ਜਾ ਕੈ ਕੀਨੑੈ ਹੋਤ ਬਿਕਾਰ ॥
जा कै कीन्है होत बिकार ॥
जिस धन दौलत को इकठ्ठा करने में पाप करता है,
ਸੇ ਛੋਡਿ ਚਲਿਆ ਖਿਨ ਮਹਿ ਗਵਾਰ ॥੫॥
से छोडि चलिआ खिन महि गवार ॥५॥
उसे मूर्ख मनुष्य पल में ही छोड़कर चला जाता है।॥५॥
ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਬਹੁ ਭਰਮਿਆ ॥
माइआ मोहि बहु भरमिआ ॥
माया मोह की वजह से जीव भटकता रहता है परन्तु
ਕਿਰਤ ਰੇਖ ਕਰਿ ਕਰਮਿਆ ॥
किरत रेख करि करमिआ ॥
कर्म रेख के आधार पर ही वह कर्म करता है।
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਅਲਿਪਤੁ ਆਪਿ ॥
करणैहारु अलिपतु आपि ॥
विधाता इन सब से आप अलिप्त है
ਨਹੀ ਲੇਪੁ ਪ੍ਰਭ ਪੁੰਨ ਪਾਪਿ ॥੬॥
नही लेपु प्रभ पुंन पापि ॥६॥
और पाप-पुण्य का प्रभु पर कोई असर नहीं पड़ता ॥६॥
ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਗੋਬਿੰਦ ਦਇਆਲ ॥
राखि लेहु गोबिंद दइआल ॥
हे दयालु परमेश्वर ! मुझे संसार के बन्धनों से बचा लो,
ਤੇਰੀ ਸਰਣਿ ਪੂਰਨ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ॥
तेरी सरणि पूरन क्रिपाल ॥
तू पूर्ण कृपालु है, तेरी शरण में आया हूँ,
ਤੁਝ ਬਿਨੁ ਦੂਜਾ ਨਹੀ ਠਾਉ ॥
तुझ बिनु दूजा नही ठाउ ॥
तेरे बिना अन्य कोई ठिकाना नहीं।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪ੍ਰਭ ਦੇਹੁ ਨਾਉ ॥੭॥
करि किरपा प्रभ देहु नाउ ॥७॥
हे प्रभु! कृपा करके नाम प्रदान करो ॥७॥
ਤੂ ਕਰਤਾ ਤੂ ਕਰਣਹਾਰੁ ॥
तू करता तू करणहारु ॥
हे परमेश्वर ! तू ही संसार का कर्ता है, तू ही सब करने वाला है,”
ਤੂ ਊਚਾ ਤੂ ਬਹੁ ਅਪਾਰੁ ॥
तू ऊचा तू बहु अपारु ॥
तू महान् है, तू अपरंपार है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਲੜਿ ਲੇਹੁ ਲਾਇ ॥
करि किरपा लड़ि लेहु लाइ ॥
नानक विनती करते हैं कि कृपा करके अपने चरणों में लगा लो,
ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਸਰਣਾਇ ॥੮॥੨॥
नानक दास प्रभ की सरणाइ ॥८॥२॥
दास तो प्रभु की शरण में पड़ा हुआ है॥८॥२॥
ਬਸੰਤ ਕੀ ਵਾਰ ਮਹਲੁ ੫
बसंत की वार महलु ५
बसंत की वार महलु ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇ ਕੈ ਹੋਹੁ ਹਰਿਆ ਭਾਈ ॥
हरि का नामु धिआइ कै होहु हरिआ भाई ॥
हे भाई ! परमात्मा के नाम का गहन चिंतन करके तुम आनंदित हो जाओ,
ਕਰਮਿ ਲਿਖੰਤੈ ਪਾਈਐ ਇਹ ਰੁਤਿ ਸੁਹਾਈ ॥
करमि लिखंतै पाईऐ इह रुति सुहाई ॥
क्योंकि (प्रभु चिंतन के लिए) यह सुहावनी ऋतु अर्थात् मानव जन्म का अवसर उत्तम भाग्य से प्राप्त होता है।
ਵਣੁ ਤ੍ਰਿਣੁ ਤ੍ਰਿਭਵਣੁ ਮਉਲਿਆ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਫਲੁ ਪਾਈ ॥
वणु त्रिणु त्रिभवणु मउलिआ अम्रित फलु पाई ॥
नाम रूपी अमृत फल पाकर प्रकृति तीनों लोक खिल उठे हैं।
ਮਿਲਿ ਸਾਧੂ ਸੁਖੁ ਊਪਜੈ ਲਥੀ ਸਭ ਛਾਈ ॥
मिलि साधू सुखु ऊपजै लथी सभ छाई ॥
साधु-महात्मा को मिलकर सुख उत्पन्न होता है और दुखों की छाया दूर हो जाती है।
ਨਾਨਕੁ ਸਿਮਰੈ ਏਕੁ ਨਾਮੁ ਫਿਰਿ ਬਹੁੜਿ ਨ ਧਾਈ ॥੧॥
नानकु सिमरै एकु नामु फिरि बहुड़ि न धाई ॥१॥
नानक अद्वितीय परमेश्वर का स्मरण करता है, जिससे पुनः योनि चक्र में दौड़ना नहीं पड़ेगा।॥१॥
ਪੰਜੇ ਬਧੇ ਮਹਾਬਲੀ ਕਰਿ ਸਚਾ ਢੋਆ ॥
पंजे बधे महाबली करि सचा ढोआ ॥
जिसने भी सत्यस्वरूप परमेश्वर का सहारा लिया है, उसने कामादिक पाँच महाबली विकारों को बांध लिया है।
ਆਪਣੇ ਚਰਣ ਜਪਾਇਅਨੁ ਵਿਚਿ ਦਯੁ ਖੜੋਆ ॥
आपणे चरण जपाइअनु विचि दयु खड़ोआ ॥
प्रभु सुख दुख में साथ देकर अपने चरणों का ही जाप करवाता है।
ਰੋਗ ਸੋਗ ਸਭਿ ਮਿਟਿ ਗਏ ਨਿਤ ਨਵਾ ਨਿਰੋਆ ॥
रोग सोग सभि मिटि गए नित नवा निरोआ ॥
ऐसे जीव के रोग एवं गम सभी मिट जाते हैं और तंदरुस्त रहता है।
ਦਿਨੁ ਰੈਣਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਦਾ ਫਿਰਿ ਪਾਇ ਨ ਮੋਆ ॥
दिनु रैणि नामु धिआइदा फिरि पाइ न मोआ ॥
वह दिन-रात प्रभु नाम का ध्यान करता हुआ जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है।
ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜਿਆ ਨਾਨਕਾ ਸੋਈ ਫਿਰਿ ਹੋਆ ॥੨॥
जिस ते उपजिआ नानका सोई फिरि होआ ॥२॥
हे नानक ! ऐसा भक्त जिस प्रभु से उत्पन्न होता है, उसी का रूप हो जाता है।॥२॥
ਕਿਥਹੁ ਉਪਜੈ ਕਹ ਰਹੈ ਕਹ ਮਾਹਿ ਸਮਾਵੈ ॥
किथहु उपजै कह रहै कह माहि समावै ॥
जीवात्मा कहाँ से पैदा होता है, कहाँ रहता और किस में विलीन हो जाता है।
ਜੀਅ ਜੰਤ ਸਭਿ ਖਸਮ ਕੇ ਕਉਣੁ ਕੀਮਤਿ ਪਾਵੈ ॥
जीअ जंत सभि खसम के कउणु कीमति पावै ॥
सब जीव मालिक के उत्पन्न किए हैं, कोई भी इसकी महत्ता नहीं पा सकता।
ਕਹਨਿ ਧਿਆਇਨਿ ਸੁਣਨਿ ਨਿਤ ਸੇ ਭਗਤ ਸੁਹਾਵੈ ॥
कहनि धिआइनि सुणनि नित से भगत सुहावै ॥
जो ईश्वर की महिमा गाते हैं, उसका ध्यान करते हैं, नित्य भजन सुनते हैं, वही भक्त सुन्दर हैं।
ਅਗਮੁ ਅਗੋਚਰੁ ਸਾਹਿਬੋ ਦੂਸਰੁ ਲਵੈ ਨ ਲਾਵੈ ॥
अगमु अगोचरु साहिबो दूसरु लवै न लावै ॥
संसार का मालिक मन-वाणी से परे एवं अपहुँच है, कोई दूसरा उसके गुणों के बराबर तक नहीं पहुँचता।
ਸਚੁ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਉਪਦੇਸਿਆ ਨਾਨਕੁ ਸੁਣਾਵੈ ॥੩॥੧॥
सचु पूरै गुरि उपदेसिआ नानकु सुणावै ॥३॥१॥
नानक तो पूर्ण गुरु का सच्चा उपदेश ही सुना रहा है॥३॥१॥
ਬਸੰਤੁ ਬਾਣੀ ਭਗਤਾਂ ਕੀ ॥
बसंतु बाणी भगतां की ॥
बसंतु बाणी भगतां की ॥
ਕਬੀਰ ਜੀ ਘਰੁ ੧
कबीर जी घरु १
कबीर जी घरु १
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਮਉਲੀ ਧਰਤੀ ਮਉਲਿਆ ਅਕਾਸੁ ॥
मउली धरती मउलिआ अकासु ॥
सम्पूर्ण धरती एवं आकाश ब्रह्म ज्योति से व्यापक है।
ਘਟਿ ਘਟਿ ਮਉਲਿਆ ਆਤਮ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥੧॥
घटि घटि मउलिआ आतम प्रगासु ॥१॥
हर मनुष्य में सर्वात्मा ही विद्यमान है॥१॥
ਰਾਜਾ ਰਾਮੁ ਮਉਲਿਆ ਅਨਤ ਭਾਇ ॥
राजा रामु मउलिआ अनत भाइ ॥
हे भाई ! अनेक प्रकार से परब्रह्म परमेश्वर प्रकाशमान है,
ਜਹ ਦੇਖਉ ਤਹ ਰਹਿਆ ਸਮਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
जह देखउ तह रहिआ समाइ ॥१॥ रहाउ ॥
जहाँ भी मेरी दृष्टि जाती है, वहाँ ईश्वर ही व्याप्त है॥१॥रहाउ॥।
ਦੁਤੀਆ ਮਉਲੇ ਚਾਰਿ ਬੇਦ ॥
दुतीआ मउले चारि बेद ॥
द्वितीय- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद एवं अथर्ववेद,
ਸਿੰਮ੍ਰਿਤਿ ਮਉਲੀ ਸਿਉ ਕਤੇਬ ॥੨॥
सिम्रिति मउली सिउ कतेब ॥२॥
अठारह स्मृतियों तथा कतेब (कुरान) भी उसकी ज्योति से ही प्रकाशमान हैं।॥२॥
ਸੰਕਰੁ ਮਉਲਿਓ ਜੋਗ ਧਿਆਨ ॥
संकरु मउलिओ जोग धिआन ॥
योग में ध्यानशील भोलेशंकर भी उसकी ज्योति से ज्योतिष्मान हुए हैं।
ਕਬੀਰ ਕੋ ਸੁਆਮੀ ਸਭ ਸਮਾਨ ॥੩॥੧॥
कबीर को सुआमी सभ समान ॥३॥१॥
कबीर का स्वामी सब में समान रूप से व्याप्त है॥३॥१॥
ਪੰਡਿਤ ਜਨ ਮਾਤੇ ਪੜ੍ਹ੍ਹਿ ਪੁਰਾਨ ॥
पंडित जन माते पड़्हि पुरान ॥
पण्डित पुराणों के पाठ-पठन में लीन हैं,
ਜੋਗੀ ਮਾਤੇ ਜੋਗ ਧਿਆਨ ॥
जोगी माते जोग धिआन ॥
योगी पुरुष योगाभ्यास के ध्यान में तल्लीन हैं।
ਸੰਨਿਆਸੀ ਮਾਤੇ ਅਹੰਮੇਵ ॥
संनिआसी माते अहमेव ॥
सन्यासी अपने अहंकार में मस्त हैं,”
ਤਪਸੀ ਮਾਤੇ ਤਪ ਕੈ ਭੇਵ ॥੧॥
तपसी माते तप कै भेव ॥१॥
तपस्वी अपनी तपस्या के भेद में लीन हैं ॥ १॥
ਸਭ ਮਦ ਮਾਤੇ ਕੋਊ ਨ ਜਾਗ ॥
सभ मद माते कोऊ न जाग ॥
सभी लोग अपनी-अपनी क्रिया में मस्त हैं परन्तु कोई भी जागृत नहीं और
ਸੰਗ ਹੀ ਚੋਰ ਘਰੁ ਮੁਸਨ ਲਾਗ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
संग ही चोर घरु मुसन लाग ॥१॥ रहाउ ॥
साथ ही साथ कामादिक चोर जीवों के घर को लूटने में तल्लीन हैं।॥१॥रहाउ॥।
ਜਾਗੈ ਸੁਕਦੇਉ ਅਰੁ ਅਕੂਰੁ ॥
जागै सुकदेउ अरु अकूरु ॥
शुकदेव और भक्त अक्रूर (विकारों से) जागृत रहे।