Hindi Page 263

ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਲਾਗਉ ਪਾਏ ॥੩॥
नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥
हे नानक ! मैं उन सिमरन करने वाले महापुरुषों के चरण-स्पर्श करता हूँ॥ ३॥

ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ॥
प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ॥
प्रभु का सिमरन सबसे ऊँचा है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਉਧਰੇ ਮੂਚਾ ॥
प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा ॥
प्रभु का सिमरन करने से अनेक प्राणियों का उद्धार हो जाता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਬੁਝੈ ॥
प्रभ कै सिमरनि त्रिसना बुझै ॥
प्रभु का सिमरन करने से तृष्णा मिट जाती है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਸੁਝੈ ॥
प्रभ कै सिमरनि सभु किछु सुझै ॥
प्रभु का सिमरन करने से सब कुछ सूझ जाता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਨਾਹੀ ਜਮ ਤ੍ਰਾਸਾ ॥
प्रभ कै सिमरनि नाही जम त्रासा ॥
प्रभु का सिमरन करने से यम (मृत्यु) का भय निवृत हो जाता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਪੂਰਨ ਆਸਾ ॥
प्रभ कै सिमरनि पूरन आसा ॥
प्रभु का सिमरन करने से अभिलाषा पूरी हो जाती है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਮਨ ਕੀ ਮਲੁ ਜਾਇ ॥
प्रभ कै सिमरनि मन की मलु जाइ ॥
प्रभु का सिमरन करने से मन की मैल उतर जाती है

ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਨਾਮੁ ਰਿਦ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥
अम्रित नामु रिद माहि समाइ ॥
और भगवान का अमृत नाम हृदय में समा जाता है।  

ਪ੍ਰਭ ਜੀ ਬਸਹਿ ਸਾਧ ਕੀ ਰਸਨਾ ॥
प्रभ जी बसहि साध की रसना ॥
पूजनीय प्रभु अपने संत पुरुषों की रसना में निवास करते हैं।

ਨਾਨਕ ਜਨ ਕਾ ਦਾਸਨਿ ਦਸਨਾ ॥੪॥
नानक जन का दासनि दसना ॥४॥
हे नानक ! मैं गुरमुखों के दासों का दास हूँ॥ ४॥

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਧਨਵੰਤੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से धनवंते ॥
जो प्रभु का सिमरन करते हैं, ऐसे व्यक्ति ही धनवान हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਪਤਿਵੰਤੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से पतिवंते ॥
जो प्रभु का सिमरन करते हैं, वही व्यक्ति इज्जतदार हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਜਨ ਪਰਵਾਨ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से जन परवान ॥
जो लोग प्रभु को स्मरण करते हैं, वे प्रभु के दरबार में स्वीकृत होते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਪੁਰਖ ਪ੍ਰਧਾਨ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से पुरख प्रधान ॥
जो व्यक्ति प्रभु का सिमरन करते हैं, वे जगत् में प्रसिद्ध हो जाते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸਿ ਬੇਮੁਹਤਾਜੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि बेमुहताजे ॥
जो पुरुष प्रभु का सिमरन करते हैं, वे किसी के आश्रित नहीं रहते।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸਿ ਸਰਬ ਕੇ ਰਾਜੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि सि सरब के राजे ॥
जो प्राणी प्रभु का सिमरन करते हैं, वे सब के सम्राट हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਸੁਖਵਾਸੀ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से सुखवासी ॥
जो प्राणी प्रभु को स्मरण करते हैं, वह सुख में निवास करते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸਦਾ ਅਬਿਨਾਸੀ ॥
प्रभ कउ सिमरहि सदा अबिनासी ॥
जो प्रभु को स्मरण करते हैं, वे अमर हो जाते हैं।

ਸਿਮਰਨ ਤੇ ਲਾਗੇ ਜਿਨ ਆਪਿ ਦਇਆਲਾ ॥
सिमरन ते लागे जिन आपि दइआला ॥
जिन पर ईश्वर दयालु होता है, केवल वही व्यक्ति प्रभु का सिमरन करते हैं।

ਨਾਨਕ ਜਨ ਕੀ ਮੰਗੈ ਰਵਾਲਾ ॥੫॥
नानक जन की मंगै रवाला ॥५॥
हे नानक ! मैं प्रभु के सेवकों की चरणधूलि ही मांगता हूँ॥ ५॥

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਪਰਉਪਕਾਰੀ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से परउपकारी ॥
जो व्यक्ति प्रभु का सिमरन करते हैं, ऐसे व्यक्ति परोपकारी बन जाते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਤਿਨ ਸਦ ਬਲਿਹਾਰੀ ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन सद बलिहारी ॥
जो व्यक्ति प्रभु का सिमरन करते हैं, मैं उन पर हमेशा ही कुर्बान जाता हूँ।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਮੁਖ ਸੁਹਾਵੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि से मुख सुहावे ॥
जो व्यक्ति प्रभु का सिमरन करते हैं, उनके मुख अति सुन्दर हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਤਿਨ ਸੂਖਿ ਬਿਹਾਵੈ ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन सूखि बिहावै ॥
जो प्राणी प्रभु को स्मरण करते हैं, वह अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਤਿਨ ਆਤਮੁ ਜੀਤਾ ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन आतमु जीता ॥
जो प्रभु का सिमरन करते हैं, वह अपने मन को जीत लेते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਤਿਨ ਨਿਰਮਲ ਰੀਤਾ ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन निरमल रीता ॥
जो प्राणी प्रभु को स्मरण करते हैं, उनका जीवन-आचरण पावन हो जाता है।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਤਿਨ ਅਨਦ ਘਨੇਰੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि तिन अनद घनेरे ॥
जो प्रभु का सिमरन करते हैं, उन्हें अनेक खुशियाँ एवं हर्षोल्लास ही प्राप्त होते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕਉ ਸਿਮਰਹਿ ਬਸਹਿ ਹਰਿ ਨੇਰੇ ॥
प्रभ कउ सिमरहि बसहि हरि नेरे ॥
जो प्राणी प्रभु का सिमरन करते हैं, वह ईश्वर के निकट वास करते हैं।

ਸੰਤ ਕ੍ਰਿਪਾ ਤੇ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗਿ ॥
संत क्रिपा ते अनदिनु जागि ॥
संतों की कृपा से वह रात-दिन जाग्रत रहते हैं।

ਨਾਨਕ ਸਿਮਰਨੁ ਪੂਰੈ ਭਾਗਿ ॥੬॥
नानक सिमरनु पूरै भागि ॥६॥
हे नानक ! प्रभु-सिमरन की देन भाग्य से ही प्राप्त होती है। ६॥

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਕਾਰਜ ਪੂਰੇ ॥
प्रभ कै सिमरनि कारज पूरे ॥
प्रभु का सिमरन करने से समस्त कार्य सम्पूर्ण हो जाते हैं।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਕਬਹੁ ਨ ਝੂਰੇ ॥
प्रभ कै सिमरनि कबहु न झूरे ॥
प्रभु का सिमरन करने से प्राणी कभी चिन्ता-क्लेश के वश में नहीं पड़ता।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਬਾਨੀ ॥
प्रभ कै सिमरनि हरि गुन बानी ॥
प्रभु के सिमरन द्वारा मनुष्य भगवान की गुणस्तुति की वाणी करता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਸਹਜਿ ਸਮਾਨੀ ॥
प्रभ कै सिमरनि सहजि समानी ॥
प्रभु के सिमरन द्वारा मनुष्य सहज ही परमात्मा में लीन हो जाता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਨਿਹਚਲ ਆਸਨੁ ॥
प्रभ कै सिमरनि निहचल आसनु ॥
प्रभु के सिमरन द्वारा वह अटल आसन प्राप्त कर लेता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਕਮਲ ਬਿਗਾਸਨੁ ॥
प्रभ कै सिमरनि कमल बिगासनु ॥
प्रभु के सिमरन द्वारा मनुष्य का हृदय कमल प्रफुल्लित हो जाता है।

ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਅਨਹਦ ਝੁਨਕਾਰ ॥
प्रभ कै सिमरनि अनहद झुनकार ॥
प्रभु के सिमरन द्वारा दिव्य भजन गूंजता है।

ਸੁਖੁ ਪ੍ਰਭ ਸਿਮਰਨ ਕਾ ਅੰਤੁ ਨ ਪਾਰ ॥
सुखु प्रभ सिमरन का अंतु न पार ॥
प्रभु के सिमरन द्वारा सुख का कोई अन्त अथवा पार नहीं।

ਸਿਮਰਹਿ ਸੇ ਜਨ ਜਿਨ ਕਉ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ॥
सिमरहि से जन जिन कउ प्रभ मइआ ॥
जिन प्राणियों पर प्रभु की कृपा होती है, वह उसका सिमरन करते रहते हैं।

ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਜਨ ਸਰਨੀ ਪਇਆ ॥੭॥
नानक तिन जन सरनी पइआ ॥७॥
हे नानक ! (कोई किस्मत वाला ही) उन प्रभु-स्मरण करने वालों की शरण लेता है॥ ७ ॥

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਕਰਿ ਭਗਤ ਪ੍ਰਗਟਾਏ ॥
हरि सिमरनु करि भगत प्रगटाए ॥
भगवान का सिमरन करके भक्त दुनिया में लोकप्रिय हो जाते हैं।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਲਗਿ ਬੇਦ ਉਪਾਏ ॥
हरि सिमरनि लगि बेद उपाए ॥
भगवान के सिमरन में ही सम्मिलित होकर वेद (इत्यादि धार्मिक ग्रंथ) रचे गए।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਭਏ ਸਿਧ ਜਤੀ ਦਾਤੇ ॥
हरि सिमरनि भए सिध जती दाते ॥
भगवान के सिमरन द्वारा ही मनुष्य सिद्ध, ब्रह्मचारी एवं दानवीर बन जाते हैं।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਨੀਚ ਚਹੁ ਕੁੰਟ ਜਾਤੇ ॥
हरि सिमरनि नीच चहु कुंट जाते ॥
भगवान के सिमरन द्वारा नीच पुरुष चारों दिशाओं में प्रसिद्ध हो गए।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਧਾਰੀ ਸਭ ਧਰਨਾ ॥
हरि सिमरनि धारी सभ धरना ॥
भगवान के सिमरन ने ही सारी धरती को धारण किया हुआ है।

ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਹਰਿ ਕਾਰਨ ਕਰਨਾ ॥
सिमरि सिमरि हरि कारन करना ॥
हे जिज्ञासु ! संसार के कर्ता परमेश्वर को सदा स्मरण करते रहो।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨਿ ਕੀਓ ਸਗਲ ਅਕਾਰਾ ॥
हरि सिमरनि कीओ सगल अकारा ॥
प्रभु ने अपने सिमरन हेतु सृष्टि की रचना की है।

ਹਰਿ ਸਿਮਰਨ ਮਹਿ ਆਪਿ ਨਿਰੰਕਾਰਾ ॥
हरि सिमरन महि आपि निरंकारा ॥
जहाँ प्रभु का सिमरन होता है, उस स्थान पर स्वयं निरंकार विद्यमान है।

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਇਆ ॥
करि किरपा जिसु आपि बुझाइआ ॥
हे नानक ! भगवान जिसे कृपा करके सिमरन की सूझ प्रदान करता है,

ਨਾਨਕ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਸਿਮਰਨੁ ਤਿਨਿ ਪਾਇਆ ॥੮॥੧॥
नानक गुरमुखि हरि सिमरनु तिनि पाइआ ॥८॥१॥
गुरु के माध्यम से ऐसे व्यक्ति को भगवान के सिमरन की देन मिल जाती है॥ ८॥ १॥

ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक ॥

ਦੀਨ ਦਰਦ ਦੁਖ ਭੰਜਨਾ ਘਟਿ ਘਟਿ ਨਾਥ ਅਨਾਥ ॥
दीन दरद दुख भंजना घटि घटि नाथ अनाथ ॥
हे दीनों के दर्द एवं दुःख का नाश करने वाले प्रभु ! हे प्रत्येक शरीर में व्यापक स्वामी । हे अनाथों के नाथ परमात्मा !

ਸਰਣਿ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਾਰੀ ਆਇਓ ਨਾਨਕ ਕੇ ਪ੍ਰਭ ਸਾਥ ॥੧॥
सरणि तुम्हारी आइओ नानक के प्रभ साथ ॥१॥
मैं तेरी शरण में आया हूँ, आप प्रभु मेरे (नानक के) साथ हो।॥ १॥

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