ਨਾਨਕ ਅਹਿਨਿਸਿ ਰਾਵੈ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਹਰਿ ਵਰੁ ਥਿਰੁ ਸੋਹਾਗੋ ॥੧੭॥੧॥
नानक अहिनिसि रावै प्रीतमु हरि वरु थिरु सोहागो ॥१७॥१॥
गुरु नानक का कथन है कि वह दिन-रात प्रियतम-प्रभु के संग रमण करती है और उसका प्रभु रूपी सुहाग अटल है॥ १७॥ १॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
तुखारी महला १ ॥
तुखारी महला १॥
ਪਹਿਲੈ ਪਹਰੈ ਨੈਣ ਸਲੋਨੜੀਏ ਰੈਣਿ ਅੰਧਿਆਰੀ ਰਾਮ ॥
पहिलै पहरै नैण सलोनड़ीए रैणि अंधिआरी राम ॥
हे सुन्दर नयनों वाली जीव स्त्री ! जीवन रूपी पहले प्रहर में अज्ञान रूपी रात्रि का अंधेरा बना रहता है।
ਵਖਰੁ ਰਾਖੁ ਮੁਈਏ ਆਵੈ ਵਾਰੀ ਰਾਮ ॥
वखरु राखु मुईए आवै वारी राम ॥
जन्म मिला है तो बारी आने पर आखिर मृत्यु को प्राप्त होना है, अतः नाम रूपी सौदा संभाल लो (अर्थात् हरिनाम जप लो)।
ਵਾਰੀ ਆਵੈ ਕਵਣੁ ਜਗਾਵੈ ਸੂਤੀ ਜਮ ਰਸੁ ਚੂਸਏ ॥
वारी आवै कवणु जगावै सूती जम रसु चूसए ॥
मृत्यु की बारी आने पर कौन जगाता है, सोए हुए मनुष्य का यम सब खत्म कर देता है।
ਰੈਣਿ ਅੰਧੇਰੀ ਕਿਆ ਪਤਿ ਤੇਰੀ ਚੋਰੁ ਪੜੈ ਘਰੁ ਮੂਸਏ ॥
रैणि अंधेरी किआ पति तेरी चोरु पड़ै घरु मूसए ॥
अज्ञान रूपी रात अंधेरी है, तेरी कोई प्रतिष्ठा नहीं, पाँच विकार लूटते रहते हैं।
ਰਾਖਣਹਾਰਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ਸੁਣਿ ਬੇਨੰਤੀ ਮੇਰੀਆ ॥
राखणहारा अगम अपारा सुणि बेनंती मेरीआ ॥
मेरी विनती सुनो; अगम्य-अपार परमेश्वर ही रक्षा करने वाला है।
ਨਾਨਕ ਮੂਰਖੁ ਕਬਹਿ ਨ ਚੇਤੈ ਕਿਆ ਸੂਝੈ ਰੈਣਿ ਅੰਧੇਰੀਆ ॥੧॥
नानक मूरखु कबहि न चेतै किआ सूझै रैणि अंधेरीआ ॥१॥
गुरु नानक का कथन है कि मूर्ख जीव कभी जाग्रत नहीं होता और उसे अज्ञान रूपी अंधेरे का ज्ञान नहीं होता॥ १॥
ਦੂਜਾ ਪਹਰੁ ਭਇਆ ਜਾਗੁ ਅਚੇਤੀ ਰਾਮ ॥
दूजा पहरु भइआ जागु अचेती राम ॥
हे नादान ! जाग ले, जीवन का दूसरा प्रहर आ गया है।
ਵਖਰੁ ਰਾਖੁ ਮੁਈਏ ਖਾਜੈ ਖੇਤੀ ਰਾਮ ॥
वखरु राखु मुईए खाजै खेती राम ॥
नाम रूपी सौदे को बचाकर रख ले, क्योंकि गुणों की खेती तो कामादिक खाते जा रहे हैं।
ਰਾਖਹੁ ਖੇਤੀ ਹਰਿ ਗੁਰ ਹੇਤੀ ਜਾਗਤ ਚੋਰੁ ਨ ਲਾਗੈ ॥
राखहु खेती हरि गुर हेती जागत चोरु न लागै ॥
प्रभु से प्रेम लगाकर इस खेती को बचा लो, जाग्रत रहने से कामादिक पशु रूपी चोर नुक्सान नहीं पहुँचा सकते।
ਜਮ ਮਗਿ ਨ ਜਾਵਹੁ ਨਾ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹੁ ਜਮ ਕਾ ਡਰੁ ਭਉ ਭਾਗੈ ॥
जम मगि न जावहु ना दुखु पावहु जम का डरु भउ भागै ॥
मृत्यु के मार्ग पर मत जाओ, न ही दुख प्राप्त करो; इस प्रकार यम का भय निवृत्त हो जाएगा।
ਰਵਿ ਸਸਿ ਦੀਪਕ ਗੁਰਮਤਿ ਦੁਆਰੈ ਮਨਿ ਸਾਚਾ ਮੁਖਿ ਧਿਆਵਏ ॥
रवि ससि दीपक गुरमति दुआरै मनि साचा मुखि धिआवए ॥
गुरु-उपदेश द्वारा सूर्य-चांद रूपी ज्ञान के दीपक जग जाएँगे, अतः मन एवं मुख से सच्चे प्रभु का भजन करो।
ਨਾਨਕ ਮੂਰਖੁ ਅਜਹੁ ਨ ਚੇਤੈ ਕਿਵ ਦੂਜੈ ਸੁਖੁ ਪਾਵਏ ॥੨॥
नानक मूरखु अजहु न चेतै किव दूजै सुखु पावए ॥२॥
गुरु नानक का कथन है कि हे मूर्ख ! अब तक तो तू सावधान नहीं हुआ, फिर जीवन के अगले हिस्से में कैसे सुख उपलब्ध होगा॥ २॥
ਤੀਜਾ ਪਹਰੁ ਭਇਆ ਨੀਦ ਵਿਆਪੀ ਰਾਮ ॥
तीजा पहरु भइआ नीद विआपी राम ॥
जीवन के तीसरे प्रहर में मोह की नींद बनी रहती है।
ਮਾਇਆ ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਦੂਖਿ ਸੰਤਾਪੀ ਰਾਮ ॥
माइआ सुत दारा दूखि संतापी राम ॥
पुत्र-पत्नी के द्वारा माया दुख-संताप प्रदान करती है।
ਮਾਇਆ ਸੁਤ ਦਾਰਾ ਜਗਤ ਪਿਆਰਾ ਚੋਗ ਚੁਗੈ ਨਿਤ ਫਾਸੈ ॥
माइआ सुत दारा जगत पिआरा चोग चुगै नित फासै ॥
पुत्र-पत्नी, सांसारिक प्रेम में जीव चोगा चुगता है और नित्य माया-जाल में फँसता है।
ਨਾਮੁ ਧਿਆਵੈ ਤਾ ਸੁਖੁ ਪਾਵੈ ਗੁਰਮਤਿ ਕਾਲੁ ਨ ਗ੍ਰਾਸੈ ॥
नामु धिआवै ता सुखु पावै गुरमति कालु न ग्रासै ॥
यदि हरिनाम का भजन किया जाए तो सुख प्राप्त हो सकता है, गुरु-उपदेशानुसार जीवन बिताने वाले को काल अपना ग्रास नहीं बनाता।
ਜੰਮਣੁ ਮਰਣੁ ਕਾਲੁ ਨਹੀ ਛੋਡੈ ਵਿਣੁ ਨਾਵੈ ਸੰਤਾਪੀ ॥
जमणु मरणु कालु नही छोडै विणु नावै संतापी ॥
हरिनाम बिना जीव दुख-तकलीफ भोगता है, काल उसे छोड़ता नहीं और वह जन्म-मरण में पड़ा रहता है।
ਨਾਨਕ ਤੀਜੈ ਤ੍ਰਿਬਿਧਿ ਲੋਕਾ ਮਾਇਆ ਮੋਹਿ ਵਿਆਪੀ ॥੩॥
नानक तीजै त्रिबिधि लोका माइआ मोहि विआपी ॥३॥
गुरु नानक का कथन है कि जीवन के तीसरे प्रहर में लोग त्रिगुणात्मक माया के मोह में व्याप्त रहते हैं।॥ ३॥
ਚਉਥਾ ਪਹਰੁ ਭਇਆ ਦਉਤੁ ਬਿਹਾਗੈ ਰਾਮ ॥
चउथा पहरु भइआ दउतु बिहागै राम ॥
जीवन के चौथे प्रहर में सूर्योदय हो गया अर्थात् बुढ़ापा आ गया, जीवन-अवधि समाप्त हो गई।
ਤਿਨ ਘਰੁ ਰਾਖਿਅੜਾ ਜੋੁ ਅਨਦਿਨੁ ਜਾਗੈ ਰਾਮ ॥
तिन घरु राखिअड़ा जो अनदिनु जागै राम ॥
जो दिन-रात सावधान रहा, उसने अपने घर को बचा लिया।
ਗੁਰ ਪੂਛਿ ਜਾਗੇ ਨਾਮਿ ਲਾਗੇ ਤਿਨਾ ਰੈਣਿ ਸੁਹੇਲੀਆ ॥
गुर पूछि जागे नामि लागे तिना रैणि सुहेलीआ ॥
जो गुरु की सलाहानुसार सावधान होकर हरिनाम का भजन करता है, उसकी जीवन रूपी रात्रि सुखमय हो जाती है।
ਗੁਰ ਸਬਦੁ ਕਮਾਵਹਿ ਜਨਮਿ ਨ ਆਵਹਿ ਤਿਨਾ ਹਰਿ ਪ੍ਰਭੁ ਬੇਲੀਆ ॥
गुर सबदु कमावहि जनमि न आवहि तिना हरि प्रभु बेलीआ ॥
वह शब्द-गुरु के अनुसार आचरण करता है, जीवन-मृत्यु के बन्धन से छूट जाता है और प्रभु ही उसका सच्चा साथी बनता है।
ਕਰ ਕੰਪਿ ਚਰਣ ਸਰੀਰੁ ਕੰਪੈ ਨੈਣ ਅੰਧੁਲੇ ਤਨੁ ਭਸਮ ਸੇ ॥
कर क्मपि चरण सरीरु क्मपै नैण अंधुले तनु भसम से ॥
अन्यथा इस उम्र में हाथ-पैर थर-थर कांपते हैं, शरीर एवं पैर भी कांपने लग जाते हैं, ऑखों की रोशनी कम हो जाती है और अंततः शरीर भस्म हो जाता है।
ਨਾਨਕ ਦੁਖੀਆ ਜੁਗ ਚਾਰੇ ਬਿਨੁ ਨਾਮ ਹਰਿ ਕੇ ਮਨਿ ਵਸੇ ॥੪॥
नानक दुखीआ जुग चारे बिनु नाम हरि के मनि वसे ॥४॥
गुरु नानक का कथन है कि मन में हरिनाम बसाए बिना चारों युग केवल दुख ही मिलता है॥ ४॥
ਖੂਲੀ ਗੰਠਿ ਉਠੋ ਲਿਖਿਆ ਆਇਆ ਰਾਮ ॥
खूली गंठि उठो लिखिआ आइआ राम ॥
इस प्रकार मृत्यु का बुलावा आ गया, कर्मों का हिसाब-किताब हुआ।
ਰਸ ਕਸ ਸੁਖ ਠਾਕੇ ਬੰਧਿ ਚਲਾਇਆ ਰਾਮ ॥
रस कस सुख ठाके बंधि चलाइआ राम ॥
स्वाद एवं सुखों की समाप्ति हुई और मृत्यु ने बांधकर साथ ले लिया।
ਬੰਧਿ ਚਲਾਇਆ ਜਾ ਪ੍ਰਭ ਭਾਇਆ ਨਾ ਦੀਸੈ ਨਾ ਸੁਣੀਐ ॥
बंधि चलाइआ जा प्रभ भाइआ ना दीसै ना सुणीऐ ॥
जब प्रभु को स्वीकार होता है तो जीव बंधकर चल देता है, यह हुक्म सुनाई एवं दिखाई नहीं देता।
ਆਪਣ ਵਾਰੀ ਸਭਸੈ ਆਵੈ ਪਕੀ ਖੇਤੀ ਲੁਣੀਐ ॥
आपण वारी सभसै आवै पकी खेती लुणीऐ ॥
हर जीव अपनी बारी आने पर आ जाते हैं और अपने शुभाशुभ कर्मों का फल भोगते हैं।
ਘੜੀ ਚਸੇ ਕਾ ਲੇਖਾ ਲੀਜੈ ਬੁਰਾ ਭਲਾ ਸਹੁ ਜੀਆ ॥
घड़ी चसे का लेखा लीजै बुरा भला सहु जीआ ॥
फिर घड़ी-पल का कर्मों का हिसाब लिया जाता है और सब जीवों को बुरा-भला सहन करना पड़ता है।
ਨਾਨਕ ਸੁਰਿ ਨਰ ਸਬਦਿ ਮਿਲਾਏ ਤਿਨਿ ਪ੍ਰਭਿ ਕਾਰਣੁ ਕੀਆ ॥੫॥੨॥
नानक सुरि नर सबदि मिलाए तिनि प्रभि कारणु कीआ ॥५॥२॥
गुरु नानक का कथन है कि शब्द द्वारा ईश्वर ने स्वयं ही संत-व्यक्तियों को अपने संग विलीन किया है और प्रभु ने स्वयं ही कारण बनाया है॥ ५॥२॥
ਤੁਖਾਰੀ ਮਹਲਾ ੧ ॥
तुखारी महला १ ॥
तुखारी महला १॥
ਤਾਰਾ ਚੜਿਆ ਲੰਮਾ ਕਿਉ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲਿਆ ਰਾਮ ॥
तारा चड़िआ लमा किउ नदरि निहालिआ राम ॥
जिस पर परमेश्वर की कृपा-दृष्टि हो जाती है, उसके जीवन रूपी अंधेरे में ज्ञान का लम्बा तारा चढ़ा रहता है।
ਸੇਵਕ ਪੂਰ ਕਰੰਮਾ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਲਿਆ ਰਾਮ ॥
सेवक पूर करमा सतिगुरि सबदि दिखालिआ राम ॥
पूर्ण भाग्यशाली सेवक को सतगुरु ने शब्द द्वारा ज्ञान का तारा दिखा दिया है।
ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਦਿਖਾਲਿਆ ਸਚੁ ਸਮਾਲਿਆ ਅਹਿਨਿਸਿ ਦੇਖਿ ਬੀਚਾਰਿਆ ॥
गुर सबदि दिखालिआ सचु समालिआ अहिनिसि देखि बीचारिआ ॥
शब्द-गुरु ने ज्ञान का तारा दिखाया तो सत्य को स्मरण कर दिन-रात उसने उसका ही मनन किया।
ਧਾਵਤ ਪੰਚ ਰਹੇ ਘਰੁ ਜਾਣਿਆ ਕਾਮੁ ਕ੍ਰੋਧੁ ਬਿਖੁ ਮਾਰਿਆ ॥
धावत पंच रहे घरु जाणिआ कामु क्रोधु बिखु मारिआ ॥
उसके हृदय-घर में से पाँच विकारों का छुटकारा हो गया और काम-क्रोध रूपी विष का अंत हो गया।
ਅੰਤਰਿ ਜੋਤਿ ਭਈ ਗੁਰ ਸਾਖੀ ਚੀਨੇ ਰਾਮ ਕਰੰਮਾ ॥
अंतरि जोति भई गुर साखी चीने राम करमा ॥
गुरु की शिक्षा से अन्तर्मन में सत्य की ज्योति प्रज्वलित हो गई और उसने प्रभु की लीला को पहचान लिया।