ਬਡੈ ਭਾਗਿ ਸਾਧਸੰਗੁ ਪਾਇਓ ॥੧॥
बडै भागि साधसंगु पाइओ ॥१॥
अहोभाग्य से ही संतों की संगति प्राप्त हुई है॥ १॥
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਨਾਹੀ ਉਧਾਰੁ ॥
बिनु गुर पूरे नाही उधारु ॥
पूर्ण गुरु के बिना किसी का उद्धार नहीं होता
ਬਾਬਾ ਨਾਨਕੁ ਆਖੈ ਏਹੁ ਬੀਚਾਰੁ ॥੨॥੧੧॥
बाबा नानकु आखै एहु बीचारु ॥२॥११॥
बाबा नानक तुझे यही विचार बताता है ॥ ॥ ११॥
ਰਾਗੁ ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੨
रागु रामकली महला ५ घरु २
रागु रामकली महला ५ घरु २
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਚਾਰਿ ਪੁਕਾਰਹਿ ਨਾ ਤੂ ਮਾਨਹਿ ॥
चारि पुकारहि ना तू मानहि ॥
चार वेद भी कह रहे हैं किन्तु तू नहीं मानता।
ਖਟੁ ਭੀ ਏਕਾ ਬਾਤ ਵਖਾਨਹਿ ॥
खटु भी एका बात वखानहि ॥
छः शास्त्र भी एक की बात का बखान कर रहे हैं।
ਦਸ ਅਸਟੀ ਮਿਲਿ ਏਕੋ ਕਹਿਆ ॥
दस असटी मिलि एको कहिआ ॥
अठारह पुराणों ने भी मिलकर एक परमेश्वर की ही महिमा की है लेकिन
ਤਾ ਭੀ ਜੋਗੀ ਭੇਦੁ ਨ ਲਹਿਆ ॥੧॥
ता भी जोगी भेदु न लहिआ ॥१॥
फिर भी हे योगी ! तूने यह भेद नहीं समझा ॥ १॥
ਕਿੰਕੁਰੀ ਅਨੂਪ ਵਾਜੈ ॥ ਜੋਗੀਆ ਮਤਵਾਰੋ ਰੇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
किंकुरी अनूप वाजै ॥ जोगीआ मतवारो रे ॥१॥ रहाउ ॥
हर समय अनुपम वीणा बज रही है। हे योगी मतवाले ! ॥ १॥ रहाउ॥
ਪ੍ਰਥਮੇ ਵਸਿਆ ਸਤ ਕਾ ਖੇੜਾ ॥
प्रथमे वसिआ सत का खेड़ा ॥
सर्वप्रथम सतयुग रूपी सत्य का नगर बसा था।
ਤ੍ਰਿਤੀਏ ਮਹਿ ਕਿਛੁ ਭਇਆ ਦੁਤੇੜਾ ॥
त्रितीए महि किछु भइआ दुतेड़ा ॥
तदुपरांत त्रैता युग में धर्म में कुछ दरार आ गई थी।
ਦੁਤੀਆ ਅਰਧੋ ਅਰਧਿ ਸਮਾਇਆ ॥
दुतीआ अरधो अरधि समाइआ ॥
द्वापर युग में धर्म का आधा भाग ही रह गया था।
ਏਕੁ ਰਹਿਆ ਤਾ ਏਕੁ ਦਿਖਾਇਆ ॥੨॥
एकु रहिआ ता एकु दिखाइआ ॥२॥
कलियुग में धर्म का एक भाग ही रह गया है और
ਏਕੈ ਸੂਤਿ ਪਰੋਏ ਮਣੀਏ ॥ ਗਾਠੀ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਭਿਨਿ ਤਣੀਏ ॥
एकै सूति परोए मणीए ॥ गाठी भिनि भिनि भिनि भिनि तणीए ॥
सतगुरु ने जगत् को मुक्ति का एक नाम मार्ग दिखाया है जैसे माला के सारे मनके एक ही धागे में पिरोए होते हैं और भिन्न-भिन्न गाँठों द्वारा उन्हें भिन्न रखा होता है।
ਫਿਰਤੀ ਮਾਲਾ ਬਹੁ ਬਿਧਿ ਭਾਇ ॥
फिरती माला बहु बिधि भाइ ॥
यह माला अनेक विधियों द्वारा प्रेम से फेरी हुई फिरती रहती है।
ਖਿੰਚਿਆ ਸੂਤੁ ਤ ਆਈ ਥਾਇ ॥੩॥
खिंचिआ सूतु त आई थाइ ॥३॥
जब माला का धागा खींच लिया जाता है तो सारी माला एक ही स्थान आ जाती है॥ ३॥
ਚਹੁ ਮਹਿ ਏਕੈ ਮਟੁ ਹੈ ਕੀਆ ॥
चहु महि एकै मटु है कीआ ॥
चारों युगों में रहने के लिए प्रभु ने यह जगत् रूपी एक मठ बनाया है।
ਤਹ ਬਿਖੜੇ ਥਾਨ ਅਨਿਕ ਖਿੜਕੀਆ ॥
तह बिखड़े थान अनिक खिड़कीआ ॥
इस में विकारों से भरपूर कई दुखदायक स्थान हैं और इसमें से बाहर निकलने के लिए अनेक ही योनियां रूपी खिड़कियां हैं।
ਖੋਜਤ ਖੋਜਤ ਦੁਆਰੇ ਆਇਆ ॥
खोजत खोजत दुआरे आइआ ॥
हे नानक! जब कोई मनुष्य तलाश करता-करता गुरु के दर पर आ पहुँचता है
ਤਾ ਨਾਨਕ ਜੋਗੀ ਮਹਲੁ ਘਰੁ ਪਾਇਆ ॥੪॥
ता नानक जोगी महलु घरु पाइआ ॥४॥
तब प्रभु-चरणों में जुड़े उस मनुष्य को परमात्मा का महल घर मिल जाता है ॥ ४॥
ਇਉ ਕਿੰਕੁਰੀ ਆਨੂਪ ਵਾਜੈ ॥
इउ किंकुरी आनूप वाजै ॥
इस तरह अब बहुत ही वीणा उसके आत्मस्वरूप में बज रही है,
ਸੁਣਿ ਜੋਗੀ ਕੈ ਮਨਿ ਮੀਠੀ ਲਾਗੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੧॥੧੨॥
सुणि जोगी कै मनि मीठी लागै ॥१॥ रहाउ दूजा ॥१॥१२॥
जिसे सुनने से यह योगी के मन में मीठी लगती है॥ १॥ रहाउ दूसरा ॥ १॥ १२ ॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਤਾਗਾ ਕਰਿ ਕੈ ਲਾਈ ਥਿਗਲੀ ॥
तागा करि कै लाई थिगली ॥
परमात्मा ने पवन रूपी प्राणों को धागा बनाकर शरीर रूपी कफनी को अंग रूपी सिलाई किया है और
ਲਉ ਨਾੜੀ ਸੂਆ ਹੈ ਅਸਤੀ ॥
लउ नाड़ी सूआ है असती ॥
हड्डियों रूपी सुई से नाड़ियों को जोड़ा हुआ है।
ਅੰਭੈ ਕਾ ਕਰਿ ਡੰਡਾ ਧਰਿਆ ॥
अ्मभै का करि डंडा धरिआ ॥
वीर्य रूपी रक्त-बिंदु बनाकर इस कफनी रूपी शरीर का निर्माण किया है।
ਕਿਆ ਤੂ ਜੋਗੀ ਗਰਬਹਿ ਪਰਿਆ ॥੧॥
किआ तू जोगी गरबहि परिआ ॥१॥
हे योगी ! तू किस बात का घमण्ड करता है ? ॥ १॥
ਜਪਿ ਨਾਥੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨਾਈ ॥
जपि नाथु दिनु रैनाई ॥
दिन-रात भगवान् का जाप कर,
ਤੇਰੀ ਖਿੰਥਾ ਦੋ ਦਿਹਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
तेरी खिंथा दो दिहाई ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि तेरी यह शरीर रूपी कफनी तो दो दिन ही चलेगी॥ १॥ रहाउ॥
ਗਹਰੀ ਬਿਭੂਤ ਲਾਇ ਬੈਠਾ ਤਾੜੀ ॥
गहरी बिभूत लाइ बैठा ताड़ी ॥
तू शरीर पर विभूति मलकर समाधि लगाकर बैठा है।
ਮੇਰੀ ਤੇਰੀ ਮੁੰਦ੍ਰਾ ਧਾਰੀ ॥
मेरी तेरी मुंद्रा धारी ॥
तूने अहंत्व की मुद्राएं धारण की हुई हैं।
ਮਾਗਹਿ ਟੂਕਾ ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਪਾਵੈ ॥
मागहि टूका त्रिपति न पावै ॥
तू घर-घर से भोजन मांगता रहता है किन्तु तृप्ति नहीं होती।
ਨਾਥੁ ਛੋਡਿ ਜਾਚਹਿ ਲਾਜ ਨ ਆਵੈ ॥੨॥
नाथु छोडि जाचहि लाज न आवै ॥२॥
ईश्वर को छोड़कर दूसरों से मांगते हुए तुझे शर्म नहीं आती॥ २॥
ਚਲ ਚਿਤ ਜੋਗੀ ਆਸਣੁ ਤੇਰਾ ॥
चल चित जोगी आसणु तेरा ॥
हे योगी ! तेरा आसन लगा हुआ है, लेकिन तेरा मन चंचल बना हुआ है।
ਸਿੰਙੀ ਵਾਜੈ ਨਿਤ ਉਦਾਸੇਰਾ ॥
सिंङी वाजै नित उदासेरा ॥
बेशक सिंगी बजती रहती है, फिर भी तेरा मन नित्य ही उदास रहता है।
ਗੁਰ ਗੋਰਖ ਕੀ ਤੈ ਬੂਝ ਨ ਪਾਈ ॥
गुर गोरख की तै बूझ न पाई ॥
जगद्गुरु परमेश्वर की तुझे अभी तक सूझ नहीं हुई।
ਫਿਰਿ ਫਿਰਿ ਜੋਗੀ ਆਵੈ ਜਾਈ ॥੩॥
फिरि फिरि जोगी आवै जाई ॥३॥
हे योगी ! इसी कारण तू बार-बार जन्मता-मरता रहता है॥ ३॥
ਜਿਸ ਨੋ ਹੋਆ ਨਾਥੁ ਕ੍ਰਿਪਾਲਾ ॥
जिस नो होआ नाथु क्रिपाला ॥
जिस पर मालिक कृपालु हो गया है,
ਰਹਰਾਸਿ ਹਮਾਰੀ ਗੁਰ ਗੋਪਾਲਾ ॥
रहरासि हमारी गुर गोपाला ॥
उस गुरु परमेश्वर के समक्ष हमारी प्रार्थना है।
ਨਾਮੈ ਖਿੰਥਾ ਨਾਮੈ ਬਸਤਰੁ ॥
नामै खिंथा नामै बसतरु ॥
नाम ही जिसकी कफनी एवं वस्त्र है ,”
ਜਨ ਨਾਨਕ ਜੋਗੀ ਹੋਆ ਅਸਥਿਰੁ ॥੪॥
जन नानक जोगी होआ असथिरु ॥४॥
हे नानक ! वही योगी स्थिर हुआ है ॥ ४॥
ਇਉ ਜਪਿਆ ਨਾਥੁ ਦਿਨੁ ਰੈਨਾਈ ॥
इउ जपिआ नाथु दिनु रैनाई ॥
जिसने इस प्रकार दिन-रात ईश्वर का जाप किया है,
ਹੁਣਿ ਪਾਇਆ ਗੁਰੁ ਗੋਸਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ਦੂਜਾ ॥੨॥੧੩॥
हुणि पाइआ गुरु गोसाई ॥१॥ रहाउ दूजा ॥२॥१३॥
उसने अब मानव-जन्म में गुरु-परमेश्वर को पा लिया है ॥१॥ रहाउ दूसरा ॥२॥१३॥
ਰਾਮਕਲੀ ਮਹਲਾ ੫ ॥
रामकली महला ५ ॥
रामकली महला ५ ॥
ਕਰਨ ਕਰਾਵਨ ਸੋਈ ॥
करन करावन सोई ॥
परमेश्वर ही करने-कराने वाला है,
ਆਨ ਨ ਦੀਸੈ ਕੋਈ ॥
आन न दीसै कोई ॥
उसके अतिरिक्त अन्य कोई दृष्टिगत नहीं होता।
ਠਾਕੁਰੁ ਮੇਰਾ ਸੁਘੜੁ ਸੁਜਾਨਾ ॥
ठाकुरु मेरा सुघड़ु सुजाना ॥
मेरा ठाकुर बड़ा चतुर एवं सर्वज्ञाता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਿਲਿਆ ਰੰਗੁ ਮਾਨਾ ॥੧॥
गुरमुखि मिलिआ रंगु माना ॥१॥
गुरु के माध्यम से जब वह मिला तो ही आनंद प्राप्त हुआ है॥ १॥
ਐਸੋ ਰੇ ਹਰਿ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ॥
ऐसो रे हरि रसु मीठा ॥
हरि-रस इतना मीठा है किं
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕਿਨੈ ਵਿਰਲੈ ਡੀਠਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुरमुखि किनै विरलै डीठा ॥१॥ रहाउ ॥
किसी विरले ने गुरुमुख बनकर ही इसे चखा है॥ १॥ रहाउ॥
ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥
निरमल जोति अम्रितु हरि नाम ॥
उसकी ज्योति निर्मल है, हरि का नाम अमृत है,