ਜਿਨਿ ਗੁਰਿ ਮੋ ਕਉ ਦੀਨਾ ਜੀਉ ॥
जिनि गुरि मो कउ दीना जीउ ॥
जिस गुरु ने मुझे जीवन दिया है,
ਆਪੁਨਾ ਦਾਸਰਾ ਆਪੇ ਮੁਲਿ ਲੀਉ ॥੬॥
आपुना दासरा आपे मुलि लीउ ॥६॥
उसने मुझे स्वयं खरीद लिया है और अपना सेवक बना लिया है ॥६॥
ਆਪੇ ਲਾਇਓ ਅਪਨਾ ਪਿਆਰੁ ॥
आपे लाइओ अपना पिआरु ॥
गुरु ने मुझे स्वयं प्रेम की देन प्रदान की है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਤਿਸੁ ਗੁਰ ਕਉ ਕਰੀ ਨਮਸਕਾਰੁ ॥੭॥
सदा सदा तिसु गुर कउ करी नमसकारु ॥७॥
सदा-सदा मैं उस गुरु को प्रणाम करता रहता हूँ॥ ७॥
ਕਲਿ ਕਲੇਸ ਭੈ ਭ੍ਰਮ ਦੁਖ ਲਾਥਾ ॥
कलि कलेस भै भ्रम दुख लाथा ॥
मेरे झगड़े, क्लेश, भय, भ्रम एवं तमाम दुःख दूर हो गए हैं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਮੇਰਾ ਗੁਰੁ ਸਮਰਾਥਾ ॥੮॥੯॥
कहु नानक मेरा गुरु समराथा ॥८॥९॥
हे नानक ! मेरा गुरदेव ऐसा शूरवीर है॥ ८॥ ९॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਗੋਬਿੰਦ ਅਪਨਾ ਨਾਮੁ ਦੇਹੁ ॥
मिलु मेरे गोबिंद अपना नामु देहु ॥
हे मेरे गोबिन्द ! मुझे दर्शन देकर अपना नाम प्रदान करो।
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਧ੍ਰਿਗੁ ਧ੍ਰਿਗੁ ਅਸਨੇਹੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नाम बिना ध्रिगु ध्रिगु असनेहु ॥१॥ रहाउ ॥
नामविहीन सांसारिक प्रेम को धिक्कार है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜੋ ਪਹਿਰੈ ਖਾਇ ॥
नाम बिना जो पहिरै खाइ ॥
भगवान के नाम बिना इन्सान जो कुछ पहनता एवं खाता रहता है,
ਜਿਉ ਕੂਕਰੁ ਜੂਠਨ ਮਹਿ ਪਾਇ ॥੧॥
जिउ कूकरु जूठन महि पाइ ॥१॥
वह उस कुत्ते की तरह है जो जूठे पत्तलों में मुँह मारता रहता है।॥ १॥
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਜੇਤਾ ਬਿਉਹਾਰੁ ॥
नाम बिना जेता बिउहारु ॥
भगवान के नाम की स्मृति बिना समस्त कार्य-व्यवहार
ਜਿਉ ਮਿਰਤਕ ਮਿਥਿਆ ਸੀਗਾਰੁ ॥੨॥
जिउ मिरतक मिथिआ सीगारु ॥२॥
मृतक के हार-श्रृंगार की तरह व्यर्थ है ॥२॥
ਨਾਮੁ ਬਿਸਾਰਿ ਕਰੇ ਰਸ ਭੋਗ ॥
नामु बिसारि करे रस भोग ॥
जो व्यक्ति नाम को भुलाकर भोग-विलास में पड़ता है,
ਸੁਖੁ ਸੁਪਨੈ ਨਹੀ ਤਨ ਮਹਿ ਰੋਗ ॥੩॥
सुखु सुपनै नही तन महि रोग ॥३॥
उसको स्वप्न में भी सुख नहीं मिलता और उसका शरीर रोगी हो जाता है ॥३॥
ਨਾਮੁ ਤਿਆਗਿ ਕਰੇ ਅਨ ਕਾਜ ॥
नामु तिआगि करे अन काज ॥
प्रभु के नाम को त्याग कर यदि मनुष्य दूसरे काम धन्धे करता है,
ਬਿਨਸਿ ਜਾਇ ਝੂਠੇ ਸਭਿ ਪਾਜ ॥੪॥
बिनसि जाइ झूठे सभि पाज ॥४॥
तो उसके झूठे आडम्बर सब के सब नाश हो जाते हैं।॥ ४ ॥
ਨਾਮ ਸੰਗਿ ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਨ ਲਾਵੈ ॥
नाम संगि मनि प्रीति न लावै ॥
जो इन्सान अपने हृदय में प्रभु का प्रेम नहीं लगाता,
ਕੋਟਿ ਕਰਮ ਕਰਤੋ ਨਰਕਿ ਜਾਵੈ ॥੫॥
कोटि करम करतो नरकि जावै ॥५॥
ऐसा व्यक्ति नरक में जाता है, चाहे वह करोड़ों ही कर्म-धर्म करता रहे ॥५॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਿਨਿ ਮਨਿ ਨ ਆਰਾਧਾ ॥
हरि का नामु जिनि मनि न आराधा ॥
जो व्यक्ति अपने हृदय में परमेश्वर के नाम की आराधना नहीं करता,
ਚੋਰ ਕੀ ਨਿਆਈ ਜਮ ਪੁਰਿ ਬਾਧਾ ॥੬॥
चोर की निआई जम पुरि बाधा ॥६॥
वह यमलोक में चोर की भाँति पकड़ा जाता है। ६॥
ਲਾਖ ਅਡੰਬਰ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥
लाख अड्मबर बहुतु बिसथारा ॥
लाखों ही आडम्बर एवं अनेक प्रसार,
ਨਾਮ ਬਿਨਾ ਝੂਠੇ ਪਾਸਾਰਾ ॥੭॥
नाम बिना झूठे पासारा ॥७॥
प्रभु के नाम बिना ये सब झुठे दिखावे हैं॥ ५॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸੋਈ ਜਨੁ ਲੇਇ ॥
हरि का नामु सोई जनु लेइ ॥
हे नानक वो ही व्यक्ति भगवान के नाम का सिमरन करता है,
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਦੇਇ ॥੮॥੧੦॥
करि किरपा नानक जिसु देइ ॥८॥१०॥
जिस व्यक्ति को भगवान कृपा-दृष्टि करके देता है ॥८॥१०॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
गउड़ी महला ५ ॥
ਆਦਿ ਮਧਿ ਜੋ ਅੰਤਿ ਨਿਬਾਹੈ ॥
आदि मधि जो अंति निबाहै ॥
जो सृष्टि के आदि, मध्य, अंतकाल में जीव का साथ निभाता है,
ਸੋ ਸਾਜਨੁ ਮੇਰਾ ਮਨੁ ਚਾਹੈ ॥੧॥
सो साजनु मेरा मनु चाहै ॥१॥
मेरा मन तो उस साजन-परमात्मा से मिलने का ही इच्छुक बना हुआ है॥ १॥
ਹਰਿ ਕੀ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਦਾ ਸੰਗਿ ਚਾਲੈ ॥
हरि की प्रीति सदा संगि चालै ॥
ईश्वर का प्रेम सदा प्राणी के साथ जाता है।
ਦਇਆਲ ਪੁਰਖ ਪੂਰਨ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दइआल पुरख पूरन प्रतिपालै ॥१॥ रहाउ ॥
सर्वव्यापक एवं दया का घर परमात्मा समस्त जीव-जन्तुओं का पालन पोषण करता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਬਿਨਸਤ ਨਾਹੀ ਛੋਡਿ ਨ ਜਾਇ ॥
बिनसत नाही छोडि न जाइ ॥
प्रभु न ही कभी मरता है और न ही अपने प्राणियों को छोड़कर कहीं जाता है।
ਜਹ ਪੇਖਾ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੨॥
जह पेखा तह रहिआ समाइ ॥२॥
जहाँ कहीं मैं देखता हूँ, वहाँ ईश्वर मौजूद है॥ २॥
ਸੁੰਦਰੁ ਸੁਘੜੁ ਚਤੁਰੁ ਜੀਅ ਦਾਤਾ ॥
सुंदरु सुघड़ु चतुरु जीअ दाता ॥
ईश्वर अति सुन्दर, बुद्धिमान, चतुर एवं प्राणदाता है।
ਭਾਈ ਪੂਤੁ ਪਿਤਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮਾਤਾ ॥੩॥
भाई पूतु पिता प्रभु माता ॥३॥
वह ही मेरा भाई, पुत्र, पिता एवं माता है॥ ३॥
ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਾਨ ਅਧਾਰ ਮੇਰੀ ਰਾਸਿ ॥
जीवन प्रान अधार मेरी रासि ॥
वह मेरा जीवन एवं प्राणों का आधार है और वही मेरी जीवन पूँजी है।
ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਈ ਕਰਿ ਰਿਦੈ ਨਿਵਾਸਿ ॥੪॥
प्रीति लाई करि रिदै निवासि ॥४॥
मेरे हृदय में निवास करके प्रभु ने मेरे साथ प्रीति लगाई है ॥४॥
ਮਾਇਆ ਸਿਲਕ ਕਾਟੀ ਗੋਪਾਲਿ ॥
माइआ सिलक काटी गोपालि ॥
सृष्टि के पालनहार गोपाल ने मेरा माया का बन्धन काट दिया है।
ਕਰਿ ਅਪੁਨਾ ਲੀਨੋ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿ ॥੫
करि अपुना लीनो नदरि निहालि ॥५॥
मेरी ओर कृपा-दृष्टि से देखकर प्रभु ने मुझे अपना बना लिया है ॥५॥
ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਕਾਟੇ ਸਭਿ ਰੋਗ ॥
सिमरि सिमरि काटे सभि रोग ॥
उसका सिमरन करने से तमाम रोग (दुःख) दूर हो गए हैं।
ਚਰਣ ਧਿਆਨ ਸਰਬ ਸੁਖ ਭੋਗ ॥੬॥
चरण धिआन सरब सुख भोग ॥६॥
उसके चरणों में वृत्ति लगा कर सर्व सुख प्राप्त कर लिए जाते हैं।॥ ६॥
ਪੂਰਨ ਪੁਰਖੁ ਨਵਤਨੁ ਨਿਤ ਬਾਲਾ ॥
पूरन पुरखु नवतनु नित बाला ॥
सर्वव्यापक प्रभु सदा नवांगतुक एवं यौवन सम्पन्न है।
ਹਰਿ ਅੰਤਰਿ ਬਾਹਰਿ ਸੰਗਿ ਰਖਵਾਲਾ ॥੭॥
हरि अंतरि बाहरि संगि रखवाला ॥७॥
भीतर एवं बाहर ईश्वर ही मेरा रखवाला है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪਦੁ ਚੀਨ ॥
कहु नानक हरि हरि पदु चीन ॥
हे नानक ! जो प्रभु-परमेश्वर के महान पद की अनुभूति करता है,
ਸਰਬਸੁ ਨਾਮੁ ਭਗਤ ਕਉ ਦੀਨ ॥੮॥੧੧॥
सरबसु नामु भगत कउ दीन ॥८॥११॥
उस भक्त को वह दुनिया का सर्वस्व अपने नाम के रूप में दे देता है ॥८॥११॥
ਰਾਗੁ ਗਉੜੀ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੫
रागु गउड़ी माझ महला ५
रागु गउड़ी माझ महला ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਖੋਜਤ ਫਿਰੇ ਅਸੰਖ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰੀਆ ॥
खोजत फिरे असंख अंतु न पारीआ ॥
असंख्य प्राणी भगवान को खोजते रहे हैं लेकिन किसी प्राणी को भी भगवान की महिमा का अन्त प्राप्त नहीं हुआ।
ਸੇਈ ਹੋਏ ਭਗਤ ਜਿਨਾ ਕਿਰਪਾਰੀਆ ॥੧॥
सेई होए भगत जिना किरपारीआ ॥१॥
जिन पर भगवान की कृपा-दृष्टि हो जाती है, ऐसे व्यक्ति ही भगवान के भक्त बनते हैं॥ १॥
ਹਉ ਵਾਰੀਆ ਹਰਿ ਵਾਰੀਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हउ वारीआ हरि वारीआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे प्रभु ! मैं तुझ पर तन एवं मन से न्यौछावर हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੁਣਿ ਸੁਣਿ ਪੰਥੁ ਡਰਾਉ ਬਹੁਤੁ ਭੈਹਾਰੀਆ ॥
सुणि सुणि पंथु डराउ बहुतु भैहारीआ ॥
भवसागर भयानक मार्ग बारे सुन-सुन कर मैं अत्यंत भयभीत हो गया हूँ।
ਮੈ ਤਕੀ ਓਟ ਸੰਤਾਹ ਲੇਹੁ ਉਬਾਰੀਆ ॥੨॥
मै तकी ओट संताह लेहु उबारीआ ॥२॥
अंतः मैंने संतों का सहारा लिया है। हे प्रभु के प्रिय जनो ! आप मेरी रक्षा कीजिए॥ २॥