिद में नहीं है।४ ॥ ३ ॥ ७ ॥

ਰਾਗੁ ਗੋਂਡ ਬਾਣੀ ਰਵਿਦਾਸ ਜੀਉ ਕੀ ਘਰੁ ੨
रागु गोंड बाणी रविदास जीउ की घरु २
रागु गोंड बाणी रविदास जीउ की घरु २

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਮੁਕੰਦ ਮੁਕੰਦ ਜਪਹੁ ਸੰਸਾਰ ॥
मुकंद मुकंद जपहु संसार ॥
हे संसार के लोगों ! ईश्वर का जाप करो,

ਬਿਨੁ ਮੁਕੰਦ ਤਨੁ ਹੋਇ ਅਉਹਾਰ ॥
बिनु मुकंद तनु होइ अउहार ॥
उसका सिमरन किए बिना यह तन व्यर्थ ही चला जाता है।

ਸੋਈ ਮੁਕੰਦੁ ਮੁਕਤਿ ਕਾ ਦਾਤਾ ॥
सोई मुकंदु मुकति का दाता ॥
ईश्वर ही मुक्ति का दाता है और

ਸੋਈ ਮੁਕੰਦੁ ਹਮਰਾ ਪਿਤ ਮਾਤਾ ॥੧॥
सोई मुकंदु हमरा पित माता ॥१॥
हमारा माता-पिता भी वही है॥ १॥

ਜੀਵਤ ਮੁਕੰਦੇ ਮਰਤ ਮੁਕੰਦੇ ॥
जीवत मुकंदे मरत मुकंदे ॥
जिसका जीना-मरना सब भगवान पर है,

ਤਾ ਕੇ ਸੇਵਕ ਕਉ ਸਦਾ ਅਨੰਦੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ता के सेवक कउ सदा अनंदे ॥१॥ रहाउ ॥
उसके सेवक को सदा आनंद बना रहता है।१॥ रहाउ ॥

ਮੁਕੰਦ ਮੁਕੰਦ ਹਮਾਰੇ ਪ੍ਰਾਨੰ ॥
मुकंद मुकंद हमारे प्रानं ॥
ईश्वर की उपासना ही हमारे प्राणों का आधार है।

ਜਪਿ ਮੁਕੰਦ ਮਸਤਕਿ ਨੀਸਾਨੰ ॥
जपि मुकंद मसतकि नीसानं ॥
उसका जाप करने से मस्तक पर मुक्ति का चिन्ह पड़ जाता है।

ਸੇਵ ਮੁਕੰਦ ਕਰੈ ਬੈਰਾਗੀ ॥
सेव मुकंद करै बैरागी ॥
कोई वैरागी ही मुकुन्द की अर्चना करता है।

ਸੋਈ ਮੁਕੰਦੁ ਦੁਰਬਲ ਧਨੁ ਲਾਧੀ ॥੨॥
सोई मुकंदु दुरबल धनु लाधी ॥२॥
मुझ जैसे दुर्बल को भी मुकुन्द नाम रूपी धन हासिल हो गया है॥ २ ॥

ਏਕੁ ਮੁਕੰਦੁ ਕਰੈ ਉਪਕਾਰੁ ॥
एकु मुकंदु करै उपकारु ॥
जब एक परमेश्वर स्वयं मुझ पर उपकार करता है तो

ਹਮਰਾ ਕਹਾ ਕਰੈ ਸੰਸਾਰੁ ॥
हमरा कहा करै संसारु ॥
यह संसार मेरा क्या बिगाड़ सकता है।

ਮੇਟੀ ਜਾਤਿ ਹੂਏ ਦਰਬਾਰਿ ॥ ਤੁਹੀ ਮੁਕੰਦ ਜੋਗ ਜੁਗ ਤਾਰਿ ॥੩॥
मेटी जाति हूए दरबारि ॥ तुही मुकंद जोग जुग तारि ॥३॥
उसकी भक्ति ने मेरी नीच जाति को मिटाकर अपने द्वार का दरबारी नियुक्त कर दिया है। हे मुकुन्द ! एक तू ही युगों-युगांतरों से पार करवाने में समर्थ है॥ ३॥

ਉਪਜਿਓ ਗਿਆਨੁ ਹੂਆ ਪਰਗਾਸ ॥
उपजिओ गिआनु हूआ परगास ॥
मेरे मन में ज्ञान उत्पन्न होने से प्रकाश हो गया है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੀਨੇ ਕੀਟ ਦਾਸ ॥
करि किरपा लीने कीट दास ॥
उसने कृपा करके मुझ जैसे तुच्छ जीव को अपना दास बना लिया है।

ਕਹੁ ਰਵਿਦਾਸ ਅਬ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਚੂਕੀ ॥
कहु रविदास अब त्रिसना चूकी ॥
रविदास जी कहते हैं कि अब मेरी तृष्णा बुझ गई है,

ਜਪਿ ਮੁਕੰਦ ਸੇਵਾ ਤਾਹੂ ਕੀ ॥੪॥੧॥
जपि मुकंद सेवा ताहू की ॥४॥१॥
मुकुन्द को जप कर उसकी सेवा में ही लीन रहता हूँ॥ ४॥ १॥

ਗੋਂਡ ॥
गोंड ॥
गोंड ॥

ਜੇ ਓਹੁ ਅਠਸਠਿ ਤੀਰਥ ਨੑਾਵੈ ॥
जे ओहु अठसठि तीरथ न्हावै ॥
यदि कोई अड़सठ तीर्थों पर स्नान करे,

ਜੇ ਓਹੁ ਦੁਆਦਸ ਸਿਲਾ ਪੂਜਾਵੈ ॥
जे ओहु दुआदस सिला पूजावै ॥
यदि वह (अमरनाथ, सोमनाथ, काशी, रामेश्वरम, केदारनाथ इत्यादि) बारह शिवलिंगों की पूजा भी करे,

ਜੇ ਓਹੁ ਕੂਪ ਤਟਾ ਦੇਵਾਵੈ ॥
जे ओहु कूप तटा देवावै ॥
यदि वह कुआं एवं तालाब बनाकर जनहित के लिए अर्पण भी कर दे,

ਕਰੈ ਨਿੰਦ ਸਭ ਬਿਰਥਾ ਜਾਵੈ ॥੧॥
करै निंद सभ बिरथा जावै ॥१॥
किन्तु यदि वह (साधु की) निंदा करता है तो उसका सारा पुण्य व्यर्थ ही जाता है॥ १॥

ਸਾਧ ਕਾ ਨਿੰਦਕੁ ਕੈਸੇ ਤਰੈ ॥
साध का निंदकु कैसे तरै ॥
साधु की निंदा करने वाला कैसे मोक्ष प्राप्त कर सकता है ?

ਸਰਪਰ ਜਾਨਹੁ ਨਰਕ ਹੀ ਪਰੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
सरपर जानहु नरक ही परै ॥१॥ रहाउ ॥
सत्य जानो वह अवश्य ही नरक में पड़ता है।॥ १॥ रहाउ॥

ਜੇ ਓਹੁ ਗ੍ਰਹਨ ਕਰੈ ਕੁਲਖੇਤਿ ॥
जे ओहु ग्रहन करै कुलखेति ॥
यदि कोई सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र तीर्थ पर जाकर स्नान करे,

ਅਰਪੈ ਨਾਰਿ ਸੀਗਾਰ ਸਮੇਤਿ ॥
अरपै नारि सीगार समेति ॥
वहाँ अपनी नारी को सोलह श्रृंगार सहित ब्राह्मणों को दान के रूप में अर्पित कर दे,

ਸਗਲੀ ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਸ੍ਰਵਨੀ ਸੁਨੈ ॥
सगली सिम्रिति स्रवनी सुनै ॥
यदि वह समस्त स्मृतियों को अपने कानों से सुने,

ਕਰੈ ਨਿੰਦ ਕਵਨੈ ਨਹੀ ਗੁਨੈ ॥੨॥
करै निंद कवनै नही गुनै ॥२॥
यद्यपि वह साधु की निंदा कर दे तो उसके किए पुण्य-कर्मों का उसे कोई फल नहीं मिलता ॥ २॥

ਜੇ ਓਹੁ ਅਨਿਕ ਪ੍ਰਸਾਦ ਕਰਾਵੈ ॥
जे ओहु अनिक प्रसाद करावै ॥
यदि कोई अनेक बार ब्रह्म-भोज का आयोजन कर साधुओं अथवा लोगों को भोजन करवाता है,

ਭੂਮਿ ਦਾਨ ਸੋਭਾ ਮੰਡਪਿ ਪਾਵੈ ॥
भूमि दान सोभा मंडपि पावै ॥
यदि वह जनहित के लिए भूमिदान करता, सुन्दर महल एवं धर्मशाला बनवाता है,

ਅਪਨਾ ਬਿਗਾਰਿ ਬਿਰਾਂਨਾ ਸਾਂਢੈ ॥
अपना बिगारि बिरांना सांढै ॥
यदि वह अपना कार्य बिगाड़ कर दूसरों का कार्य संवार देता है लेकिन

ਕਰੈ ਨਿੰਦ ਬਹੁ ਜੋਨੀ ਹਾਂਢੈ ॥੩॥
करै निंद बहु जोनी हांढै ॥३॥
यदि वह (संत की) निंदा कर दे तो उसे अनेक योनियों में भटकना पड़ता है।॥ ३ ॥

ਨਿੰਦਾ ਕਹਾ ਕਰਹੁ ਸੰਸਾਰਾ ॥
निंदा कहा करहु संसारा ॥
हे संसार के लोगों ! आप निंदा क्यों करते हो ?

ਨਿੰਦਕ ਕਾ ਪਰਗਟਿ ਪਾਹਾਰਾ ॥
निंदक का परगटि पाहारा ॥
निंदक की मक्कारी की दुकान प्रगट हो जाती है अर्थात् उसका पोल खुल जाता है।

ਨਿੰਦਕੁ ਸੋਧਿ ਸਾਧਿ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥
निंदकु सोधि साधि बीचारिआ ॥
रविदास जी कहते हैं कि मैंने भलीभांति जांच-पड़ताल करके निंदक के बारे में यही विचार किया है कि

ਕਹੁ ਰਵਿਦਾਸ ਪਾਪੀ ਨਰਕਿ ਸਿਧਾਰਿਆ ॥੪॥੨॥੧੧॥੭॥੨॥੪੯॥ ਜੋੜੁ ॥
कहु रविदास पापी नरकि सिधारिआ ॥४॥२॥११॥७॥२॥४९॥ जोड़ु ॥
ऐसा पापी इन्सान आखिरकार नरक में ही पड़ा है॥ ४॥ २॥ ११॥ ७ ॥ २ ॥ ४९ ॥ जोड़॥

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