ਨਿਹਚਲ ਆਸਨੁ ਬੇਸੁਮਾਰੁ ॥੨॥
निहचल आसनु बेसुमारु ॥२॥
उस अटल स्थान की कीर्ति बेअंत है ॥२॥
ਡਿਗਿ ਨ ਡੋਲੈ ਕਤਹੂ ਨ ਧਾਵੈ ॥
डिगि न डोलै कतहू न धावै ॥
वह स्थान कभी गिरता एवं डोलता नहीं और
ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਕੋ ਇਹੁ ਮਹਲੁ ਪਾਵੈ ॥
गुर प्रसादि को इहु महलु पावै ॥
गुरु की कृपा से ही कोई इस स्थान को प्राप्त करता है।
ਭ੍ਰਮ ਭੈ ਮੋਹ ਨ ਮਾਇਆ ਜਾਲ ॥
भ्रम भै मोह न माइआ जाल ॥
वहाँ भक्तजनों को भ्रम, भय एवं मोह-माया का जाल प्रभावित नहीं करता।
ਸੁੰਨ ਸਮਾਧਿ ਪ੍ਰਭੂ ਕਿਰਪਾਲ ॥੩॥
सुंन समाधि प्रभू किरपाल ॥३॥
शून्य समाधि में रहने वाले पर प्रभु कृपालु हो जाता है॥ ३॥
ਤਾ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰਾਵਾਰੁ ॥
ता का अंतु न पारावारु ॥
उसका कोई अन्त एवं आर-पार नहीं।
ਆਪੇ ਗੁਪਤੁ ਆਪੇ ਪਾਸਾਰੁ ॥
आपे गुपतु आपे पासारु ॥
वह स्वयं ही गुप्त है एवं स्वयं ही जगत्-प्रसार में प्रगट हो रहा है।
ਜਾ ਕੈ ਅੰਤਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਸੁਆਦੁ ॥
जा कै अंतरि हरि हरि सुआदु ॥
हे नानक ! जिसके अन्तर में हरि-नाम का स्वाद पैदा हो जाता है,
ਕਹਨੁ ਨ ਜਾਈ ਨਾਨਕ ਬਿਸਮਾਦੁ ॥੪॥੯॥੨੦॥
कहनु न जाई नानक बिसमादु ॥४॥९॥२०॥
ऐसा अद्भुत स्वाद बयान नहीं किया जा सकता ॥४॥९॥२०॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਭੇਟਤ ਸੰਗਿ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ਚਿਤਿ ਆਇਆ ॥
भेटत संगि पारब्रहमु चिति आइआ ॥
संतों से भेंट करने पर परब्रह्म स्मरण आया है,
ਸੰਗਤਿ ਕਰਤ ਸੰਤੋਖੁ ਮਨਿ ਪਾਇਆ ॥
संगति करत संतोखु मनि पाइआ ॥
उनकी संगति करने से मन में संतोष प्राप्त हो गया है।
ਸੰਤਹ ਚਰਨ ਮਾਥਾ ਮੇਰੋ ਪਉਤ ॥
संतह चरन माथा मेरो पउत ॥
मेरा माथा संतों के चरणों में ही झुकता है और
ਅਨਿਕ ਬਾਰ ਸੰਤਹ ਡੰਡਉਤ ॥੧॥
अनिक बार संतह डंडउत ॥१॥
अनेक बार उन्हें दण्डवत प्रणाम करता हूँ॥ १॥
ਇਹੁ ਮਨੁ ਸੰਤਨ ਕੈ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
इहु मनु संतन कै बलिहारी ॥
यह मन संतजनों पर बलिहारी जाता है,
ਜਾ ਕੀ ਓਟ ਗਹੀ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ਰਾਖੇ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जा की ओट गही सुखु पाइआ राखे किरपा धारी ॥१॥ रहाउ ॥
जिनकी ओट लेकर सच्चा सुख प्राप्त हुआ है और कृपा करके उन्होंने ही मेरी रक्षा की है॥ १॥ रहाउ ॥
ਸੰਤਹ ਚਰਣ ਧੋਇ ਧੋਇ ਪੀਵਾ ॥
संतह चरण धोइ धोइ पीवा ॥
मैं तो संतों के चरण धो धोकर पीता रहता हूँ और
ਸੰਤਹ ਦਰਸੁ ਪੇਖਿ ਪੇਖਿ ਜੀਵਾ ॥
संतह दरसु पेखि पेखि जीवा ॥
उनके दर्शन देख-देखकर ही जीवन पा रहा हूँ।
ਸੰਤਹ ਕੀ ਮੇਰੈ ਮਨਿ ਆਸ ॥
संतह की मेरै मनि आस ॥
मेरे मन में संतों की ही आशा बनी हुई है और
ਸੰਤ ਹਮਾਰੀ ਨਿਰਮਲ ਰਾਸਿ ॥੨॥
संत हमारी निरमल रासि ॥२॥
उनकी सेवा ही हमारी निर्मल राशि है॥ २॥
ਸੰਤ ਹਮਾਰਾ ਰਾਖਿਆ ਪੜਦਾ ॥
संत हमारा राखिआ पड़दा ॥
संतों ने हमारा पर्दा रख लिया है अर्थात् पापों को ढंक लिया है।
ਸੰਤ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਮੋਹਿ ਕਬਹੂ ਨ ਕੜਦਾ ॥
संत प्रसादि मोहि कबहू न कड़दा ॥
उनकी कृपा से मैं कभी दुखी नहीं होता।
ਸੰਤਹ ਸੰਗੁ ਦੀਆ ਕਿਰਪਾਲ ॥
संतह संगु दीआ किरपाल ॥
कृपालु प्रभु ने ही संतों का साथ दिया है और
ਸੰਤ ਸਹਾਈ ਭਏ ਦਇਆਲ ॥੩॥
संत सहाई भए दइआल ॥३॥
दयालु संत मेरे सहायक बन गए हैं।॥ ३॥
ਸੁਰਤਿ ਮਤਿ ਬੁਧਿ ਪਰਗਾਸੁ ॥
सुरति मति बुधि परगासु ॥
अब अन्तर्मन में मति एवं बुद्धि का आलोक हो गया है।
ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰ ਅਪਾਰ ਗੁਣਤਾਸੁ ॥
गहिर ग्मभीर अपार गुणतासु ॥
संत गहन गंभीर एवं गुणों के भण्डार हैं और
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਗਲੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
जीअ जंत सगले प्रतिपाल ॥
वही सब जीवों के प्रतिपालक हैं।
ਨਾਨਕ ਸੰਤਹ ਦੇਖਿ ਨਿਹਾਲ ॥੪॥੧੦॥੨੧॥
नानक संतह देखि निहाल ॥४॥१०॥२१॥
नानक तो संतों को देखकर निहाल हो गया है॥ ४॥ १० ॥ २१ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਤੇਰੈ ਕਾਜਿ ਨ ਗ੍ਰਿਹੁ ਰਾਜੁ ਮਾਲੁ ॥
तेरै काजि न ग्रिहु राजु मालु ॥
हे प्राणी ! घर, राज्य एवं धन संपदा तेरे किसी काम नहीं आने।
ਤੇਰੈ ਕਾਜਿ ਨ ਬਿਖੈ ਜੰਜਾਲੁ ॥
तेरै काजि न बिखै जंजालु ॥
माया रूपी विष के ये जंजाल भी तेरे काम नहीं आने।
ਇਸਟ ਮੀਤ ਜਾਣੁ ਸਭ ਛਲੈ ॥
इसट मीत जाणु सभ छलै ॥
यह भी समझ लो कि घनिष्ठ मित्र भी छल ही हैं
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਸੰਗਿ ਤੇਰੈ ਚਲੈ ॥੧॥
हरि हरि नामु संगि तेरै चलै ॥१॥
केवल हरि-नाम ही तेरे साथ जाएगा ॥ १॥
ਰਾਮ ਨਾਮ ਗੁਣ ਗਾਇ ਲੇ ਮੀਤਾ ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਤੇਰੀ ਲਾਜ ਰਹੈ ॥
राम नाम गुण गाइ ले मीता हरि सिमरत तेरी लाज रहै ॥
हे प्यारे, राम नाम का गुणगान कर ले, हरि-स्मरण से ही तेरी लाज रहेगी।
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਜਮੁ ਕਛੁ ਨ ਕਹੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि सिमरत जमु कछु न कहै ॥१॥ रहाउ ॥
हरि का सिमरन करने से यम तुझे तंग नहीं करेगा।॥ १॥ रहाउ॥
ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਸਗਲ ਨਿਰਾਰਥ ਕਾਮ ॥
बिनु हरि सगल निरारथ काम ॥
परमात्मा की स्मृति के बिना सब कार्य व्यर्थ हैं।
ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਮਾਟੀ ਦਾਮ ॥
सुइना रुपा माटी दाम ॥
सोना, चांदी एवं रुपए-पैसे मिट्टी के समान हैं।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਜਾਪਿ ਮਨ ਸੁਖਾ ॥
गुर का सबदु जापि मन सुखा ॥
गुरु का शब्द जपने से ही मन को सुख हासिल होगा और
ਈਹਾ ਊਹਾ ਤੇਰੋ ਊਜਲ ਮੁਖਾ ॥੨॥
ईहा ऊहा तेरो ऊजल मुखा ॥२॥
लोक-परलोक में तेरा मुख उज्ज्वल होगा ॥ २॥
ਕਰਿ ਕਰਿ ਥਾਕੇ ਵਡੇ ਵਡੇਰੇ ॥
करि करि थाके वडे वडेरे ॥
तेरे पूर्वज भी संसार के धंधे कर करके थक चुके हैं,
ਕਿਨ ਹੀ ਨ ਕੀਏ ਕਾਜ ਮਾਇਆ ਪੂਰੇ ॥
किन ही न कीए काज माइआ पूरे ॥
किन्तु माया ने किसी का कार्य पूरा नहीं किया।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪੈ ਜਨੁ ਕੋਇ ॥
हरि हरि नामु जपै जनु कोइ ॥
जो भी व्यक्ति हरि-नाम का जाप करता है,
ਤਾ ਕੀ ਆਸਾ ਪੂਰਨ ਹੋਇ ॥੩॥
ता की आसा पूरन होइ ॥३॥
उसकी सब आशाएँ पूरी हो जाती हैं।॥ ३॥
ਹਰਿ ਭਗਤਨ ਕੋ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ॥
हरि भगतन को नामु अधारु ॥
भगवान के भक्तों को उसके नाम का ही आसरा है और
ਸੰਤੀ ਜੀਤਾ ਜਨਮੁ ਅਪਾਰੁ ॥
संती जीता जनमु अपारु ॥
अमूल्य मानव-जन्म को संतों ने ही जीता है।
ਹਰਿ ਸੰਤੁ ਕਰੇ ਸੋਈ ਪਰਵਾਣੁ ॥
हरि संतु करे सोई परवाणु ॥
हरि का संत जो भी करता है, वह मंजूर हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤਾ ਕੈ ਕੁਰਬਾਣੁ ॥੪॥੧੧॥੨੨॥
नानक दासु ता कै कुरबाणु ॥४॥११॥२२॥
दास नानक उन संतों पर ही कुर्बान जाता है॥ ४॥ ११॥ २२॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਸਿੰਚਹਿ ਦਰਬੁ ਦੇਹਿ ਦੁਖੁ ਲੋਗ ॥
सिंचहि दरबु देहि दुखु लोग ॥
हे जीव ! लोगों को दुख देकर तू बड़ा धन इकट्टा करता है,
ਤੇਰੈ ਕਾਜਿ ਨ ਅਵਰਾ ਜੋਗ ॥
तेरै काजि न अवरा जोग ॥
लेकिन यह तेरे किसी काम नहीं आना, अपितु दूसरों के उपयोग के लिए यहाँ ही रह जाएगा।
ਕਰਿ ਅਹੰਕਾਰੁ ਹੋਇ ਵਰਤਹਿ ਅੰਧ ॥
करि अहंकारु होइ वरतहि अंध ॥
तू धन में अंधा होकर बड़ा अहंकार करता है,
ਜਮ ਕੀ ਜੇਵੜੀ ਤੂ ਆਗੈ ਬੰਧ ॥੧॥
जम की जेवड़ी तू आगै बंध ॥१॥
लेकिन यम की फांसी में बांधकर तुझे परलोक में ले जाया जाएगा ॥ १॥
ਛਾਡਿ ਵਿਡਾਣੀ ਤਾਤਿ ਮੂੜੇ ॥
छाडि विडाणी ताति मूड़े ॥
अरे मूर्ख ! दूसरों से ईर्षा करना छोड़ दे,
ਈਹਾ ਬਸਨਾ ਰਾਤਿ ਮੂੜੇ ॥
ईहा बसना राति मूड़े ॥
तूने इस दुनिया में केवल एक रात ही रहना है।
ਮਾਇਆ ਕੇ ਮਾਤੇ ਤੈ ਉਠਿ ਚਲਨਾ ॥
माइआ के माते तै उठि चलना ॥
हे माया के मतवाले ! तूने एक दिन यहाँ से चले जाना है,
ਰਾਚਿ ਰਹਿਓ ਤੂ ਸੰਗਿ ਸੁਪਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
राचि रहिओ तू संगि सुपना ॥१॥ रहाउ ॥
तू सपने में लीन हो रहा है।१॥ रहाउ॥
ਬਾਲ ਬਿਵਸਥਾ ਬਾਰਿਕੁ ਅੰਧ ॥
बाल बिवसथा बारिकु अंध ॥
बाल्यावस्था में बालक ज्ञानहीन होता है और
ਭਰਿ ਜੋਬਨਿ ਲਾਗਾ ਦੁਰਗੰਧ ॥
भरि जोबनि लागा दुरगंध ॥
यौवनावस्था में विकारों में लग जाता है।