Hindi Page 424

ਨਾਮੇ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਬੁਝੈ ਨਾਮੁ ਮਿਲੈ ਤਿਸੈ ਰਜਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामे त्रिसना अगनि बुझै नामु मिलै तिसै रजाई ॥१॥ रहाउ ॥
नाम के माध्यम से तृष्णा की अग्नि बुझ जाती है। परमात्मा की रज़ा से ही नाम प्राप्त होता है। १॥ रहाउ॥

ਕਲਿ ਕੀਰਤਿ ਸਬਦੁ ਪਛਾਨੁ ॥
कलि कीरति सबदु पछानु ॥
कलियुग में प्रभु की कीर्ति करो और शब्द की पहचान करो।

ਏਹਾ ਭਗਤਿ ਚੂਕੈ ਅਭਿਮਾਨੁ ॥
एहा भगति चूकै अभिमानु ॥
सच्ची भक्ति तो यही है कि अभिमान मिट जाए।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿਐ ਹੋਵੈ ਪਰਵਾਨੁ ॥
सतिगुरु सेविऐ होवै परवानु ॥
सच्चे गुरु की श्रद्धापूर्वक सेवा करने से मनुष्य प्रभु-दरबार में स्वीकृत हो जाता है।

ਜਿਨਿ ਆਸਾ ਕੀਤੀ ਤਿਸ ਨੋ ਜਾਨੁ ॥੨॥
जिनि आसा कीती तिस नो जानु ॥२॥
हे प्राणी ! तू उसको पहचान, जिसने तेरे भीतर आशा उत्पन्न की है॥ २॥

ਤਿਸੁ ਕਿਆ ਦੀਜੈ ਜਿ ਸਬਦੁ ਸੁਣਾਏ ॥
तिसु किआ दीजै जि सबदु सुणाए ॥
तुम उसे क्या भेंट करोगे, जो तुझे शब्द सुनाता है और

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
करि किरपा नामु मंनि वसाए ॥
कृपा करके तेरे मन में नाम बसाता है।

ਇਹੁ ਸਿਰੁ ਦੀਜੈ ਆਪੁ ਗਵਾਏ ॥
इहु सिरु दीजै आपु गवाए ॥
अपना अहंत्व त्याग कर अपना यह सिर उसको अर्पित कर दो।

ਹੁਕਮੈ ਬੂਝੇ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥੩॥
हुकमै बूझे सदा सुखु पाए ॥३॥
जो मनुष्य प्रभु की रज़ा को समझता है, वह सदैव सुख प्राप्त करता है॥ ३॥

ਆਪਿ ਕਰੇ ਤੈ ਆਪਿ ਕਰਾਏ ॥
आपि करे तै आपि कराए ॥
ईश्वर स्वयं सब कुछ करता है और स्वयं ही प्राणियों से करवाता है।

ਆਪੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਵਸਾਏ ॥
आपे गुरमुखि नामु वसाए ॥
वह स्वयं ही गुरुमुख के हृदय में नाम बसाता है।

ਆਪਿ ਭੁਲਾਵੈ ਆਪਿ ਮਾਰਗਿ ਪਾਏ ॥
आपि भुलावै आपि मारगि पाए ॥
वह स्वयं ही मनुष्य को कुमार्गगामी करता है और स्वयं ही सद्मार्ग प्रदान करता है।

ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਸਚਿ ਸਮਾਏ ॥੪॥
सचै सबदि सचि समाए ॥४॥
सच्चे शब्द द्वारा मनुष्य सत्य में समा जाता है॥ ४॥

ਸਚਾ ਸਬਦੁ ਸਚੀ ਹੈ ਬਾਣੀ ॥
सचा सबदु सची है बाणी ॥
शब्द सत्य है और बानी भी सत्य है

ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੁਗਿ ਜੁਗਿ ਆਖਿ ਵਖਾਣੀ ॥
गुरमुखि जुगि जुगि आखि वखाणी ॥
युग युग में गुरुमुख इसका कथन एवं व्याख्या करते हैं।

ਮਨਮੁਖਿ ਮੋਹਿ ਭਰਮਿ ਭੋਲਾਣੀ ॥
मनमुखि मोहि भरमि भोलाणी ॥
लेकिन स्वेच्छाचारी मनुष्य सांसारिक मोह एवं भ्रम में कुमार्गगामी हो गए हैं।

ਬਿਨੁ ਨਾਵੈ ਸਭ ਫਿਰੈ ਬਉਰਾਣੀ ॥੫॥
बिनु नावै सभ फिरै बउराणी ॥५॥
नाम के बिना हर कोई पागल पुरुष की भाँति भटकता फिरता है॥ ५॥

ਤੀਨਿ ਭਵਨ ਮਹਿ ਏਕਾ ਮਾਇਆ ॥
तीनि भवन महि एका माइआ ॥
तीनों लोकों में एक माया का ही वर्चस्व है।

ਮੂਰਖਿ ਪੜਿ ਪੜਿ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਦ੍ਰਿੜਾਇਆ ॥
मूरखि पड़ि पड़ि दूजा भाउ द्रिड़ाइआ ॥
मूर्ख मनुष्य ने पढ़-पढ़कर द्वैतभाव ही सुदृढ़ किया है।

ਬਹੁ ਕਰਮ ਕਮਾਵੈ ਦੁਖੁ ਸਬਾਇਆ ॥
बहु करम कमावै दुखु सबाइआ ॥
वह बहुत धर्म-कर्म करता है परन्तु बहुत दुःख सहन करता है।

ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੬॥
सतिगुरु सेवि सदा सुखु पाइआ ॥६॥
लेकिन सतिगुरु की सेवा करने से वह सदा सुख प्राप्त कर सकता है॥ ६॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਮੀਠਾ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥ ਅਨਦਿਨੁ ਭੋਗੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ॥
अम्रितु मीठा सबदु वीचारि ॥अनदिनु भोगे हउमै मारि ॥
शब्द का चिन्तन अमृत समान मीठा है।अपने अहंकार को मार कर जीव रात-दिन इसका भोग कर सकता है।

ਸਹਜਿ ਅਨੰਦਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰਿ ॥
सहजि अनंदि किरपा धारि ॥
जिस मनुष्य पर परमात्मा कृपा करता है, उसे सहज आनंद प्राप्त होता है।

ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸਦਾ ਸਚਿ ਪਿਆਰਿ ॥੭॥
नामि रते सदा सचि पिआरि ॥७॥
वह नाम से अनुरक्त हो जाता है और सदैव सत्य से प्रेम करता है॥ ७॥

ਹਰਿ ਜਪਿ ਪੜੀਐ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰਿ ॥
हरि जपि पड़ीऐ गुर सबदु वीचारि ॥
गुरु के शब्द को विचार कर हरि बारे पढ़ना एवं जाप करना चाहिए।

ਹਰਿ ਜਪਿ ਪੜੀਐ ਹਉਮੈ ਮਾਰਿ ॥
हरि जपि पड़ीऐ हउमै मारि ॥
हरि का जाप एवं उसके बारे में पढ़ने से मनुष्य का अहंकार निवृत हो जाता है।

ਹਰਿ ਜਪੀਐ ਭਇ ਸਚਿ ਪਿਆਰਿ ॥
हरि जपीऐ भइ सचि पिआरि ॥
भगवान के भय-सम्मान में रहकर सत्य के प्रेम में मस्त होकर हरि नाम का सुमिरन करना चाहिए।

ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਗੁਰਮਤਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥੮॥੩॥੨੫॥
नानक नामु गुरमति उर धारि ॥८॥३॥२५॥
हे नानक ! गुरु की मति द्वारा नाम अपने हृदय में बसाओ ॥ ८॥ ३॥ २५॥

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है।

ਰਾਗੁ ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ਅਸਟਪਦੀਆ ਘਰੁ ੮ ਕਾਫੀ ॥
रागु आसा महला ३ असटपदीआ घरु ८ काफी ॥
रागु आसा महला ३ असटपदीआ घरु ८ काफी ॥

ਗੁਰ ਤੇ ਸਾਂਤਿ ਊਪਜੈ ਜਿਨਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਅਗਨਿ ਬੁਝਾਈ ॥
गुर ते सांति ऊपजै जिनि त्रिसना अगनि बुझाई ॥
गुरु से ही शान्ति उत्पन्न होती है, जिसने तृष्णा की अग्नि को बुझा दिया है।

ਗੁਰ ਤੇ ਨਾਮੁ ਪਾਈਐ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥੧॥
गुर ते नामु पाईऐ वडी वडिआई ॥१॥
गुरु द्वारा ही नाम मिलता है, जिससे दुनिया में बड़ी ख्याति प्राप्त होती है॥ १॥

ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਚੇਤਿ ਮੇਰੇ ਭਾਈ ॥
एको नामु चेति मेरे भाई ॥
हे मेरे भाई ! प्रभु के एक नाम को ही याद करो।

ਜਗਤੁ ਜਲੰਦਾ ਦੇਖਿ ਕੈ ਭਜਿ ਪਏ ਸਰਣਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जगतु जलंदा देखि कै भजि पए सरणाई ॥१॥ रहाउ ॥
इस जगत को (विषय-विकारों से) जलता देखकर मैं भागकर (गुरु की) शरण में आ गया हूँ॥ १॥ रहाउ ॥

ਗੁਰ ਤੇ ਗਿਆਨੁ ਊਪਜੈ ਮਹਾ ਤਤੁ ਬੀਚਾਰਾ ॥
गुर ते गिआनु ऊपजै महा ततु बीचारा ॥
गुरु से ज्ञान की उत्पति होती है और जीव महा तत्व को विचारता है।

ਗੁਰ ਤੇ ਘਰੁ ਦਰੁ ਪਾਇਆ ਭਗਤੀ ਭਰੇ ਭੰਡਾਰਾ ॥੨॥
गुर ते घरु दरु पाइआ भगती भरे भंडारा ॥२॥
गुरु के द्वारा ही प्रभु के घर-दर को पा लिया है और मेरे भण्डार भक्ति से भर गए हैं।॥ २॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈਐ ਬੂਝੈ ਵੀਚਾਰਾ ॥
गुरमुखि नामु धिआईऐ बूझै वीचारा ॥
गुरु के माध्यम से मनुष्य, नाम का ध्यान करता है और इस विचार को बूझ लेता है।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਭਗਤਿ ਸਲਾਹ ਹੈ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦੁ ਅਪਾਰਾ ॥੩॥
गुरमुखि भगति सलाह है अंतरि सबदु अपारा ॥३॥
गुरु के माध्यम से ही भक्ति एवं ईश्वर की गुणस्तुति होती है और उसके मन में अपार शब्द बस जाता है॥ ३॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸੂਖੁ ਊਪਜੈ ਦੁਖੁ ਕਦੇ ਨ ਹੋਈ ॥
गुरमुखि सूखु ऊपजै दुखु कदे न होई ॥
गुरुमुख बनकर ही मनुष्य को सुख प्राप्त होता है और उसे कदाचित दु:ख नहीं होता।

ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀਐ ਮਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਹੋਈ ॥੪॥
गुरमुखि हउमै मारीऐ मनु निरमलु होई ॥४॥
गुरुमुख बन कर ही अहंकार नष्ट हो जाता है और मन निर्मल हो जाता है॥ ४॥

ਸਤਿਗੁਰਿ ਮਿਲਿਐ ਆਪੁ ਗਇਆ ਤ੍ਰਿਭਵਣ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥
सतिगुरि मिलिऐ आपु गइआ त्रिभवण सोझी पाई ॥
सतिगुरु से मिलकर मनुष्य का अहंत्व नाश हो जाता है और उसे तीन लोकों की सूझ प्राप्त हो जाती है।

ਨਿਰਮਲ ਜੋਤਿ ਪਸਰਿ ਰਹੀ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਈ ॥੫॥
निरमल जोति पसरि रही जोती जोति मिलाई ॥५॥
तब वह प्रभु की निर्मल ज्योति को सर्वव्यापक देखता है और उसकी ज्योति परम ज्योति में समा जाती है॥ ५॥

ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਸਮਝਾਇਆ ਮਤਿ ਊਤਮ ਹੋਈ ॥
पूरै गुरि समझाइआ मति ऊतम होई ॥
जब पूर्ण गुरु उपदेश प्रदान करता है तो बुद्धि श्रेष्ठ हो जाती है।

ਅੰਤਰੁ ਸੀਤਲੁ ਸਾਂਤਿ ਹੋਇ ਨਾਮੇ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥੬॥
अंतरु सीतलु सांति होइ नामे सुखु होई ॥६॥
अन्तर्मन शीतल एवं शांत हो जाता है और प्रभु नाम द्वारा सुख प्राप्त होता है॥ ६ ॥

ਪੂਰਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਤਾਂ ਮਿਲੈ ਜਾਂ ਨਦਰਿ ਕਰੇਈ ॥
पूरा सतिगुरु तां मिलै जां नदरि करेई ॥
जब भगवान करुणा-दृष्टि धारण करता है तो पूर्ण सतिगुरु मिलता है।

ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਸਭ ਕਟੀਅਹਿ ਫਿਰਿ ਦੁਖੁ ਬਿਘਨੁ ਨ ਹੋਈ ॥੭॥
किलविख पाप सभ कटीअहि फिरि दुखु बिघनु न होई ॥७॥
तब प्राणी के सब अपराध एवं पाप नाश हो जाते हैं और उसे फिर से कोई दुःख एवं विघ्न नहीं होता॥ ७॥

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