ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਗਲ ਮਹਿ ਆਪਿ ॥
आपे आपि सगल महि आपि ॥
सब कुछ वह अपने आप से ही है। वह स्वयं ही सब (जीव-जन्तुओं) में विद्यमान है।
ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਰਚਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥
अनिक जुगति रचि थापि उथापि ॥
अनेक युक्तियों द्वारा वह सृष्टि की रचना करता एवं उसका नाश भी करता है।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਖੰਡ ॥
अबिनासी नाही किछु खंड ॥
लेकिन अनश्वर परमात्मा का कुछ भी नाश नहीं होता।
ਧਾਰਣ ਧਾਰਿ ਰਹਿਓ ਬ੍ਰਹਮੰਡ ॥
धारण धारि रहिओ ब्रहमंड ॥
वह ब्रह्माण्ड को सहारा दे रहा है।
ਅਲਖ ਅਭੇਵ ਪੁਰਖ ਪਰਤਾਪ ॥
अलख अभेव पुरख परताप ॥
प्रभु का तेज-प्रताप अलक्ष्य एवं भेद रहित है।
ਆਪਿ ਜਪਾਏ ਤ ਨਾਨਕ ਜਾਪ ॥੬॥
आपि जपाए त नानक जाप ॥६॥
हे नानक ! यदि वह अपना जाप मनुष्य से स्वयं करवाए तो ही वह जाप करता है ॥६॥
ਜਿਨ ਪ੍ਰਭੁ ਜਾਤਾ ਸੁ ਸੋਭਾਵੰਤ ॥
जिन प्रभु जाता सु सोभावंत ॥
जो प्रभु को जानते हैं, वे शोभायमान हैं।
ਸਗਲ ਸੰਸਾਰੁ ਉਧਰੈ ਤਿਨ ਮੰਤ ॥
सगल संसारु उधरै तिन मंत ॥
समूचा जगत् उनके मंत्र (उपदेश) द्वारा बच जाता है।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਸਗਲ ਉਧਾਰਨ ॥
प्रभ के सेवक सगल उधारन ॥
प्रभु के सेवक सबका कल्याण कर देते हैं।
ਪ੍ਰਭ ਕੇ ਸੇਵਕ ਦੂਖ ਬਿਸਾਰਨ ॥
प्रभ के सेवक दूख बिसारन ॥
प्रभु के सेवकों की संगति द्वारा दुःख भूल जाता है।
ਆਪੇ ਮੇਲਿ ਲਏ ਕਿਰਪਾਲ ॥
आपे मेलि लए किरपाल ॥
कृपालु प्रभु उनको अपने साथ मिला लेता है।
ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਜਪਿ ਭਏ ਨਿਹਾਲ ॥
गुर का सबदु जपि भए निहाल ॥
गुरु के शब्द का जाप करने से वह कृतार्थ हो जाते हैं।
ਉਨ ਕੀ ਸੇਵਾ ਸੋਈ ਲਾਗੈ ॥
उन की सेवा सोई लागै ॥
केवल वही सौभाग्यशाली उनकी सेवा में लगता है,
ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰਹਿ ਬਡਭਾਗੈ ॥
जिस नो क्रिपा करहि बडभागै ॥
जिस पर प्रभु कृपा धारण करता है।
ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਪਾਵਹਿ ਬਿਸ੍ਰਾਮੁ ॥
नामु जपत पावहि बिस्रामु ॥
जो प्रभु के नाम का जाप करते हैं, वे सुख पाते हैं।
ਨਾਨਕ ਤਿਨ ਪੁਰਖ ਕਉ ਊਤਮ ਕਰਿ ਮਾਨੁ ॥੭॥
नानक तिन पुरख कउ ऊतम करि मानु ॥७॥
हे नानक ! उन पुरुषों को महान समझो ॥ ७॥
ਜੋ ਕਿਛੁ ਕਰੈ ਸੁ ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਰੰਗਿ ॥
जो किछु करै सु प्रभ कै रंगि ॥
वह जो कुछ करता है, प्रभु की रजा में करता है।
ਸਦਾ ਸਦਾ ਬਸੈ ਹਰਿ ਸੰਗਿ ॥
सदा सदा बसै हरि संगि ॥
वह हमेशा के लिए प्रभु के साथ बसता है।
ਸਹਜ ਸੁਭਾਇ ਹੋਵੈ ਸੋ ਹੋਇ ॥
सहज सुभाइ होवै सो होइ ॥
जो कुछ होता है, वह सहज स्वभाव ही होता है।
ਕਰਣੈਹਾਰੁ ਪਛਾਣੈ ਸੋਇ ॥
करणैहारु पछाणै सोइ ॥
वह उस सृजनहार प्रभु को ही पहचानता है।
ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਕੀਆ ਜਨ ਮੀਠ ਲਗਾਨਾ ॥
प्रभ का कीआ जन मीठ लगाना ॥
प्रभु का किया उसके सेवकों को मीठा लगता है।
ਜੈਸਾ ਸਾ ਤੈਸਾ ਦ੍ਰਿਸਟਾਨਾ ॥
जैसा सा तैसा द्रिसटाना ॥
जैसा प्रभु है, वैसा ही उसको दिखाई देता है।
ਜਿਸ ਤੇ ਉਪਜੇ ਤਿਸੁ ਮਾਹਿ ਸਮਾਏ ॥
जिस ते उपजे तिसु माहि समाए ॥
वह उसमें लीन हो जाता है, जिससे वह उत्पन्न हुआ था।
ਓਇ ਸੁਖ ਨਿਧਾਨ ਉਨਹੂ ਬਨਿ ਆਏ ॥
ओइ सुख निधान उनहू बनि आए ॥
वह सुखों का भण्डार है। यह प्रतिष्ठा केवल उसको ही शोभा देती है।
ਆਪਸ ਕਉ ਆਪਿ ਦੀਨੋ ਮਾਨੁ ॥
आपस कउ आपि दीनो मानु ॥
अपने सेवक को प्रभु ने स्वयं ही शोभा प्रदान की है।
ਨਾਨਕ ਪ੍ਰਭ ਜਨੁ ਏਕੋ ਜਾਨੁ ॥੮॥੧੪॥
नानक प्रभ जनु एको जानु ॥८॥१४॥
हे नानक ! समझो कि प्रभु एवं उसका सेवक एक समान ही हैं ॥८॥१४॥
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक।
ਸਰਬ ਕਲਾ ਭਰਪੂਰ ਪ੍ਰਭ ਬਿਰਥਾ ਜਾਨਨਹਾਰ ॥
सरब कला भरपूर प्रभ बिरथा जाननहार ॥
प्रभु सर्वकला सम्पूर्ण है और हमारे दु:खों को जानने वाला है।
ਜਾ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਉਧਰੀਐ ਨਾਨਕ ਤਿਸੁ ਬਲਿਹਾਰ ॥੧॥
जा कै सिमरनि उधरीऐ नानक तिसु बलिहार ॥१॥
हे नानक ! जिसका सिमरन करने से मनुष्य का उद्धार हो जाता है, मैं उस पर कुर्बान जाता हूँ ॥१॥
ਅਸਟਪਦੀ ॥
असटपदी ॥
अष्टपदी॥
ਟੂਟੀ ਗਾਢਨਹਾਰ ਗੋੁਪਾਲ ॥
टूटी गाढनहार गोपाल ॥
जगतपालक गोपाल टूटों को जोड़ने वाला है।
ਸਰਬ ਜੀਆ ਆਪੇ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲ ॥
सरब जीआ आपे प्रतिपाल ॥
वह स्वयं ही समस्त प्राणियों का पालन-पोषण करता है।
ਸਗਲ ਕੀ ਚਿੰਤਾ ਜਿਸੁ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥
सगल की चिंता जिसु मन माहि ॥
जिसके मन में सब की चिन्ता है,
ਤਿਸ ਤੇ ਬਿਰਥਾ ਕੋਈ ਨਾਹਿ ॥
तिस ते बिरथा कोई नाहि ॥
उससे कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता।
ਰੇ ਮਨ ਮੇਰੇ ਸਦਾ ਹਰਿ ਜਾਪਿ ॥
रे मन मेरे सदा हरि जापि ॥
हे मेरे मन ! सदा ही परमात्मा का जाप कर।
ਅਬਿਨਾਸੀ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੇ ਆਪਿ ॥
अबिनासी प्रभु आपे आपि ॥
अनश्वर प्रभु सब कुछ स्वयं ही है।
ਆਪਨ ਕੀਆ ਕਛੂ ਨ ਹੋਇ ॥
आपन कीआ कछू न होइ ॥
प्राणी के अपने करने से कुछ नहीं हो सकता,
ਜੇ ਸਉ ਪ੍ਰਾਨੀ ਲੋਚੈ ਕੋਇ ॥
जे सउ प्रानी लोचै कोइ ॥
चाहे वह सैकड़ों बार इसकी इच्छा करे।
ਤਿਸੁ ਬਿਨੁ ਨਾਹੀ ਤੇਰੈ ਕਿਛੁ ਕਾਮ ॥
तिसु बिनु नाही तेरै किछु काम ॥
उसके अतिरिक्त कुछ भी तेरे काम का नहीं।
ਗਤਿ ਨਾਨਕ ਜਪਿ ਏਕ ਹਰਿ ਨਾਮ ॥੧॥
गति नानक जपि एक हरि नाम ॥१॥
हे नानक ! एक ईश्वर के नाम का जाप करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है ॥१॥
ਰੂਪਵੰਤੁ ਹੋਇ ਨਾਹੀ ਮੋਹੈ ॥
रूपवंतु होइ नाही मोहै ॥
यदि प्राणी अति सुन्दर है तो अपने आप वह दूसरों को मोहित नहीं करता।
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਜੋਤਿ ਸਗਲ ਘਟ ਸੋਹੈ ॥
प्रभ की जोति सगल घट सोहै ॥
प्रभु की ज्योति ही समस्त शरीरों में सुन्दर लगती है।
ਧਨਵੰਤਾ ਹੋਇ ਕਿਆ ਕੋ ਗਰਬੈ ॥
धनवंता होइ किआ को गरबै ॥
धनवान होकर कोई पुरुष क्या अभिमान करे,
ਜਾ ਸਭੁ ਕਿਛੁ ਤਿਸ ਕਾ ਦੀਆ ਦਰਬੈ ॥
जा सभु किछु तिस का दीआ दरबै ॥
जब समस्त धन उसका दिया हुआ है।
ਅਤਿ ਸੂਰਾ ਜੇ ਕੋਊ ਕਹਾਵੈ ॥
अति सूरा जे कोऊ कहावै ॥
यदि कोई पुरुष अपने आपको महान शूरवीर कहलवाता हो,
ਪ੍ਰਭ ਕੀ ਕਲਾ ਬਿਨਾ ਕਹ ਧਾਵੈ ॥
प्रभ की कला बिना कह धावै ॥
प्रभु की कला (शक्ति) बिना वह क्या प्रयास कर सकता है?
ਜੇ ਕੋ ਹੋਇ ਬਹੈ ਦਾਤਾਰੁ ॥
जे को होइ बहै दातारु ॥
यदि कोई पुरुष दानी बन बैठे
ਤਿਸੁ ਦੇਨਹਾਰੁ ਜਾਨੈ ਗਾਵਾਰੁ ॥
तिसु देनहारु जानै गावारु ॥
तो दाता प्रभु उसको मूर्ख समझता है।
ਜਿਸੁ ਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੂਟੈ ਹਉ ਰੋਗੁ ॥
जिसु गुर प्रसादि तूटै हउ रोगु ॥
गुरु की कृपा से जिसके अहंकार का रोग दूर होता है,
ਨਾਨਕ ਸੋ ਜਨੁ ਸਦਾ ਅਰੋਗੁ ॥੨॥
नानक सो जनु सदा अरोगु ॥२॥
हे नानक ! वह मनुष्य सदैव स्वस्थ है॥ २ ॥
ਜਿਉ ਮੰਦਰ ਕਉ ਥਾਮੈ ਥੰਮਨੁ ॥
जिउ मंदर कउ थामै थमनु ॥
जैसे मन्दिर को एक खम्भा सहारा देता है,
ਤਿਉ ਗੁਰ ਕਾ ਸਬਦੁ ਮਨਹਿ ਅਸਥੰਮਨੁ ॥
तिउ गुर का सबदु मनहि असथमनु ॥
वैसे ही गुरु का शब्द मन को सहारा देता है।
ਜਿਉ ਪਾਖਾਣੁ ਨਾਵ ਚੜਿ ਤਰੈ ॥
जिउ पाखाणु नाव चड़ि तरै ॥
जैसे नाव में रखा पत्थर पार हो जाता है,
ਪ੍ਰਾਣੀ ਗੁਰ ਚਰਣ ਲਗਤੁ ਨਿਸਤਰੈ ॥
प्राणी गुर चरण लगतु निसतरै ॥
वैसे ही प्राणी गुरु के चरणों से लगकर भवसागर से पार हो जाता है।
ਜਿਉ ਅੰਧਕਾਰ ਦੀਪਕ ਪਰਗਾਸੁ ॥
जिउ अंधकार दीपक परगासु ॥
जैसे दीपक अन्धेरे में प्रकाश कर देता है,
ਗੁਰ ਦਰਸਨੁ ਦੇਖਿ ਮਨਿ ਹੋਇ ਬਿਗਾਸੁ ॥
गुर दरसनु देखि मनि होइ बिगासु ॥
वैसे ही गुरु के दर्शन करके मन प्रफुल्लित हो जाता है।
ਜਿਉ ਮਹਾ ਉਦਿਆਨ ਮਹਿ ਮਾਰਗੁ ਪਾਵੈ ॥
जिउ महा उदिआन महि मारगु पावै ॥
जैसे मनुष्य को महा जंगल में पथ मिल जाता है,
ਤਿਉ ਸਾਧੂ ਸੰਗਿ ਮਿਲਿ ਜੋਤਿ ਪ੍ਰਗਟਾਵੈ ॥
तिउ साधू संगि मिलि जोति प्रगटावै ॥
वैसे ही सत्संगति में रहने से प्रभु की ज्योति मनुष्य के भीतर प्रकट हो जाती है।
ਤਿਨ ਸੰਤਨ ਕੀ ਬਾਛਉ ਧੂਰਿ ॥
तिन संतन की बाछउ धूरि ॥
मैं उन संतों के चरणों की धूलि मांगता हूँ।
ਨਾਨਕ ਕੀ ਹਰਿ ਲੋਚਾ ਪੂਰਿ ॥੩॥
नानक की हरि लोचा पूरि ॥३॥
हे ईश्वर ! नानक की आकांक्षा पूर्णं करो॥ ३॥
ਮਨ ਮੂਰਖ ਕਾਹੇ ਬਿਲਲਾਈਐ ॥
मन मूरख काहे बिललाईऐ ॥
हे मूर्ख मन ! क्यों विलाप करते हो !