ਹਰਿ ਗੁਣ ਸਾਰੀ ਤਾ ਕੰਤ ਪਿਆਰੀ ਨਾਮੇ ਧਰੀ ਪਿਆਰੋ ॥
हरि गुण सारी ता कंत पिआरी नामे धरी पिआरो ॥
यदि तू प्रभु के गुणों को स्मरण करेगी तो तू अपने पति की प्रिया हो जाओगी और तेरा प्रेम नाम के साथ हो जाएगा।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਨਾਹ ਪਿਆਰੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਗਲਿ ਹਾਰੋ ॥੨॥
नानक कामणि नाह पिआरी राम नामु गलि हारो ॥२॥
हे नानक ! जिस जीवात्मा के गले में राम के नाम की माला विद्यमान है, वह अपने पति-प्रभु की प्रियतमा है॥ २॥
ਧਨ ਏਕਲੜੀ ਜੀਉ ਬਿਨੁ ਨਾਹ ਪਿਆਰੇ ॥
धन एकलड़ी जीउ बिनु नाह पिआरे ॥
अपने प्रियतम पति के बिना जीवात्मा बिल्कुल अकेली है।
ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਮੁਠੀ ਜੀਉ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਸਬਦ ਕਰਾਰੇ ॥
दूजै भाइ मुठी जीउ बिनु गुर सबद करारे ॥
कारगर (इष्ट फलप्रद) गुरु के शब्द के बिना वह द्वैतवाद के प्रेम कारण ठगी गई है।
ਬਿਨੁ ਸਬਦ ਪਿਆਰੇ ਕਉਣੁ ਦੁਤਰੁ ਤਾਰੇ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਖੁਆਈ ॥
बिनु सबद पिआरे कउणु दुतरु तारे माइआ मोहि खुआई ॥
शब्द के बिना उसको विषम सागर से कौन पार कर सकता है? माया के मोह ने उसको कुमार्गगामी कर दिया है।
ਕੂੜਿ ਵਿਗੁਤੀ ਤਾ ਪਿਰਿ ਮੁਤੀ ਸਾ ਧਨ ਮਹਲੁ ਨ ਪਾਈ ॥
कूड़ि विगुती ता पिरि मुती सा धन महलु न पाई ॥
जब झूठ ने उसको नष्ट कर दिया तो पति-प्रभु ने उसको त्याग दिया। फिर जीवात्मा प्रभु का महल प्राप्त नहीं करती।
ਗੁਰ ਸਬਦੇ ਰਾਤੀ ਸਹਜੇ ਮਾਤੀ ਅਨਦਿਨੁ ਰਹੈ ਸਮਾਏ ॥
र सबदे राती सहजे माती अनदिनु रहै समाए ॥
लेकिन जो जीवात्मा गुरु के शब्द में अनुरक्त है, वह प्रभु के प्रेम में मतवाली हो जाती है और दिन-रात उस में लीन रहती है।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਹਰਿ ਜੀਉ ਆਪਿ ਮਿਲਾਏ ॥੩॥
नानक कामणि सदा रंगि राती हरि जीउ आपि मिलाए ॥३॥
हे नानक ! जो जीवात्मा उसके प्रेम में सदा अनुरक्त रहती है, पूज्य परमेश्वर उस कामिनी (जीवात्मा) को अपने साथ मिला लेता है ॥ ३॥
ਤਾ ਮਿਲੀਐ ਹਰਿ ਮੇਲੇ ਜੀਉ ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਕਵਣੁ ਮਿਲਾਏ ॥
ता मिलीऐ हरि मेले जीउ हरि बिनु कवणु मिलाए ॥
यदि ईश्वर अपने साथ मिलाए तो ही हम उसको मिल सकते हैं। ईश्वर के बिना कौन हमें उससे मिला सकता है ?
ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਪ੍ਰੀਤਮ ਆਪਣੇ ਜੀਉ ਕਉਣੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ॥
बिनु गुर प्रीतम आपणे जीउ कउणु भरमु चुकाए ॥
अपने प्रियतम गुरु के बिना हमारी दुविधा कौन दूर कर सकता है ? गुरु के द्वारा दुविधा निवृत्त हो जाती है।
ਗੁਰੁ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਏ ਇਉ ਮਿਲੀਐ ਮਾਏ ਤਾ ਸਾ ਧਨ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥
गुरु भरमु चुकाए इउ मिलीऐ माए ता सा धन सुखु पाए ॥
हे मेरी माता ! यह है विधि ईश्वर से मिलने की और इस तरह दुल्हन (जीवात्मा) सुख प्राप्त करती है।
ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਬਿਨੁ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰੁ ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਮਗੁ ਨ ਪਾਏ ॥
गुर सेवा बिनु घोर अंधारु बिनु गुर मगु न पाए ॥
गुरु-की सेवा के अलावा घनघोर अन्धकार है। गुरु के (मार्गदर्शन) बिना मार्ग नहीं मिलता।
ਕਾਮਣਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਸਹਜੇ ਮਾਤੀ ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰੇ ॥
कामणि रंगि राती सहजे माती गुर कै सबदि वीचारे ॥
जो जीवात्मा प्रभु रंग में लीन है, वह गुरु के शब्द का चिन्तन करती है।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਗੁਰ ਕੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰੇ ॥੪॥੧॥
नानक कामणि हरि वरु पाइआ गुर कै भाइ पिआरे ॥४॥१॥
हे नानक ! प्रियतम गुरु से प्रेम पाकर जीवात्मा ने प्रभु को अपने पति के तौर पर पा लिया है॥ ४ ॥ १॥
ਗਉੜੀ ਮਹਲਾ ੩ ॥
गउड़ी महला ३ ॥
गउड़ी महला ३ ॥
ਪਿਰ ਬਿਨੁ ਖਰੀ ਨਿਮਾਣੀ ਜੀਉ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਕਿਉ ਜੀਵਾ ਮੇਰੀ ਮਾਈ ॥
पिर बिनु खरी निमाणी जीउ बिनु पिर किउ जीवा मेरी माई ॥
किस तरह जीवित रह सकती हूँ?
ਪਿਰ ਬਿਨੁ ਨੀਦ ਨ ਆਵੈ ਜੀਉ ਕਾਪੜੁ ਤਨਿ ਨ ਸੁਹਾਈ ॥
पिर बिनु नीद न आवै जीउ कापड़ु तनि न सुहाई ॥
अपने पति के बिना मुझे नींद नहीं आती और कोई वस्त्र मेरे शरीर को शोभा नहीं देता।
ਕਾਪਰੁ ਤਨਿ ਸੁਹਾਵੈ ਜਾ ਪਿਰ ਭਾਵੈ ਗੁਰਮਤੀ ਚਿਤੁ ਲਾਈਐ ॥
कापरु तनि सुहावै जा पिर भावै गुरमती चितु लाईऐ ॥
जब मैं अपने पति-प्रभु को अच्छी लगती हूँ तो मेरे शरीर पर वस्त्र बहुत शोभा देते हैं, गुरु के उपदेश से मेरा चित उससे एक ताल में हो गया है।
ਸਦਾ ਸੁਹਾਗਣਿ ਜਾ ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੇ ਗੁਰ ਕੈ ਅੰਕਿ ਸਮਾਈਐ ॥
सदा सुहागणि जा सतिगुरु सेवे गुर कै अंकि समाईऐ ॥
यदि वह सतिगुरु की श्रद्धा से सेवा करे तो सदा सुहागिन हो जाती है और गुरु जी के अंक में लीन हो जाती है।
ਗੁਰ ਸਬਦੈ ਮੇਲਾ ਤਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵੀ ਲਾਹਾ ਨਾਮੁ ਸੰਸਾਰੇ ॥
गुर सबदै मेला ता पिरु रावी लाहा नामु संसारे ॥
यदि वह गुरु के शब्द द्वारा अपने प्रियतम से मिल जाए तो वह उसको प्रेम करता है। इस संसार में केवल नाम ही एक लाभदायक काम है।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਨਾਹ ਪਿਆਰੀ ਜਾ ਹਰਿ ਕੇ ਗੁਣ ਸਾਰੇ ॥੧॥
नानक कामणि नाह पिआरी जा हरि के गुण सारे ॥१॥
हे नानक ! जब जीवात्मा प्रभु की गुणस्तुति करती है तो वह अपने प्रभु-पति को अच्छी लगने लग जाती है॥ १॥
ਸਾ ਧਨ ਰੰਗੁ ਮਾਣੇ ਜੀਉ ਆਪਣੇ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੇ ॥
सा धन रंगु माणे जीउ आपणे नालि पिआरे ॥
अपने प्रियतम के साथ पत्नी (जीवात्मा) उसके प्रेम का आनन्द प्राप्त करती है।
ਅਹਿਨਿਸਿ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਜੀਉ ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੇ ॥
अहिनिसि रंगि राती जीउ गुर सबदु वीचारे ॥
वह दिन-रात उसके प्रेम में अनुरक्त हुई, गुरु के शब्द का चिन्तन करती है।
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਵੀਚਾਰੇ ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ਇਨ ਬਿਧਿ ਮਿਲਹੁ ਪਿਆਰੇ ॥
गुर सबदु वीचारे हउमै मारे इन बिधि मिलहु पिआरे ॥
वह गुरु के शब्द का ध्यान करती है, तथा अपने अहंत्व को मिटा देती है और यूं अपने प्रियतम प्रभु से मिल जाती है।
ਸਾ ਧਨ ਸੋਹਾਗਣਿ ਸਦਾ ਰੰਗਿ ਰਾਤੀ ਸਾਚੈ ਨਾਮਿ ਪਿਆਰੇ ॥
सा धन सोहागणि सदा रंगि राती साचै नामि पिआरे ॥
जो जीवात्मा मधुर सत्यनाम के प्रेम में सदैव ही अनुरक्त है, वह अपने पति-प्रभु की प्रियतमा हो जाती है।
ਅਪੁਨੇ ਗੁਰ ਮਿਲਿ ਰਹੀਐ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਗਹੀਐ ਦੁਬਿਧਾ ਮਾਰਿ ਨਿਵਾਰੇ ॥
अपुने गुर मिलि रहीऐ अम्रितु गहीऐ दुबिधा मारि निवारे ॥
अपने गुरु की संगति में रहने से हम नाम अमृत को ग्रहण कर लेते हैं और अपनी दुविधा का नाश करते हैं।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਵਿਸਾਰੇ ॥੨॥
नानक कामणि हरि वरु पाइआ सगले दूख विसारे ॥२॥
हे नानक ! ईश्वर को अपने पति के तौर पर प्राप्त करके दुल्हन को तमाम दुःख भूल गए हैं।॥ २॥
ਕਾਮਣਿ ਪਿਰਹੁ ਭੁਲੀ ਜੀਉ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਪਿਆਰੇ ॥
कामणि पिरहु भुली जीउ माइआ मोहि पिआरे ॥
माया के मोह एवं लगाव के कारण पत्नी (जीवात्मा) अपने प्रियतम पति को भूल गई है।
ਝੂਠੀ ਝੂਠਿ ਲਗੀ ਜੀਉ ਕੂੜਿ ਮੁਠੀ ਕੂੜਿਆਰੇ ॥
झूठी झूठि लगी जीउ कूड़ि मुठी कूड़िआरे ॥
झूठी पत्नी (जीवात्मा) झूठ,से जुड़ी हुई है। कपटी नारी कपट ने छल ली है।
ਕੂੜੁ ਨਿਵਾਰੇ ਗੁਰਮਤਿ ਸਾਰੇ ਜੂਐ ਜਨਮੁ ਨ ਹਾਰੇ ॥
कूड़ु निवारे गुरमति सारे जूऐ जनमु न हारे ॥
जो जीवात्मा असत्य त्याग देती है और गुरु के उपदेश पर अनुसरण करती है, वह अपने जीवन को जुए में नहीं हारती।
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਸੇਵੇ ਸਚਿ ਸਮਾਵੈ ਵਿਚਹੁ ਹਉਮੈ ਮਾਰੇ ॥
गुर सबदु सेवे सचि समावै विचहु हउमै मारे ॥
जो जीवात्मा गुरु के शब्द का चिन्तन करती है, वह अपनी अन्तरात्मा से अहंत्व को दूर कर के सत्य में लीन हो जाती है।
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਰਿਦੈ ਵਸਾਏ ਐਸਾ ਕਰੇ ਸੀਗਾਰੋ ॥
हरि का नामु रिदै वसाए ऐसा करे सीगारो ॥
“(हे जीवात्मा !) प्रभु के नाम को अपने हृदय में बसा, तू ऐसा हार-श्रृंगार कर।
ਨਾਨਕ ਕਾਮਣਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਣੀ ਜਿਸੁ ਸਾਚਾ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੋ ॥੩॥
नानक कामणि सहजि समाणी जिसु साचा नामु अधारो ॥३॥
हे नानक ! जिस दुल्हन का सहारा सत्य-नाम है, वह सहज ही स्वामी में लीन हो जाती है। ३॥
ਮਿਲੁ ਮੇਰੇ ਪ੍ਰੀਤਮਾ ਜੀਉ ਤੁਧੁ ਬਿਨੁ ਖਰੀ ਨਿਮਾਣੀ ॥
मिलु मेरे प्रीतमा जीउ तुधु बिनु खरी निमाणी ॥
हे मेरे प्रियतम ! मुझे दर्शन दीजिए। तेरे बिना मैं बहुत ही बेइज्जत हूँ।
ਮੈ ਨੈਣੀ ਨੀਦ ਨ ਆਵੈ ਜੀਉ ਭਾਵੈ ਅੰਨੁ ਨ ਪਾਣੀ ॥
मै नैणी नीद न आवै जीउ भावै अंनु न पाणी ॥
मेरे नयनों में नींद नहीं आती और भोजन व जल मुझे अच्छे नहीं लगते
ਪਾਣੀ ਅੰਨੁ ਨ ਭਾਵੈ ਮਰੀਐ ਹਾਵੈ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਕਿਉ ਸੁਖੁ ਪਾਈਐ ॥
पाणी अंनु न भावै मरीऐ हावै बिनु पिर किउ सुखु पाईऐ ॥
भोजन व जल मुझे अच्छे नहीं लगते और मैं उसके विरह के शोक से मर रही हूँ। अपने प्रियतम पति के बिना सुख किस तरह मिल सकता है?