ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਮੈ ਮੂਰਖ ਹਰਿ ਰਾਖੁ ਮੇਰੇ ਗੁਸਈਆ ॥
मेरे राम मै मूरख हरि राखु मेरे गुसईआ ॥
हे मेरे राम ! हे मेरे गुसाई ! मैं मूर्ख हूँ, मेरी रक्षा कीजिए।
ਜਨ ਕੀ ਉਪਮਾ ਤੁਝਹਿ ਵਡਈਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जन की उपमा तुझहि वडईआ ॥१॥ रहाउ ॥
हे प्रभु ! तेरे सेवक की उपमा तेरी अपनी ही कीर्ति है॥ १॥ रहाउ॥
ਮੰਦਰਿ ਘਰਿ ਆਨੰਦੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਸੁ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ॥
मंदरि घरि आनंदु हरि हरि जसु मनि भावै ॥
जिसके हृदय को हरि-प्रभु का यश लुभाता है, वह अपने हृदय रूपी मन्दिर एवं धाम में आनन्द भोगता है।
ਸਭ ਰਸ ਮੀਠੇ ਮੁਖਿ ਲਗਹਿ ਜਾ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ॥
सभ रस मीठे मुखि लगहि जा हरि गुण गावै ॥
जब वह परमात्मा का यश गायन करता है तो उसका मुख समस्त मीठे रसों (कामनाओं) को चखता है।
ਹਰਿ ਜਨੁ ਪਰਵਾਰੁ ਸਧਾਰੁ ਹੈ ਇਕੀਹ ਕੁਲੀ ਸਭੁ ਜਗਤੁ ਛਡਾਵੈ ॥੨॥
हरि जनु परवारु सधारु है इकीह कुली सभु जगतु छडावै ॥२॥
प्रभु का सेवक अपने परिवार का कल्याण करने वाला है। वह अपने इक्कीस वंशों (सात पिता के, सात माता के, सात ससुर के) के समस्त प्राणियों का उद्धार कराता है॥ २॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕੀਆ ਸੋ ਹਰਿ ਕੀਆ ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥
जो किछु कीआ सो हरि कीआ हरि की वडिआई ॥
जो कुछ किया है, परमेश्वर ने किया है और परमेश्वर का यश है ।
ਹਰਿ ਜੀਅ ਤੇਰੇ ਤੂੰ ਵਰਤਦਾ ਹਰਿ ਪੂਜ ਕਰਾਈ ॥
हरि जीअ तेरे तूं वरतदा हरि पूज कराई ॥
मेरे प्रभु-परमेश्वर समस्त जीव-जन्तु तेरे हैं। तुम उनमें व्यापक हो रहे हो और उनसे अपनी पूजा-अर्चना करवाते हो।
ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਭੰਡਾਰ ਲਹਾਇਦਾ ਆਪੇ ਵਰਤਾਈ ॥੩॥
हरि भगति भंडार लहाइदा आपे वरताई ॥३॥
परमेश्वर स्वयं ही प्राणियों को अपनी सेवा-भक्ति का खजाना दिलवाता है और स्वयं ही इसे बांटता है॥ ३॥
ਲਾਲਾ ਹਾਟਿ ਵਿਹਾਝਿਆ ਕਿਆ ਤਿਸੁ ਚਤੁਰਾਈ ॥
लाला हाटि विहाझिआ किआ तिसु चतुराई ॥
मैं तो दुकान से खरीदा हुआ तेरा गुलाम हूँ, मैं क्या चतुरता कर सकता हूँ?
ਜੇ ਰਾਜਿ ਬਹਾਲੇ ਤਾ ਹਰਿ ਗੁਲਾਮੁ ਘਾਸੀ ਕਉ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਕਢਾਈ ॥
जे राजि बहाले ता हरि गुलामु घासी कउ हरि नामु कढाई ॥
यदि हे प्रभु ! तू मुझे सिंघासन पर आरूढ़ कर दे तो भी मैं तेरा ही गुलाम रहूँगा तथा एक घसियारे की अवस्था में भी तुम मुझसे अपने नाम का ही जाप करवा।
ਜਨੁ ਨਾਨਕੁ ਹਰਿ ਕਾ ਦਾਸੁ ਹੈ ਹਰਿ ਕੀ ਵਡਿਆਈ ॥੪॥੨॥੮॥੪੬॥
जनु नानकु हरि का दासु है हरि की वडिआई ॥४॥२॥८॥४६॥
नानक तो परमात्मा का दास है और परमात्मा की ही स्तुति करता रहता है। ४॥ २॥ ८॥ ४६॥
ਗਉੜੀ ਗੁਆਰੇਰੀ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ४ ॥
गउड़ी गुआरेरी महला ४ ॥
ਕਿਰਸਾਣੀ ਕਿਰਸਾਣੁ ਕਰੇ ਲੋਚੈ ਜੀਉ ਲਾਇ ॥
किरसाणी किरसाणु करे लोचै जीउ लाइ ॥
कृषक बड़े चाव से एवं दिल लगाकर कृषि करता है।
ਹਲੁ ਜੋਤੈ ਉਦਮੁ ਕਰੇ ਮੇਰਾ ਪੁਤੁ ਧੀ ਖਾਇ ॥
हलु जोतै उदमु करे मेरा पुतु धी खाइ ॥
वह हल चलाता है और कड़ी मेहनत करता है और लालसा करता है कि उसके पुत्र एवं पुत्री संतुष्ट होकर खाएँ।
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਪੁ ਕਰੇ ਹਰਿ ਅੰਤਿ ਛਡਾਇ ॥੧॥
तिउ हरि जनु हरि हरि जपु करे हरि अंति छडाइ ॥१॥
इसी तरह प्रभु का सेवक प्रभु के नाम का जाप करता रहता है, जिसके फलस्वरूप परमेश्वर अन्तिम समय उसे मोह-माया के पन्जे से मुक्त कराता है॥ १॥
ਮੈ ਮੂਰਖ ਕੀ ਗਤਿ ਕੀਜੈ ਮੇਰੇ ਰਾਮ ॥
मै मूरख की गति कीजै मेरे राम ॥
हे मेरे राम ! मुझ मूर्ख की मुक्ति करो।
ਗੁਰ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਹਰਿ ਲਾਇ ਹਮ ਕਾਮ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
गुर सतिगुर सेवा हरि लाइ हम काम ॥१॥ रहाउ ॥
भगवान ने मुझे गुरु-सतिगुरु की सेवा के कार्य में लगा दिया है॥ १ ॥ रहाउ ॥
ਲੈ ਤੁਰੇ ਸਉਦਾਗਰੀ ਸਉਦਾਗਰੁ ਧਾਵੈ ॥
लै तुरे सउदागरी सउदागरु धावै ॥
व्यापारी कुशल घोड़े लेकर उनके व्यापार हेतु चलता है।
ਧਨੁ ਖਟੈ ਆਸਾ ਕਰੈ ਮਾਇਆ ਮੋਹੁ ਵਧਾਵੈ ॥
धनु खटै आसा करै माइआ मोहु वधावै ॥
वह धन कमाता है और अधिकतर धन की आशा करता है। फिर मोह-माया के साथ अपनी लालसा को बढ़ाता है।
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਬੋਲਤਾ ਹਰਿ ਬੋਲਿ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ॥੨॥
तिउ हरि जनु हरि हरि बोलता हरि बोलि सुखु पावै ॥२॥
इसी तरह हरि का सेवक हरि-परमेश्वर का नाम बोलता है और हरि बोलकर सुख पाता है॥ २॥
ਬਿਖੁ ਸੰਚੈ ਹਟਵਾਣੀਆ ਬਹਿ ਹਾਟਿ ਕਮਾਇ ॥
बिखु संचै हटवाणीआ बहि हाटि कमाइ ॥
दुकानदार दुकान में बैठकर दुकानदारी करता है और माया रूपी धन एकत्रित करता है। जो उसके आत्मिक जीवन में विष का काम करती है।
ਮੋਹ ਝੂਠੁ ਪਸਾਰਾ ਝੂਠ ਕਾ ਝੂਠੇ ਲਪਟਾਇ ॥
मोह झूठु पसारा झूठ का झूठे लपटाइ ॥
माया ने जीवों को फँसाने हेतु झूठे मोह का प्रसार किया हुआ है और वे माया के झूठे मोह से लिपटे हुए हैं।
ਤਿਉ ਹਰਿ ਜਨਿ ਹਰਿ ਧਨੁ ਸੰਚਿਆ ਹਰਿ ਖਰਚੁ ਲੈ ਜਾਇ ॥੩॥
तिउ हरि जनि हरि धनु संचिआ हरि खरचु लै जाइ ॥३॥
इसी तरह हरि का सेवक हरि-नाम रूपी धन संचित करता है और हरि-नाम रूपी धन को वह जीवन-यात्रा हेतु खर्च के रूप में ले जाता है॥
ਇਹੁ ਮਾਇਆ ਮੋਹ ਕੁਟੰਬੁ ਹੈ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ਫਾਸ ॥
इहु माइआ मोह कुट्मबु है भाइ दूजै फास ॥
माया धन एवं परिवार के मोह के कारण मनुष्य माया की मोह रूपी फाँसी में फंस जाता है।
ਗੁਰਮਤੀ ਸੋ ਜਨੁ ਤਰੈ ਜੋ ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ॥
गुरमती सो जनु तरै जो दासनि दास ॥
गुरु के उपदेश से वहीं मनुष्य भवसागर से पार होता है जो प्रभु के सेवकों का सेवक बन जाता है।
ਜਨਿ ਨਾਨਕਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਰਗਾਸ ॥੪॥੩॥੯॥੪੭॥
जनि नानकि नामु धिआइआ गुरमुखि परगास ॥४॥३॥९॥४७॥
जन नानक ने गुरु के माध्यम से भगवान के नाम का ही ध्यान किया है और उसके हृदय में प्रभु-ज्योति का प्रकाश हो गया है ॥४॥३॥९॥४७॥
ਗਉੜੀ ਬੈਰਾਗਣਿ ਮਹਲਾ ੪ ॥
गउड़ी बैरागणि महला ४ ॥
गउड़ी बैरागणि महला ४ ॥
ਨਿਤ ਦਿਨਸੁ ਰਾਤਿ ਲਾਲਚੁ ਕਰੇ ਭਰਮੈ ਭਰਮਾਇਆ ॥
नित दिनसु राति लालचु करे भरमै भरमाइआ ॥
जो व्यक्ति नित्य दिन-रात लालच करता है। मोह-माया की प्रेरणा से भ्रम में ही भटकता रहता है।
ਵੇਗਾਰਿ ਫਿਰੈ ਵੇਗਾਰੀਆ ਸਿਰਿ ਭਾਰੁ ਉਠਾਇਆ ॥
वेगारि फिरै वेगारीआ सिरि भारु उठाइआ ॥
वह उस वेगारी के तुल्य है जो अपने सिर पापों का बोझ उठाकर बेगार करता है।
ਜੋ ਗੁਰ ਕੀ ਜਨੁ ਸੇਵਾ ਕਰੇ ਸੋ ਘਰ ਕੈ ਕੰਮਿ ਹਰਿ ਲਾਇਆ ॥੧॥
जो गुर की जनु सेवा करे सो घर कै कमि हरि लाइआ ॥१॥
जो व्यक्ति गुरु की सेवा करता है, उसे ही भगवान ने अपने घर की सेवा अर्थात् नाम-सिमरन में लगाया है॥ १॥
ਮੇਰੇ ਰਾਮ ਤੋੜਿ ਬੰਧਨ ਮਾਇਆ ਘਰ ਕੈ ਕੰਮਿ ਲਾਇ ॥
मेरे राम तोड़ि बंधन माइआ घर कै कमि लाइ ॥
हे मेरे राम ! हमें मोह-माया के बंधन से मुक्त कर और हमें अपने घर की सेवा नाम- सिमरन में लगा।
ਨਿਤ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵਹ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नित हरि गुण गावह हरि नामि समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
मैं प्रतिदिन प्रभु की गुणस्तुति ही करता हूँ और प्रभु के नाम में लीन रहता हूँ॥ १॥ रहाउ ॥
ਨਰੁ ਪ੍ਰਾਣੀ ਚਾਕਰੀ ਕਰੇ ਨਰਪਤਿ ਰਾਜੇ ਅਰਥਿ ਸਭ ਮਾਇਆ ॥
नरु प्राणी चाकरी करे नरपति राजे अरथि सभ माइआ ॥
नश्वर मनुष्य धन की खातिर राजा-महाराजा की नौकरी करता है।
ਕੈ ਬੰਧੈ ਕੈ ਡਾਨਿ ਲੇਇ ਕੈ ਨਰਪਤਿ ਮਰਿ ਜਾਇਆ ॥
कै बंधै कै डानि लेइ कै नरपति मरि जाइआ ॥
राजा कई बार किसी आरोप के कारण उसे बंदी बना लेता है अथवा कोई (जुर्माना इत्यादि) दण्ड देता है अथवा राजा जब स्वयं ही प्राण त्याग देता है तो उसकी नौकरी ही समाप्त हो जाती है।
ਧੰਨੁ ਧਨੁ ਸੇਵਾ ਸਫਲ ਸਤਿਗੁਰੂ ਕੀ ਜਿਤੁ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਿ ਹਰਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥੨॥
धंनु धनु सेवा सफल सतिगुरू की जितु हरि हरि नामु जपि हरि सुखु पाइआ ॥२॥
परन्तु सतिगुरु की सेवा धन्य-धन्य और फलदायक है जिसकी बदौलत मनुष्य प्रभु-परमेश्वर का नाम-स्मरण करके सुख प्राप्त करता है॥ २॥
ਨਿਤ ਸਉਦਾ ਸੂਦੁ ਕੀਚੈ ਬਹੁ ਭਾਤਿ ਕਰਿ ਮਾਇਆ ਕੈ ਤਾਈ ॥
नित सउदा सूदु कीचै बहु भाति करि माइआ कै ताई ॥
धन-दौलत की खातिर मनुष्य विभिन्न प्रकार का व्यापार करता है।
ਜਾ ਲਾਹਾ ਦੇਇ ਤਾ ਸੁਖੁ ਮਨੇ ਤੋਟੈ ਮਰਿ ਜਾਈ ॥
जा लाहा देइ ता सुखु मने तोटै मरि जाई ॥
यदि व्यापार में लाभ प्राप्त हो तो वह सुख अनुभव करता है। लेकिन क्षति (घाटा) होने पर उसका दिल टूट जाता है।
ਜੋ ਗੁਣ ਸਾਝੀ ਗੁਰ ਸਿਉ ਕਰੇ ਨਿਤ ਨਿਤ ਸੁਖੁ ਪਾਈ ॥੩॥
जो गुण साझी गुर सिउ करे नित नित सुखु पाई ॥३॥
परन्तु जो गुरु के साथ गुणों (भलाई) को सांझा करता है वह सदा के लिए सुख प्राप्त कर लेता है॥ ३॥