ਭਗਤਿ ਨਿਰਾਲੀ ਅਲਾਹ ਦੀ ਜਾਪੈ ਗੁਰ ਵੀਚਾਰਿ ॥
भगति निराली अलाह दी जापै गुर वीचारि ॥
अल्लाह की भक्ति बड़ी निराली है जो गुरु के उपदेश द्वारा ही समझी जाती है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਹਿਰਦੈ ਵਸੈ ਭੈ ਭਗਤੀ ਨਾਮਿ ਸਵਾਰਿ ॥੯॥੧੪॥੩੬॥
नानक नामु हिरदै वसै भै भगती नामि सवारि ॥९॥१४॥३६॥
हे नानक ! जिसके हृदय में परमात्मा का नाम बस जाता है वह प्रभु-भय एवं भक्ति द्वारा उसके नाम से अपना जीवन संवार लेता है॥ ६॥ १४॥ ३६॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥
ਅਨ ਰਸ ਮਹਿ ਭੋਲਾਇਆ ਬਿਨੁ ਨਾਮੈ ਦੁਖ ਪਾਇ ॥
अन रस महि भोलाइआ बिनु नामै दुख पाइ ॥
दूसरे पदार्थों के स्वादों में फँसकर मनुष्य भटकता ही रहता है और नाम के बिना बड़ा दु:ख प्राप्त करता है।
ਸਤਿਗੁਰੁ ਪੁਰਖੁ ਨ ਭੇਟਿਓ ਜਿ ਸਚੀ ਬੂਝ ਬੁਝਾਇ ॥੧॥
सतिगुरु पुरखु न भेटिओ जि सची बूझ बुझाइ ॥१॥
उसे सच्चे गुरु जैसा महापुरुष नहीं मिलता जो सत्य की सूझ प्रदान करता है। ॥ १ ॥
ਏ ਮਨ ਮੇਰੇ ਬਾਵਲੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਚਖਿ ਸਾਦੁ ਪਾਇ ॥
ए मन मेरे बावले हरि रसु चखि सादु पाइ ॥
हे मेरे बावले मन ! हरि-रस को चखकर उसका स्वाद प्राप्त कर।
ਅਨ ਰਸਿ ਲਾਗਾ ਤੂੰ ਫਿਰਹਿ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
अन रसि लागा तूं फिरहि बिरथा जनमु गवाइ ॥१॥ रहाउ ॥
दूसरे रसों से जुड़ कर तुम भटकते फिरते हो और अपना अनमोल जन्म व्यर्थ ही गंवा रहे हो। १॥ रहाउ ॥
ਇਸੁ ਜੁਗ ਮਹਿ ਗੁਰਮੁਖ ਨਿਰਮਲੇ ਸਚਿ ਨਾਮਿ ਰਹਹਿ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
इसु जुग महि गुरमुख निरमले सचि नामि रहहि लिव लाइ ॥
इस युग में गुरुमुख पवित्र-पावन है जो सत्यनाम में लगन लगाकर रखते हैं।
ਵਿਣੁ ਕਰਮਾ ਕਿਛੁ ਪਾਈਐ ਨਹੀ ਕਿਆ ਕਰਿ ਕਹਿਆ ਜਾਇ ॥੨॥
विणु करमा किछु पाईऐ नही किआ करि कहिआ जाइ ॥२॥
तकदीर के बिना कुछ भी प्राप्त नहीं होता और इस बारे हम क्या कह अथवा कर सकते हैं ? ॥ २ ॥
ਆਪੁ ਪਛਾਣਹਿ ਸਬਦਿ ਮਰਹਿ ਮਨਹੁ ਤਜਿ ਵਿਕਾਰ ॥
आपु पछाणहि सबदि मरहि मनहु तजि विकार ॥
जो अपने मन से विकारों को निकाल देता है और गुरु के शब्द द्वारा मर जाता है, वह अपने आपको पहचान लेता है।
ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਭਜਿ ਪਏ ਬਖਸੇ ਬਖਸਣਹਾਰ ॥੩॥
गुर सरणाई भजि पए बखसे बखसणहार ॥३॥
जो गुरु की शरणागत भाग कर चले जाते है,उनको क्षमावान परमात्मा है क्षमा कर देता है ॥३॥
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸੁਖੁ ਨ ਪਾਈਐ ਨਾ ਦੁਖੁ ਵਿਚਹੁ ਜਾਇ ॥
बिनु नावै सुखु न पाईऐ ना दुखु विचहु जाइ ॥
नाम के बिना सुख प्राप्त नहीं होता और न ही भीतर से दु:ख दूर होता है।
ਇਹੁ ਜਗੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਵਿਆਪਿਆ ਦੂਜੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥੪॥
इहु जगु माइआ मोहि विआपिआ दूजै भरमि भुलाइ ॥४॥
यह दुनिया माया के मोह में लिप्त है और द्वैतवाद एवं भ्रम में कुमार्गगामी हो गई है। ४ ।
ਦੋਹਾਗਣੀ ਪਿਰ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਹੀ ਕਿਆ ਕਰਿ ਕਰਹਿ ਸੀਗਾਰੁ ॥
दोहागणी पिर की सार न जाणही किआ करि करहि सीगारु ॥
दुहागिन जीव-स्त्रियां अपने पति-प्रभु की कद्र को नहीं जानती।
ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਜਲਦੀਆ ਫਿਰਹਿ ਸੇਜੈ ਰਵੈ ਨ ਭਤਾਰੁ ॥੫॥
अनदिनु सदा जलदीआ फिरहि सेजै रवै न भतारु ॥५॥
वह श्रृंगार करके क्या करेंगी ! वह रात-दिन सदा (तृष्णाओं में) जलती रहती हैं और अपने पति-प्रभु के साथ सेज पर रमण नहीं करतीं। ॥५॥
ਸੋਹਾਗਣੀ ਮਹਲੁ ਪਾਇਆ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥
सोहागणी महलु पाइआ विचहु आपु गवाइ ॥
सुहागिन जीव-स्त्रियाँ अपने अहत्च को भीतर से दूर करके अपने प्रभु के महल को प्राप्त कर लेती हैं।
ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਸੀਗਾਰੀਆ ਅਪਣੇ ਸਹਿ ਲਈਆ ਮਿਲਾਇ ॥੬॥
गुर सबदी सीगारीआ अपणे सहि लईआ मिलाइ ॥६॥
गुरु के शब्द से उन्होंने श्रृंगार किया हुआ है और उनका प्राणनाथ उन्हें अपने साथ मिला लेता है। ६॥
ਮਰਣਾ ਮਨਹੁ ਵਿਸਾਰਿਆ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਗੁਬਾਰੁ ॥
मरणा मनहु विसारिआ माइआ मोहु गुबारु ॥
माया-मोह के अन्धकार में मनुष्य ने अपने मन में से मृत्यु को भुला दिया है।
ਮਨਮੁਖ ਮਰਿ ਮਰਿ ਜੰਮਹਿ ਭੀ ਮਰਹਿ ਜਮ ਦਰਿ ਹੋਹਿ ਖੁਆਰੁ ॥੭॥
मनमुख मरि मरि जमहि भी मरहि जम दरि होहि खुआरु ॥७॥
स्वेच्छाचारी मनुष्य बार-बार मरते और यम के द्वार पर दु:खी होते हैं। ७ ।
ਆਪਿ ਮਿਲਾਇਅਨੁ ਸੇ ਮਿਲੇ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥
आपि मिलाइअनु से मिले गुर सबदि वीचारि ॥
जिन्हें भगवान आप मिलाता है वह गुरु-शब्द का चिन्तन करके उससे मिल जाते हैं।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸਮਾਣੇ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਤਿਤੁ ਸਚੈ ਦਰਬਾਰਿ ॥੮॥੨੨॥੧੫॥੩੭॥
नानक नामि समाणे मुख उजले तितु सचै दरबारि ॥८॥२२॥१५॥३७॥
हे नानक ! जो प्रभु-नाम में समाए हुए हैं, उस सच्चे दरबार में उनके मुख उज्ज्वल हो जाते हैं ॥८॥२२॥१५॥३७॥
ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੫ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੨
आसा महला ५ असटपदीआ घरु २
आसा महला ५ असटपदीआ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।
ਪੰਚ ਮਨਾਏ ਪੰਚ ਰੁਸਾਏ ॥
पंच मनाए पंच रुसाए ॥
सत्य, दया, धर्म, संतोष एवं ज्ञान-पाँचों गुणों को जब मैंने अपना मित्र बनाया तो कामादिक पांचो विकार – काम, क्रोध लोभ, मोह, अहंकार, नाराज होकर मेरी अंतरात्मा से निकल कर भाग गए।
ਪੰਚ ਵਸਾਏ ਪੰਚ ਗਵਾਏ ॥੧॥
पंच वसाए पंच गवाए ॥१॥
इस तरह पाँचों गुण भीतर बसने लगे और पाँच विकार दूर हो गए। १॥
ਇਨੑ ਬਿਧਿ ਨਗਰੁ ਵੁਠਾ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
इन्ह बिधि नगरु वुठा मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई! इस विधि से मेरा शरीर रूपी नगर बस गया।
ਦੁਰਤੁ ਗਇਆ ਗੁਰਿ ਗਿਆਨੁ ਦ੍ਰਿੜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
दुरतु गइआ गुरि गिआनु द्रिड़ाई ॥१॥ रहाउ ॥
पाप-विकार दूर हो गए और गुरु ने मेरे भीतर ज्ञान दृढ़ कर दिया। १॥ रहाउ ।
ਸਾਚ ਧਰਮ ਕੀ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਵਾਰਿ ॥
साच धरम की करि दीनी वारि ॥
इस शरीर रूपी नगर के चारों ओर रक्षा हेतु सत्य धर्म की बाड़ लगा दी।
ਫਰਹੇ ਮੁਹਕਮ ਗੁਰ ਗਿਆਨੁ ਬੀਚਾਰਿ ॥੨॥
फरहे मुहकम गुर गिआनु बीचारि ॥२॥
गुरु प्रदत्त ज्ञान एवं मनन के मजबूत द्वार लगा दिए गए। २ ।
ਨਾਮੁ ਖੇਤੀ ਬੀਜਹੁ ਭਾਈ ਮੀਤ ॥
नामु खेती बीजहु भाई मीत ॥
हे मेरे भाई! हे मित्र ! प्रभु-नाम की फसल बीज।
ਸਉਦਾ ਕਰਹੁ ਗੁਰੁ ਸੇਵਹੁ ਨੀਤ ॥੩॥
सउदा करहु गुरु सेवहु नीत ॥३॥
नित्य गुरु की सेवा का सौदा करो। ३॥
ਸਾਂਤਿ ਸਹਜ ਸੁਖ ਕੇ ਸਭਿ ਹਾਟ ॥
सांति सहज सुख के सभि हाट ॥
शांति एवं सहज सुख की सभी दुकानें भरी हुई हैं।
ਸਾਹ ਵਾਪਾਰੀ ਏਕੈ ਥਾਟ ॥੪॥
साह वापारी एकै थाट ॥४॥
गुरु शाह एवं शिष्य व्यापारी एक ही स्थान पर बसते हैं। ४ ॥
ਜੇਜੀਆ ਡੰਨੁ ਕੋ ਲਏ ਨ ਜਗਾਤਿ ॥
जेजीआ डंनु को लए न जगाति ॥
कोई यम जजिया, दण्ड एवं महसूल चुंगी नहीं लगते,”
ਸਤਿਗੁਰਿ ਕਰਿ ਦੀਨੀ ਧੁਰ ਕੀ ਛਾਪ ॥੫॥
सतिगुरि करि दीनी धुर की छाप ॥५॥
क्योकि सतिगुरु ने प्रभु की मोहर लगा दी है ॥ ५ ॥
ਵਖਰੁ ਨਾਮੁ ਲਦਿ ਖੇਪ ਚਲਾਵਹੁ ॥
वखरु नामु लदि खेप चलावहु ॥
हे भाई ! तुम भी नाम-सुमिरन का सौदा लादकर व्यापार किया करो।
ਲੈ ਲਾਹਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਘਰਿ ਆਵਹੁ ॥੬॥
लै लाहा गुरमुखि घरि आवहु ॥६॥
इस तरह तुम गुरु की शिक्षा पर चलकर लाभ प्राप्त करके अपने घर आ जाओगे ॥ ६॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸਾਹੁ ਸਿਖ ਵਣਜਾਰੇ ॥
सतिगुरु साहु सिख वणजारे ॥
सतिगुरु नाम धन का शाह है और उसके शिष्य व्यापारी हैं।
ਪੂੰਜੀ ਨਾਮੁ ਲੇਖਾ ਸਾਚੁ ਸਮ੍ਹਾਰੇ ॥੭॥
पूंजी नामु लेखा साचु सम्हारे ॥७॥
पूँजी प्रभु का ही नाम है और परमात्मा की आराधना लेखा-जोखा है। ७ ॥
ਸੋ ਵਸੈ ਇਤੁ ਘਰਿ ਜਿਸੁ ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸੇਵ ॥
सो वसै इतु घरि जिसु गुरु पूरा सेव ॥
हे नानक ! जो मनुष्य पूर्ण गुरु की सेवा करता है, वही इस घर में रहता है
ਅਬਿਚਲ ਨਗਰੀ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ॥੮॥੧॥
अबिचल नगरी नानक देव ॥८॥१॥
और प्रभु की नगरी अविचल (अटल) है॥ ८ ॥ १॥