ਰਾਗੁ ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ਘਰੁ ੧ ਚਉਪਦੇ
रागु मारू महला १ घरु १ चउपदे
रागु मारू महला १ घरु १ चउपदे
ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥
ईश्वर केवल एक है, नाम उसका सत्य है, वही संसार का रचनहार है, सर्वशक्तिमान है, उसे कोई भय नहीं अर्थात् कर्म दोष से परे है, सब पर एक समान दृष्टि होने के कारण वह प्रेमस्वरूप है, अतः वैर भावना से रहित है, वह कालातीत ब्रह्म-मूर्ति सदा अमर है, जन्म-मरण से रहित है, स्वयंभू अर्थात् स्वयं ही प्रकाशमान हुआ है, उसे गुरु-कृपा से ही पाया जा सकता है।
ਸਲੋਕੁ ॥
सलोकु ॥
श्लोक॥
ਸਾਜਨ ਤੇਰੇ ਚਰਨ ਕੀ ਹੋਇ ਰਹਾ ਸਦ ਧੂਰਿ ॥
साजन तेरे चरन की होइ रहा सद धूरि ॥
ईश्वर ! मैं सर्वदा तेरे चरणों की धूल बना रहूँ।
ਨਾਨਕ ਸਰਣਿ ਤੁਹਾਰੀਆ ਪੇਖਉ ਸਦਾ ਹਜੂਰਿ ॥੧॥
नानक सरणि तुहारीआ पेखउ सदा हजूरि ॥१॥
गुरु नानक कहते हैं केि मैं तेरी शरण में सदा तुझे प्रत्यक्ष देखता रहूँ॥ १॥
ਸਬਦ ॥
सबद ॥
शब्द॥
ਪਿਛਹੁ ਰਾਤੀ ਸਦੜਾ ਨਾਮੁ ਖਸਮ ਕਾ ਲੇਹਿ ॥
पिछहु राती सदड़ा नामु खसम का लेहि ॥
जिन लोगों को रात्रि के पिछले प्रहर में आहान होता है, वही परमात्मा का नाम स्मरण करते हैं।
ਖੇਮੇ ਛਤ੍ਰ ਸਰਾਇਚੇ ਦਿਸਨਿ ਰਥ ਪੀੜੇ ॥
खेमे छत्र सराइचे दिसनि रथ पीड़े ॥
उनके लिए छत्र, खेमें, कनातें एवं सुसज्जित रथ हर वक्त तैयार रहते हैं अर्थात् उन्हें ही यश मिलता है।
ਜਿਨੀ ਤੇਰਾ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ਤਿਨ ਕਉ ਸਦਿ ਮਿਲੇ ॥੧॥
जिनी तेरा नामु धिआइआ तिन कउ सदि मिले ॥१॥
हे परमेश्वर ! जिन्होंने तेरे नाम का चिंतन किया है, उन्हें बुलाकर तू स्वयं ही दे देता है भाव उनकी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।॥ १॥
ਬਾਬਾ ਮੈ ਕਰਮਹੀਣ ਕੂੜਿਆਰ ॥
बाबा मै करमहीण कूड़िआर ॥
हे बाबा ! मैं भाग्यहीन एवं झूठा हूँ।
ਨਾਮੁ ਨ ਪਾਇਆ ਤੇਰਾ ਅੰਧਾ ਭਰਮਿ ਭੂਲਾ ਮਨੁ ਮੇਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
नामु न पाइआ तेरा अंधा भरमि भूला मनु मेरा ॥१॥ रहाउ ॥
मैंने तेरा नाम प्राप्त नहीं किया, मेरा अंधा मन भम में ही भटकता रहा।॥ १॥ रहाउ॥
ਸਾਦ ਕੀਤੇ ਦੁਖ ਪਰਫੁੜੇ ਪੂਰਬਿ ਲਿਖੇ ਮਾਇ ॥
साद कीते दुख परफुड़े पूरबि लिखे माइ ॥
हे माँ! पूर्व जन्म में किए कर्मानुसार मैंने जितने भी माया के स्वाद भोगे हैं, मेरे दुखों में उतनी ही वृद्धि हो गई।
ਸੁਖ ਥੋੜੇ ਦੁਖ ਅਗਲੇ ਦੂਖੇ ਦੂਖਿ ਵਿਹਾਇ ॥੨॥
सुख थोड़े दुख अगले दूखे दूखि विहाइ ॥२॥
मेरी किस्मत में सुख थोड़े हैं, परन्तु दुख अधिक हैं, मेरा जीवन दुखों में ही व्यतीत हो गया है॥ २॥
ਵਿਛੁੜਿਆ ਕਾ ਕਿਆ ਵੀਛੁੜੈ ਮਿਲਿਆ ਕਾ ਕਿਆ ਮੇਲੁ ॥
विछुड़िआ का किआ वीछुड़ै मिलिआ का किआ मेलु ॥
जो परमात्मा से बिछुड़े हुए हैं, उनके लिए अन्य कौन-सा वियोग इससे अधिक दुखदायक है ? जो उससे मिले हुए हैं, उनके लिए अन्य कौन-सा मिलाप शेष रह गया है?
ਸਾਹਿਬੁ ਸੋ ਸਾਲਾਹੀਐ ਜਿਨਿ ਕਰਿ ਦੇਖਿਆ ਖੇਲੁ ॥੩॥
साहिबु सो सालाहीऐ जिनि करि देखिआ खेलु ॥३॥
सो उस परमेश्वर की स्तुति करो, जिसने यह जगत् रूपी खेल रचकर इसकी देखभाल की है॥ ३॥
ਸੰਜੋਗੀ ਮੇਲਾਵੜਾ ਇਨਿ ਤਨਿ ਕੀਤੇ ਭੋਗ ॥
संजोगी मेलावड़ा इनि तनि कीते भोग ॥
संयोग से जीवों का मिलाप हुआ है परन्तु इन्होंने सांसारिक पदार्थों का ही भोग किया।
ਵਿਜੋਗੀ ਮਿਲਿ ਵਿਛੁੜੇ ਨਾਨਕ ਭੀ ਸੰਜੋਗ ॥੪॥੧॥
विजोगी मिलि विछुड़े नानक भी संजोग ॥४॥१॥
अब मिलन के पश्चात् वियोग से उससे बिछुड़ गए हैं, उनका फिर संयोग हो सकता है॥ ४॥ १॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੧ ॥
मारू महला १ ॥
मारू महला १॥
ਮਿਲਿ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਪਿੰਡੁ ਕਮਾਇਆ ॥
मिलि मात पिता पिंडु कमाइआ ॥
माता-पिता के संयोग से शरीर बना तो
ਤਿਨਿ ਕਰਤੈ ਲੇਖੁ ਲਿਖਾਇਆ ॥
तिनि करतै लेखु लिखाइआ ॥
परमेश्वर ने उसमें भाग्य लिख दिया।
ਲਿਖੁ ਦਾਤਿ ਜੋਤਿ ਵਡਿਆਈ ॥
लिखु दाति जोति वडिआई ॥
भाग्यलेख एवं प्राणों की देन ईश्वर का बड़प्पन था।
ਮਿਲਿ ਮਾਇਆ ਸੁਰਤਿ ਗਵਾਈ ॥੧॥
मिलि माइआ सुरति गवाई ॥१॥
परन्तु माया में लीन होकर सारी सुधबुध ही गंवा दी॥ १॥
ਮੂਰਖ ਮਨ ਕਾਹੇ ਕਰਸਹਿ ਮਾਣਾ ॥
मूरख मन काहे करसहि माणा ॥
अरे मूर्ख मन ! तू क्योंकर अभिमान करता है ?
ਉਠਿ ਚਲਣਾ ਖਸਮੈ ਭਾਣਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
उठि चलणा खसमै भाणा ॥१॥ रहाउ ॥
चूंकि परमात्मा की इच्छानुसार एक न एक दिन जगत् में से चले जाना है।१॥ रहाउ॥
ਤਜਿ ਸਾਦ ਸਹਜ ਸੁਖੁ ਹੋਈ ॥
तजि साद सहज सुखु होई ॥
स्वादों को छोड़ने से ही सहज सुख प्राप्त होता है।
ਘਰ ਛਡਣੇ ਰਹੈ ਨ ਕੋਈ ॥
घर छडणे रहै न कोई ॥
कोई भी जीव सदा के लिए नहीं रहता अपितु यह शरीर रूपी घर छोड़ना ही पड़ता है।
ਕਿਛੁ ਖਾਜੈ ਕਿਛੁ ਧਰਿ ਜਾਈਐ ॥
किछु खाजै किछु धरि जाईऐ ॥
मनुष्य को अपना कुछ धन (शुभ कर्म) खर्च कर लेना चाहिए और कुछ संभाल कर यहाँ ही रखना चाहिए
ਜੇ ਬਾਹੁੜਿ ਦੁਨੀਆ ਆਈਐ ॥੨॥
जे बाहुड़ि दुनीआ आईऐ ॥२॥
यदि उसे पुनः दुनिया में आना हो तो॥ २॥
ਸਜੁ ਕਾਇਆ ਪਟੁ ਹਢਾਏ ॥
सजु काइआ पटु हढाए ॥
मनुष्य अपने जीवन में शरीर को सुन्दर बनाकर रेशमी कपड़े धारण करता है और
ਫੁਰਮਾਇਸਿ ਬਹੁਤੁ ਚਲਾਏ ॥
फुरमाइसि बहुतु चलाए ॥
दूसरों पर हुक्म बहुत चलाता रहता है।
ਕਰਿ ਸੇਜ ਸੁਖਾਲੀ ਸੋਵੈ ॥
करि सेज सुखाली सोवै ॥
वह सुखदायक सेज बनाकर उस पर सोता है।
ਹਥੀ ਪਉਦੀ ਕਾਹੇ ਰੋਵੈ ॥੩॥
हथी पउदी काहे रोवै ॥३॥
जब उसके प्राण यमदूतों के हाथों में आ जाते हैं, तब क्यों रोता है॥ ३॥
ਘਰ ਘੁੰਮਣਵਾਣੀ ਭਾਈ ॥
घर घुमणवाणी भाई ॥
घर के झंझट तो भंवर के समान हैं।