ਵਰਨੁ ਭੇਖੁ ਅਸਰੂਪੁ ਸੁ ਏਕੋ ਏਕੋ ਸਬਦੁ ਵਿਡਾਣੀ ॥
वरनु भेखु असरूपु सु एको एको सबदु विडाणी ॥
उस एक का रंग, वेष एवं स्वरूप बहुत सुन्दर है और स्वयं ही अद्भुत शब्द है।
ਸਾਚ ਬਿਨਾ ਸੂਚਾ ਕੋ ਨਾਹੀ ਨਾਨਕ ਅਕਥ ਕਹਾਣੀ ॥੬੭॥
साच बिना सूचा को नाही नानक अकथ कहाणी ॥६७॥
हे नानक ! परम सत्य के बिना कोई भी शुद्ध नहीं है और परमात्मा की लीला की कहानी भी वास्तव में अकथनीय है॥ ६७ ॥
ਕਿਤੁ ਕਿਤੁ ਬਿਧਿ ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਪੁਰਖਾ ਕਿਤੁ ਕਿਤੁ ਦੁਖਿ ਬਿਨਸਿ ਜਾਈ ॥
कितु कितु बिधि जगु उपजै पुरखा कितु कितु दुखि बिनसि जाई ॥
(सिद्धों ने फिर पूछा-) हे महापुरुष ! यह जगत् किंस-किस विधि द्वारा उत्पन्न होता है और किस-किस कारण दुखों में नष्ट हो जाता है?
ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਜਗੁ ਉਪਜੈ ਪੁਰਖਾ ਨਾਮਿ ਵਿਸਰਿਐ ਦੁਖੁ ਪਾਈ ॥
हउमै विचि जगु उपजै पुरखा नामि विसरिऐ दुखु पाई ॥
गुरु नानक ने समझाया कि यह जगत् अहम् में उत्पन्न होता है और यदि इसे नाम भूल जाए तो यह दुख प्राप्त करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਗਿਆਨੁ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰੈ ਹਉਮੈ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
गुरमुखि होवै सु गिआनु ततु बीचारै हउमै सबदि जलाए ॥
जो गुरुमुख होता है, वह ज्ञान तत्व का विचार करता है और शब्द द्वारा अहम् को जला देता है।
ਤਨੁ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਨਿਰਮਲ ਬਾਣੀ ਸਾਚੈ ਰਹੈ ਸਮਾਏ ॥
तनु मनु निरमलु निरमल बाणी साचै रहै समाए ॥
निर्मल वाणी द्वारा उसका तन-मन पावन हो जाता है और फिर वह सत्य में ही समाया रहता है।
ਨਾਮੇ ਨਾਮਿ ਰਹੈ ਬੈਰਾਗੀ ਸਾਚੁ ਰਖਿਆ ਉਰਿ ਧਾਰੇ ॥
नामे नामि रहै बैरागी साचु रखिआ उरि धारे ॥
नाम से उत्पन्न हुआ नाम में लीन रहकर वैरागी बना रहता है और सत्य को हृदय में धारण करके रखता है।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜੋਗੁ ਕਦੇ ਨ ਹੋਵੈ ਦੇਖਹੁ ਰਿਦੈ ਬੀਚਾਰੇ ॥੬੮॥
नानक बिनु नावै जोगु कदे न होवै देखहु रिदै बीचारे ॥६८॥
नानक कहते हैं केि अपने हृदय में विचार करके देख लो, नाम के बिना कभी योग नहीं होता। ॥६८॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਸਬਦੁ ਬੀਚਾਰੈ ਕੋਇ ॥
गुरमुखि साचु सबदु बीचारै कोइ ॥
(गुरु जी सिद्धों को समझाते हैं कि) कोई विरला गुरुमुख ही सच्चे शब्द का विचार करता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚੁ ਬਾਣੀ ਪਰਗਟੁ ਹੋਇ ॥
गुरमुखि सचु बाणी परगटु होइ ॥
इस प्रकार गुरुमुख के मन में सच्ची वाणी प्रगट हो जाती है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ਵਿਰਲਾ ਬੂਝੈ ਕੋਇ ॥
गुरमुखि मनु भीजै विरला बूझै कोइ ॥
उसका मन नाम रस में भीग जाता है, पर इस तथ्य को कोई विरला ही समझता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਹੋਇ ॥
गुरमुखि निज घरि वासा होइ ॥
गुरुमुख का अपने वास्तविक घर में निवास हो जाता है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੋਗੀ ਜੁਗਤਿ ਪਛਾਣੈ ॥
गुरमुखि जोगी जुगति पछाणै ॥
वह योग की युक्ति को पहचान लेता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਨਕ ਏਕੋ ਜਾਣੈ ॥੬੯॥
गुरमुखि नानक एको जाणै ॥६९॥
नानक कहते हैं कि गुरुमुख केवल परमात्मा को ही जानता है ॥६६॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਜੋਗੁ ਨ ਹੋਈ ॥
बिनु सतिगुर सेवे जोगु न होई ॥
(गुरु जी सिद्धों को उपदेश देते हैं कि) सतगुरु की सेवा किए बिना योग-साधना नहीं हो सकती और
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮੁਕਤਿ ਨ ਕੋਈ ॥
बिनु सतिगुर भेटे मुकति न कोई ॥
सतगुरु से भेंट किए बिना किसी की मुक्ति नहीं होती।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਨਾਮੁ ਪਾਇਆ ਨ ਜਾਇ ॥
बिनु सतिगुर भेटे नामु पाइआ न जाइ ॥
सतगुरु से साक्षात्कार किए बिना नाम प्राप्त नहीं होता और
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਇ ॥
बिनु सतिगुर भेटे महा दुखु पाइ ॥
सतगुरु से भेंट किए बिना जीव बहुत दुख प्राप्त करता है।
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਭੇਟੇ ਮਹਾ ਗਰਬਿ ਗੁਬਾਰਿ ॥
बिनु सतिगुर भेटे महा गरबि गुबारि ॥
सतगुरु से भेंट के बिना अहंकार द्वारा मन में अज्ञान रूपी अंधेरा बना रहता है।
ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮੁਆ ਜਨਮੁ ਹਾਰਿ ॥੭੦॥
नानक बिनु गुर मुआ जनमु हारि ॥७०॥
नानक कहते हैं केि निगुरा जीव अपना जन्म व्यर्थ ही गंवा कर प्राण त्याग गया है ॥७०॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਨੁ ਜੀਤਾ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ॥
गुरमुखि मनु जीता हउमै मारि ॥
गुरुमुख ने अभिमान को समाप्त करके अपना मन जीत लिया है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੁ ਰਖਿਆ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥
गुरमुखि साचु रखिआ उर धारि ॥
सत्य को हृदय में धारण करके रखा है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਗੁ ਜੀਤਾ ਜਮਕਾਲੁ ਮਾਰਿ ਬਿਦਾਰਿ ॥
गुरमुखि जगु जीता जमकालु मारि बिदारि ॥
उसने मृत्यु का भय समाप्त करके जगत् पर विजय पा ली है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਦਰਗਹ ਨ ਆਵੈ ਹਾਰਿ ॥
गुरमुखि दरगह न आवै हारि ॥
वह यमराज से शिकस्त प्राप्त नहीं करता।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ਸੋੁ ਜਾਣੈ ॥
गुरमुखि मेलि मिलाए सो जाणै ॥
गुरुमुख जीवन से पराजित होकर दरबार में नहीं आता।
ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਬਦਿ ਪਛਾਣੈ ॥੭੧॥
नानक गुरमुखि सबदि पछाणै ॥७१॥
नानक कहते हैं कि गुरुमुख शब्द को पहचान लेता है, पर इस तथ्य को गुरुमुख ही जानता है, जिसे प्रभु साथ मिला लेता है॥ ७१॥
ਸਬਦੈ ਕਾ ਨਿਬੇੜਾ ਸੁਣਿ ਤੂ ਅਉਧੂ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਜੋਗੁ ਨ ਹੋਈ ॥
सबदै का निबेड़ा सुणि तू अउधू बिनु नावै जोगु न होई ॥
गुरु जी कहते हैं कि हे अवधूत ! अब तू शब्द के संबंध में चल रही गोष्ठी के निष्कर्ष के बारे में जरा ध्यान से सुन कि नाम के बिना कोई योग-साधना नहीं होती।
ਨਾਮੇ ਰਾਤੇ ਅਨਦਿਨੁ ਮਾਤੇ ਨਾਮੈ ਤੇ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
नामे राते अनदिनु माते नामै ते सुखु होई ॥
नाम में लीन जीव नित्य मस्त रहते हैं और नाम से ही सच्चा सुख प्राप्त होता है।
ਨਾਮੈ ਹੀ ਤੇ ਸਭੁ ਪਰਗਟੁ ਹੋਵੈ ਨਾਮੇ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥
नामै ही ते सभु परगटु होवै नामे सोझी पाई ॥
नाम से ही सबकुछ प्रगट होता है और नाम से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਭੇਖ ਕਰਹਿ ਬਹੁਤੇਰੇ ਸਚੈ ਆਪਿ ਖੁਆਈ ॥
बिनु नावै भेख करहि बहुतेरे सचै आपि खुआई ॥
नामविहीन लोग बहुत सारे आडम्बर करते हैं और सच्चे परमेश्वर ने स्वयं ही दुनिया को भुलाया हुआ है।
ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਾਈਐ ਅਉਧੂ ਜੋਗ ਜੁਗਤਿ ਤਾ ਹੋਈ ॥
सतिगुर ते नामु पाईऐ अउधू जोग जुगति ता होई ॥
हे अवधूत ! यदि सतगुरु से नाम प्राप्त हो जाए तो ही योग-युक्ति सफल होती है।
ਕਰਿ ਬੀਚਾਰੁ ਮਨਿ ਦੇਖਹੁ ਨਾਨਕ ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਮੁਕਤਿ ਨ ਹੋਈ ॥੭੨॥
करि बीचारु मनि देखहु नानक बिनु नावै मुकति न होई ॥७२॥
गुरु नानक देव जी कहते हैं कि अपने मन से सोच-विचार कर देख लो, नाम के बिना जीव की मुक्ति नहीं होती।॥ ७२॥
ਤੇਰੀ ਗਤਿ ਮਿਤਿ ਤੂਹੈ ਜਾਣਹਿ ਕਿਆ ਕੋ ਆਖਿ ਵਖਾਣੈ ॥
तेरी गति मिति तूहै जाणहि किआ को आखि वखाणै ॥
“(गुरु नानक देव जी अन्तिम पद में परमेश्वर की स्तुति करते हुए कहते हैं कि) हे ईश्वर ! तेरी जो गति एवं विस्तार है, उसे केवल तू ही जानता है, कोई कहकर क्या बखान कर सकता है?”
ਤੂ ਆਪੇ ਗੁਪਤਾ ਆਪੇ ਪਰਗਟੁ ਆਪੇ ਸਭਿ ਰੰਗ ਮਾਣੈ ॥
तू आपे गुपता आपे परगटु आपे सभि रंग माणै ॥
तू स्वयं ही निर्गुण रूप में गुप्त रहता है, स्वयं ही सगुण रूप में प्रगट हो जाता है और स्वयं ही सभी रंगों का आनंद लेता है।
ਸਾਧਿਕ ਸਿਧ ਗੁਰੂ ਬਹੁ ਚੇਲੇ ਖੋਜਤ ਫਿਰਹਿ ਫੁਰਮਾਣੈ ॥
साधिक सिध गुरू बहु चेले खोजत फिरहि फुरमाणै ॥
बहुत सारे सिद्ध साधक, गुरु एवं उनके शिष्य तेरे हुक्म में ही खोजते रहते हैं।
ਮਾਗਹਿ ਨਾਮੁ ਪਾਇ ਇਹ ਭਿਖਿਆ ਤੇਰੇ ਦਰਸਨ ਕਉ ਕੁਰਬਾਣੈ ॥
मागहि नामु पाइ इह भिखिआ तेरे दरसन कउ कुरबाणै ॥
वे तुझ से तेरे नाम का दान मॉगते हैं, तुझ से यही भिक्षा प्राप्त करते हैं और दर्शन पर ही कुर्बान जाते हैं।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਪ੍ਰਭਿ ਖੇਲੁ ਰਚਾਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੋਝੀ ਹੋਈ ॥
अबिनासी प्रभि खेलु रचाइआ गुरमुखि सोझी होई ॥
यह जगत् अबिनाशी प्रभु ने अपनी एक लीला रची हुई है, पर सूझ गुरुमुख को ही हुई है।
ਨਾਨਕ ਸਭਿ ਜੁਗ ਆਪੇ ਵਰਤੈ ਦੂਜਾ ਅਵਰੁ ਨ ਕੋਈ ॥੭੩॥੧॥
नानक सभि जुग आपे वरतै दूजा अवरु न कोई ॥७३॥१॥
गुरु नानक कहते हैं कि परमात्मा स्वयं ही सभी युगों में है और उसके अलावा अन्य कोई नहीं है॥ ७३॥ १॥