ਧੰਨੁ ਸੁ ਤੇਰੇ ਭਗਤ ਜਿਨੑੀ ਸਚੁ ਤੂੰ ਡਿਠਾ ॥
धंनु सु तेरे भगत जिन्ही सचु तूं डिठा ॥
हे सच्चे मालिक ! तेरे वे भक्त धन्य हैं, जिन्होंने तेरे दर्शन किए हैं।
ਜਿਸ ਨੋ ਤੇਰੀ ਦਇਆ ਸਲਾਹੇ ਸੋਇ ਤੁਧੁ ॥
जिस नो तेरी दइआ सलाहे सोइ तुधु ॥
जिस पर तेरी दया होती है, वही तेरी स्तुति करता है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਭੇਟੇ ਨਾਨਕ ਨਿਰਮਲ ਸੋਈ ਸੁਧੁ ॥੨੦॥
जिसु गुर भेटे नानक निरमल सोई सुधु ॥२०॥
हे नानक ! जिसकी गुरु से भेंट हो जाती है, वह निर्मल एवं शुद्ध आचरण वाला हो जाता है।२०॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਫਰੀਦਾ ਭੂਮਿ ਰੰਗਾਵਲੀ ਮੰਝਿ ਵਿਸੂਲਾ ਬਾਗੁ ॥
फरीदा भूमि रंगावली मंझि विसूला बागु ॥
हे फरीद ! यह जगत् रूपी धरती बड़ी रंगीली है परन्तु इसमें विकारों का विषैला बगीचा लगा हुआ है।
ਜੋ ਨਰ ਪੀਰਿ ਨਿਵਾਜਿਆ ਤਿਨੑਾ ਅੰਚ ਨ ਲਾਗ ॥੧॥
जो नर पीरि निवाजिआ तिन्हा अंच न लाग ॥१॥
जिस व्यक्ति पर गुरु-पीर ने अपनी कृपा कर दी है, उसे दुख रूपी कोई ऑच नहीं लगती॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਫਰੀਦਾ ਉਮਰ ਸੁਹਾਵੜੀ ਸੰਗਿ ਸੁਵੰਨੜੀ ਦੇਹ ॥
फरीदा उमर सुहावड़ी संगि सुवंनड़ी देह ॥
हे फरीद ! यह मनुष्य-जन्म बड़ा सुहावना है और साथ ही यह शरीर बड़ा सुन्दर है।
ਵਿਰਲੇ ਕੇਈ ਪਾਈਅਨੑਿ ਜਿਨੑਾ ਪਿਆਰੇ ਨੇਹ ॥੨॥
विरले केई पाईअन्हि जिन्हा पिआरे नेह ॥२॥
जिनका प्यारे प्रभु से प्रेम होता है, ऐसे विरले ही उसे पाते हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਜਪੁ ਤਪੁ ਸੰਜਮੁ ਦਇਆ ਧਰਮੁ ਜਿਸੁ ਦੇਹਿ ਸੁ ਪਾਏ ॥
जपु तपु संजमु दइआ धरमु जिसु देहि सु पाए ॥
जप, तप, संयम, दया एवं धर्म इत्यादि शुभ गुण जिसे ईश्वर देता है, वही पाता है।
ਜਿਸੁ ਬੁਝਾਇਹਿ ਅਗਨਿ ਆਪਿ ਸੋ ਨਾਮੁ ਧਿਆਏ ॥
जिसु बुझाइहि अगनि आपि सो नामु धिआए ॥
वह जिसकी तृष्णाग्नि बुझा देता है, वही हरि-नाम का ध्यान करता है।
ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਅਗਮ ਪੁਰਖੁ ਇਕ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਦਿਖਾਏ ॥
अंतरजामी अगम पुरखु इक द्रिसटि दिखाए ॥
अन्तर्यामी, अगम्य, पुरुषोत्तम प्रभु जिस पर अपनी कृपा-दृष्टि की झलक दिखा देता है,
ਸਾਧਸੰਗਤਿ ਕੈ ਆਸਰੈ ਪ੍ਰਭ ਸਿਉ ਰੰਗੁ ਲਾਏ ॥
साधसंगति कै आसरै प्रभ सिउ रंगु लाए ॥
ऐसा जीव साधु की संगति के सहारे प्रभु से लगन लगा लेता है।
ਅਉਗਣ ਕਟਿ ਮੁਖੁ ਉਜਲਾ ਹਰਿ ਨਾਮਿ ਤਰਾਏ ॥
अउगण कटि मुखु उजला हरि नामि तराए ॥
ऐसे जीव के अवगुण मिट जाते हैं, उसका मुख उज्ज्वल हो जाता है और वह हरि-नाम द्वारा भवसागर से तैर जाता है।
ਜਨਮ ਮਰਣ ਭਉ ਕਟਿਓਨੁ ਫਿਰਿ ਜੋਨਿ ਨ ਪਾਏ ॥
जनम मरण भउ कटिओनु फिरि जोनि न पाए ॥
परमात्मा जिसका जन्म-मरण का भय काट देता है, वह दोबारा योनियों में नहीं पड़ता।
ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕਾਢਿਅਨੁ ਲੜੁ ਆਪਿ ਫੜਾਏ ॥
अंध कूप ते काढिअनु लड़ु आपि फड़ाए ॥
ईश्वर ने स्वयं ही अपने ऑचल से लगाकर अंधकूप में से बाहर निकाल लिया है।
ਨਾਨਕ ਬਖਸਿ ਮਿਲਾਇਅਨੁ ਰਖੇ ਗਲਿ ਲਾਏ ॥੨੧॥
नानक बखसि मिलाइअनु रखे गलि लाए ॥२१॥
हे नानक ! भगवान ने कृपा करके अपने साथ मिला लिया है और उसे गले से लगाकर रखता है॥ २१॥
ਸਲੋਕ ਮਃ ੫ ॥
सलोक मः ५ ॥
श्लोक महला ५॥
ਮੁਹਬਤਿ ਜਿਸੁ ਖੁਦਾਇ ਦੀ ਰਤਾ ਰੰਗਿ ਚਲੂਲਿ ॥
मुहबति जिसु खुदाइ दी रता रंगि चलूलि ॥
जिसे खुदा से मुहब्बत हो जाती है, वह उसके रंग में ही रत रहता है।
ਨਾਨਕ ਵਿਰਲੇ ਪਾਈਅਹਿ ਤਿਸੁ ਜਨ ਕੀਮ ਨ ਮੂਲਿ ॥੧॥
नानक विरले पाईअहि तिसु जन कीम न मूलि ॥१॥
हे नानक ! ऐसे मनुष्य विरले ही मिलते हैं, जिनका मूल्यांकन नहीं किया जा सकता॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਅੰਦਰੁ ਵਿਧਾ ਸਚਿ ਨਾਇ ਬਾਹਰਿ ਭੀ ਸਚੁ ਡਿਠੋਮਿ ॥
अंदरु विधा सचि नाइ बाहरि भी सचु डिठोमि ॥
मेरा मन सत्य-नाम से बिंधा हुआ है और बाहर भी परम-सत्य ही दिखाई दे रहा है।
ਨਾਨਕ ਰਵਿਆ ਹਭ ਥਾਇ ਵਣਿ ਤ੍ਰਿਣਿ ਤ੍ਰਿਭਵਣਿ ਰੋਮਿ ॥੨॥
नानक रविआ हभ थाइ वणि त्रिणि त्रिभवणि रोमि ॥२॥
ईश्वर विश्वव्यापक है और वह वन, तृण, तीनों लोकों एवं रोम-रोम में समाया हुआ है।
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी ॥
ਆਪੇ ਕੀਤੋ ਰਚਨੁ ਆਪੇ ਹੀ ਰਤਿਆ ॥
आपे कीतो रचनु आपे ही रतिआ ॥
परमात्मा ने स्वयं ही सृष्टि-रचना की है और स्वयं ही इसमें लीन है।
ਆਪੇ ਹੋਇਓ ਇਕੁ ਆਪੇ ਬਹੁ ਭਤਿਆ ॥
आपे होइओ इकु आपे बहु भतिआ ॥
वह स्वयं ही अपने एक सगुण रूप में हो गया और स्वयं ही अनेक रूपों में प्रगट हुआ है।
ਆਪੇ ਸਭਨਾ ਮੰਝਿ ਆਪੇ ਬਾਹਰਾ ॥
आपे सभना मंझि आपे बाहरा ॥
वह स्वयं ही सब जीवों में समाया हुआ है और स्वयं ही बाहर भी विद्यमान है।
ਆਪੇ ਜਾਣਹਿ ਦੂਰਿ ਆਪੇ ਹੀ ਜਾਹਰਾ ॥
आपे जाणहि दूरि आपे ही जाहरा ॥
वह स्वयं ही जीवों को दूर नजर आता है और स्वयं ही प्रत्यक्ष है।
ਆਪੇ ਹੋਵਹਿ ਗੁਪਤੁ ਆਪੇ ਪਰਗਟੀਐ ॥
आपे होवहि गुपतु आपे परगटीऐ ॥
वह स्वयं ही गुप्त एवं प्रगट होता रहता है।
ਕੀਮਤਿ ਕਿਸੈ ਨ ਪਾਇ ਤੇਰੀ ਥਟੀਐ ॥
कीमति किसै न पाइ तेरी थटीऐ ॥
हे ईश्वर ! तेरी कुदरत रचना का महत्व कोई भी नहीं पा सका।
ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰੁ ਅਥਾਹੁ ਅਪਾਰੁ ਅਗਣਤੁ ਤੂੰ ॥
गहिर ग्मभीरु अथाहु अपारु अगणतु तूं ॥
तू गहनगम्भीर, अथाह, अपार एवं बेअंत है।
ਨਾਨਕ ਵਰਤੈ ਇਕੁ ਇਕੋ ਇਕੁ ਤੂੰ ॥੨੨॥੧॥੨॥ ਸੁਧੁ ॥
नानक वरतै इकु इको इकु तूं ॥२२॥१॥२॥ सुधु ॥
नानक कहते हैं कि हे प्रभु ! एक तू ही कण-कण में मौजूद है, केवल एक तू ही है ॥२२॥१॥२॥ शुद्ध॥
ਰਾਮਕਲੀ ਕੀ ਵਾਰ ਰਾਇ ਬਲਵੰਡਿ ਤਥਾ ਸਤੈ ਡੂਮਿ ਆਖੀ
रामकली की वार राइ बलवंडि तथा सतै डूमि आखी
रामकली की वार राइ बलवंडि तथा सतै डूमि आखी
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਨਾਉ ਕਰਤਾ ਕਾਦਰੁ ਕਰੇ ਕਿਉ ਬੋਲੁ ਹੋਵੈ ਜੋਖੀਵਦੈ ॥
नाउ करता कादरु करे किउ बोलु होवै जोखीवदै ॥
यदि कर्ता-परमेश्वर स्वयं ही न्यायपूर्ण निर्णय करे तो उसके आदेश पर एतराज नहीं किया जा सकता।
ਦੇ ਗੁਨਾ ਸਤਿ ਭੈਣ ਭਰਾਵ ਹੈ ਪਾਰੰਗਤਿ ਦਾਨੁ ਪੜੀਵਦੈ ॥
दे गुना सति भैण भराव है पारंगति दानु पड़ीवदै ॥
दैवी गुण सच्चे बहन-भाई हैं जिसे इंश्वर दान देता है, वही कामयाब होता है।(भाई लहणा को गुरु-गद्दी मिलना परमेश्वर का विधान था, गुरुपुत्र बेशक विरोध करते रहे लेकिन दैवी गुणों के कारण भाई लहणा ही इसको हकदार बने)।
ਨਾਨਕਿ ਰਾਜੁ ਚਲਾਇਆ ਸਚੁ ਕੋਟੁ ਸਤਾਣੀ ਨੀਵ ਦੈ ॥
नानकि राजु चलाइआ सचु कोटु सताणी नीव दै ॥
सतगुरु नानक देव जी ने जगत् में धर्म का राज चलाया और बड़ी मजबूत आधारशिला रखकर सत्य का एक दुर्ग बना दिया।
ਲਹਣੇ ਧਰਿਓਨੁ ਛਤੁ ਸਿਰਿ ਕਰਿ ਸਿਫਤੀ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਪੀਵਦੈ ॥
लहणे धरिओनु छतु सिरि करि सिफती अम्रितु पीवदै ॥
तदुपरांत उन्होंने भाई लहणा (गुरु अंगद देव) के सिर पर गुरुयाई का छत्र रख दिया और वे भी परमेश्वर की स्तुति करके अमृत का पान करते रहे।
ਮਤਿ ਗੁਰ ਆਤਮ ਦੇਵ ਦੀ ਖੜਗਿ ਜੋਰਿ ਪਰਾਕੁਇ ਜੀਅ ਦੈ ॥
मति गुर आतम देव दी खड़गि जोरि पराकुइ जीअ दै ॥
गुरु नानक ने प्रभुज्ञान की खड्ग रूपी मति अपने आत्मबल से लहणा जी के हृदय में स्थापित कर दी।
ਗੁਰਿ ਚੇਲੇ ਰਹਰਾਸਿ ਕੀਈ ਨਾਨਕਿ ਸਲਾਮਤਿ ਥੀਵਦੈ ॥
गुरि चेले रहरासि कीई नानकि सलामति थीवदै ॥
गुरु नानक देव जी ने जीते जी अपने शिष्य भाई लहणा जी के आगे नमन किया और
ਸਹਿ ਟਿਕਾ ਦਿਤੋਸੁ ਜੀਵਦੈ ॥੧॥
सहि टिका दितोसु जीवदै ॥१॥
अपने जिंदा रहते समय उन्हें गुरुयाई का तिलक लगा दिया॥ १॥
ਲਹਣੇ ਦੀ ਫੇਰਾਈਐ ਨਾਨਕਾ ਦੋਹੀ ਖਟੀਐ ॥
लहणे दी फेराईऐ नानका दोही खटीऐ ॥
गुरु नानक देव जी की श्रद्धापूर्वक सेवा से जब भाई लहणा जी को गुरुगद्दी प्राप्त हुई तो उनकी शोभा चारों दिशाओं में फैल गई।
ਜੋਤਿ ਓਹਾ ਜੁਗਤਿ ਸਾਇ ਸਹਿ ਕਾਇਆ ਫੇਰਿ ਪਲਟੀਐ ॥
जोति ओहा जुगति साइ सहि काइआ फेरि पलटीऐ ॥
भाई लहणा जी गुरु नानक देव जी वाली वही ज्योति थी और उनकी जीवन-युक्ति भी वही है, मालिक प्रभु ने केवल उनका शरीर ही बदला है।
ਝੁਲੈ ਸੁ ਛਤੁ ਨਿਰੰਜਨੀ ਮਲਿ ਤਖਤੁ ਬੈਠਾ ਗੁਰ ਹਟੀਐ ॥
झुलै सु छतु निरंजनी मलि तखतु बैठा गुर हटीऐ ॥
भाई लहणा जी के सिर पर सुन्दर निरंजन का छत्र झूलता है और वे सिंहासन ग्रहण करके गुरु-गद्दी पर विराजमान हो गए हैं।
ਕਰਹਿ ਜਿ ਗੁਰ ਫੁਰਮਾਇਆ ਸਿਲ ਜੋਗੁ ਅਲੂਣੀ ਚਟੀਐ ॥
करहि जि गुर फुरमाइआ सिल जोगु अलूणी चटीऐ ॥
गुरु नानक ने उन्हें जो हुक्म किया है, वे वही करते हैं और चाहे सत्य का मार्ग बड़ा दुर्गम है, मगर उन्होंने उस पर ही चलने का निर्णय किया।