ਸੰਤ ਜਨਾ ਵਿਣੁ ਭਾਈਆ ਹਰਿ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਆ ਨਾਉ ॥
संत जना विणु भाईआ हरि किनै न पाइआ नाउ ॥
हे भाई ! संतजनों की कृपा बिना ईश्वर का नाम प्राप्त नहीं हुआ।
ਵਿਚਿ ਹਉਮੈ ਕਰਮ ਕਮਾਵਦੇ ਜਿਉ ਵੇਸੁਆ ਪੁਤੁ ਨਿਨਾਉ ॥
विचि हउमै करम कमावदे जिउ वेसुआ पुतु निनाउ ॥
स्वेच्छाचारी अहंकारवश ऐसे कर्म करते हैं, जैसे वेश्या-पुत्र पिता का नाम नहीं जानता।
ਪਿਤਾ ਜਾਤਿ ਤਾ ਹੋਈਐ ਗੁਰੁ ਤੁਠਾ ਕਰੇ ਪਸਾਉ ॥
पिता जाति ता होईऐ गुरु तुठा करे पसाउ ॥
वैसे ही ऐसे लोगों का प्रभु पिता का पता नहीं चलता। प्राणी पितृ-जाति को तभी प्राप्त करता है, यदि गुरु जी प्रसन्न होकर उस पर कृपा धारण करे।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਅਹਿਨਿਸਿ ਲਗਾ ਭਾਉ ॥
वडभागी गुरु पाइआ हरि अहिनिसि लगा भाउ ॥
मनुष्य को बड़े सौभाग्य से गुरु प्राप्त होता है और दिन-रात वह प्रभु की प्रीति में लगा रहता है।
ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਬ੍ਰਹਮੁ ਪਛਾਣਿਆ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਕਰਮ ਕਮਾਉ ॥੨॥
जन नानकि ब्रहमु पछाणिआ हरि कीरति करम कमाउ ॥२॥
हे नानक ! जिसने ब्रह्म को पहचान लिया है, वहीं भगवान की महिमा का कर्म करता है॥२॥
ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਗਾ ਚਾਉ ॥
मनि हरि हरि लगा चाउ ॥
उसके हृदय में भगवान के सिमरन हेतु चाव उत्पन्न हो गया है।
ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ਹਰਿ ਮਿਲਿਆ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਨਾਉ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरि पूरै नामु द्रिड़ाइआ हरि मिलिआ हरि प्रभ नाउ ॥१॥ रहाउ ॥
पूर्ण गुरु ने उसके हृदय में नाम बसा दिया है। जिसके कारण उसे हरि-प्रभु का नाम मिल गया है और भगवान भी मिल गया है॥१॥ रहाउ॥
ਜਬ ਲਗੁ ਜੋਬਨਿ ਸਾਸੁ ਹੈ ਤਬ ਲਗੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥
जब लगु जोबनि सासु है तब लगु नामु धिआइ ॥
जब तक शरीर है, स्वस्थ और उसमें प्राणों का संचार होता है, तब तक तुम हरि-नाम की आराधना करो।
ਚਲਦਿਆ ਨਾਲਿ ਹਰਿ ਚਲਸੀ ਹਰਿ ਅੰਤੇ ਲਏ ਛਡਾਇ ॥
चलदिआ नालि हरि चलसी हरि अंते लए छडाइ ॥
तेरे नश्वर संसार से गमन करते समय ईश्वर का नाम तेरे साथ जाएगा और अंत में स्वामी तुझे मृत्यु से मुक्त कराएगा।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਜਿਨ ਹਰਿ ਮਨਿ ਵੁਠਾ ਆਇ ॥
हउ बलिहारी तिन कउ जिन हरि मनि वुठा आइ ॥
मैं उन पर कुर्बान जाता हूँ, जिनके हृदय में ईश्वर ने आकर वास कर लिया है।
ਜਿਨੀ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਨ ਚੇਤਿਓ ਸੇ ਅੰਤਿ ਗਏ ਪਛੁਤਾਇ ॥
जिनी हरि हरि नामु न चेतिओ से अंति गए पछुताइ ॥
जो लोग दुखभंजक हरि के नाम का चिन्तन नहीं करते, वे अंतिम समय पश्चाताप करते हुए चले जाएँगे।
ਧੁਰਿ ਮਸਤਕਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਲਿਖਿਆ ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ॥੩॥
धुरि मसतकि हरि प्रभि लिखिआ जन नानक नामु धिआइ ॥३॥
हे नानक ! ईश्वर ने जिसके मस्तक पर भाग्य-रेखा लिखी है, वह ईश्वर के नाम का स्मरण करते हैं।॥३॥
ਮਨ ਹਰਿ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗਾਇ ॥
मन हरि हरि प्रीति लगाइ ॥
हे मेरे मन ! तू ईश्वर के नाम के साथ प्रीति लगा।
ਵਡਭਾਗੀ ਗੁਰੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਪਾਰਿ ਲਘਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
वडभागी गुरु पाइआ गुर सबदी पारि लघाइ ॥१॥ रहाउ ॥
किसी भाग्यशाली व्यक्ति को ही गुरु मिलता है और गुरु के उपदेश द्वारा मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है ॥१॥ रहाउ॥
ਹਰਿ ਆਪੇ ਆਪੁ ਉਪਾਇਦਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਦੇਵੈ ਲੇਇ ॥
हरि आपे आपु उपाइदा हरि आपे देवै लेइ ॥
ईश्वर इस सृष्टि को स्वयं उत्पन्न करता है और स्वयं ही प्राण देता और लेता है।
ਹਰਿ ਆਪੇ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇਦਾ ਹਰਿ ਆਪੇ ਹੀ ਮਤਿ ਦੇਇ ॥
हरि आपे भरमि भुलाइदा हरि आपे ही मति देइ ॥
हरि स्वयं ही मोह-माया के भृम में भुला देता है और स्वयं ही बुद्धि प्रदान करता है।
ਗੁਰਮੁਖਾ ਮਨਿ ਪਰਗਾਸੁ ਹੈ ਸੇ ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ਕੇਇ ॥
गुरमुखा मनि परगासु है से विरले केई केइ ॥
गुरमुखों के मन में आत्मिक प्रकाश होता है और ऐसे व्यक्ति विरले ही होते हैं।
ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਤਿਨ ਕਉ ਜਿਨ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰਮਤੇ ॥
हउ बलिहारी तिन कउ जिन हरि पाइआ गुरमते ॥
मैं उन पर कुर्बान जाता हैं, जिन्होंने गुरु के उपदेश द्वारा ईश्वर को प्राप्त किया है।
ਜਨ ਨਾਨਕਿ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਵੁਠੜਾ ਹੇ ॥੪॥
जन नानकि कमलु परगासिआ मनि हरि हरि वुठड़ा हे ॥४॥
हे नानक ! मेरा हृदय प्रफुल्लित हो गया है और मेरे चित्त के अन्दर ईश्वर आकर बस गया है॥४॥
ਮਨਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪਨੁ ਕਰੇ ॥
मनि हरि हरि जपनु करे ॥
हे मेरे मन ! तू ईश्वर के नाम का जाप कर।
ਹਰਿ ਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ਭਜਿ ਪਉ ਜਿੰਦੂ ਸਭ ਕਿਲਵਿਖ ਦੁਖ ਪਰਹਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि गुर सरणाई भजि पउ जिंदू सभ किलविख दुख परहरे ॥१॥ रहाउ ॥
हे मेरे मन ! तू भागकर ईश्वर रूप गुरु की शरण ग्रहण कर। वह तेरे सर्व पाप -दुःखों का निवारण कर देंगे॥१॥ रहाउ॥
ਘਟਿ ਘਟਿ ਰਮਈਆ ਮਨਿ ਵਸੈ ਕਿਉ ਪਾਈਐ ਕਿਤੁ ਭਤਿ ॥
घटि घटि रमईआ मनि वसै किउ पाईऐ कितु भति ॥
राम प्रत्येक प्राणी के हृदय में वास करता है। कैसे और किस भेद से वह प्राप्त किया जा सकता है?
ਗੁਰੁ ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੀਐ ਹਰਿ ਆਇ ਵਸੈ ਮਨਿ ਚਿਤਿ ॥
गुरु पूरा सतिगुरु भेटीऐ हरि आइ वसै मनि चिति ॥
यदि प्राणी को भाग्यवश पूर्ण सतिगुरु मिल जाए तभी उसके हृदय में हरि आकर टिक जाता है।
ਮੈ ਧਰ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੈ ਤੇ ਗਤਿ ਮਤਿ ॥
मै धर नामु अधारु है हरि नामै ते गति मति ॥
ईश्वर का नाम ही मेरा आश्रय और निर्वाह है। स्वामी के नाम से ही मुझे मोक्ष एवं मुक्तिदायिनी सूझ मिलती है।
ਮੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਵਿਸਾਹੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮੇ ਹੀ ਜਤਿ ਪਤਿ ॥
मै हरि हरि नामु विसाहु है हरि नामे ही जति पति ॥
ईश्वर के नाम में मेरा विश्वास है और ईश्वर का नाम ही मेरी जाति एवं प्रतिष्ठा है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਰੰਗਿ ਰਤੜਾ ਹਰਿ ਰੰਗਿ ਰਤਿ ॥੫॥
जन नानक नामु धिआइआ रंगि रतड़ा हरि रंगि रति ॥५॥
नानक ने नाम की आराधना की है और यह ईश्वर-रंग में मग्न उसी का नाम स्मरण करता है॥५॥
ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਤਿ ॥
हरि धिआवहु हरि प्रभु सति ॥
भगवान का ध्यान करो, भगवान सदैव सत्य है।
ਗੁਰ ਬਚਨੀ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਣਿਆ ਸਭ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਤੇ ਉਤਪਤਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर बचनी हरि प्रभु जाणिआ सभ हरि प्रभु ते उतपति ॥१॥ रहाउ ॥
गुरु के शब्द द्वारा मनुष्य ईश्वर को समझता है। परमेश्वर ही सृष्टि का कर्त्ता है ॥१॥ रहाउ॥
ਜਿਨ ਕਉ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖਿਆ ਸੇ ਆਇ ਮਿਲੇ ਗੁਰ ਪਾਸਿ ॥
जिन कउ पूरबि लिखिआ से आइ मिले गुर पासि ॥
जिन प्राणियों के भाग्य में प्राप्ति लिखी है, वे गुरु के पास आते हैं और उनको मिलते हैं।
ਸੇਵਕ ਭਾਇ ਵਣਜਾਰਿਆ ਮਿਤ੍ਰਾ ਗੁਰੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪ੍ਰਗਾਸਿ ॥
सेवक भाइ वणजारिआ मित्रा गुरु हरि हरि नामु प्रगासि ॥
हे मेरे वणजारे मित्र ! जो व्यक्ति श्रद्धा भावना से गुरु के पास आते हैं, गुरु उनके हृदय में भगवान के नाम का प्रकाश कर देता है।
ਧਨੁ ਧਨੁ ਵਣਜੁ ਵਾਪਾਰੀਆ ਜਿਨ ਵਖਰੁ ਲਦਿਅੜਾ ਹਰਿ ਰਾਸਿ ॥
धनु धनु वणजु वापारीआ जिन वखरु लदिअड़ा हरि रासि ॥
वह व्यापार और व्यापारी दोनों ही धन्य हैं, जिन्होंने ईश्वर के नाम का व्यापार किया है अर्थात् जो श्रद्धा की पूंजी लगाकर प्रभु नाम की सामग्री लादते हैं।
ਗੁਰਮੁਖਾ ਦਰਿ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਸੇ ਆਇ ਮਿਲੇ ਹਰਿ ਪਾਸਿ ॥
गुरमुखा दरि मुख उजले से आइ मिले हरि पासि ॥
गुरमुख जनों के मुख प्रभु-दरबार में उज्ज्वल हैं। ईश्वर के दरबार में वह प्रभु के पास आते हैं और उसमें लीन हो जाते हैं।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਗੁਰੁ ਤਿਨ ਪਾਇਆ ਜਿਨਾ ਆਪਿ ਤੁਠਾ ਗੁਣਤਾਸਿ ॥੬॥
जन नानक गुरु तिन पाइआ जिना आपि तुठा गुणतासि ॥६॥
हे नानक ! गुरु उन्हें ही मिलता है, जिन पर गुणों का भण्डार भगवान स्वयं प्रसन्न होता है।॥६॥
ਹਰਿ ਧਿਆਵਹੁ ਸਾਸਿ ਗਿਰਾਸਿ ॥
हरि धिआवहु सासि गिरासि ॥
हे मनुष्य ! प्रत्येक श्वास एवं भोजन के ग्रास के साथ तुम ईश्वर का ध्यान करो।
ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਗੀ ਤਿਨਾ ਗੁਰਮੁਖਾ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਿਨਾ ਰਹਰਾਸਿ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥੧॥
मनि प्रीति लगी तिना गुरमुखा हरि नामु जिना रहरासि ॥१॥ रहाउ ॥१॥
जिन्होंने भगवान के नाम को अपने जीवन सफर की पूंजी बनाया है, उन गुरमुखों के मन में भगवान के लिए प्रेम उत्पन्न होता है॥ १॥ रहाउ ॥१॥