ਜਿਸਹਿ ਉਧਾਰੇ ਨਾਨਕਾ ਸੋ ਸਿਮਰੇ ਸਿਰਜਣਹਾਰੁ ॥੧੫॥
जिसहि उधारे नानका सो सिमरे सिरजणहारु ॥१५॥
गुरु नानक फुरमाते हैं- जिसका वह उद्धार करता है, वह उस सृजनहार का स्मरण करता है॥१५॥
ਦੂਜੀ ਛੋਡਿ ਕੁਵਾਟੜੀ ਇਕਸ ਸਉ ਚਿਤੁ ਲਾਇ ॥
दूजी छोडि कुवाटड़ी इकस सउ चितु लाइ ॥
द्वैतभाव का कुमार्ग छोड़कर भगवान से दिल लगाओ।
ਦੂਜੈ ਭਾਵੀਂ ਨਾਨਕਾ ਵਹਣਿ ਲੁੜ੍ਹ੍ਹੰਦੜੀ ਜਾਇ ॥੧੬॥
दूजै भावीं नानका वहणि लुड़्हंदड़ी जाइ ॥१६॥
हे नानक ! द्वैतभाव में रहने वाले लोग नदिया में बहने वाली चीज़ की तरह हैं॥१६॥
ਤਿਹਟੜੇ ਬਾਜਾਰ ਸਉਦਾ ਕਰਨਿ ਵਣਜਾਰਿਆ ॥
तिहटड़े बाजार सउदा करनि वणजारिआ ॥
लोग त्रिगुणात्मक माया के बाजार में जीवन का सौदा करते हैं।
ਸਚੁ ਵਖਰੁ ਜਿਨੀ ਲਦਿਆ ਸੇ ਸਚੜੇ ਪਾਸਾਰ ॥੧੭॥
सचु वखरु जिनी लदिआ से सचड़े पासार ॥१७॥
दरअसल वही सच्चे पंसारी कहलाने के हकदार हैं, जिन्होंने नाम रूपी सच्चा सौदा लाद लिया है॥ १७ ॥
ਪੰਥਾ ਪ੍ਰੇਮ ਨ ਜਾਣਈ ਭੂਲੀ ਫਿਰੈ ਗਵਾਰਿ ॥
पंथा प्रेम न जाणई भूली फिरै गवारि ॥
गंवार जीव-स्त्री प्रेम का रास्ता नहीं जानती और भटकती रहती है।
ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਬਿਸਰਾਇ ਕੈ ਪਉਦੇ ਨਰਕਿ ਅੰਧੵਾਰ ॥੧੮॥
नानक हरि बिसराइ कै पउदे नरकि अंध्यार ॥१८॥
हे नानक ! भगवान को भुलाकर वे घोर नरक में पड़ती है॥१८॥
ਮਾਇਆ ਮਨਹੁ ਨ ਵੀਸਰੈ ਮਾਂਗੈ ਦੰਮਾਂ ਦੰਮ ॥
माइआ मनहु न वीसरै मांगै दमां दम ॥
जीव के मन से धन-दौलत नहीं भूलती, बल्कि ज्यादा से ज्यादा धन ही मांगता है।
ਸੋ ਪ੍ਰਭੁ ਚਿਤਿ ਨ ਆਵਈ ਨਾਨਕ ਨਹੀ ਕਰੰਮਿ ॥੧੯॥
सो प्रभु चिति न आवई नानक नही करमि ॥१९॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि यदि भाग्य में न हो तो उसे प्रभु याद नहीं आता ॥१६॥
ਤਿਚਰੁ ਮੂਲਿ ਨ ਥੁੜੀਂਦੋ ਜਿਚਰੁ ਆਪਿ ਕ੍ਰਿਪਾਲੁ ॥
तिचरु मूलि न थुड़ींदो जिचरु आपि क्रिपालु ॥
जब तक ईश्वर कृपा बनी रहती है, तब तक किसी चीज़ की कमी नहीं आती।
ਸਬਦੁ ਅਖੁਟੁ ਬਾਬਾ ਨਾਨਕਾ ਖਾਹਿ ਖਰਚਿ ਧਨੁ ਮਾਲੁ ॥੨੦॥
सबदु अखुटु बाबा नानका खाहि खरचि धनु मालु ॥२०॥
नानक का कथन है कि शब्द-प्रभु अक्षुण्ण भण्डार है, इस धन का स्वेच्छा से खर्च उपयोग किया जा सकता है॥२०॥
ਖੰਭ ਵਿਕਾਂਦੜੇ ਜੇ ਲਹਾਂ ਘਿੰਨਾ ਸਾਵੀ ਤੋਲਿ ॥
ख्मभ विकांदड़े जे लहां घिंना सावी तोलि ॥
यदि पंख बिक रहे हों तो उनको पर्याप्त मूल्य पर खरीद लूंगा।
ਤੰਨਿ ਜੜਾਂਈ ਆਪਣੈ ਲਹਾਂ ਸੁ ਸਜਣੁ ਟੋਲਿ ॥੨੧॥
तंनि जड़ांई आपणै लहां सु सजणु टोलि ॥२१॥
इनको अपने शरीर पर लगाकर अपने प्रभु को ढूंढ लूंगा ॥ २१ ॥
ਸਜਣੁ ਸਚਾ ਪਾਤਿਸਾਹੁ ਸਿਰਿ ਸਾਹਾਂ ਦੈ ਸਾਹੁ ॥
सजणु सचा पातिसाहु सिरि साहां दै साहु ॥
मेरा सज्जन प्रभु ही सच्चा बादशाह है, वह शाहों से बड़ा शहंशाह है।
ਜਿਸੁ ਪਾਸਿ ਬਹਿਠਿਆ ਸੋਹੀਐ ਸਭਨਾਂ ਦਾ ਵੇਸਾਹੁ ॥੨੨॥
जिसु पासि बहिठिआ सोहीऐ सभनां दा वेसाहु ॥२२॥
उसके पास बैठते ही शोभा प्राप्त होती है, सब लोगों को उसी का भरोसा है॥२२ ॥
ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
वह अद्वितीय परब्रह्म जिसका वाचक ओम् है, केवल एक (ऑकार स्वरूप) है, गुरु की कृपा से प्राप्त होता है।
ਸਲੋਕ ਮਹਲਾ ੯ ॥
सलोक महला ९ ॥
श्लोक महला ६ ॥
ਗੁਨ ਗੋਬਿੰਦ ਗਾਇਓ ਨਹੀ ਜਨਮੁ ਅਕਾਰਥ ਕੀਨੁ ॥
गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु ॥
हे भाई ! तुमने गोविन्द का गुणगान नहीं किया, अपना जीवन बेकार ही खो दिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਭਜੁ ਮਨਾ ਜਿਹ ਬਿਧਿ ਜਲ ਕਉ ਮੀਨੁ ॥੧॥
कहु नानक हरि भजु मना जिह बिधि जल कउ मीनु ॥१॥
गुरु नानक निर्देश करते हैं कि हे मन ! परमात्मा का इस तरह भजन करो, जैसे मछली पानी में तल्लीन रहती है॥१॥
ਬਿਖਿਅਨ ਸਿਉ ਕਾਹੇ ਰਚਿਓ ਨਿਮਖ ਨ ਹੋਹਿ ਉਦਾਸੁ ॥
बिखिअन सिउ काहे रचिओ निमख न होहि उदासु ॥
हे भाई ! क्योंकर विषय-विकारों में लीन हो, एक पल भी इनसे तुम अलग नहीं होते।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਜੁ ਹਰਿ ਮਨਾ ਪਰੈ ਨ ਜਮ ਕੀ ਫਾਸ ॥੨॥
कहु नानक भजु हरि मना परै न जम की फास ॥२॥
गुरु नानक फुरमान करते हैं कि हे मन ! भगवान का भजन कर लो, यम का फंदा नहीं पड़ेगा ॥२॥
ਤਰਨਾਪੋ ਇਉ ਹੀ ਗਇਓ ਲੀਓ ਜਰਾ ਤਨੁ ਜੀਤਿ ॥
तरनापो इउ ही गइओ लीओ जरा तनु जीति ॥
जवानी तो यूं ही चली गई, अब बुढ़ापे ने तन पर कब्जा कर लिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਭਜੁ ਹਰਿ ਮਨਾ ਅਉਧ ਜਾਤੁ ਹੈ ਬੀਤਿ ॥੩॥
कहु नानक भजु हरि मना अउध जातु है बीति ॥३॥
गुरु नानक निर्देश करते हैं कि हे मन ! ईश्वर का भजन कर ले, समय बीतता जा रहा है॥३ ॥
ਬਿਰਧਿ ਭਇਓ ਸੂਝੈ ਨਹੀ ਕਾਲੁ ਪਹੂਚਿਓ ਆਨਿ ॥
बिरधि भइओ सूझै नही कालु पहूचिओ आनि ॥
बूढ़ा हो गया, कोई होश नहीं, मौत भी सिर पर आ गई है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਰ ਬਾਵਰੇ ਕਿਉ ਨ ਭਜੈ ਭਗਵਾਨੁ ॥੪॥
कहु नानक नर बावरे किउ न भजै भगवानु ॥४॥
गुरु नानक का कथन है कि हे बावले नर ! अब भी तुम भगवान का भजन क्यों नहीं कर रहे ॥ ४ ॥
ਧਨੁ ਦਾਰਾ ਸੰਪਤਿ ਸਗਲ ਜਿਨਿ ਅਪੁਨੀ ਕਰਿ ਮਾਨਿ ॥
धनु दारा स्मपति सगल जिनि अपुनी करि मानि ॥
हे भाई ! धन-दौलत, पत्नी एवं पूरी सम्पति को जिसे तुमने अपना मान लिया था।
ਇਨ ਮੈ ਕਛੁ ਸੰਗੀ ਨਹੀ ਨਾਨਕ ਸਾਚੀ ਜਾਨਿ ॥੫॥
इन मै कछु संगी नही नानक साची जानि ॥५॥
नानक की सच्ची बात मान लो कि इनमें से कोई तेरा साथी नहीं ॥ ५ ॥
ਪਤਿਤ ਉਧਾਰਨ ਭੈ ਹਰਨ ਹਰਿ ਅਨਾਥ ਕੇ ਨਾਥ ॥
पतित उधारन भै हरन हरि अनाथ के नाथ ॥
ईश्वर पतित जीवों का उद्धार करने वाला है, भयभंजन एवं अनाथों का नाथ है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਤਿਹ ਜਾਨੀਐ ਸਦਾ ਬਸਤੁ ਤੁਮ ਸਾਥਿ ॥੬॥
कहु नानक तिह जानीऐ सदा बसतु तुम साथि ॥६॥
नानक का कथन है कि यह समझ लो कि वह सदैव तुम्हारे साथ रहता है।॥ ६ ॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਜਿਹ ਤੋ ਕਉ ਦੀਓ ਤਾਂ ਸਿਉ ਨੇਹੁ ਨ ਕੀਨ ॥
तनु धनु जिह तो कउ दीओ तां सिउ नेहु न कीन ॥
जिस भगवान ने तुझे सुन्दर तन-धन दिया, उससे प्रेम नहीं किया।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਨਰ ਬਾਵਰੇ ਅਬ ਕਿਉ ਡੋਲਤ ਦੀਨ ॥੭॥
कहु नानक नर बावरे अब किउ डोलत दीन ॥७॥
नानक कहते हैं कि हे बावले नर ! अब दीन होकर क्यों दोलायमान हो रहा है॥७ ॥
ਤਨੁ ਧਨੁ ਸੰਪੈ ਸੁਖ ਦੀਓ ਅਰੁ ਜਿਹ ਨੀਕੇ ਧਾਮ ॥
तनु धनु स्मपै सुख दीओ अरु जिह नीके धाम ॥
जिस परमेश्वर ने शरीर, धन-संपति, सुख-सुविधाएँ और रहने के लिए घर दिया है।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨੁ ਰੇ ਮਨਾ ਸਿਮਰਤ ਕਾਹਿ ਨ ਰਾਮੁ ॥੮॥
कहु नानक सुनु रे मना सिमरत काहि न रामु ॥८॥
गुरु नानक समझाते हैं कि हे मन ! उस राम का सिमरन क्यों नहीं करते ॥८॥
ਸਭ ਸੁਖ ਦਾਤਾ ਰਾਮੁ ਹੈ ਦੂਸਰ ਨਾਹਿਨ ਕੋਇ ॥
सभ सुख दाता रामु है दूसर नाहिन कोइ ॥
परमात्मा सब सुख देने वाला है, उसके अतिरिक्त कोई दूसरा नहीं।
ਕਹੁ ਨਾਨਕ ਸੁਨਿ ਰੇ ਮਨਾ ਤਿਹ ਸਿਮਰਤ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥੯॥
कहु नानक सुनि रे मना तिह सिमरत गति होइ ॥९॥
गुरु नानक निर्देश करते हैं कि हे मन ! उसका सुमिरन (स्मरण) करने से ही मुक्ति होती है।॥६॥