Hindi Page 428

ਘਰ ਹੀ ਸੋ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਸਚੈ ਸਬਦਿ ਵੀਚਾਰਿ ॥੧॥
घर ही सो पिरु पाइआ सचै सबदि वीचारि ॥१॥
सच्चे शब्द का चिंतन करने से उन्हें अपने हृदय घर में प्रभु मिल गया है। १॥

ਅਵਗਣ ਗੁਣੀ ਬਖਸਾਇਆ ਹਰਿ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਈ ॥
अवगण गुणी बखसाइआ हरि सिउ लिव लाई ॥
उन्होंने अपने गुणों द्वारा अपने अवगुणों को क्षमा करवा लिया है और हरि से लगन लगा ली है।

ਹਰਿ ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਕਾਮਣੀ ਗੁਰਿ ਮੇਲਿ ਮਿਲਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
हरि वरु पाइआ कामणी गुरि मेलि मिलाई ॥१॥ रहाउ ॥
इस तरह जीव-स्त्री ने हरि-प्रभु को वर के रूप में प्राप्त कर लिया है और यह मिलन गुरु ने करवाया है। १ ॥रहाउ ॥

ਇਕਿ ਪਿਰੁ ਹਦੂਰਿ ਨ ਜਾਣਨੑੀ ਦੂਜੈ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਇ ॥
इकि पिरु हदूरि न जाणन्ही दूजै भरमि भुलाइ ॥
कुछ जीव-स्त्रियाँ पति-प्रभु को अपने आस-पास नहीं जानती और द्वैतभाव एवं दुविधा में पड़कर कुमार्गगामी हुई रहती हैं।

ਕਿਉ ਪਾਇਨੑਿ ਡੋਹਾਗਣੀ ਦੁਖੀ ਰੈਣਿ ਵਿਹਾਇ ॥੨॥
किउ पाइन्हि डोहागणी दुखी रैणि विहाइ ॥२॥
दुहागिन कैसे अपने पति-प्रभु को मिल सकती है। उसकी जीवन रात्रि दु:ख में ही व्यतीत हो जाती है। २ ।

ਜਿਨ ਕੈ ਮਨਿ ਸਚੁ ਵਸਿਆ ਸਚੀ ਕਾਰ ਕਮਾਇ ॥
जिन कै मनि सचु वसिआ सची कार कमाइ ॥
जिनके मन में सत्य निवास करता है, वे सत्य की कमाई करती हैं।

ਅਨਦਿਨੁ ਸੇਵਹਿ ਸਹਜ ਸਿਉ ਸਚੇ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥੩॥
अनदिनु सेवहि सहज सिउ सचे माहि समाइ ॥३॥
वह रात-दिन सहजता से प्रभु की सेवा करती रहती हैं और सत्य में समा जाती हैं॥ ३॥

ਦੋਹਾਗਣੀ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਈਆ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਹਿ ॥
दोहागणी भरमि भुलाईआ कूड़ु बोलि बिखु खाहि ॥
दुहागिन जीव-स्त्रियाँ दुविधा में भटकती हैं और झूठ बोलकर माया के मोह का विष खाती हैं।

ਪਿਰੁ ਨ ਜਾਣਨਿ ਆਪਣਾ ਸੁੰਞੀ ਸੇਜ ਦੁਖੁ ਪਾਹਿ ॥੪॥
पिरु न जाणनि आपणा सुंञी सेज दुखु पाहि ॥४॥
वह अपने प्राणनाथ को नहीं जानती और सूनी सेज पर दु:ख सहन करती हैं। ४ ।

ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਹੈ ਮਤੁ ਮਨ ਭਰਮਿ ਭੁਲਾਹਿ ॥
सचा साहिबु एकु है मतु मन भरमि भुलाहि ॥
हे मेरे मन ! सच्चा साहिब एक प्रभु ही है, इसलिए तुम दुविधा में कुमार्गगामी होकर भटक मत जाना।

ਗੁਰ ਪੂਛਿ ਸੇਵਾ ਕਰਹਿ ਸਚੁ ਨਿਰਮਲੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਹਿ ॥੫॥
गुर पूछि सेवा करहि सचु निरमलु मंनि वसाहि ॥५॥
गुरु से पूछ कर अपने प्रभु की निष्ठा से सेवा करो और निर्मल सत्य नाम को अपने मन में बसाओ ॥ ५॥

ਸੋਹਾਗਣੀ ਸਦਾ ਪਿਰੁ ਪਾਇਆ ਹਉਮੈ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥
सोहागणी सदा पिरु पाइआ हउमै आपु गवाइ ॥
सुहागिन जीव-स्त्री सदा अपने पति-प्रभु को पा लेती है और अपने अहंकार एवं द्वैतवाद को दूर कर देती है।

ਪਿਰ ਸੇਤੀ ਅਨਦਿਨੁ ਗਹਿ ਰਹੀ ਸਚੀ ਸੇਜ ਸੁਖੁ ਪਾਇ ॥੬॥
पिर सेती अनदिनु गहि रही सची सेज सुखु पाइ ॥६॥
वह रात-दिन अपने पति-प्रभु से जुड़ी रहती है और सत्य की सेज पर सुख प्राप्त करती है॥ ६॥

ਮੇਰੀ ਮੇਰੀ ਕਰਿ ਗਏ ਪਲੈ ਕਿਛੁ ਨ ਪਾਇ ॥
मेरी मेरी करि गए पलै किछु न पाइ ॥
जो इस दुनिया में यही कहते रहते हैं कि यह धन मेरा है, यह सम्पत्ति मेरी है, उनके पास कुछ भी नहीं रहता और बिना कुछ प्राप्त किए ही संसार से चले जाते हैं।

ਮਹਲੁ ਨਾਹੀ ਡੋਹਾਗਣੀ ਅੰਤਿ ਗਈ ਪਛੁਤਾਇ ॥੭॥
महलु नाही डोहागणी अंति गई पछुताइ ॥७॥
दुहागिन जीव-स्त्री अपने प्रभु के महल को प्राप्त नहीं होती और अंततः पश्चाताप करती हुई चली जाती है। ७ ॥

ਸੋ ਪਿਰੁ ਮੇਰਾ ਏਕੁ ਹੈ ਏਕਸੁ ਸਿਉ ਲਿਵ ਲਾਇ ॥
सो पिरु मेरा एकु है एकसु सिउ लिव लाइ ॥
मेरा प्रियतम प्रभु केवल एक ही है और मैं सिर्फ एक से ही प्रेम करता हूँ।

ਨਾਨਕ ਜੇ ਸੁਖੁ ਲੋੜਹਿ ਕਾਮਣੀ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇ ॥੮॥੧੧॥੩੩॥
नानक जे सुखु लोड़हि कामणी हरि का नामु मंनि वसाइ ॥८॥११॥३३॥
हे नानक ! यदि जीव-स्त्री सुख चाहती है तो उसे हरि का नाम अपने मन में बसाना चाहिए। ॥८॥११॥३३॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਜਿਨੑਾ ਚਖਾਇਓਨੁ ਰਸੁ ਆਇਆ ਸਹਜਿ ਸੁਭਾਇ ॥
अम्रितु जिन्हा चखाइओनु रसु आइआ सहजि सुभाइ ॥
जिन्हें भगवान ने नामामृत स्वयं चखाया है, उन्हें सहज स्वभाव ही स्वाद प्राप्त हुआ है।

ਸਚਾ ਵੇਪਰਵਾਹੁ ਹੈ ਤਿਸ ਨੋ ਤਿਲੁ ਨ ਤਮਾਇ ॥੧॥
सचा वेपरवाहु है तिस नो तिलु न तमाइ ॥१॥
वह सच्चा पातशाह बेपरवाह है और उसे तिल मात्र भी लोभ-लालच नहीं ॥ १ ॥

ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਸਚਾ ਵਰਸਦਾ ਗੁਰਮੁਖਾ ਮੁਖਿ ਪਾਇ ॥
अम्रितु सचा वरसदा गुरमुखा मुखि पाइ ॥
भगवान का सच्चा अमृत सर्वत्र बरस रहा है लेकिन यह अमृत गुरुमुख लोगों के मुँह में पड़ रहा है।

ਮਨੁ ਸਦਾ ਹਰੀਆਵਲਾ ਸਹਜੇ ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
मनु सदा हरीआवला सहजे हरि गुण गाइ ॥१॥ रहाउ ॥
गुरुमुखों का मन सदैव खिला रहता है और वे सहज ही भगवान का गुणगान करते रहते हैं। १॥ रहाउ ॥

ਮਨਮੁਖਿ ਸਦਾ ਦੋਹਾਗਣੀ ਦਰਿ ਖੜੀਆ ਬਿਲਲਾਹਿ ॥
मनमुखि सदा दोहागणी दरि खड़ीआ बिललाहि ॥
मनमुख जीव-स्त्रियाँ सदा दुहागिन रहती हैं और भगवान के द्वार पर खड़ी विलाप करती रहती हैं।

ਜਿਨੑਾ ਪਿਰ ਕਾ ਸੁਆਦੁ ਨ ਆਇਓ ਜੋ ਧੁਰਿ ਲਿਖਿਆ ਸੋੁ ਕਮਾਹਿ ॥੨॥
जिन्हा पिर का सुआदु न आइओ जो धुरि लिखिआ सो कमाहि ॥२॥
जिन्हें पति-परमेश्वर के मिलन का स्वाद नहीं मिला, वे वही कर्म करती रहती हैं, जो उनके लिए प्रारम्भ से लिखा हुआ है। २॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਬੀਜੇ ਸਚੁ ਜਮੈ ਸਚੁ ਨਾਮੁ ਵਾਪਾਰੁ ॥
गुरमुखि बीजे सचु जमै सचु नामु वापारु ॥
गुरुमुख हृदय रूपी खेत में सत्य नाम का बीज बोते हैं और जब यह अंकुरित हो जाता है तो वे केवल सत्यनाम का ही व्यापार करते हैं।

ਜੋ ਇਤੁ ਲਾਹੈ ਲਾਇਅਨੁ ਭਗਤੀ ਦੇਇ ਭੰਡਾਰ ॥੩॥
जो इतु लाहै लाइअनु भगती देइ भंडार ॥३॥
जिन लोगों को भगवान ने इस लाभप्रद कार्य में लगाया है, उन्हें वह अपनी भक्ति का भण्डार प्रदान करता है। ३॥

ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸੋਹਾਗਣੀ ਭੈ ਭਗਤਿ ਸੀਗਾਰਿ ॥
गुरमुखि सदा सोहागणी भै भगति सीगारि ॥
गुरुमुख जीव-स्त्री सदा सुहागिन है, उसने प्रभु-भय एवं भक्ति का श्रृंगार किया हुआ है।

ਅਨਦਿਨੁ ਰਾਵਹਿ ਪਿਰੁ ਆਪਣਾ ਸਚੁ ਰਖਹਿ ਉਰ ਧਾਰਿ ॥੪॥
अनदिनु रावहि पिरु आपणा सचु रखहि उर धारि ॥४॥
वह रात-दिन अपने प्राणनाथ के साथ रमण करती है और सत्य को अपने हृदय के साथ लगाकर रखती है॥४॥

ਜਿਨੑਾ ਪਿਰੁ ਰਾਵਿਆ ਆਪਣਾ ਤਿਨੑਾ ਵਿਟਹੁ ਬਲਿ ਜਾਉ ॥
जिन्हा पिरु राविआ आपणा तिन्हा विटहु बलि जाउ ॥
में उन पर कुर्बान जाता हूँ, जिन्होंने अपने पति-प्रभु के साथ रमण किया है।

ਸਦਾ ਪਿਰ ਕੈ ਸੰਗਿ ਰਹਹਿ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇ ॥੫॥
सदा पिर कै संगि रहहि विचहु आपु गवाइ ॥५॥
अपने मन का अहंत्व नाश करके वह सदा अपने पति-परमेश्वर के साथ रहती हैं। ५ ।

ਤਨੁ ਮਨੁ ਸੀਤਲੁ ਮੁਖ ਉਜਲੇ ਪਿਰ ਕੈ ਭਾਇ ਪਿਆਰਿ ॥
तनु मनु सीतलु मुख उजले पिर कै भाइ पिआरि ॥
अपने पति-परमेश्वर के प्रेम के कारण उनका तन-मन शीतल एवं मुख उज्ज्वल बना रहता है।

ਸੇਜ ਸੁਖਾਲੀ ਪਿਰੁ ਰਵੈ ਹਉਮੈ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਮਾਰਿ ॥੬॥
सेज सुखाली पिरु रवै हउमै त्रिसना मारि ॥६॥
वे अपना अहंकार एवं तृष्णा का नाश करके सुखदायक सेज पर अपने पति-प्रभु के साथ रमण करती हैं। ६॥

ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਘਰਿ ਆਇਆ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰਿ ॥
करि किरपा घरि आइआ गुर कै हेति अपारि ॥
गुरु के अपार प्रेम के कारण प्रभु कृपा धारण करके जीव-स्त्री के हृदय घर में आ जाता है।

ਵਰੁ ਪਾਇਆ ਸੋਹਾਗਣੀ ਕੇਵਲ ਏਕੁ ਮੁਰਾਰਿ ॥੭॥
वरु पाइआ सोहागणी केवल एकु मुरारि ॥७॥
सुहागिन जीव-स्त्री को एक मुरारी प्रभु वर के रूप में प्राप्त हो जाता है॥ ७॥

ਸਭੇ ਗੁਨਹ ਬਖਸਾਇ ਲਇਓਨੁ ਮੇਲੇ ਮੇਲਣਹਾਰਿ ॥
सभे गुनह बखसाइ लइओनु मेले मेलणहारि ॥
गुरु उसके सारे गुनाह क्षमा कर देता है और मिलाने वाला उसे अपने साथ मिला लेता है।

ਨਾਨਕ ਆਖਣੁ ਆਖੀਐ ਜੇ ਸੁਣਿ ਧਰੇ ਪਿਆਰੁ ॥੮॥੧੨॥੩੪॥
नानक आखणु आखीऐ जे सुणि धरे पिआरु ॥८॥१२॥३४॥
हे नानक ! ऐसी स्तुतिगान की बात कहनी चाहिए, जिसे सुनकर तेरा स्वामी तुझसे प्रेम करने लग जाए। ॥ ८ ॥ १२॥ ३४॥

ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੩ ॥
आसा महला ३ ॥
आसा महला ३ ॥

ਸਤਿਗੁਰ ਤੇ ਗੁਣ ਊਪਜੈ ਜਾ ਪ੍ਰਭੁ ਮੇਲੈ ਸੋਇ ॥
सतिगुर ते गुण ऊपजै जा प्रभु मेलै सोइ ॥
जब प्रभु हमें सच्चे गुरु से मिला देता है तो हम गुरु से गुण प्राप्त करते हैं।

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