Hindi Page 845

ਭਗਤਿ ਵਛਲੁ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਲੀਨਾ ਰਾਮ ॥
भगति वछलु हरि नामु है गुरमुखि हरि लीना राम ॥
हरि नाम भक्तवत्सल है, गुरु के माध्यम से हरि में लीन हुआ रहता हूँ।

ਬਿਨੁ ਹਰਿ ਨਾਮ ਨ ਜੀਵਦੇ ਜਿਉ ਜਲ ਬਿਨੁ ਮੀਨਾ ਰਾਮ ॥
बिनु हरि नाम न जीवदे जिउ जल बिनु मीना राम ॥
जैसे जल के बिना मछली नहीं रह सकती, वैसे ही भक्तजन हरि-नाम के बिना जीवित नहीं रह सकते।

ਸਫਲ ਜਨਮੁ ਹਰਿ ਪਾਇਆ ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭਿ ਕੀਨਾ ਰਾਮ ॥੪॥੧॥੩॥
सफल जनमु हरि पाइआ नानक प्रभि कीना राम ॥४॥१॥३॥
हे नानक ! जिसने ईश्वर को पा लिया है, उसका जीवन सफल हो गया है॥ ४ ॥ १ ॥ ३ ॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੪ ਸਲੋਕੁ ॥
बिलावलु महला ४ सलोकु ॥
बिलावलु महला ४ श्लोक॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਸਜਣੁ ਲੋੜਿ ਲਹੁ ਮਨਿ ਵਸੈ ਵਡਭਾਗੁ ॥
हरि प्रभु सजणु लोड़ि लहु मनि वसै वडभागु ॥
अपने सज्जन प्रभु को ढूंढ लो, जिसके मन में बस जाता है, वही भाग्यशाली है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਵੇਖਾਲਿਆ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੁ ॥੧॥
गुरि पूरै वेखालिआ नानक हरि लिव लागु ॥१॥
हे नानक ! पूर्ण गुरु ने मुझे उसके दर्शन करवा दिए हैं, इसलिए अब मेरी परमात्मा में ही लगन लगी हुई है॥ १॥

ਛੰਤ ॥
छंत ॥
छंद ॥

ਮੇਰਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਰਾਵਣਿ ਆਈਆ ਹਉਮੈ ਬਿਖੁ ਝਾਗੇ ਰਾਮ ॥
मेरा हरि प्रभु रावणि आईआ हउमै बिखु झागे राम ॥
मैं अपने अहंकार रूपी विष को दूर करके प्रभु से रमण करने आई हूँ।

ਗੁਰਮਤਿ ਆਪੁ ਮਿਟਾਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਗੇ ਰਾਮ ॥
गुरमति आपु मिटाइआ हरि हरि लिव लागे राम ॥
गुरु के उपदेश द्वारा मैंने अपने आत्माभिमान को मिटा दिया है और मेरी वृति हरि-नाम में लगी रहती है।

ਅੰਤਰਿ ਕਮਲੁ ਪਰਗਾਸਿਆ ਗੁਰ ਗਿਆਨੀ ਜਾਗੇ ਰਾਮ ॥
अंतरि कमलु परगासिआ गुर गिआनी जागे राम ॥
मेरा हृदय कमल खिल गया है, गुरु के ज्ञान ने जगा दिया है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਪੂਰੈ ਵਡਭਾਗੇ ਰਾਮ ॥੧॥
जन नानक हरि प्रभु पाइआ पूरै वडभागे राम ॥१॥
हे नानक ! पूर्ण भाग्य से परमात्मा को प्राप्त किया है ॥ १॥

ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਹਰਿ ਮਨਿ ਭਾਇਆ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਵਧਾਈ ਰਾਮ ॥
हरि प्रभु हरि मनि भाइआ हरि नामि वधाई राम ॥
प्रभु ही मेरे मन को भाया है और हरि-नाम ही मेरी बधाई है।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਪ੍ਰਭੁ ਪਾਇਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ਰਾਮ ॥
गुरि पूरै प्रभु पाइआ हरि हरि लिव लाई राम ॥
पूर्ण गुरु द्वारा प्रभु को पाकर उसमें ही लगन लगाई है।

ਅਗਿਆਨੁ ਅੰਧੇਰਾ ਕਟਿਆ ਜੋਤਿ ਪਰਗਟਿਆਈ ਰਾਮ ॥
अगिआनु अंधेरा कटिआ जोति परगटिआई राम ॥
मेरा अज्ञान का अंधेरा मिट गया है और मन में ज्योति प्रज्वलित हो गई है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਅਧਾਰੁ ਹੈ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਸਮਾਈ ਰਾਮ ॥੨॥
जन नानक नामु अधारु है हरि नामि समाई राम ॥२॥
हे नानक ! नाम ही मेरा जीवनाधार है और हरि-नाम में ही हो गई हूँ॥ २॥

ਧਨ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭਿ ਪਿਆਰੈ ਰਾਵੀਆ ਜਾਂ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭ ਭਾਈ ਰਾਮ ॥
धन हरि प्रभि पिआरै रावीआ जां हरि प्रभ भाई राम ॥
जब प्रभु को अच्छी लगी तो ही प्यारे प्रभु ने उससे रमण किया।

ਅਖੀ ਪ੍ਰੇਮ ਕਸਾਈਆ ਜਿਉ ਬਿਲਕ ਮਸਾਈ ਰਾਮ ॥
अखी प्रेम कसाईआ जिउ बिलक मसाई राम ॥
उसकी आँखें प्रेम में ऐसे आकर्षित हो गई जैसे बिल्ली की आँखें चूहे की ओर होती हैं।

ਗੁਰਿ ਪੂਰੈ ਹਰਿ ਮੇਲਿਆ ਹਰਿ ਰਸਿ ਆਘਾਈ ਰਾਮ ॥
गुरि पूरै हरि मेलिआ हरि रसि आघाई राम ॥
पूर्ण गुरु ने हरि से मिला दिया है और हरि-रस पीकर तृप्त हो गई है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਵਿਗਸਿਆ ਹਰਿ ਹਰਿ ਲਿਵ ਲਾਈ ਰਾਮ ॥੩॥
जन नानक नामि विगसिआ हरि हरि लिव लाई राम ॥३॥
हे नानक ! हरि-नाम द्वारा उसका हृदय-कमल खिल गया है और वह हरि में ही लगन लगा कर रखती है॥ ३॥

ਹਮ ਮੂਰਖ ਮੁਗਧ ਮਿਲਾਇਆ ਹਰਿ ਕਿਰਪਾ ਧਾਰੀ ਰਾਮ ॥
हम मूरख मुगध मिलाइआ हरि किरपा धारी राम ॥
ईश्वर ने कृपा करके मुझ मूर्ख एवं नासमझ को अपने साथ मिला लिया है।

ਧਨੁ ਧੰਨੁ ਗੁਰੂ ਸਾਬਾਸਿ ਹੈ ਜਿਨਿ ਹਉਮੈ ਮਾਰੀ ਰਾਮ ॥
धनु धंनु गुरू साबासि है जिनि हउमै मारी राम ॥
वह गुरु धन्य है, प्रशंसा का पात्र है, जिसने मेरा अहंकार नाश कर दिया है।

ਜਿਨੑ ਵਡਭਾਗੀਆ ਵਡਭਾਗੁ ਹੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਉਰ ਧਾਰੀ ਰਾਮ ॥
जिन्ह वडभागीआ वडभागु है हरि हरि उर धारी राम ॥
जिन भाग्यशालियों का भाग्य उदय हो गया है, उन्होंने परमात्मा को अपने हृदय में बसा लिया है।

ਜਨ ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਸਲਾਹਿ ਤੂ ਨਾਮੇ ਬਲਿਹਾਰੀ ਰਾਮ ॥੪॥੨॥੪॥
जन नानक नामु सलाहि तू नामे बलिहारी राम ॥४॥२॥४॥
हे नानक ! तू नाम की स्तुति करता रह और नाम पर बलिहारी हो जा।॥ ४ ॥ २ ॥ ४॥

ਬਿਲਾਵਲੁ ਮਹਲਾ ੫ ਛੰਤ
बिलावलु महला ५ छंत
बिलावलु महला ५ छंत

ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥

ਮੰਗਲ ਸਾਜੁ ਭਇਆ ਪ੍ਰਭੁ ਅਪਨਾ ਗਾਇਆ ਰਾਮ ॥
मंगल साजु भइआ प्रभु अपना गाइआ राम ॥
हे सखी ! बड़ा खुशी का अवसर आ बना है, मैंने अपने प्रभु का यशोगान किया है।

ਅਬਿਨਾਸੀ ਵਰੁ ਸੁਣਿਆ ਮਨਿ ਉਪਜਿਆ ਚਾਇਆ ਰਾਮ ॥
अबिनासी वरु सुणिआ मनि उपजिआ चाइआ राम ॥
जब अपने अविनाशी वर का नाम सुना तो मेरे मन में बड़ा चाव उत्पन्न हो गया।

ਮਨਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਲਾਗੈ ਵਡੈ ਭਾਗੈ ਕਬ ਮਿਲੀਐ ਪੂਰਨ ਪਤੇ ॥
मनि प्रीति लागै वडै भागै कब मिलीऐ पूरन पते ॥
बड़े भाग्य से मेरे मन में उसके लिए प्रीति लगी है, अब पूर्ण पति-प्रभु से कब मिलन होगा ?

ਸਹਜੇ ਸਮਾਈਐ ਗੋਵਿੰਦੁ ਪਾਈਐ ਦੇਹੁ ਸਖੀਏ ਮੋਹਿ ਮਤੇ ॥
सहजे समाईऐ गोविंदु पाईऐ देहु सखीए मोहि मते ॥
हे सखी ! मुझे ऐसी शिक्षा दो कि मैं गोविंद को पा लूं और सहज ही उसमें लीन रहूँ।

ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਠਾਢੀ ਕਰਉ ਸੇਵਾ ਪ੍ਰਭੁ ਕਵਨ ਜੁਗਤੀ ਪਾਇਆ ॥
दिनु रैणि ठाढी करउ सेवा प्रभु कवन जुगती पाइआ ॥
मैं दिन-रात उसकी बड़ी सेवा करूँगी, फिर किस युक्ति से प्रभु को पाया जा सकता है।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕਰਹੁ ਕਿਰਪਾ ਲੈਹੁ ਮੋਹਿ ਲੜਿ ਲਾਇਆ ॥੧॥
बिनवंति नानक करहु किरपा लैहु मोहि लड़ि लाइआ ॥१॥
नानक की विनती है कि हे प्रभु ! कृपा करके मुझे अपने साथ मिला लो॥ १॥

ਭਇਆ ਸਮਾਹੜਾ ਹਰਿ ਰਤਨੁ ਵਿਸਾਹਾ ਰਾਮ ॥
भइआ समाहड़ा हरि रतनु विसाहा राम ॥
जब शुभ समय आया तो मैंने हरि रूपी रत्न खरीद लिया।

ਖੋਜੀ ਖੋਜਿ ਲਧਾ ਹਰਿ ਸੰਤਨ ਪਾਹਾ ਰਾਮ ॥
खोजी खोजि लधा हरि संतन पाहा राम ॥
खोजी ने खोज कर उसे हरि के संतों से ढूंढा है।

ਮਿਲੇ ਸੰਤ ਪਿਆਰੇ ਦਇਆ ਧਾਰੇ ਕਥਹਿ ਅਕਥ ਬੀਚਾਰੋ ॥
मिले संत पिआरे दइआ धारे कथहि अकथ बीचारो ॥
मुझे प्यारे संत मिल गए हैं, जो दया करके अकथनीय कथा करते रहते हैं।

ਇਕ ਚਿਤਿ ਇਕ ਮਨਿ ਧਿਆਇ ਸੁਆਮੀ ਲਾਇ ਪ੍ਰੀਤਿ ਪਿਆਰੋ ॥
इक चिति इक मनि धिआइ सुआमी लाइ प्रीति पिआरो ॥
मैं प्रेम-प्रीति लगाकर एकाग्रचित होकर अपने स्वामी का ध्यान करती रहती हूँ।

ਕਰ ਜੋੜਿ ਪ੍ਰਭ ਪਹਿ ਕਰਿ ਬਿਨੰਤੀ ਮਿਲੈ ਹਰਿ ਜਸੁ ਲਾਹਾ ॥
कर जोड़ि प्रभ पहि करि बिनंती मिलै हरि जसु लाहा ॥
अपने हाथ जोड़कर मैं प्रभु से विनती करती हूँ कि मुझे हरि-यश रूपी लाभ प्राप्त हो।

ਬਿਨਵੰਤਿ ਨਾਨਕ ਦਾਸੁ ਤੇਰਾ ਮੇਰਾ ਪ੍ਰਭੁ ਅਗਮ ਅਥਾਹਾ ॥੨॥
बिनवंति नानक दासु तेरा मेरा प्रभु अगम अथाहा ॥२॥
नानक विनती करता है कि हे अगम्य-अथाह प्रभु ! मैं तेरा दास हूँ ॥२॥

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