ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਸਰਣਾਗਤੀ ਹਰਿ ਪੁਰਖ ਪੂਰਨ ਦੇਵ ॥੨॥੫॥੮॥
नानक दास सरणागती हरि पुरख पूरन देव ॥२॥५॥८॥
दास नानक तो पूर्णपरमेश्वर की शरण में आ गया है॥ २॥५॥ ८॥
ਕਲਿਆਨੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कलिआनु महला ५ ॥
कलिआन महला ५ ॥
ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਰਾ ਅੰਤਰਜਾਮੀ ਜਾਣੁ ॥
प्रभु मेरा अंतरजामी जाणु ॥
अन्तर्यामी मेरा प्रभु सब जानने वाला है।
ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਪੂਰਨ ਪਰਮੇਸਰ ਨਿਹਚਲੁ ਸਚੁ ਸਬਦੁ ਨੀਸਾਣੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
करि किरपा पूरन परमेसर निहचलु सचु सबदु नीसाणु ॥१॥ रहाउ ॥
हे पूर्णपरमेश्वर ! तू शाश्वत है, कृपा करो, सच्चा शब्द ही परवाना है॥ १॥रहाउ॥
ਹਰਿ ਬਿਨੁ ਆਨ ਨ ਕੋਈ ਸਮਰਥੁ ਤੇਰੀ ਆਸ ਤੇਰਾ ਮਨਿ ਤਾਣੁ ॥
हरि बिनु आन न कोई समरथु तेरी आस तेरा मनि ताणु ॥
परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई समर्थ नहीं, एकमात्र तेरी ही मुझे आशा है और तेरा ही मन में बल है।
ਸਰਬ ਘਟਾ ਕੇ ਦਾਤੇ ਸੁਆਮੀ ਦੇਹਿ ਸੁ ਪਹਿਰਣੁ ਖਾਣੁ ॥੧॥
सरब घटा के दाते सुआमी देहि सु पहिरणु खाणु ॥१॥
हे सब शरीरों के दाता, स्वामी ! जो तू देता है, वही खाता एवं पहनता हूँ॥ १॥
ਸੁਰਤਿ ਮਤਿ ਚਤੁਰਾਈ ਸੋਭਾ ਰੂਪੁ ਰੰਗੁ ਧਨੁ ਮਾਣੁ ॥
सुरति मति चतुराई सोभा रूपु रंगु धनु माणु ॥
आत्मा, बुद्धि, चतुराई. शोभा, रूप-रंग, धन, मान-सम्मान, सर्व सुख एवं आनंद एकुमात्र वही देने वाला है।
ਸਰਬ ਸੂਖ ਆਨੰਦ ਨਾਨਕ ਜਪਿ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਕਲਿਆਣੁ ॥੨॥੬॥੯॥
सरब सूख आनंद नानक जपि राम नामु कलिआणु ॥२॥६॥९॥
नानक अनुरोध करते हैं कि राम नाम का भजन करो, इसी में कल्याण निहित है॥ २॥६॥ ९॥
ਕਲਿਆਨੁ ਮਹਲਾ ੫ ॥
कलिआनु महला ५ ॥
कलिआन महला ५ ॥
ਹਰਿ ਚਰਨ ਸਰਨ ਕਲਿਆਨ ਕਰਨ ॥
हरि चरन सरन कलिआन करन ॥
प्रभु-चरणों की शरण कल्याणकारी है।
ਪ੍ਰਭ ਨਾਮੁ ਪਤਿਤ ਪਾਵਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
प्रभ नामु पतित पावनो ॥१॥ रहाउ ॥
प्रभु का नाम पतितों को पावन कर देता है॥ १॥रहाउ॥
ਸਾਧਸੰਗਿ ਜਪਿ ਨਿਸੰਗ ਜਮਕਾਲੁ ਤਿਸੁ ਨ ਖਾਵਨੋ ॥੧॥
साधसंगि जपि निसंग जमकालु तिसु न खावनो ॥१॥
जो साधुओं के साथ परमात्मा का भजन करते हैं, मौत उनको ग्रास नहीं बनाती॥ १॥
ਮੁਕਤਿ ਜੁਗਤਿ ਅਨਿਕ ਸੂਖ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਲਵੈ ਨ ਲਾਵਨੋ ॥
मुकति जुगति अनिक सूख हरि भगति लवै न लावनो ॥
मुक्ति, युक्ति एवं अनेक सुख भी परमात्मा की भक्ति के बराबर नहीं पहुँचते।
ਪ੍ਰਭ ਦਰਸ ਲੁਬਧ ਦਾਸ ਨਾਨਕ ਬਹੁੜਿ ਜੋਨਿ ਨ ਧਾਵਨੋ ॥੨॥੭॥੧੦॥
प्रभ दरस लुबध दास नानक बहुड़ि जोनि न धावनो ॥२॥७॥१०॥
दास नानक तो प्रभु के दर्शन में ही आसक्त है, ताकि पुनः योनि-चक्र में भटकना न पड़े॥ २॥७॥ १०॥
ਕਲਿਆਨ ਮਹਲਾ ੪ ਅਸਟਪਦੀਆ ॥
कलिआन महला ४ असटपदीआ ॥
कलिआन महला ४ असटपदीआ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ਰਾਮਾ ਰਮ ਰਾਮੋ ਸੁਨਿ ਮਨੁ ਭੀਜੈ ॥
रामा रम रामो सुनि मनु भीजै ॥
सृष्टि के कण-कण में राम ही व्याप्त है, राम नाम सुनने से मन प्रसन्न हो जाता है।
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਰਸੁ ਮੀਠਾ ਗੁਰਮਤਿ ਸਹਜੇ ਪੀਜੈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि हरि नामु अम्रितु रसु मीठा गुरमति सहजे पीजै ॥१॥ रहाउ ॥
परमात्मा का नाम अमृत की तरह मधुर है और गुरु की शिक्षा से सहज-स्वाभाविक इसका पान करो॥ १॥रहाउ॥
ਕਾਸਟ ਮਹਿ ਜਿਉ ਹੈ ਬੈਸੰਤਰੁ ਮਥਿ ਸੰਜਮਿ ਕਾਢਿ ਕਢੀਜੈ ॥
कासट महि जिउ है बैसंतरु मथि संजमि काढि कढीजै ॥
जिस प्रकार लकड़ी में अग्नि मौजूद है और संयम से निकाल लिया जाता है,
ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਹੈ ਜੋਤਿ ਸਬਾਈ ਤਤੁ ਗੁਰਮਤਿ ਕਾਢਿ ਲਈਜੈ ॥੧॥
राम नामु है जोति सबाई ततु गुरमति काढि लईजै ॥१॥
वैसे ही राम नाम सर्वत्र व्याप्त है और गुरु की शिक्षानुसार प्राप्त होता है।॥ १॥
ਨਉ ਦਰਵਾਜ ਨਵੇ ਦਰ ਫੀਕੇ ਰਸੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਦਸਵੇ ਚੁਈਜੈ ॥
नउ दरवाज नवे दर फीके रसु अम्रितु दसवे चुईजै ॥
आँखें, नाक, कान इत्यादि शरीर के नौ द्वार व्यर्थ हैं और दसम द्वार से ही हरिनाम अमृत की धारा बहती है।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਿਰਪਾ ਕਰਿ ਪਿਆਰੇ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪੀਜੈ ॥੨॥
क्रिपा क्रिपा किरपा करि पिआरे गुर सबदी हरि रसु पीजै ॥२॥
हे प्यारे ! कृपा करो, गुरु के उपदेश द्वारा हरिनाम अमृत का पान करवाओ॥ २॥
ਕਾਇਆ ਨਗਰੁ ਨਗਰੁ ਹੈ ਨੀਕੋ ਵਿਚਿ ਸਉਦਾ ਹਰਿ ਰਸੁ ਕੀਜੈ ॥
काइआ नगरु नगरु है नीको विचि सउदा हरि रसु कीजै ॥
शरीर एक उत्तम है, जिसमें हरिनाम का सौदा किया जाता है।
ਰਤਨ ਲਾਲ ਅਮੋਲ ਅਮੋਲਕ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵਾ ਲੀਜੈ ॥੩॥
रतन लाल अमोल अमोलक सतिगुर सेवा लीजै ॥३॥
यदि गुरु की सेवा की जाए तो अमूल्य रत्न रूपी हरिनाम प्राप्त हो जाता है॥ ३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਅਗਮੁ ਅਗਮੁ ਹੈ ਠਾਕੁਰੁ ਭਰਿ ਸਾਗਰ ਭਗਤਿ ਕਰੀਜੈ ॥
सतिगुरु अगमु अगमु है ठाकुरु भरि सागर भगति करीजै ॥
परमात्मा अगम्य है, प्रेम का सागर है, उसकी भक्ति करनी चाहिए।
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਿ ਦੀਨ ਹਮ ਸਾਰਿੰਗ ਇਕ ਬੂੰਦ ਨਾਮੁ ਮੁਖਿ ਦੀਜੈ ॥੪॥
क्रिपा क्रिपा करि दीन हम सारिंग इक बूंद नामु मुखि दीजै ॥४॥
हे हरि ! कृपा करके मुझ सरीखे पपीहे के मुँह में नाम की बूंद डाल दो॥ ४॥
ਲਾਲਨੁ ਲਾਲੁ ਲਾਲੁ ਹੈ ਰੰਗਨੁ ਮਨੁ ਰੰਗਨ ਕਉ ਗੁਰ ਦੀਜੈ ॥
लालनु लालु लालु है रंगनु मनु रंगन कउ गुर दीजै ॥
प्यारा प्रभु प्रेम के रंग से भरा हुआ है, प्रेम के रंग से रंगने के लिए मन गुरु को अर्पण कर दो।
ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰੰਗਿ ਰਾਤੇ ਰਸ ਰਸਿਕ ਗਟਕ ਨਿਤ ਪੀਜੈ ॥੫॥
राम राम राम रंगि राते रस रसिक गटक नित पीजै ॥५॥
प्रभु के रंग में लीन रहो और खूब मजे लेकर हरिनाम का पान करो॥ ५॥
ਬਸੁਧਾ ਸਪਤ ਦੀਪ ਹੈ ਸਾਗਰ ਕਢਿ ਕੰਚਨੁ ਕਾਢਿ ਧਰੀਜੈ ॥
बसुधा सपत दीप है सागर कढि कंचनु काढि धरीजै ॥
यदि पृथ्वी, सात द्वीपों एवं सागरों से स्वर्ण निकाल कर भक्तजनों को दिया जाए तो
ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਕੇ ਜਨ ਇਨਹੁ ਨ ਬਾਛਹਿ ਹਰਿ ਮਾਗਹਿ ਹਰਿ ਰਸੁ ਦੀਜੈ ॥੬॥
मेरे ठाकुर के जन इनहु न बाछहि हरि मागहि हरि रसु दीजै ॥६॥
मेरे प्रभु के भक्त इनकी आकांक्षा नहीं करते, बल्कि हरि-भक्ति एवं नाम अमृत ही चाहते हैं।॥ ६॥
ਸਾਕਤ ਨਰ ਪ੍ਰਾਨੀ ਸਦ ਭੂਖੇ ਨਿਤ ਭੂਖਨ ਭੂਖ ਕਰੀਜੈ ॥
साकत नर प्रानी सद भूखे नित भूखन भूख करीजै ॥
मायावी प्राणी सदा लालसा ही करते हैं, उनकी धन-दौलत की भूख कभी नहीं मिटती।
ਧਾਵਤੁ ਧਾਇ ਧਾਵਹਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਮਾਇਆ ਲਖ ਕੋਸਨ ਕਉ ਬਿਥਿ ਦੀਜੈ ॥੭॥
धावतु धाइ धावहि प्रीति माइआ लख कोसन कउ बिथि दीजै ॥७॥
वे माया से इतना प्रेम करते हैं कि उसे पाने के लिए लाखों कोस की दूरी तय करके भी पहुँच जाते हैं।॥ ७॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਜਨ ਊਤਮ ਕਿਆ ਉਪਮਾ ਤਿਨੑ ਦੀਜੈ ॥
हरि हरि हरि हरि हरि जन ऊतम किआ उपमा तिन्ह दीजै ॥
परमात्मा के भक्त उत्तम हैं, इनको क्या उपमा दी जाए।