ਆਇਆ ਓਹੁ ਪਰਵਾਣੁ ਹੈ ਜਿ ਕੁਲ ਕਾ ਕਰੇ ਉਧਾਰੁ ॥
आइआ ओहु परवाणु है जि कुल का करे उधारु ॥
उसका ही जन्म सफल है, जो अपनी कुल का उद्धार करता है।
ਅਗੈ ਜਾਤਿ ਨ ਪੁਛੀਐ ਕਰਣੀ ਸਬਦੁ ਹੈ ਸਾਰੁ ॥
अगै जाति न पुछीऐ करणी सबदु है सारु ॥
आगे परलोक में किसी की जाति नहीं पूछी जाती, अपितु शुभ कर्म एवं शब्द का चिंतन ही श्रेष्ठ माना जाता है।
ਹੋਰੁ ਕੂੜੁ ਪੜਣਾ ਕੂੜੁ ਕਮਾਵਣਾ ਬਿਖਿਆ ਨਾਲਿ ਪਿਆਰੁ ॥
होरु कूड़ु पड़णा कूड़ु कमावणा बिखिआ नालि पिआरु ॥
अन्य पढ़ना, आचरण करना सब झूठ ही झूठ है और विषय-विकारों से प्रेम मात्र झूठ ही है।
ਅੰਦਰਿ ਸੁਖੁ ਨ ਹੋਵਈ ਮਨਮੁਖ ਜਨਮੁ ਖੁਆਰੁ ॥
अंदरि सुखु न होवई मनमुख जनमु खुआरु ॥
स्वेच्छाचारी के मन को सुख नहीं मिलता और उसका जन्म व्यर्थ ही बर्याद होता है।
ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਰਤੇ ਸੇ ਉਬਰੇ ਗੁਰ ਕੈ ਹੇਤਿ ਅਪਾਰਿ ॥੨॥
नानक नामि रते से उबरे गुर कै हेति अपारि ॥२॥
हे नानक ! गुरु के अपार प्रेम द्वारा हरि-नाम में लीन रहने वाले संसार-सागर से उबर गए हैं।॥ २॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਆਪੇ ਕਰਿ ਕਰਿ ਵੇਖਦਾ ਆਪੇ ਸਭੁ ਸਚਾ ॥
आपे करि करि वेखदा आपे सभु सचा ॥
ईश्वर स्वयं ही संसार बनाता है, स्वयं ही संभाल करता है और एकमात्र वही सत्य है।
ਜੋ ਹੁਕਮੁ ਨ ਬੂਝੈ ਖਸਮ ਕਾ ਸੋਈ ਨਰੁ ਕਚਾ ॥
जो हुकमु न बूझै खसम का सोई नरु कचा ॥
जो मालिक के हुक्म को नहीं समझता, वह आदमी कच्चा है।
ਜਿਤੁ ਭਾਵੈ ਤਿਤੁ ਲਾਇਦਾ ਗੁਰਮੁਖਿ ਹਰਿ ਸਚਾ ॥
जितु भावै तितु लाइदा गुरमुखि हरि सचा ॥
जिधर उपयुक्त लगता है, उधर ही सच्चा प्रभु लगा देता है।
ਸਭਨਾ ਕਾ ਸਾਹਿਬੁ ਏਕੁ ਹੈ ਗੁਰ ਸਬਦੀ ਰਚਾ ॥
सभना का साहिबु एकु है गुर सबदी रचा ॥
सबका मालिक एक ही है और शब्द-गुरु द्वारा ही जीव उसमें रचता है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਲਾਹੀਐ ਸਭਿ ਤਿਸ ਦੇ ਜਚਾ ॥
गुरमुखि सदा सलाहीऐ सभि तिस दे जचा ॥
गुरु के सान्निध्य में सदा उसका स्तुतिगान करो, सभी जीव उसके याचक हैं।
ਜਿਉ ਨਾਨਕ ਆਪਿ ਨਚਾਇਦਾ ਤਿਵ ਹੀ ਕੋ ਨਚਾ ॥੨੨॥੧॥ ਸੁਧੁ ॥
जिउ नानक आपि नचाइदा तिव ही को नचा ॥२२॥१॥ सुधु ॥
हे नानक ! जैसे परमात्मा जीवों को नचाता है, वैसे ही वे नाचते हैं।॥ २२॥ १॥ शुद्ध॥
ਮਾਰੂ ਵਾਰ ਮਹਲਾ ੫ ਡਖਣੇ ਮਃ ੫
मारू वार महला ५ डखणे मः ५
मारू वार महला ५ डखणे मः ५
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि॥
ਤੂ ਚਉ ਸਜਣ ਮੈਡਿਆ ਡੇਈ ਸਿਸੁ ਉਤਾਰਿ ॥
तू चउ सजण मैडिआ डेई सिसु उतारि ॥
हे मेरे सज्जन प्रभु ! अगर तू कहे तो मैं अपना शीश उतारकर तुझे भेंट कर दूँ।
ਨੈਣ ਮਹਿੰਜੇ ਤਰਸਦੇ ਕਦਿ ਪਸੀ ਦੀਦਾਰੁ ॥੧॥
नैण महिंजे तरसदे कदि पसी दीदारु ॥१॥
मेरे नयन तरस रहे हैं, कब तेरा दीदार होगा। १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਨੀਹੁ ਮਹਿੰਜਾ ਤਊ ਨਾਲਿ ਬਿਆ ਨੇਹ ਕੂੜਾਵੇ ਡੇਖੁ ॥
नीहु महिंजा तऊ नालि बिआ नेह कूड़ावे डेखु ॥
तेरे साथ ही मेरा प्रेम है, अन्य सब प्रेम झूठे ही देखे हैं।
ਕਪੜ ਭੋਗ ਡਰਾਵਣੇ ਜਿਚਰੁ ਪਿਰੀ ਨ ਡੇਖੁ ॥੨॥
कपड़ भोग डरावणे जिचरु पिरी न डेखु ॥२॥
जब तक प्रिय-प्रभु को न देख लूं, तब तक सभी कपड़े एवं भोग भयानक ही लगते हैं॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਉਠੀ ਝਾਲੂ ਕੰਤੜੇ ਹਉ ਪਸੀ ਤਉ ਦੀਦਾਰੁ ॥
उठी झालू कंतड़े हउ पसी तउ दीदारु ॥
हे स्वामी ! मैं सुबह उठती हूँ, ताकि तेरा दीदार पा सकूं।
ਕਾਜਲੁ ਹਾਰੁ ਤਮੋਲ ਰਸੁ ਬਿਨੁ ਪਸੇ ਹਭਿ ਰਸ ਛਾਰੁ ॥੩॥
काजलु हारु तमोल रसु बिनु पसे हभि रस छारु ॥३॥
तुझे देखे बिना यह काजल, हार, पान का रस सब कुछ मेरे लिए धूल के समान हैं॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी॥
ਤੂ ਸਚਾ ਸਾਹਿਬੁ ਸਚੁ ਸਚੁ ਸਭੁ ਧਾਰਿਆ ॥
तू सचा साहिबु सचु सचु सभु धारिआ ॥
हे परमात्मा ! तू ही सच्चा मालिक है, तूने सब परम सत्य ही धारण किया हुआ है।
ਗੁਰਮੁਖਿ ਕੀਤੋ ਥਾਟੁ ਸਿਰਜਿ ਸੰਸਾਰਿਆ ॥
गुरमुखि कीतो थाटु सिरजि संसारिआ ॥
इस संसार का निर्माण करके तूने गुरुमुखों के लिए भक्ति एवं सिमरन करने का स्थान बनाया है।
ਹਰਿ ਆਗਿਆ ਹੋਏ ਬੇਦ ਪਾਪੁ ਪੁੰਨੁ ਵੀਚਾਰਿਆ ॥
हरि आगिआ होए बेद पापु पुंनु वीचारिआ ॥
ईश्वर की आज्ञा से ही वेदों की उत्पति हुई, जिन्होंने पाप-पुण्य का विचार किया।
ਬ੍ਰਹਮਾ ਬਿਸਨੁ ਮਹੇਸੁ ਤ੍ਰੈ ਗੁਣ ਬਿਸਥਾਰਿਆ ॥
ब्रहमा बिसनु महेसु त्रै गुण बिसथारिआ ॥
ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव को बनाकर माया के तीन गुणों का विस्तार किया।
ਨਵ ਖੰਡ ਪ੍ਰਿਥਮੀ ਸਾਜਿ ਹਰਿ ਰੰਗ ਸਵਾਰਿਆ ॥
नव खंड प्रिथमी साजि हरि रंग सवारिआ ॥
नवखण्ड पृथ्वी का निर्माण करके परमात्मा ने उसे अनेक रंगों से सुन्दर बना दिया।
ਵੇਕੀ ਜੰਤ ਉਪਾਇ ਅੰਤਰਿ ਕਲ ਧਾਰਿਆ ॥
वेकी जंत उपाइ अंतरि कल धारिआ ॥
अनेक प्रकार के जीवों को पैदा करके उनमें जीवन-शक्ति स्थापित कर दी।
ਤੇਰਾ ਅੰਤੁ ਨ ਜਾਣੈ ਕੋਇ ਸਚੁ ਸਿਰਜਣਹਾਰਿਆ ॥
तेरा अंतु न जाणै कोइ सचु सिरजणहारिआ ॥
हे सच्चे सृजनहार ! कोई भी तेरा अन्त (रहस्य) नहीं जानता।
ਤੂ ਜਾਣਹਿ ਸਭ ਬਿਧਿ ਆਪਿ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਿਸਤਾਰਿਆ ॥੧॥
तू जाणहि सभ बिधि आपि गुरमुखि निसतारिआ ॥१॥
तू सब युक्तियाँ जानता है और स्वयं ही गुरुमुख का उद्धार करता है॥ १॥
ਡਖਣੇ ਮਃ ੫ ॥
डखणे मः ५ ॥
डखणे महला ५॥
ਜੇ ਤੂ ਮਿਤ੍ਰੁ ਅਸਾਡੜਾ ਹਿਕ ਭੋਰੀ ਨਾ ਵੇਛੋੜਿ ॥
जे तू मित्रु असाडड़ा हिक भोरी ना वेछोड़ि ॥
हे प्रभु ! अगर तू हमारा मित्र है तो हमें थोड़ी देर के लिए भी अपने से जुदा मत कर,”
ਜੀਉ ਮਹਿੰਜਾ ਤਉ ਮੋਹਿਆ ਕਦਿ ਪਸੀ ਜਾਨੀ ਤੋਹਿ ॥੧॥
जीउ महिंजा तउ मोहिआ कदि पसी जानी तोहि ॥१॥
तूने मेरा मन मोह लिया है, हे प्राणप्रिय ! कब तेरा दीदार होगा।॥ १॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਦੁਰਜਨ ਤੂ ਜਲੁ ਭਾਹੜੀ ਵਿਛੋੜੇ ਮਰਿ ਜਾਹਿ ॥
दुरजन तू जलु भाहड़ी विछोड़े मरि जाहि ॥
ओह दुर्जन ! तू प्रचण्ड अग्नि में जल जा, ओह वियोग ! तू मर ही जा।
ਕੰਤਾ ਤੂ ਸਉ ਸੇਜੜੀ ਮੈਡਾ ਹਭੋ ਦੁਖੁ ਉਲਾਹਿ ॥੨॥
कंता तू सउ सेजड़ी मैडा हभो दुखु उलाहि ॥२॥
हे पति-प्रभु ! तू मेरी हृदय रूपी सेज पर सो कर सब दुख-दर्द मिटा दे॥ २॥
ਮਃ ੫ ॥
मः ५ ॥
महला ५॥
ਦੁਰਜਨੁ ਦੂਜਾ ਭਾਉ ਹੈ ਵੇਛੋੜਾ ਹਉਮੈ ਰੋਗੁ ॥
दुरजनु दूजा भाउ है वेछोड़ा हउमै रोगु ॥
सच तो यही है कि द्वैतभाव ही दुर्जन है एवं अभिमान का रोग ही वियोग का कारण है।
ਸਜਣੁ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਜਿਸੁ ਮਿਲਿ ਕੀਚੈ ਭੋਗੁ ॥੩॥
सजणु सचा पातिसाहु जिसु मिलि कीचै भोगु ॥३॥
सच्चा बादशाह प्रभु ही सज्जन है, जिसे मिलकर आनंद मिलता है॥ ३॥
ਪਉੜੀ ॥
पउड़ी ॥
पउड़ी।
ਤੂ ਅਗਮ ਦਇਆਲੁ ਬੇਅੰਤੁ ਤੇਰੀ ਕੀਮਤਿ ਕਹੈ ਕਉਣੁ ॥
तू अगम दइआलु बेअंतु तेरी कीमति कहै कउणु ॥
हे ईश्वर ! तू अगम्य हैं, दया का सागर है, बेअन्त है, तेरी सही कीमत कौन आँक सकता है।
ਤੁਧੁ ਸਿਰਜਿਆ ਸਭੁ ਸੰਸਾਰੁ ਤੂ ਨਾਇਕੁ ਸਗਲ ਭਉਣ ॥
तुधु सिरजिआ सभु संसारु तू नाइकु सगल भउण ॥
तूने समूचे संसार का निर्माण किया है, तू सब लोकों का स्वामी है।
ਤੇਰੀ ਕੁਦਰਤਿ ਕੋਇ ਨ ਜਾਣੈ ਮੇਰੇ ਠਾਕੁਰ ਸਗਲ ਰਉਣ ॥
तेरी कुदरति कोइ न जाणै मेरे ठाकुर सगल रउण ॥
हे मेरे विश्वव्यापी ठाकुर ! तेरी शक्ति को कोई नहीं जानता।
ਤੁਧੁ ਅਪੜਿ ਕੋਇ ਨ ਸਕੈ ਤੂ ਅਬਿਨਾਸੀ ਜਗ ਉਧਰਣ ॥
तुधु अपड़ि कोइ न सकै तू अबिनासी जग उधरण ॥
तू अनश्वर है, जगत् का उद्धारक है, कोई भी तुझ तक पहुँच नहीं सकता।