ਕਿਛੁ ਕਿਸੀ ਕੈ ਹਥਿ ਨਾਹੀ ਮੇਰੇ ਸੁਆਮੀ ਐਸੀ ਮੇਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਬੂਝ ਬੁਝਾਈ ॥
किछु किसी कै हथि नाही मेरे सुआमी ऐसी मेरै सतिगुरि बूझ बुझाई ॥
मेरे सतगुरु ने मुझे यही सूझ दी है कि किसी भी जीव के हाथ में कुछ भी नहीं है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਕੀ ਆਸ ਤੂ ਜਾਣਹਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਹਰਿ ਦਰਸਨਿ ਤ੍ਰਿਪਤਾਈ ॥੪॥੧॥
जन नानक की आस तू जाणहि हरि दरसनु देखि हरि दरसनि त्रिपताई ॥४॥१॥
हे हरि ! नानक की आशा तू ही जानता है और तेरे दर्शन करके मैं तृप्त हो जाता हूँ॥ ४॥ १॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गोंड महला ४ ॥
गोंड महला ४ ॥
ਐਸਾ ਹਰਿ ਸੇਵੀਐ ਨਿਤ ਧਿਆਈਐ ਜੋ ਖਿਨ ਮਹਿ ਕਿਲਵਿਖ ਸਭਿ ਕਰੇ ਬਿਨਾਸਾ ॥
ऐसा हरि सेवीऐ नित धिआईऐ जो खिन महि किलविख सभि करे बिनासा ॥
ऐसे ईश्वर की उपासना करनी चाहिए, नित्य उसका मनन करना चाहिए, जो क्षण में ही सब पाप नाश कर देता है।
ਜੇ ਹਰਿ ਤਿਆਗਿ ਅਵਰ ਕੀ ਆਸ ਕੀਜੈ ਤਾ ਹਰਿ ਨਿਹਫਲ ਸਭ ਘਾਲ ਗਵਾਸਾ ॥
जे हरि तिआगि अवर की आस कीजै ता हरि निहफल सभ घाल गवासा ॥
यदि परमात्मा को त्याग कर किसी अन्य की आशा करोगे तो सारी मेहनत निष्फल हो जाएगी।
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਸੇਵਿਹੁ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸੁਆਮੀ ਜਿਸੁ ਸੇਵਿਐ ਸਭ ਭੁਖ ਲਹਾਸਾ ॥੧॥
मेरे मन हरि सेविहु सुखदाता सुआमी जिसु सेविऐ सभ भुख लहासा ॥१॥
हे मेरे मन ! सुखों के दाता, स्वामी हरि की अर्चना करो, जिसकी अर्चना करने से सारी भूख दूर हो जाती है।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਹਰਿ ਊਪਰਿ ਕੀਜੈ ਭਰਵਾਸਾ ॥
मेरे मन हरि ऊपरि कीजै भरवासा ॥
हे मेरे मन ! भगवान पर भरोसा रखना चाहिए।
ਜਹ ਜਾਈਐ ਤਹ ਨਾਲਿ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਹਰਿ ਅਪਨੀ ਪੈਜ ਰਖੈ ਜਨ ਦਾਸਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जह जाईऐ तह नालि मेरा सुआमी हरि अपनी पैज रखै जन दासा ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ भी जाता हूँ, वहाँ ही मेरा स्वामी मेरे साथ होता है। हरि अपने भक्तजनों एवं दासों की हमेशा ही लाज रखता है॥ १॥ रहाउ ॥
ਜੇ ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਕਹਹੁ ਅਵਰਾ ਪਹਿ ਤਾ ਆਗੈ ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਬਹੁ ਬਹੁਤੁ ਕਢਾਸਾ ॥
जे अपनी बिरथा कहहु अवरा पहि ता आगै अपनी बिरथा बहु बहुतु कढासा ॥
यदि हम अपना दुख किसी को जाकर बताएँ तो आगे से वह अपने ही अनेक दुःख सुना देता है।
ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਕਹਹੁ ਹਰਿ ਅਪੁਨੇ ਸੁਆਮੀ ਪਹਿ ਜੋ ਤੁਮ੍ਹ੍ਹਰੇ ਦੂਖ ਤਤਕਾਲ ਕਟਾਸਾ ॥
अपनी बिरथा कहहु हरि अपुने सुआमी पहि जो तुम्हरे दूख ततकाल कटासा ॥
इसलिए अपना दु:ख अपने स्वामी हरि के पास ही कहो, जो तेरे दुख तत्काल ही समाप्त कर देगा।
ਸੋ ਐਸਾ ਪ੍ਰਭੁ ਛੋਡਿ ਅਪਨੀ ਬਿਰਥਾ ਅਵਰਾ ਪਹਿ ਕਹੀਐ ਅਵਰਾ ਪਹਿ ਕਹਿ ਮਨ ਲਾਜ ਮਰਾਸਾ ॥੨॥
सो ऐसा प्रभु छोडि अपनी बिरथा अवरा पहि कहीऐ अवरा पहि कहि मन लाज मरासा ॥२॥
हे मन ! सो ऐसे प्रभु को छोड़कर अपना दुख किसी अन्य के पास कहना तो शर्म से डूबकर मरने की तरह ही है॥ २॥
ਜੋ ਸੰਸਾਰੈ ਕੇ ਕੁਟੰਬ ਮਿਤ੍ਰ ਭਾਈ ਦੀਸਹਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਤੇ ਸਭਿ ਅਪਨੈ ਸੁਆਇ ਮਿਲਾਸਾ ॥
जो संसारै के कुट्मब मित्र भाई दीसहि मन मेरे ते सभि अपनै सुआइ मिलासा ॥
हे मन ! संसार के जो परिवार, मित्र, भाई इत्यादि रिश्ते नजर आते हैं, वे तुझे अपने स्वार्थ के लिए ही मिलते हैं।
ਜਿਤੁ ਦਿਨਿ ਉਨੑ ਕਾ ਸੁਆਉ ਹੋਇ ਨ ਆਵੈ ਤਿਤੁ ਦਿਨਿ ਨੇੜੈ ਕੋ ਨ ਢੁਕਾਸਾ ॥
जितु दिनि उन्ह का सुआउ होइ न आवै तितु दिनि नेड़ै को न ढुकासा ॥
जिस दिन उनका स्वार्थ तुझसे पूरा न हो, उस दिन से उनमें से कोई भी तेरे निकट नहीं आएगा।
ਮਨ ਮੇਰੇ ਅਪਨਾ ਹਰਿ ਸੇਵਿ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਜੋ ਤੁਧੁ ਉਪਕਰੈ ਦੂਖਿ ਸੁਖਾਸਾ ॥੩॥
मन मेरे अपना हरि सेवि दिनु राती जो तुधु उपकरै दूखि सुखासा ॥३॥
हे मेरे मन ! दिन-रात भगवान की भक्ति करो; जो तुझ पर उपकार करके दुखों को सुख में तब्दील कर देता है॥ ३॥
ਤਿਸ ਕਾ ਭਰਵਾਸਾ ਕਿਉ ਕੀਜੈ ਮਨ ਮੇਰੇ ਜੋ ਅੰਤੀ ਅਉਸਰਿ ਰਖਿ ਨ ਸਕਾਸਾ ॥
तिस का भरवासा किउ कीजै मन मेरे जो अंती अउसरि रखि न सकासा ॥
हे मेरे मन ! उस पर भरोसा कैसे किया जा सकता है? जो अन्तिम समय बचा नहीं सकता।
ਹਰਿ ਜਪੁ ਮੰਤੁ ਗੁਰ ਉਪਦੇਸੁ ਲੈ ਜਾਪਹੁ ਤਿਨੑ ਅੰਤਿ ਛਡਾਏ ਜਿਨੑ ਹਰਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਚਿਤਾਸਾ ॥
हरि जपु मंतु गुर उपदेसु लै जापहु तिन्ह अंति छडाए जिन्ह हरि प्रीति चितासा ॥
गुरु का उपदेश लेकर हरि-मंत्र का जाप करो, अन्तिम समय हरि उन्हें यम से बचा लेता है, जिनके चित में उसका प्रेम बसता है।
ਜਨ ਨਾਨਕ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਜਪਹੁ ਹਰਿ ਸੰਤਹੁ ਇਹੁ ਛੂਟਣ ਕਾ ਸਾਚਾ ਭਰਵਾਸਾ ॥੪॥੨॥
जन नानक अनदिनु नामु जपहु हरि संतहु इहु छूटण का साचा भरवासा ॥४॥२॥
नानक कहते हैं कि हे भक्तजनों ! हर समय प्रभु का नाम जपो; यम से छूटने का यही सच्चा भरोसा है ॥४॥२॥
ਗੋਂਡ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गोंड महला ४ ॥
गोंड महला ४ ॥
ਹਰਿ ਸਿਮਰਤ ਸਦਾ ਹੋਇ ਅਨੰਦੁ ਸੁਖੁ ਅੰਤਰਿ ਸਾਂਤਿ ਸੀਤਲ ਮਨੁ ਅਪਨਾ ॥
हरि सिमरत सदा होइ अनंदु सुखु अंतरि सांति सीतल मनु अपना ॥
परमात्मा का सिमरन करने से सदा ही आनंद एवं सुख मिलता है, इससे मन शीतल हो जाता है और बड़ी शांति मिलती है।
ਜੈਸੇ ਸਕਤਿ ਸੂਰੁ ਬਹੁ ਜਲਤਾ ਗੁਰ ਸਸਿ ਦੇਖੇ ਲਹਿ ਜਾਇ ਸਭ ਤਪਨਾ ॥੧॥
जैसे सकति सूरु बहु जलता गुर ससि देखे लहि जाइ सभ तपना ॥१॥
जैसे सूर्य रूपी माया से मन बहुत जलता रहता है, वैसे ही चन्द्रमा रूपी गुरु के दर्शन करके सारा ताप दूर हो जाता है।॥ १॥
ਮੇਰੇ ਮਨ ਅਨਦਿਨੁ ਧਿਆਇ ਨਾਮੁ ਹਰਿ ਜਪਨਾ ॥
मेरे मन अनदिनु धिआइ नामु हरि जपना ॥
हे मेरे मन ! नित्य परमेश्वर का ध्यान करो और उसका नाम जपो।
ਜਹਾ ਕਹਾ ਤੁਝੁ ਰਾਖੈ ਸਭ ਠਾਈ ਸੋ ਐਸਾ ਪ੍ਰਭੁ ਸੇਵਿ ਸਦਾ ਤੂ ਅਪਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जहा कहा तुझु राखै सभ ठाई सो ऐसा प्रभु सेवि सदा तू अपना ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ कहाँ सब स्थानों पर तेरी रक्षा करता है, सो ऐसे प्रभु की तू सदैव उपासना करता रह॥ १॥ रहाउ॥
ਜਾ ਮਹਿ ਸਭਿ ਨਿਧਾਨ ਸੋ ਹਰਿ ਜਪਿ ਮਨ ਮੇਰੇ ਗੁਰਮੁਖਿ ਖੋਜਿ ਲਹਹੁ ਹਰਿ ਰਤਨਾ ॥
जा महि सभि निधान सो हरि जपि मन मेरे गुरमुखि खोजि लहहु हरि रतना ॥
हे मेरे मन ! जिसमें सर्व सुखों के भण्डार हैं, उस परमात्मा को जपते रहो तथा गुरु के माध्यम से हरि नाम रूपी रत्न को खोज लो।
ਜਿਨ ਹਰਿ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਮੇਰਾ ਸੁਆਮੀ ਤਿਨ ਕੇ ਚਰਣ ਮਲਹੁ ਹਰਿ ਦਸਨਾ ॥੨॥
जिन हरि धिआइआ तिन हरि पाइआ मेरा सुआमी तिन के चरण मलहु हरि दसना ॥२॥
जिन्होंने हरि का ध्यान किया है, उन्होंने उसे पा लिया है, हरि के उन दासों के चरणों की सेवा करो। २॥
ਸਬਦੁ ਪਛਾਣਿ ਰਾਮ ਰਸੁ ਪਾਵਹੁ ਓਹੁ ਊਤਮੁ ਸੰਤੁ ਭਇਓ ਬਡ ਬਡਨਾ ॥
सबदु पछाणि राम रसु पावहु ओहु ऊतमु संतु भइओ बड बडना ॥
शब्द को पहचान कर राम रस प्राप्त करो, राम रस पा कर वह उत्तम संत एवं महान् बन गया है।
ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ਹਰਿ ਆਪਿ ਵਧਾਈ ਓਹੁ ਘਟੈ ਨ ਕਿਸੈ ਕੀ ਘਟਾਈ ਇਕੁ ਤਿਲੁ ਤਿਲੁ ਤਿਲਨਾ ॥੩॥
तिसु जन की वडिआई हरि आपि वधाई ओहु घटै न किसै की घटाई इकु तिलु तिलु तिलना ॥३॥
अपने उस सेवक की बड़ाई परमात्मा ने स्वयं बड़ाई है और उसकी वह बड़ाई किसी के घटाने से एक तिल मात्र भी कम नहीं होती ॥ ३॥