ਪੂਰੈ ਸਤਿਗੁਰਿ ਸੋਝੀ ਪਾਈ ॥
पूरै सतिगुरि सोझी पाई ॥
पूर्ण सतिगुरु ने यही सूझ प्रदान की है कि
ਏਕੋ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਈ ॥
एको नामु मंनि वसाई ॥
एक परमात्मा का नाम मन में बसाओ,”
ਨਾਮੁ ਜਪੀ ਤੈ ਨਾਮੁ ਧਿਆਈ ਮਹਲੁ ਪਾਇ ਗੁਣ ਗਾਹਾ ਹੇ ॥੧੧॥
नामु जपी तै नामु धिआई महलु पाइ गुण गाहा हे ॥११॥
नाम जपो, नाम का ध्यान करो और गुणगान करके मंजिल पा लो॥ ११॥
ਸੇਵਕ ਸੇਵਹਿ ਮੰਨਿ ਹੁਕਮੁ ਅਪਾਰਾ ॥
सेवक सेवहि मंनि हुकमु अपारा ॥
प्रभु का अपार हुक्म मानकर सेवक उसकी ही सेवा करते हैं।
ਮਨਮੁਖ ਹੁਕਮੁ ਨ ਜਾਣਹਿ ਸਾਰਾ ॥
मनमुख हुकमु न जाणहि सारा ॥
लेकिन मनमुख जीव हुक्म के महत्व को नहीं जानते।
ਹੁਕਮੇ ਮੰਨੇ ਹੁਕਮੇ ਵਡਿਆਈ ਹੁਕਮੇ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ਹੇ ॥੧੨॥
हुकमे मंने हुकमे वडिआई हुकमे वेपरवाहा हे ॥१२॥
जो उसके हुक्म को मानता है, वह हुक्म से ही बड़ाई प्राप्त करता है और उसके हुक्म से बेपरवाह हो जाता है॥ १२॥
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹੁਕਮੁ ਪਛਾਣੈ ॥
गुर परसादी हुकमु पछाणै ॥
गुरु की कृपा से जो हुक्म को पहचान लेता है,”
ਧਾਵਤੁ ਰਾਖੈ ਇਕਤੁ ਘਰਿ ਆਣੈ ॥
धावतु राखै इकतु घरि आणै ॥
वह भटकते मन को टिकाकर एकाग्रचित कर लेता है।
ਨਾਮੇ ਰਾਤਾ ਸਦਾ ਬੈਰਾਗੀ ਨਾਮੁ ਰਤਨੁ ਮਨਿ ਤਾਹਾ ਹੇ ॥੧੩॥
नामे राता सदा बैरागी नामु रतनु मनि ताहा हे ॥१३॥
नाम में लीन रहने वाला वैराग्यवान बना रहता है और नाम रत्न उसके मन में स्थित हो जाता है॥ १३॥
ਸਭ ਜਗ ਮਹਿ ਵਰਤੈ ਏਕੋ ਸੋਈ ॥
सभ जग महि वरतै एको सोई ॥
समूचे जगत् में एक ईश्वर ही व्याप्त है और
ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਪਰਗਟੁ ਹੋਈ ॥
गुर परसादी परगटु होई ॥
गुरु की कृपा से ही वह प्रगट होता है।
ਸਬਦੁ ਸਲਾਹਹਿ ਸੇ ਜਨ ਨਿਰਮਲ ਨਿਜ ਘਰਿ ਵਾਸਾ ਤਾਹਾ ਹੇ ॥੧੪॥
सबदु सलाहहि से जन निरमल निज घरि वासा ताहा हे ॥१४॥
जो ब्रह्म-शब्द की प्रशंसा करते हैं, वही भक्तजन निर्मल हैं और उनका आत्म-स्वरूप में निवास हो जाता है।॥१४॥
ਸਦਾ ਭਗਤ ਤੇਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥
सदा भगत तेरी सरणाई ॥
हे परमेश्वर ! भक्त सदैव तेरी शरण में रहते हैं,”
ਅਗਮ ਅਗੋਚਰ ਕੀਮਤਿ ਨਹੀ ਪਾਈ ॥
अगम अगोचर कीमति नही पाई ॥
तू अगम्य, मन-वाणी से परे है, तेरा मूल्यांकन नहीं किया जा सकता।
ਜਿਉ ਤੁਧੁ ਭਾਵਹਿ ਤਿਉ ਤੂ ਰਾਖਹਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮੁ ਧਿਆਹਾ ਹੇ ॥੧੫॥
जिउ तुधु भावहि तिउ तू राखहि गुरमुखि नामु धिआहा हे ॥१५॥
जैसे तू चाहता है, वैसे ही जीवों को रखता है और गुरु के माध्यम से तेरे नाम का ध्यान होता है॥ १५॥
ਸਦਾ ਸਦਾ ਤੇਰੇ ਗੁਣ ਗਾਵਾ ॥ ਸਚੇ ਸਾਹਿਬ ਤੇਰੈ ਮਨਿ ਭਾਵਾ ॥
सदा सदा तेरे गुण गावा ॥ सचे साहिब तेरै मनि भावा ॥
हे सच्चे मालिक ! मैं सदा तेरा गुणगान करता रहूँ ताकि तेरे मन को भा जाऊँ।
ਨਾਨਕੁ ਸਾਚੁ ਕਹੈ ਬੇਨੰਤੀ ਸਚੁ ਦੇਵਹੁ ਸਚਿ ਸਮਾਹਾ ਹੇ ॥੧੬॥੧॥੧੦॥
नानकु साचु कहै बेनंती सचु देवहु सचि समाहा हे ॥१६॥१॥१०॥
नानक सच्ची विनती करता है कि मुझे सत्य-नाम प्रदान करो, ताकि मैं सत्य में विलीन हो जाऊँ॥ १६॥ १॥ १०॥
ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੩ ॥
मारू महला ३ ॥
मारू महला ३॥
ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਨਿ ਸੇ ਵਡਭਾਗੀ ॥
सतिगुरु सेवनि से वडभागी ॥
जो सतगुरु की सेवा करते हैं, वही खुशकिस्मत हैं और
ਅਨਦਿਨੁ ਸਾਚਿ ਨਾਮਿ ਲਿਵ ਲਾਗੀ ॥
अनदिनु साचि नामि लिव लागी ॥
रात-दिन उनकी सच्चे-नाम में लगन लगी रहती है।
ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਰਵਿਆ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਓਮਾਹਾ ਹੇ ॥੧॥
सदा सुखदाता रविआ घट अंतरि सबदि सचै ओमाहा हे ॥१॥
सुख देने वाला परमात्मा सदैव उनके हृदय में रमण करता है और उनके मन में सच्चे शब्द की उमंग बनी रहती है॥ १॥
ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਤਾ ਗੁਰੂ ਮਿਲਾਏ ॥
नदरि करे ता गुरू मिलाए ॥
यदि कृपा करे तो वह जीव को गुरु से मिला देता है और
ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥
हरि का नामु मंनि वसाए ॥
गुरु परमात्मा का नाम मन में बसा देता है।
ਹਰਿ ਮਨਿ ਵਸਿਆ ਸਦਾ ਸੁਖਦਾਤਾ ਸਬਦੇ ਮਨਿ ਓਮਾਹਾ ਹੇ ॥੨॥
हरि मनि वसिआ सदा सुखदाता सबदे मनि ओमाहा हे ॥२॥
जब सदा सुख देने वाला परमेश्वर मन में बस जाता है तो ही शब्द द्वारा उसके मन में भक्ति के लिए उत्साह उत्पन्न होता है।॥ २॥
ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੇ ਤਾ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਏ ॥
क्रिपा करे ता मेलि मिलाए ॥
अगर कृपा-दृष्टि कर दे तो गुरु से मिलाकर स्वयं में मिला लेता है।
ਹਉਮੈ ਮਮਤਾ ਸਬਦਿ ਜਲਾਏ ॥
हउमै ममता सबदि जलाए ॥
जीव शब्द-गुरु द्वारा अहम् एवं ममता को जला देता है।
ਸਦਾ ਮੁਕਤੁ ਰਹੈ ਇਕ ਰੰਗੀ ਨਾਹੀ ਕਿਸੈ ਨਾਲਿ ਕਾਹਾ ਹੇ ॥੩॥
सदा मुकतु रहै इक रंगी नाही किसै नालि काहा हे ॥३॥
एक प्रभु के प्रेम में लीन वह सदैव मोह-माया से मुक्त रहता है और उसका किसी से कोई वैर-विरोध नहीं रहता॥ ३॥
ਬਿਨੁ ਸਤਿਗੁਰ ਸੇਵੇ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰਾ ॥
बिनु सतिगुर सेवे घोर अंधारा ॥
सतगुरु की सेवा के बिना अज्ञानता का घोर अंधेरा बना रहता है और
ਬਿਨੁ ਸਬਦੈ ਕੋਇ ਨ ਪਾਵੈ ਪਾਰਾ ॥
बिनु सबदै कोइ न पावै पारा ॥
शब्द के बिना कोई संसार-सागर में से पार नहीं हो सकता।
ਜੋ ਸਬਦਿ ਰਾਤੇ ਮਹਾ ਬੈਰਾਗੀ ਸੋ ਸਚੁ ਸਬਦੇ ਲਾਹਾ ਹੇ ॥੪॥
जो सबदि राते महा बैरागी सो सचु सबदे लाहा हे ॥४॥
जो शब्द में लीन रहते हैं वही महा वैरागी हैं और शब्द द्वारा लाभ पाते हैं।॥ ४॥
ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਕਰਤੈ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿ ਪਾਇਆ ॥
दुखु सुखु करतै धुरि लिखि पाइआ ॥
दुख-सुख तो परमात्मा ने जन्म से पूर्व ही भाग्य में लिखा हुआ है और
ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਆਪਿ ਵਰਤਾਇਆ ॥
दूजा भाउ आपि वरताइआ ॥
उसने ही द्वैतभाव का प्रसार किया है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੁ ਅਲਿਪਤੋ ਵਰਤੈ ਮਨਮੁਖ ਕਾ ਕਿਆ ਵੇਸਾਹਾ ਹੇ ॥੫॥
गुरमुखि होवै सु अलिपतो वरतै मनमुख का किआ वेसाहा हे ॥५॥
जो गुरुमुख बन जाता है, वह मोह-माया से निर्लिप्त रहता है, किन्तु मनमुखी जीव का अल्पमात्र भी विश्वास नहीं किया जा सकता॥ ५॥
ਸੇ ਮਨਮੁਖ ਜੋ ਸਬਦੁ ਨ ਪਛਾਣਹਿ ॥
से मनमुख जो सबदु न पछाणहि ॥
मनमुख वही हैं जो शब्द के भेद को नहीं पहचानते और
ਗੁਰ ਕੇ ਭੈ ਕੀ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਹਿ ॥
गुर के भै की सार न जाणहि ॥
गुरु के भय का महत्व नहीं जानते।
ਭੈ ਬਿਨੁ ਕਿਉ ਨਿਰਭਉ ਸਚੁ ਪਾਈਐ ਜਮੁ ਕਾਢਿ ਲਏਗਾ ਸਾਹਾ ਹੇ ॥੬॥
भै बिनु किउ निरभउ सचु पाईऐ जमु काढि लएगा साहा हे ॥६॥
भय के बिना निर्भय सत्य कैसे पाया जा सकता है ? यम मनमुख की जीवन-साँसे ही निकाल लेगा।॥ ६॥
ਅਫਰਿਓ ਜਮੁ ਮਾਰਿਆ ਨ ਜਾਈ ॥
अफरिओ जमु मारिआ न जाई ॥
भयंकर यम को मारा नहीं जा सकता किन्तु
ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦੇ ਨੇੜਿ ਨ ਆਈ ॥
गुर कै सबदे नेड़ि न आई ॥
गुरु के शब्द से वह जीव के निकट नहीं आता।
ਸਬਦੁ ਸੁਣੇ ਤਾ ਦੂਰਹੁ ਭਾਗੈ ਮਤੁ ਮਾਰੇ ਹਰਿ ਜੀਉ ਵੇਪਰਵਾਹਾ ਹੇ ॥੭॥
सबदु सुणे ता दूरहु भागै मतु मारे हरि जीउ वेपरवाहा हे ॥७॥
जब शब्द सुनता है तो दूर से ही भाग जाता है कि शायद बेपरवाह परमेश्वर मुझे समाप्त न कर दे॥ ७॥
ਹਰਿ ਜੀਉ ਕੀ ਹੈ ਸਭ ਸਿਰਕਾਰਾ ॥
हरि जीउ की है सभ सिरकारा ॥
समूचे विश्व में परमात्मा का ही शासन है, उसका हुक्म सब पर चलता है,”
ਏਹੁ ਜਮੁ ਕਿਆ ਕਰੇ ਵਿਚਾਰਾ ॥
एहु जमु किआ करे विचारा ॥
फिर यह यम बेचारा क्या कर सकता है ?
ਹੁਕਮੀ ਬੰਦਾ ਹੁਕਮੁ ਕਮਾਵੈ ਹੁਕਮੇ ਕਢਦਾ ਸਾਹਾ ਹੇ ॥੮॥
हुकमी बंदा हुकमु कमावै हुकमे कढदा साहा हे ॥८॥
यह तो उसका हुक्म मानने वाला सेवक है, हुक्म का पालन करता है और हुक्म से ही जीव की जीवन-सॉसें निकलता है॥ ८॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਾਚੈ ਕੀਆ ਅਕਾਰਾ ॥
गुरमुखि साचै कीआ अकारा ॥
गुरुमुख को ज्ञान है कि सच्चे परमेश्वर ने ही सृष्टि-रचना की है और
ਗੁਰਮੁਖਿ ਪਸਰਿਆ ਸਭੁ ਪਾਸਾਰਾ ॥
गुरमुखि पसरिआ सभु पासारा ॥
समूचा जगत्-प्रसार उसका ही है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਹੋਵੈ ਸੋ ਸਚੁ ਬੂਝੈ ਸਬਦਿ ਸਚੈ ਸੁਖੁ ਤਾਹਾ ਹੇ ॥੯॥
गुरमुखि होवै सो सचु बूझै सबदि सचै सुखु ताहा हे ॥९॥
जो गुरुमुख होता है, वह सत्य को बूझ लेता है और सच्चे शब्द द्वारा ही उसे सुख उपलब्ध होता है।॥ ९॥
ਗੁਰਮੁਖਿ ਜਾਤਾ ਕਰਮਿ ਬਿਧਾਤਾ ॥
गुरमुखि जाता करमि बिधाता ॥
गुरुमुख समझ लेता है कि विधाता कर्मो के अनुसार ही फल प्रदान करता है और