ਅਨਹਦੁ ਵਾਜੈ ਭ੍ਰਮੁ ਭਉ ਭਾਜੈ ॥
अनहदु वाजै भ्रमु भउ भाजै ॥
जब अनहद शब्द बजता है तो मन में से भ्रम-भय दूर हो जाते हैं।
ਸਗਲ ਬਿਆਪਿ ਰਹਿਆ ਪ੍ਰਭੁ ਛਾਜੈ ॥
सगल बिआपि रहिआ प्रभु छाजै ॥
प्रभु सब जीवों में व्याप्त हो रहा है और सब पर अपनी छाया कर रहा है।
ਸਭ ਤੇਰੀ ਤੂ ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਦਰਿ ਸੋਹੈ ਗੁਣ ਗਾਇਦਾ ॥੧੦॥
सभ तेरी तू गुरमुखि जाता दरि सोहै गुण गाइदा ॥१०॥
हे ईश्वर ! सारी दुनिया तेरी ही बनाई हुई है, तू गुरु के भाध्यम से ही जाना जाता है और तेरे द्वार पर गुणगान करने वाला ही शोभा का पात्र बनता है॥ १०॥
ਆਦਿ ਨਿਰੰਜਨੁ ਨਿਰਮਲੁ ਸੋਈ ॥
आदि निरंजनु निरमलु सोई ॥
जगत् का आदि, निरंजन, निर्मल वही है,
ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣਾ ਦੂਜਾ ਕੋਈ ॥
अवरु न जाणा दूजा कोई ॥
उसके अलावा मैं किसी दूसरे को बड़ा नहीं मानता।
ਏਕੰਕਾਰੁ ਵਸੈ ਮਨਿ ਭਾਵੈ ਹਉਮੈ ਗਰਬੁ ਗਵਾਇਦਾ ॥੧੧॥
एकंकारु वसै मनि भावै हउमै गरबु गवाइदा ॥११॥
जब ऑकार मन में बस जाता है तो वही मन को भाता है और अभिमान एवं घमण्ड को दूर कर देता है॥ ११॥
ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਆ ਸਤਿਗੁਰਿ ਦੀਆ ॥
अम्रितु पीआ सतिगुरि दीआ ॥
जो नामामृत पान किया है, मुझे सतगुरु ने दिया है।
ਅਵਰੁ ਨ ਜਾਣਾ ਦੂਆ ਤੀਆ ॥
अवरु न जाणा दूआ तीआ ॥
अब किसी दूसरे-तीसरे को मैं नहीं जानता।
ਏਕੋ ਏਕੁ ਸੁ ਅਪਰ ਪਰੰਪਰੁ ਪਰਖਿ ਖਜਾਨੈ ਪਾਇਦਾ ॥੧੨॥
एको एकु सु अपर पर्मपरु परखि खजानै पाइदा ॥१२॥
ईश्वर एक ही है, सबसे बड़ा एवं अपरंपार है, वह स्वयं ही जीवों को परखकर अपने कोष में मिला लेता है॥ १२॥
ਗਿਆਨੁ ਧਿਆਨੁ ਸਚੁ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥
गिआनु धिआनु सचु गहिर ग्मभीरा ॥
हे सत्यस्वरूप ! तू गहन-गंभीर है, मुझे ज्ञान-ध्यान प्रदान करो,
ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੈ ਤੇਰਾ ਚੀਰਾ ॥
कोइ न जाणै तेरा चीरा ॥
तेरा रहस्य कोई नहीं जानता।
ਜੇਤੀ ਹੈ ਤੇਤੀ ਤੁਧੁ ਜਾਚੈ ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਸੋ ਪਾਇਦਾ ॥੧੩॥
जेती है तेती तुधु जाचै करमि मिलै सो पाइदा ॥१३॥
जितनी भी यह दुनिया है, सब तुझसे ही माँगती है परन्तु जिस पर कृपा करता है वही पाता है। १३॥
ਕਰਮੁ ਧਰਮੁ ਸਚੁ ਹਾਥਿ ਤੁਮਾਰੈ ॥
करमु धरमु सचु हाथि तुमारै ॥
धर्म-कर्म सब तेरे हाथ में है,
ਵੇਪਰਵਾਹ ਅਖੁਟ ਭੰਡਾਰੈ ॥
वेपरवाह अखुट भंडारै ॥
तू बेपरवाह है और तेरा भण्डार कभी कम नहीं होता।
ਤੂ ਦਇਆਲੁ ਕਿਰਪਾਲੁ ਸਦਾ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੧੪॥
तू दइआलु किरपालु सदा प्रभु आपे मेलि मिलाइदा ॥१४॥
हे प्रभु ! तू बड़ा दयालु एवं सदैव कृपा करने वाला है और स्वयं ही मिलाता है॥ १४॥
ਆਪੇ ਦੇਖਿ ਦਿਖਾਵੈ ਆਪੇ ॥
आपे देखि दिखावै आपे ॥
वह स्वयं ही देखता-दिखाता है
ਆਪੇ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪੇ ਆਪੇ ॥
आपे थापि उथापे आपे ॥
और स्वयं ही बनाता-बिगाड़ता है,
ਆਪੇ ਜੋੜਿ ਵਿਛੋੜੇ ਕਰਤਾ ਆਪੇ ਮਾਰਿ ਜੀਵਾਇਦਾ ॥੧੫॥
आपे जोड़ि विछोड़े करता आपे मारि जीवाइदा ॥१५॥
संयोग-वियोग एवं मारने-जिंदा रखने वाला ईश्वर ही है॥ १५॥
ਜੇਤੀ ਹੈ ਤੇਤੀ ਤੁਧੁ ਅੰਦਰਿ ॥
जेती है तेती तुधु अंदरि ॥
यह जितनी भी दुनिया है, तेरे विराट रूप शरीर में वसती है!
ਦੇਖਹਿ ਆਪਿ ਬੈਸਿ ਬਿਜ ਮੰਦਰਿ ॥
देखहि आपि बैसि बिज मंदरि ॥
तू स्वयं अपने मन्दिर में बैठकर रचना को देखता रहता है।
ਨਾਨਕੁ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਹਰਿ ਦਰਸਨਿ ਸੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੧੬॥੧॥੧੩॥
नानकु साचु कहै बेनंती हरि दरसनि सुखु पाइदा ॥१६॥१॥१३॥
नानक विनयपूर्वक सत्य ही कहता है कि ईश्वर के दर्शन से ही सुख उपलब्ध होता है॥ १६॥ १॥ १३॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਦਰਸਨੁ ਪਾਵਾ ਜੇ ਤੁਧੁ ਭਾਵਾ ॥ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਸਾਚੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ॥
दरसनु पावा जे तुधु भावा ॥ भाइ भगति साचे गुण गावा ॥
हे सदा-स्थिर प्रभु! अगर मैं तुझे अच्छा लगूँ, तो ही तेरे दर्शन कर सकता हूँ, और तेरे प्रेम में तेरी भक्ति तेरे गुण गा सकता हूँ।
ਤੁਧੁ ਭਾਣੇ ਤੂ ਭਾਵਹਿ ਕਰਤੇ ਆਪੇ ਰਸਨ ਰਸਾਇਦਾ ॥੧॥
तुधु भाणे तू भावहि करते आपे रसन रसाइदा ॥१॥
हे रचयिता ! तेरी इच्छा से ही तू हमें भाता है और तू ही हमारी जीभ में मिठास डालता है॥ १॥
ਸੋਹਨਿ ਭਗਤ ਪ੍ਰਭੂ ਦਰਬਾਰੇ ॥
सोहनि भगत प्रभू दरबारे ॥
भक्तगण प्रभु के दरबार में ही सुन्दर लगते हैं।
ਮੁਕਤੁ ਭਏ ਹਰਿ ਦਾਸ ਤੁਮਾਰੇ ॥
मुकतु भए हरि दास तुमारे ॥
हे ईश्वर ! तेरे दास बन्धनों से मुक्त हो गए हैं।
ਆਪੁ ਗਵਾਇ ਤੇਰੈ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦਾ ॥੨॥
आपु गवाइ तेरै रंगि राते अनदिनु नामु धिआइदा ॥२॥
वे अपना अहम् मिटाकर तेरे रंग में लीन रहते हैं और दिन-रात तेरे नाम का ध्यान करते रहते हैं।॥ २॥
ਈਸਰੁ ਬ੍ਰਹਮਾ ਦੇਵੀ ਦੇਵਾ ॥ ਇੰਦ੍ਰ ਤਪੇ ਮੁਨਿ ਤੇਰੀ ਸੇਵਾ ॥
ईसरु ब्रहमा देवी देवा ॥ इंद्र तपे मुनि तेरी सेवा ॥
शिवशंकर, ब्रह्मा, देवी-देवता, देवराज इन्द्र, तपस्वी एवं मुनि सब तेरी उपासना में लीन रहते हैं।
ਜਤੀ ਸਤੀ ਕੇਤੇ ਬਨਵਾਸੀ ਅੰਤੁ ਨ ਕੋਈ ਪਾਇਦਾ ॥੩॥
जती सती केते बनवासी अंतु न कोई पाइदा ॥३॥
ब्रह्मचारी-संन्यासी वनों में रहते हैं, परन्तु कोई भी तेरा रहस्य नहीं पा सका।॥ ३॥
ਵਿਣੁ ਜਾਣਾਏ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੈ ॥
विणु जाणाए कोइ न जाणै ॥
बिना जानकारी कोई भी तुझे जान नहीं सकता।
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੇ ਸੁ ਆਪਣ ਭਾਣੈ ॥
जो किछु करे सु आपण भाणै ॥
जो कुछ भी तू करता है, अपनी मर्जी से ही करता है।
ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਜੀਅ ਉਪਾਏ ਭਾਣੈ ਸਾਹ ਲਵਾਇਦਾ ॥੪॥
लख चउरासीह जीअ उपाए भाणै साह लवाइदा ॥४॥
तूने चौरासी लाख योनियों के जीव पैदा किए हैं परन्तु अपनी मर्जी से उन्हें साँस लेने देता है॥ ४॥
ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋ ਨਿਹਚਉ ਹੋਵੈ ॥
जो तिसु भावै सो निहचउ होवै ॥
जो उसे मंजूर है, वह निश्चय होता है।
ਮਨਮੁਖੁ ਆਪੁ ਗਣਾਏ ਰੋਵੈ ॥
मनमुखु आपु गणाए रोवै ॥
स्वेच्छाचारी खुद को बड़ा मानता है रोता रहता है।
ਨਾਵਹੁ ਭੁਲਾ ਠਉਰ ਨ ਪਾਏ ਆਇ ਜਾਇ ਦੁਖੁ ਪਾਇਦਾ ॥੫॥
नावहु भुला ठउर न पाए आइ जाइ दुखु पाइदा ॥५॥
वह नाम को भुलाकर कहीं भी ठिकाना प्राप्त नहीं करता और जन्म-मरण के चक्र में दुख प्राप्त करता है॥ ५॥
ਨਿਰਮਲ ਕਾਇਆ ਊਜਲ ਹੰਸਾ ॥ ਤਿਸੁ ਵਿਚਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਅੰਸਾ ॥
निरमल काइआ ऊजल हंसा ॥ तिसु विचि नामु निरंजन अंसा ॥
यह काया निर्मल है, आत्मा भी उज्ज्वल है और इस में ही निरंजन नाम का अंश है।
ਸਗਲੇ ਦੂਖ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਕਰਿ ਪੀਵੈ ਬਾਹੁੜਿ ਦੂਖੁ ਨ ਪਾਇਦਾ ॥੬॥
सगले दूख अम्रितु करि पीवै बाहुड़ि दूखु न पाइदा ॥६॥
जो सभी दुखों को अमृत समान समझकर पान कर जाता है, वह कभी दुखी नहीं होता।॥ ६॥
ਬਹੁ ਸਾਦਹੁ ਦੂਖੁ ਪਰਾਪਤਿ ਹੋਵੈ ॥
बहु सादहु दूखु परापति होवै ॥
अधिक स्वादों से दुख ही प्राप्त होता है और
ਭੋਗਹੁ ਰੋਗ ਸੁ ਅੰਤਿ ਵਿਗੋਵੈ ॥
भोगहु रोग सु अंति विगोवै ॥
भोग-विलास करने से अनेक रोग पैदा हो जाते हैं, इस प्रकार अन्त में प्राणी ख्वार होता है।
ਹਰਖਹੁ ਸੋਗੁ ਨ ਮਿਟਈ ਕਬਹੂ ਵਿਣੁ ਭਾਣੇ ਭਰਮਾਇਦਾ ॥੭॥
हरखहु सोगु न मिटई कबहू विणु भाणे भरमाइदा ॥७॥
खुशी से पैदा हुई चिन्ता कभी मिटती नहीं और ईश्वरेच्छा को न मानने से जीव भटकता रहता है।॥ ७॥
ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਭਵੈ ਸਬਾਈ ॥
गिआन विहूणी भवै सबाई ॥
ज्ञानविहीन सारी दुनिया भटकती रहती है।
ਸਾਚਾ ਰਵਿ ਰਹਿਆ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
साचा रवि रहिआ लिव लाई ॥
परमात्मा सर्वव्यापक है परन्तु इस बात की सूझ उसमें ध्यान लगाने से ही होती है।
ਨਿਰਭਉ ਸਬਦੁ ਗੁਰੂ ਸਚੁ ਜਾਤਾ ਜੋਤੀ ਜੋਤਿ ਮਿਲਾਇਦਾ ॥੮॥
निरभउ सबदु गुरू सचु जाता जोती जोति मिलाइदा ॥८॥
जिसने निर्भय होकर शब्द-गुरु को सत्य स्वीकार कर लिया है, उसकी ज्योति परम-ज्योति में विलीन हो गई है॥ ८॥
ਅਟਲੁ ਅਡੋਲੁ ਅਤੋਲੁ ਮੁਰਾਰੇ ॥
अटलु अडोलु अतोलु मुरारे ॥
ईश्वर अटल, अडोल एवं अतुलनीय है।
ਖਿਨ ਮਹਿ ਢਾਹੇ ਫੇਰਿ ਉਸਾਰੇ ॥
खिन महि ढाहे फेरि उसारे ॥
वह क्षण में ही नष्ट कर देता है और फिर बना भी देता है।
ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਮਿਤਿ ਨਹੀ ਕੀਮਤਿ ਸਬਦਿ ਭੇਦਿ ਪਤੀਆਇਦਾ ॥੯॥
रूपु न रेखिआ मिति नही कीमति सबदि भेदि पतीआइदा ॥९॥
उसकी कोई रूप-रेखा एवं विस्तार नहीं, उसका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता और शब्द द्वारा भेद पाकर ही जीव संतुष्ट होता है।॥९॥